हमारा पर्यावरण और धार्मिक सोच, एक विचारात्मक आलेख!
आजकल पूजा-पाठ में में प्रयोग की जाने वाली चीज़ें अधिकाधिक लाभ के लिये प्लास्टिक एवं कृत्रिम रूप से तैयार की जाती हैं। और तो और पवित्र प्रतिमाओं पर फूल भी प्लास्टिक के चढ़ाए जा रहे हैं। इसी तरह देव प्रतिमाओं में प्लास्टर ऑफ पेरिस के अलावा तांबा, क्रोमियम व निकल जैसी भारी धातुएं उपयोग की जाती हैं। और जब इन प्रतिमाओं को नदी, तालाबों, झीलों या अन्य जल स्रोतों में प्रवाहित किया जाता है तो उसका पानी प्रदूषित हो जाता है, जिससे जलीव जीवों का जीवन संकट में पड जाता है। यह एक तरह का नैतिक अपराध है, हमें इससे बचना ही होगा।
संवारे अपने त्योहारों को
-नवनीत कुमार गुप्ता
हमारा देश उत्सवों और त्यौहारों का देश है। यहां हर दिन कोई न कोई त्यौहार होता है। त्यौहार हममें नई ऊर्जा का संचार करने के साथ ही भाईचारे और स्नेह की भावना को बढ़ाते हैं। हम भारतवासी बड़े धार्मिक लोग हैं। लेकिन इन धार्मिक भावनाओं के कारण यदि हमारा वातावरण प्रदूषित होता हो तो यह धर्म नहीं है। क्योंकि सभी धर्म़ों में ‘बहुजन हिताय’ यानी सबके कल्याण की भावना होती है।
आजकल हम जाने-अनजाने धार्मिक क्रियाकलापों के द्वारा पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं। पूजा-पाठ और विभिन्न धार्मिक कर्मकांड़ों के दौरान निकलने वाली फूल-मालाएं, यज्ञ की भस्म व अन्य सामग्रियों के द्वारा न चाह कर भी हम पर्यावरण को प्रदूषित कर रहे हैं। मूर्ति स्थापना वाले त्यौहारों, जैसे गणेश पूजा और दूर्गा पूजा के दौरान तो हम बड़े पैमाने पर पर्यावरण की शुचिता को दरकिनार कर देते हैं।
आधुनिक समय में धार्मिक कार्यक्रमों के दौरान प्लास्टिक का चलन बढ़ता ही जा रहा है और यह तो हम जानते ही हैं कि प्लास्टिक हमारे पर्यावरण के लिए नुकसानदायक है क्योंकि यह प्रकृति में वर्ष़ों तक अपघटित नहीं होती है। जलाने पर यह पानी, मिट्टी और हवा को प्रदूषित करती है। पिछले दिनों माननीय प्रधानमंत्री ने भी इस विषय पर चिंता व्यक्त करते हुए नागरिकों को पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रेरित किया।
पहले जहां पूजा-पाठ में प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग होता था वहीं अब अधिकतर चीजें प्लास्टिक एवं कृत्रिम रूप से तैयार की गई होती है। और तो और पवित्र प्रतिमाओं पर फूल भी प्लास्टिक के चढ़ाए जा रहे हैं। इसी तरह आजकल देव प्रतिमाओं में प्लास्टर ऑफ पेरिस के अलावा तांबा, क्रोमियम व निकल जैसी भारी धातुएं उपयोग की जाती हैं। और जब इन प्रतिमाओं को नदी, तालाबों, झीलों या अन्य जल स्रोतों में प्रवाहित किया जाता है तो वहां का पानी प्रदूषित हो जाता है।
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जल स्रोतों को प्रदूषित करना नैतिक अपराध है। वैसे तो हमारे देश में नदियों को मां के समान माना जाता है और आज भी नदियों के समीप से गुजरने पर अनेक लोगों को उन्हें प्रणाम करते देखा जा सकता है। इसलिए धार्मिक और नैतिक दोनों प्रकार से जल स्रोतों को प्रदूषित करना उचित नहीं है।
वैसे हम यह भी कर सकते हैं कि यज्ञ की भस्म, फूल-मालाएं, देवी-देवताओं की प्रतिमाएं, फोटो नदी में न प्रवाहित करें। कई पदार्थ जैसे फूल-मालाएं तो खेतों में खाद के रूप में उपयोग किए जा सकते हैं। मूर्तियों को पहनाए जाने वाले कपड़ों को बाद में जरूरमंद लोगों में बांटा जा सकता है। मूर्तियों को पेंट करने लिए प्राकृतिक रंगों का प्रयोग कर रसायनिक रंगों के उपयोग से होने वाले प्रदूषण से बचा जा सकता है।
असल में नदियों व अन्य जल स्रोतों को प्रदूषण से बचाने का दायित्व आम आदमी का ही है। धार्मिक कर्मकांड़ों से प्रदूषित होती नदियों के बचाव में प्रत्येक जागरूक व्यक्ति को आगे आना होगा। इसके लिए धार्मिक कर्मकांड़ों में इको-फ्रेंडली यानी प्रकृति मित्र तरीकों को अपनाया जाना चाहिए। जिसके तहत मूर्तियों को बनाते समय केवल मिट्टी का ही प्रयोग करना चाहिए। किसी भी प्रकार की विषैली धातुओं व प्लास्टिक के उपयोग से बनी मूर्तियां अंततः पर्यावरण के प्रदूषण का कारण बनती हैं।
हालांकि अब जनमानस त्यौहारों के दौरान इको-फ्रेंडली पद्धति अपना रहे हैं। इस साल गणेश पूजा एवं दुर्गा पूजा के लिए अनेक स्थानों पर मूर्तियां इको-पेंट से बनाई गई हैं जिसे एक अच्छी शुरूआत कहा जा सकता है। सरकार की तरफ से भी पूजा-पांडालों में सौर लाइटों की व्यवस्था पर ध्यान दिया जा रहा है ताकि जनमानस में पर्यावरण संरक्षण की भावना का विकास किया जा सके।
त्यौहारों को संवारने के लिए सारे देश में ऐसे ही प्रयोग करने होंगे तभी धार्मिक उत्सवों की मूल भावना बरकरार रह सकेगी।
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लेखक परिचय:
नवनीत कुमार गुप्ता पिछले दस वर्षों से पत्र-पत्रिकाओं, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन आदि जनसंचार के विभिन्न माध्यमों द्वारा वैज्ञानिक दृष्टिकोण और पर्यावरण संरक्षण जागरूकता के लिए प्रयासरत हैं। आपकी विज्ञान संचार विषयक लगभग एक दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं तथा इन पर गृह मंत्रालय के ‘राजीव गांधी ज्ञान विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन पुरस्कार' सहित अनेक पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। आप विज्ञान संचार के क्षेत्र में कार्यरत संस्था ‘विज्ञान प्रसार’ से सम्बंद्ध हैं। आपसे निम्न मेल आईडी पर संपर्क किया जा सकता है:
नवनीत कुमार गुप्ता पिछले दस वर्षों से पत्र-पत्रिकाओं, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन आदि जनसंचार के विभिन्न माध्यमों द्वारा वैज्ञानिक दृष्टिकोण और पर्यावरण संरक्षण जागरूकता के लिए प्रयासरत हैं। आपकी विज्ञान संचार विषयक लगभग एक दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं तथा इन पर गृह मंत्रालय के ‘राजीव गांधी ज्ञान विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन पुरस्कार' सहित अनेक पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। आप विज्ञान संचार के क्षेत्र में कार्यरत संस्था ‘विज्ञान प्रसार’ से सम्बंद्ध हैं। आपसे निम्न मेल आईडी पर संपर्क किया जा सकता है:
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hame environment ka dyan jarur rakhna chahiye
जवाब देंहटाएंIt is a serious problem. ....great thoughts navneet sir
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी के लिए धन्यवाद ॥
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