सोना बनाने की प्राचीन विधियां।
सोना आखिर सोना होता है। वह सिर्फ महिलाओं को ही नहीं, आदिकाल से पुरूषों को भी आकर्षित करता रहा है। यही कारण है कि प्राचीन काल से सोना बनाने के लिए लोगों के द्वारा अनेकानेक प्रयोग किये जाते रहे हैं। ऐसे ही कुछ प्रयोगों और विधियों के बारे में बात करते हैं इस बार।
बौद्ध धर्म का एक चर्चित ग्रन्थ है 'रस रत्नाकर' (Ras Ratnakar), जिसके लेखक नागार्जुन (Nagarjuna) माने जाते हैं। इस ग्रन्थ में एक जगह पर रोचक वर्णन है, जिसमें शालिवाहन और वट यक्षिणी के बीच रोचक संवाद है। शालिवाहन यक्षिणी से कहता है- 'हे देवी, मैंने ये स्वर्ण और रत्न तुझ पर निछावर किये, अब मुझे आदेश दो।' शालिवाहन की बात सुनकर यक्षिणी कहती है- 'मैं तुझसे प्रसन्न हूँ। मैं तुझे वे विधियाँ बताऊँगी, जिनको मांडव्य ने सिद्ध किया है। मैं तुम्हें ऐसे-ऐसे योग बताऊँगी, जिनसे सिद्ध किए हुए पारे से ताँबा और सीसा जैसी धातुएँ सोने में बदल जाती हैं।'
शायद 'रस रत्नाकर' जैसी पुस्तकों का ही असर रहा है कि भारत में आम जनता में इस विद्या को लेकर काफी उत्साह रहा है। लोक कथाओं और किवदंतियों में ऐसे अनेक किस्से सुनने को मिलते हैं, जिसमें सोना बनाने का वर्णन आया है। ऐसा ही एक किस्सा विक्रमादित्य (Vikramaditya King) के राज्य में रहने वाले 'व्याडि' नामक एक व्यक्ति का है, जिसने सोना बनाने की विधा जानने के लिए अपनी सारी जिंदगी बर्बाद कर दी थी।
ऐसा ही एक किस्सा तारबीज और हेमबीज का भी है। कहा जाता है कि ये वे पदार्थ हैं, जिनसे कीमियागर (Kimiyagar) लोग सामान्य पदार्थों से चाँदी और सोने का निर्माण कर लिया करते थे। इसकी चर्चा भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी सुनने को मिलती है। इस विद्या को 'हेमवती विद्या' (Hemwati Vidya) के नाम से भी जाना जाता है।
सोने के प्रति आम आदमी की जबरदस्त भूख का फायदा उठाकर कई कीमियागर अक्सर लोगों को बेवकूफ भी बनाते रहे हैं। अक्सर ऐसे लोग किसी अनजान शहर में पहुँच कर मजमा लगाकर सोने बनाने की विधि का प्रदर्शन करते थे। ऐसा करते समय वे एक बड़े से कड़ाह में तमाम तरह के पदार्थो को मिलाकर पकाते रहते थे और उसे चलाने के लिए अंदर से खोखली छड़ का प्रयोग करते थे। वे अपनी छड़ में सोने की कुछ मात्रा मिलाकर उसे मोम से भर देते थे। गर्म खौलते पदार्थ में जब वह छड़ चलाई जाती थी, तो उसमें जमा सोना निकलकर कड़ाही में आ जाता था और लोग यह समझते थे कि सचमुच कीमियागर ने सोने का निर्माण किया है।
15वीं सदी में 'गिलीज द लॉवेल' नामक एक ऐसा स्वर्ण पिपासु व्यक्ति हुआ है, जिसने सोना बनाने की विद्या जानने के लिए पागलपन की सीमा को भी लाँघ दिया था। कहा जाता है कि उसे किसी तांत्रिक ने बता दिया था कि यदि वह छोटे बच्चों की बलि चढ़ाए तो शैतान की देवी उसपर प्रसन्न होकर उसे 'फिलास्फर्स स्टोन' (Philosopher's Stone) का पता बता सकती है। लॉवेल के इन अमानवीय कृत्यों के कारण उसे 1440 ईसवीं में मृत्युदण्ड दे दिया गया था।
सोना बनाने के जितने भी किस्से और विधाएँ सुनने में आती हैं, वे सभी तर्कहीन और मानव मन की उड़ान ही हैं। इसके पीछे कारण सिर्फ इतना है कि सोना हर काल, हर समय में बहुमूल्य धातु रही है और अधिकाँश मनुष्य बिना कुछ किए बहुत कुछ पाने की इच्छा रखते हैं। मनुष्यों की इसी कमज़ोरी का फायदा उठाकर चालाक और धूर्त लोग 'पारस पत्थर' (Paras Pathar) और 'रहस्यमयी विद्या' के नाम पर आम जनता को बेवकूफ बनाते रहे हैं। जबकि सच सभी लोग जानते हैं कि न तो ऐसी कोई वस्तु कभी कहीं अगर पाई गयी है, तो वह सिर्फ कल्पना और किस्सों में ही।
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सही लिखा है आपने al-chemist अवधारणा उर्वर मस्तिष्क की उपज के अलावा कुछ और हो ही क्या सकता है
जवाब देंहटाएंखैर इस मसले में आपके और काजल भाई के ख्याल नेक लग रहे हैं !
जवाब देंहटाएं...पर आपको शायद पता नही कि मैं भी सोने का दीवाना हूं !
मुझे सोना बनाने के लिये केवल 6*4' का स्पेस चाहिये होता है :)
अच्छी जानकारी है। धन्यवाद्
जवाब देंहटाएंमेरे पास एक मंत्र है सोना बनने का, लेकिन वो किसी को नही चाहिये.... वो मंत्र है मेहनत, ओर सिर्फ़ मेहनत कर के हम सोना क्या सब कुछ हांसिल कर सकते है
जवाब देंहटाएंYep
हटाएंओह, दूसरी टिप्पणी तो रह ही गई...
जवाब देंहटाएंमोना अजीत बॉस से -"बॉस, सोना कहां है ?"
अजीत बॉस -"मोना, कहीं भी सो जाओ, पूरा का पूरा सी-बीच अपना ही है."
भरपेट भोजन दोनों समय .तन ढकने को वस्त्र ,सर पर छत
जवाब देंहटाएंइससे बड़ा सोना नहीं देश निर्धन जनगण के लिए
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जवाब देंहटाएं.
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एकदम सही लिखा है आपने, परंतु काफी अन्य अतार्किक बातों की तरह अभी भी काफी लोग यह मानते हैं कि किसी दूसरी धातु को सोने में बदला जा सकता है ।
ठीक इसी तरह जैसे कइयों को विश्वास है कि 'उनके वाले बाबा या गुरू' हवा में से कोई भी इच्छित चीज पैदा कर सकते हैं।
काफी समय लगेगा अज्ञान और अंधविश्वास के इस कुचक्र को तोड़ने में...लगे रहिये...
आभार!
...
सौ फ़ीसदी सहमत.
जवाब देंहटाएंहालाँकि ये न समझा जाए कि मैं स्वर्ण रंजन विधि का कोई समर्थन कर रहा हूँ..
जवाब देंहटाएंलेकिन सुना है कि बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के विश्वनाथ मन्दिर के ऊपर के भाग में "रस विद्या" आचार्य नागार्जुन के चित्र के नीचे संगमरमर पत्थर का शिलालेख है...जिस पर नागरी लिपि में निम्न वाक्यांश उत्कीर्ण है " वर्तमान में चैत्र मास संवत 1966 में पंजाब के काशी निवासी पं. कृ्ष्णपाल रस वैद्य नें ऋषिकेश में महात्मा गाँधी के सचिव श्री महादेव देसाई, श्री गोस्वामी गणेशदत्त तथा श्री जुगल किशोर बिडला के समक्ष पारद से स्वर्ण बनाया था, जिसका वजन 18 सेर था. जिसे बाद में सनातन धर्म प्रतिनिधि सभा, पंजाब को दान कर दिया गया. उस स्वर्ण को बेचकर सभा को 72000/- रूपया प्राप्त हुआ. श्री कृ्ष्णपाल के काशी विश्वविद्यालय के कविराज प्रतापसिँह तथा श्री वियोगी हरि के समक्ष भी यह विद्या प्रदर्शित की गई. इस आर्य विद्या के गौरव को प्रकट करने के लिए ही ऎतिहासिक्ल घटना का यहाँ उल्लेख किया गया है"
सहसा प्रामाणिक सत्य लिखा है आपने श्रीमान, किन्तु वर्तमान समय में निस्तेज बिन्दु से उत्त्पन्न इन मुर्खारूढ़ों को कौन समझाएँ की शिव महिमा व उनकी अष्ट सिद्धियों की कृपा से सर्व संभव हो जाता है। स्वर्णसिद्धि के लिए साधक और योगी मनुष्य का होना अनिवार्य है। यथेष्ट गुरु के सानिध्य व पारद के सटीक निर्माण व प्रयोग से यह संभव है। अब से केवल 50 वर्ष पूर्व तक यह विध्या प्रयोगिक प्रमाण सहित जीवंत थी। गुप्त रूप से आज भी होगी। जिस शिव ने हलाहल जैसा विष भी पाचन किया हो व पारद के १०८ संस्कार का वृतांत किया हो जो शिव किसी प्राणी मे भेद नहीं करते हो। उन शिव के वचनों को श्रीमद नागार्जुन ने सिद्ध किया। तथा सोमनाथ का मंदिर जो नागार्जुन के समय मे उद्धारित हुआ वह मंदिर पूर्णतया स्वर्ण का था। जिस सोमनाथ जी को मुगलों ने कई बार आक्रमण कर लूटा अन्यथा इन मूर्ख पशुमतियों की दहाड़ें यूं ना खुलती, जिन्हे स्वतः के धर्म पर संशय है जो स्वतः की उन्नत सभ्यता पर उपहास करते हुए लज्जित अनुभव नहीं करते। सत्य कहूँ तो यह कलयुग का प्रभाव है जो इन मूर्खों का मतीभक्षण कर चुका है। जैसे किसी जन्मांध को सूर्य और चन्द्रमाँ के तेज का भान नहीं होता, वैसे ही मतान्ध जीवों को शिव की महिमा का क्या ज्ञान होगा।
हटाएं(संवत 1966 यानि साल 1909)
जवाब देंहटाएंवर्तमान में कुछ धातुओं से सोना बनाया जा सकता है. लेकिन यह विधियाँ इतनी मंहगी है की असली सोना उससे ज्यादा सस्ता पड़ेगा.
जवाब देंहटाएंकहा तो यह भी जाता है की नेपाल के राज्वंस के पास "पारस " पठार है जिसकी सहायता से वो दीपावली की रल को कुछ सोना बनाते हैं .......वैसे परे से सोना बनाने की बात केवल किम्वादंतियों की नहीं अहि .......अधुकिक वैज्ञानिक विधि से भी इससे सोना बनाया जा सकता है परन्तु यह विधि सोने की कीमत से ज्यादा महंगी अहि |
जवाब देंहटाएंअब अगर आपको कुछ नहीं परता तो आप उसको कल्पना कह दो ...आपकी मर्जी आपकी पोस्ट ........
वत्स जी एवं अंकित जी,
जवाब देंहटाएंकिस्से-कहानियों और हकीकत में फर्क होता है। और हकीकत यही है कि कोई भी रस विद्या इसे प्रूव नहीं कर पाई है।
और अगर आपके पास इस सम्बंध में कोई प्रामाणिक जानकारी हो, जोकि हमें नहीं, तो कृपा कर हमारे साथ अवश्य बाँटें। इस हेतु हम आपके हृदय से आभारी होंगे।
बहुत ही सुन्दर और शिक्षाप्रद आलेख. आभार.
जवाब देंहटाएंaapne achhi ray di hai,thanks.
जवाब देंहटाएंसभी विद्वान् बंधुओं के बहुमूल्य विचार पढने के पश्चात् मै कहना चाहूँगा कि
जवाब देंहटाएंजिस प्रकार कुछ विशेष पदार्थों के,समुचित मात्रा में और विशेष परिस्थितियों
या वातावरण में संयोग से नवीन पदार्थ कि उत्पत्ति होना संभव है
(जैसे गोबर में दही मिलाकर यदि उसे एक गड्ढे में सड़ने दिया जाये तो उसमे
बिच्छु उत्पन्न हो जाते हैं), सोना भी प्राकृति प्रदत्त पदार्थों का ही मिश्रण है.
अत: स्वर्ण निर्माण भी संभव अवश्य हो सकता है.
हमारे एक सम्बन्धी के पास एक अप्राप्य दुर्लभ पुस्तक है,जिसमे सोना बनाने
की रहस्यमय विद्या का प्रकटीकरण है,किन्तु वह उत्तरभारत की एक लोकभाषा
में होने के कारण आवश्यक सामग्री को वर्तमान परिवेश में समझना कठिन है.
मेरा विश्वास है,सहस्रों वर्ष पूर्व भी ज्ञान - विज्ञान में अग्रणी व संपन्न रह चुके,
विश्वगुरु भारत में ऐसी विद्या का होना अवश्य संभव है.
आचार्य ओजस्वी
hhhh
जवाब देंहटाएंkk
जवाब देंहटाएंसोना बन सकता हे बनाने वाला चाहिए चाहिए एक अनुभवी वैद जो की जरी बूटी का जानकर हो फार्मूला हे ... तोरास गंधक मोरस पारा बीच बीच में नाग संचारा नाग मार नागिन को दीजीअ भर भर थाल सोना कर लिजेया
जवाब देंहटाएंTORAS MORAS GANDHAK PARA ,ISE MAAR EK NAAG SANWARA
हटाएंNAAG MAAR NAGIN KO DE , SAARA JAG KANCHAN KANCHAN KAR LE.
AAGAR KOI TORAS & MORAS JADIBUTI KE BAARE MAIN JANTA HO TO YE SAMBHAV HAI.
toras----pure para/moras---gandhak oil
हटाएंसोना बन सकता हे बनाने वाला चाहिए चाहिए एक अनुभवी वैद जो की जरी बूटी का जानकर हो फार्मूला हे ... तोरास गंधक मोरस पारा बीच बीच में नाग संचारा नाग मार नागिन को दीजीअ भर भर थाल सोना कर लिजेया
जवाब देंहटाएंसोना बन सकता हे बनाने वाला चाहिए चाहिए एक अनुभवी वैद जो की जरी बूटी का जानकर हो फार्मूला हे ... तोरास गंधक मोरस पारा बीच बीच में नाग संचारा नाग मार नागिन को दीजीअ भर भर थाल सोना कर लिजेया
जवाब देंहटाएंMain Bharat yogi ji se sahamat hu, jo humne ni jana ni sikha , eska matlab ye ni ki ye ho ni skta, "every thing is possible in this world"
जवाब देंहटाएंsirf sahi energy ko sahi direction deni h....!!!
आवर्त सारणी (Periodic Table) रासायनिक तत्वों को उनकी आणविक विशेषताओं के आधार पर एक सारणी (Table) के रूप में दर्शाने की एक व्यवस्था है। वर्तमान आवर्त सारणी में ११७ ज्ञात तत्व (Elements) सम्मिलित हैं। रूसी रसायन-शास्त्री मेन्देलेयेव ने करीब १४३ साल पहले अर्थात सन 1869 में आवर्त सारणी प्रस्तुत किया। उस सारणी में उसके बाद भी कई परिमार्जन भी हुए. आज उस सारणी का जो स्वरूप है उसके अनुसार ७९ वें पायदान पर सोना (गोल्ड) है तथा ८० वे पायदान पर पारद (मर्करी) है. यह सारणी तत्वों के आणविक गुणों के आधार पर तैयार की गई है. किस तत्व में कितने प्रोटोन है तथा उसका वजन (mass) कितना है आदि शुक्ष्म विश्लेषण के आधार पर १४३ वर्ष पहले यह सारणी तैयार की गई थी.
जवाब देंहटाएंलेकिन भारत में हजारों साल पहले ग्रंथो में लिखा मिलता है की पारद से सोना बनाया जा सकता है. इस आधार पर हमें मानना होगा की हमारे ऋषियों को किसी भिन्न आयाम से तत्वो की आणविक संरचना ज्ञात थी. एसा माना जाता है की नालंदा के गुरु रसायन-शास्त्री नागार्जुन को पारद से सोने बनाने की विधी ज्ञात थी. लेकिन वह ज्ञान हमारे बीच से लुप्त हो गया है.
आधुनिक रसायन शास्त्र भी मानता है की पारद को सोने में परिवर्तित किया जा सकता है. आणविक त्वरक (Atomic Acceletor) या आणविक भट्टी (Nuclear Reactor) की मदत से पारद के अनु में से कुछ प्रोटोन घटा दिए जाए तो वह सोने में परिवर्तित हो जाएगा. यह प्रविधी महंगी है लेकिन संभव है यह आधुनिक रसायन शास्त्र भी मानता आया है.
विकसित मुलुक पारद को सोने में परिवर्तित करने की सस्ती प्रविधी पर निरंतर शोध करते आए है. क्या चीन तथा अमेरिका आदि विकसित मुलुको ने कृत्रिम रूप से सोना बनाने की सस्ती प्रविधी खोज ली है. पिछले दिनों जिस रफ़्तार से सोने के भावों में तेजी लाई गई उससे इस आशंका को बल मिलता है.
विश्व में सोने की सबसे ज्यादा खपत भारत में है. सोना अपने आप में अनुत्पादनशील निवेश है. अमेरिकी सिर्फ आभूषण के लिए सोना खरीद सकते है. अमेरिकी कानून के तहत निवेश के लिए स्थूल रूप (बिस्कुट या चक्की) के रूप में सोना रखना गैर-कानूनी है.
एक अमीर मुलुक ने सोने के निवेश पर बन्देज लगा रखा है लेकिन भारत में लोगो की सोने की भूख बढती जा रही है. लोग अपनी गाढ़ी कमाई को सोने में परिवर्तित कर रहे है. आज भारत एक ग्राम भी सोना उत्पादन नहीं करता लेकिन विश्व का सबसे बड़ा खरीददार बना हुआ है.
जिस दिन कृत्रिम स्वर्ण बनाने की प्रविधी का राज खुलेगा उस दिन सोना मिट्टी हो जाएगा. हमारी सरकार स्वर्ण पर रोक क्यों नहीं लगाती? हमारे स्वर्ण-पागलपन को ठीक करने के लिए समाज सुधारक क्यों नहीं आंदोलन करते है?
हमारे पास पूंजी के अभाव में स्कुल नहीं है, सडके नहीं है, ट्रेने नहीं है. हमारी पूंजी सोने में फंसी है. जिस दिन वह पूंजी मुक्त होगी हम फिर से सोने की चिड़िया बन जाएगे.
Himwant जी ने पारे से सोना बनाने की वैज्ञानिक जानकारी बताई है। नाभिकीय अभिक्रियाओं से यह संभव है किंतु इस प्रकार प्राप्त सोने का समस्थानिक अस्थाई होता है जो शीघ्र ही विघटित हो जाता है। अतः यह अभी तक संभव नहीं हुआ है।
जवाब देंहटाएंmast.......................
जवाब देंहटाएंआपलोग एक बात भूल रहे हे हमारी भारत भूमि बोहोत्से रहसोसे भरी पड़ी हे अगर ये सब अन्धविश्वास हे तो भारत माँ का एक नाम ये किउ था सोने की चिडया की हमारे पास गोल्ड की खदाने थी ये इतने मंदिर साधू संत क्या सिर्फ दिखावा हे आपको मन्ना पड़ेगा आज के काल खंड में वो विद्य्ये। लिप्त हो गई हे जो हमें पता नहीं मगर कही न कही एकदिन सोब्को पता चलेगा भारत भूमि अद्भुत हे
हटाएंScience jisko nahi samajhpati us ko andhviswas ya murkhata kahti hai. Sab baaton ko samajhpana science ki baski baat nahi
हटाएंScience jisko nahi samajhpati us ko andhviswas ya murkhata kahti hai. Sab baaton ko samajhpana science ki baski baat nahi
हटाएंScience jisko nahi samajhpati us ko andhviswas ya murkhata kahti hai. Sab baaton ko samajhpana science ki baski baat nahi
हटाएंकुछ कुछ बातें ठीक भी हैं जी"
जवाब देंहटाएंToras gandhak moras paraka vala dohaka matlab ye votaheki toras matlab tera ras yane gandhak moras yane mera ras yane para nag ka matlab sisa namki dhatu hotihe ageki ap socho
जवाब देंहटाएंMe sochta Hu ek manushya Jo v Kalpana kar sakta hai wo sab haqiqat me v Kr skta h ...jese aaj se Kai saal pehle ye ek mehz kalpna hi thi ke udne wala yaan banega but science ne Kr dikhaya..to me ye kehna chahta Hu k jb yaan hawa me ud skta hai to ...sona kyu Ni bn skta ....insan ke dimag me wo kshamta h Jo hr kalpna ko haqiqat kr skta h
जवाब देंहटाएंLohe ya tamba se sona banana possible h bs hme Sahi technology ka gyan ni h
जवाब देंहटाएंमुझे लगता है ये भारत देश कि एक ऐसी कला है जिस पर कई लोग एक मत नही होगे
जवाब देंहटाएंक्युकि ईस देश मे ईतने परदेशीओ का आक्रमन सहा है , भाषा और कई जन जाती पाई जाती कि दुसरे देश ईसे ही रहस्य ना माने पर एक बात जरूर है विमानो का जिक्र सभी वेदो मे था पर बनाया गया तब यकिन हुआ पर ऊस का श्रेय विदेशी लेगये , हल्दि एक एन्टि बायटिक मेडिसिन है बचपन से ईसका ईलाज हम करते आये फिर वो जखम हो या सर्दि जुखाम क्यु ना हो पर ईसे जब विदेशीओ ने मुहर लगाई तब हमने ईस बात को माना अजब बात है सोना बनाने कि कला आज भी मौजुद है पर कोई यकिन नही करता ना कोई खोज करने के लिए तयार है जो भी हो यहा भारत ने दुनिया को शुन्य दिया , ये बात भी ना भुले , हनुमान चालिसा मे सुर्य और पृथ्वि कि दुरि कई सालो पहले बताई गयी , पंचाग मे हर ग्रह कि स्पिड और रंग हि नही बल्कि वैवहार , वक्रि दशा , मार्ग , और बहोत कुछ तो हजारो सालो से जान रहे थे हम पर जब १५०० के दशक मे गँलिलीओ ने दुर्बिन बनाई तब हि हम ने यकिन किया लिलावती ग्रंथ पडो आज का मँथ उस के सामने हसने बराबर है , बिना माईक्रोस्कोप के सुश्रुत ऋषी ने ईन्सानी अंगो कि पुरी मेडिकल सायंन्स के मुह पर तमाचा मारे जैसी बाते लिखी क्या वो भी कोरी कल्पना निकली क्या , नेपाल के राम बहाद्दुर लांम्बा जो हाल हि मे सबके सामने ६ साल बिना खाये पिये तप्चर्या करते सब देख रहे थे , प्रहलाद जानी गुजरात के अहमदाबाद शहर से आज भी जिन्दा है जो कम से कम ६०-७० साल से ना कुछ खाया है ना मल मुत्र किया तबसे जब कि साधारन ईन्सान ३दिन मुत्र ना त्यागे तो किडनी फेल होने से मर जाते ऊन पर तो ईन्डडियन मिल्ट्रि ने भी रिसर्च किया क्या योग कर के खुद को ईस काबील बनाने वाले सब ऐसे कई ईन्सान को कि कल्पना भर है क्या फिर क्यु कि वो भि ग्रंन्थ पुराणो मे लिखीत किस्से है ईस लिये ? भारत आखीर है क्या हम भारतवासी हि ना समझ सके और ईन पर गर्व न करे तो बाकि दुनिया के देश क्या खाक ईज्जत करेंगे और मदत भि क्यु करना चाहोगे वो तो भला हो मंगलमिशन ईस सोच पर ना बना कि अमेरिका १५ बार कोशिश करके हार गया फिर हम कैसे जाये ये सोच कर ना बना था
Sona ban sakta hai .
जवाब देंहटाएंMagar jo granth hai wo abhi nahi hai
Jo siddha guru ki sankhya hai wo Bhi bahot kam hai
Bodhha dharma k math jo chalte hai wo kese chalte hai waha koi dan bhi nahi karne jata .
Budhha dharma k vidhhvano ko abhi bhi ye sab aata hai .
Usi se wo log sab math chalate hai .bt ye sab bahot top secret hai