प्रोफेसर यशपाल की विस्तृत जीवनी और उनका योगदान।
भारत के मशहूर वैज्ञानिक और शिक्षाविद प्रोफेसर यश पाल का 90 वर्ष की अवस्था में आज दिनांक 25 जुलाई 2017 को सुबह नोएडा के एक अस्पताल में निधन हो गया। वे काफी समय से बीमार चल रहे थे। उनके महनीय योगदान को रेखांकित करते हुए प्रस्तुत है एक श्रद्धांजलि आलेख।
समझना वो है जिसके बाद मजा आता है: यश पाल
मनीष मोहन गोरे
कंधों पर लहराते बड़े-बड़े सफेद बाल, रंगीन कुर्ता, उस पर हॉफ जैकेट और होंठों पर सुखद मुस्कान लिए हुए एक वयोवृद्ध भारतीय वैज्ञानिक के बारे में आज हम बात करने जा रहे हैं। क्या आपने अंदाजा लगाया कि यह व्यक्ति कौन है? जी हां! हम बात कर रहे हैं प्रोफेसर यश पाल की। भारत के कोने-कोने में लोग इन्हें अच्छी तरह जानते हैं। उनकी लोकप्रियता बेवजह नहीं है।
प्रोफेसर यश पाल वैज्ञानिक, विज्ञान संचारक, शिक्षाविद और संस्थान निर्माता जैसे व्यक्तित्वों का एक सम्मिश्रण है। भारत में ऐसे कम वैज्ञानिक हुए हैं जिन्होंने यश के समान इतने सारे क्षेत्रों में उत्कृष्टता और अदम्य उत्साह के साथ काम किया हो। इन्होंने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन_Indian Space Research Organisation (इसरो) की एक उत्कृष्ट इकाई स्पेश एप्लीकेशन सेंटर_Space Applications Centre को संजोकर निर्मित किया और 1975-76 के दौरान सैटेलाइट इंस्ट्रक्शनल टेलीविजन एक्सपेरिमेंट_Satellite Instructional Television Experiment (SITE) को रूपायित तथा क्रियांवित किया।
साइट के क्रियांवयन के बाद भारत में शैक्षिक संचार के पंख लगे जिसका समूचा श्रेय यश पाल को जाता है। मूलभूत विज्ञान में अनेक महत्वपूर्ण योगदान देने के बाद यश पाल 1990 के दशक में ‘भारत जन ज्ञान विज्ञान जत्था’ से जुड़े और आम जन को उसकी भाषा में विज्ञान की बातें सरलता से समझाने वाले एक विज्ञान संचारक के रूप में लोकप्रिय हुए। उसी दौरान टीवी पर आने वाले विज्ञान धारावाहिक ‘टर्निंग प्वाइंट’ में दर्शकों के ज्ञान-विज्ञान से जुड़े सवालों के वे रोचक जवाब देते थे। इस कार्यक्रम की लोकप्रियता ने यशपाल की एक राष्ट्रीय छवि का निर्माण किया। बच्चे और युवा उनसे व्यापक रूप से प्रेरित-प्रभावित हुए।
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यश पाल के जीवन का उथल-पुथल भरा आरंभ:
यशपाल का जन्म 26 नवंबर 1926 को पंजाब में चेनाब नदी के पूर्वी किनारे पर स्थित झंग (अब पाकिस्तान) में एक अत्यंत सांस्कृतिक मूल्यों वाले परिवार में हुआ था। क्वेटा (बलूचिस्तान) में उनका आरंभिक बचपन व्यतीत हुआ और यहीं उन्हें प्राथमिक शिक्षा भी मिली। दरअसल इस जगह उनके पिता ब्रिटिश शासन में भारत सरकार के लिए नौकरी करते थे।
सन् 1935 में यश जब 9 वर्ष के बालक थे, तो वहां पर 7.7 क्षमता का विनाशकारी भूकंप आया था और जिसके परिणामस्वरूप क्वेटा में अनुमानित तौर पर 60,000 लोगों की जानें गईं। इस प्राकृतिक आपदा ने क्वेटा को लगभग बर्बाद कर दिया। सौभाग्य से यश और उनके भाई-बहन ध्वस्त मकान के मलबे से सुरक्षित निकाले गए। उन्हें नाना के घर कोट-इसा-शाह भेजा गया। भारतीय सेना ने अगले एक साल में क्वेटा में मलबों को साफ कर गांव-कस्बों की पुर्नस्थापना कर दी और यश व उसके भाई-बहन अपने माता-पिता के पास आ गए। कुछ वर्ष बाद यश के पिता का तबादला जबलपुर हो गया, जहां यश ने स्वाध्याय आरंभ किया और उनकी मुलाकात एक महान शिक्षक पवार से हुई जो लीक से हटकर अध्यापन करते थे। वह अध्यायों को परंपरागत व्याख्यान शैली में न बताकर विद्यार्थियों से चर्चा करके उन्हें अवधारणाओं को समझाते थे। यश के बाल मन पर इस शिक्षण शैली का गहरा असर हुआ।
अपने बचपन के दिनों में यश दूसरे विश्व युद्ध, सविनय अवज्ञा और भारत छोड़ो आंदोलन के बारे में सुना करते थे। उस दौर के अधिकांश लोगों की तरह तब यश भी गांधी और उनके विचारों से प्रभावित हुए।
वर्ष 1942 में मैट्रिक परीक्षा पास करने के बाद वह बी. एस-सी. भौतिकी की पढ़ाई के लिए पंजाब विश्वविद्यालय आ गए। भाग्य ने यहां भी उनके साथ एक खिलवाड़ किया - वह लंबे समय तक बीमार पड़ गए। मगर इस बीमारी के कारण एक अच्छी बात हुई, वो ये कि उन्हें दुनिया भर की अनेक महत्वपूर्ण किताबों को पढ़ने का मौका मिल गया और पाठ्यक्रम से अलग इस प्रकार के अध्ययन ने उनके व्यक्तित्व में नए आयाम जोड़े।
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भौतिकी में एम. एस-सी. का अध्ययन भी उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय में जारी रखा। इसी दरम्यान उनके पिता का तबादला दिल्ली हो गया और वह अपनी गर्मी की छुट्टियां बिताने अपने पिता के साथ दिल्ली आ गए। यह साल 1947 का समय था जब भारत को आजादी मिलने ही वाली थी। आजादी की उद्घोषणा के बाद देश का विभाजन भारत और पाकिस्तान में हो गया। इस विभाजन के फलस्वरूप यश वापस लाहौर नहीं लौट पाए। 1949 में पंजाब विश्वविद्यालय के दिल्ली विश्वविद्यालय स्थित फीजिक्स आॅनर्स स्कूल से उन्होंनं एम. एस-सी. की पढ़ाई पूरी की।
प्रोफेसर यश पाल अपनी पत्नी निर्मल के साथ |
कॉस्मिक किरण और कण भौतिकी में अनुसंधान:
यश जब एम. एस-सी. अंतिम वर्ष की पढ़ाई कर रहे थे, उसी दौरान टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान_Tata Institute of Fundamental Research (TIFR) में अनुसंधान सहायक की नौकरी से जुड़ा विज्ञापन अखबार में छपा। हालांकि उस समय यश के एम. एस-सी. के परिणाम नहीं आए थे मगर उन्होंने वहां आवेदन कर दिया और साक्षात्कार के लिए उन्हें बुलावा भी आ गया। संयोगवश उन्हें वह नौकरी मिल गई और वह टीआईएफआर, बांबे (अब मुंबई) को चल दिए, जहां पर उन्होंने अपने जीवन का दो दशक से भी लंबा समय वैज्ञानिक अनुसंधान में बिताया। यशपाल के अनुसंधान क्षेत्र कॉस्मिक किरण और कण भौतिकी थे।
टीआईएफआर में यश पाल को देवेंद्र लाल और बर्नार्ड पीटर्स जैसे दो अनुसंधान साथी मिल गए और इस तिकड़ी (लाल, पाल और पीटर्स) ने महत्वपूर्ण अनुसंधान कार्य किए। 1954 में यशपाल अपनी मित्र निर्मल से विवाह के सूत्र में बंध गए। आगे चलकर इनके दो बेटे राहुल और अनिल हुए।
यशपाल और स्पेश एप्लीकेशन सेंटर:
भारत के अंतरिक्ष वास्तुकार विक्रम साराभाई_Vikram Sarabhai के असामयिक निधन के बाद सतीश धवन ने 1972 में अंतरिक्ष आयोग का अध्यक्ष पद संभाला। उनका स्पष्ट तौर पर मानना था कि अंतरिक्ष कार्यक्रम के अनुप्रयोगों से भारत की आम जनता को लाभ मिलना चाहिए। साराभाई इस सोच को साकार करने की पृष्ठभूमि तैयार कर चुके थे और सैटेलाइट इंस्ट्रक्शनल टेलीविजन एक्सपेरिमेंट (एसआईटीई) की शुरूआत कर दिया था जो एक वर्ष की अवधि के लिए भारत के गांवों में टीवी कार्यक्रमों का प्रसारण करने वाला था।
1972 में स्पेश एप्लीकेशंस सेंटर (एसएसी) की स्थापना उपरोक्त उद्देश्य के साथ अहमदाबाद में की गई। टीआईएफआर छोड़कर एसएसी का निदेशक पद ग्रहण करने और एसआईटीई कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए सतीश धवन ने यशपाल को राजी कर लिया।
यश पाल ने इस नई जिम्मेदारी का सफल निर्वहन किया और दिन-रात जी-तोड़ मेहनत कर विक्रम साराभाई तथा सतीश धवन के भरोसे का निर्वाह किया। एसआईटीई के जरिए देश में बच्चों की शिक्षा, कृषि, पशुपालन, स्वास्थ्य, स्वच्छता और परिवार नियोजन जैसे मुद्दों पर टीवी कार्यक्रम प्रसारित होने लगे। यह अपने जैसा एक बहुत बड़ा जन संचार प्रयोग था जिसे मूर्त रूप देने में स्पेश एप्लीकेशंस सेंटर के 1500 लोगों की टीम ने काम किया था और इसके लीडर थे यशपाल।
यश पाल इस प्रयोग को एक गहन मानवीय अनुभव की संज्ञा देते हुए कहते हैं- ‘एसआईटीई ने भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को एक अनोखी प्रेरणा दी जिसके कारण आने वाले वर्षों में अनेक स्थलीय प्रसारण केंद्रों और ट्रांसमीटरों को परस्पर जोड़ने के लिए एक संचार उपग्रह के उपयोग द्वारा राष्ट्रीय टेलीविजन नेटवर्क की स्थापना हुई। विश्व के पहले प्रत्यक्ष प्रसारण उपग्रह टेलीविजन प्रणाली के रूप में एसआईटीई ने विकासशील देशों में शिक्षा के लिए उपग्रहों के प्रयोग के महत्व को साबित करके दिखाया। इस प्रयोग से यह प्रमाणित हुआ कि उपग्रहों का उपयोग शिक्षा संचार और विकास के लिए किया जा सकता है तथा दुनिया को यह संदेश भी संचारित हुआ कि इस तरह की वैज्ञानिक क्षमता भारत के पास है।’
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विज्ञान और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में यशपाल के योगदान को दृष्टिगत रखते हुए भारत सरकार ने 1976 में ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित किया। भारत के ग्रामीणों की आवश्यकताओं को पूरा करने की दिशा में आधुनिक संचार प्रौद्योगिकी का अनुप्रयोग करने में बुद्धिमत्तापूर्ण और मानवीय नेतृत्व के लिए 1980 में एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मान ‘मारकोनी फेलोशिप’ से यशपाल को नवाजा गया।
प्रोफेसर यश पाल UNISPACE-II सम्मेलन में भाग लेते हुए |
एसआईटीई की सफलता के बाद यशपाल का यश अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया में फैल गया। 1982 में संयुक्त राष्ट्र के तत्कालीन महासचिव जेवियर पेरेज डे कूएलर ने यशपाल को बाह्य अंतरिक्ष के अन्वेषण एवं शांतिपूर्ण प्रयोगों पर केंद्रित द्वितीय सुंयक्त राष्ट्र सम्मेलन UNISPACE-II का महासचिव बनने का आमंत्रण भेजा। यशपाल ने विएना (आस्ट्रिया) में आयोजित इस सम्मेलन में हिस्सा लिया और इसमें अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
प्रोफेसर यश पाल का भारतीय शिक्षा में योगदान:
यश पाल की प्रतिभा से भारतीय समाज को व्यापक लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से भारत सरकार ने 1983 में उन्हें योजना आयोग का मुख्य सलाहकार बनाया और 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें विज्ञान एंव प्रौद्योगिकी विभाग का सचिव बनाया। इस पद पर वे 1986 तक रहे। 1984 में इंदिरा गांधी की असामयिक मौत के बाद बनी नई सरकार में प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन किए जाने के उद्देश्य से उन्हें 1986 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग_University Grants Commission (UGC) का चेयरमैन नियुक्त किया।
शिक्षा पद्धति में सुधार लाना यश पाल के जीवन का मुख्य सरोकार था और वह शिक्षा तथा सीखने-समझने के नए तौर-तरीकों में हमेशा रूचि लेते रहे इसलिए यूजीसी में मिली जिम्मेदारी को उन्होंने एक चुनौती की तरह लिया। वह किताबी शिक्षा के बजाय मानवीय संपर्क और सामाजिक परस्पर क्रिया पर बल देते रहे हैं। उन्हें हमेशा यह महसूस होता था कि हमारी शिक्षा पद्धति में कोई गंभीर कमी है जिसे दूर करने से ही मौजूदा स्थिति में सुधार लाया जा सकता है।
अपने अनुभव के आधार पर यशपाल ने यह महसूस किया कि शिक्षा का अर्थ केवल ज्ञान प्रदान करना नहीं है और यह एक-तरफा प्रक्रिया भी नहीं होती बल्कि इसका आशय व्यर्थ की ढेर सारी सूचनाओं के बोझ को कम करके बच्चों के अवगाहन तथा समझने की क्षमता में बढ़ोतरी करना है। यशपाल जोर डालकर यह बात कहते हैं कि समझना वो है जिसके बाद मजा आता है।
यूजीसी चेयरमैन बनने के बाद यश पाल ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था में बदलाव लाने की पहल के रूप में चार महत्वपूर्ण कदम उठाए। पहला इंटर-यूनिवर्सिटी एक्सेलेरेटर सेंटर _Inter University Accelerator Center (IUAC), नई दिल्ली; दूसरा इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फार एस्ट्रोनामी एंड एस्ट्रोफिजिक्स_Inter University Center for Astronomy and Astrophysics (IUCAA), पुणे; तीसरा इंफार्मेशन एंड लायब्रेरी नेटवर्क_Information and Library Network (इंफ्लिबनेट) की स्थापनाएं कीं।
पहला सेंटर आईयूएसी नाभिकीय विज्ञान के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय केंद्र के रूप में कार्य कर रहा है, दूसरा आइयूका खगोलिकी, खगोल-भौतिकी अनुसंधान एवं खगोलिकी लोकप्रियकरण जैसे अहम दायित्व निर्वहन कुशलतापूर्वक कर रहा है और तीसरा इंफ्लिबनेट भारत में विशाल संख्या में विश्वविद्यालय पुस्तकालयों को जोड़कर विद्यार्थियों एवं शोधार्थियों के बीच ज्ञान के एक महासेतु का काम कर रहा है।
चौथा महत्वपूर्ण कदम यश पाल ने उठाया कि अनेक राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं और संस्थानों को डीम्ड विश्वविद्यालय का दर्जा दे दिया जिसके परिणामस्वरूप यहां के विद्यार्थी, शिक्षक और वैज्ञानिक अध्ययन-अनुसंधान के लिए खुलकर एक-दूसरे से संवाद बनाते हैं तथा ज्ञान का प्रसार बेरोक-टोक होता है।
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विज्ञान की जनसमझ में यश पाल की भूमिका:
यश पाल ने विज्ञान के लोकप्रियकरण और भारतीय समाज में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास हेतु नैसर्गिक तौर पर जो भी योगदान दिया, वे सब उनके मन से निकले सरोकार थे और उन बातों को उन्होंने स्वयं महसूस किया था। एक वरिष्ठ वैज्ञानिक, निदेशक, सचिव और नीति निर्माता जैसे दायित्वपूर्ण पदों पर रहते हुए उन्हें स्कूली बच्चों, ग्रामीणों, वैज्ञानिकों तथा राजनेताओं से मिलकर जो भी ज्ञान हुआ, उनके आधार पर उन्होंने ज्ञान-विज्ञान को समझने के लिए अपने सुझाव दिए।
सबसे पहले यश पाल प्रत्यक्ष रूप से ‘भारत जन ज्ञान-विज्ञान जत्था’ से जुड़े और फिर एनसीएसटीसी-नेटवर्क के महत्वपूर्ण कार्यक्रम राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस में प्रेरणा-सूत्र बन कर उभरे।
टेलीविजन पर अपनी एक अनोखी और प्रभावोत्पादक शैली में विज्ञान की गूढ़ बातों को सरलता से अंग्रेजी व हिंदी में समझाने के कारण उनकी लोकप्रियता को पंख लगे। टीवी धारावाहिक ‘टर्निंग प्वाइंट; में देश भर से आए विज्ञान प्रश्नों के सीधे-सरल जवाब देने वाले इस यशस्वी विज्ञान संचारक ने विज्ञान से जुड़े कार्यक्रम की लोकप्रियता को एक नया आयाम प्रदान किया तो वहीं ‘मानव की विकास’ जैसे धारावाहिक में उनकी कमेंट्री ने श्रोताओं को चमत्कृत कर दिया।
टर्निंग प्वाइंट के लगभग 150 धारावाहिकों में यश पाल ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। इसके बाद वह ‘भारत की छाप’, ‘तर-रम-तू’ और ‘रेस टू सेव दि प्लैनेट’ जैसे लोकप्रिय टीवी धारावाहिकों में भी वे नजर आए। सूर्य ग्रहण (1995 और 1999) और शुक्र पारगमन (2004) जैसी आकाशीय घटनाओं के समय यशपाल टीवी पर अपने अनोखे अंदाज में दर्शकों को वैज्ञानिक जानकारी प्रस्तुत करते रहे।
विज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान के लिए भारत सरकार ने पद्म भूषण (1976) और पद्म विभूषण (2013) जैसे महत्वपूर्ण नागरिक सम्मानों से विभूषित किया और नेशनल रिसर्च प्रोफेसर भी बनाया। विज्ञान लोकप्रिकरण के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्यों के लिए विश्व का सर्वश्रेष्ठ यूनेस्को कलिंग पुरस्कार से भी वर्ष 2009 में यशपाल को सम्मानित किया जा चुका है।
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लेखक परिचय:
मनीष मोहन गोरे चर्चित विज्ञान लेखक/संचारक हैं। आप वर्ष 1995 से पत्र-पत्रिकाओं, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन आदि जनसंचार के विभिन्न माध्यमों द्वारा वैज्ञानिक दृष्टिकोण और पर्यावरण संरक्षण जागरूकता के लिए प्रयासरत हैं। आपकी विज्ञान संचार विषयक एक दर्जन से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं तथा इन पर अनेक पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। आप विज्ञान संचार के क्षेत्र में कार्यरत संस्था ‘विज्ञान प्रसार’ से सम्बद्ध हैं।
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प्रोफेसर यशपाल के बारे में विस्तार के जानने को मिला, आभार।
जवाब देंहटाएंविस्तार से लिखा आपने प्रोफ़ेसर यशपाल जी के बारे में, आभार.
जवाब देंहटाएंरामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
मैं कला की शिक्षिका रही प्रोफेसर यशपाल के योगदान के विषय मेंजानती तो थी मगर आपके आलेख द्वारा और भी बहुत कुछ जानने का मौका मिला। सुंदर और ज्ञानवर्धक आलेख के लिए आपको बहुत-बहुत आभार।
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