RLV-TD ISRO India Programe in Hindi
अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में भारत ने इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) के माध्यम से 23 मई 2016 को नया इतिहास रच दिया। उसने सुबह 07 बजे आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र से रियूज़ेबल प्रेक्षपण यान आरएलवी-टीडी (Reusable Launch Vehicle RLV-TD) का सफल परीक्षण करके स्वयं को विश्व के अग्रणी 5 देशों में स्थापित कर लिया। यह एक ऐसा प्रक्षेपण यान है जो अंतरिक्ष में उपग्रहों को कक्षा में स्थापित करने के बाद हवाई जहाज की भांति पृथ्वी पर पुन: वापस आ सकेगा। इससे उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने का खर्च दस गुना कम हो जाएगा और हम बेहद कम खर्च में उपग्रहों का प्रेक्षण कर सकेंगे।
ध्यान देने वाली बात यह है कि भारतीय अंतरिक्ष संस्थान (इसरो) ने इस स्पेस शटल के बारे में 15 साल पहले सोचा था, लेकिन इस परियोजना पर कार्य 5 वर्ष पहले ही शुरू किया था। इस तरह से इसरो ने स्वदेशी तकनीक से बेहद कम समय में 6.5 मीटर लंबे प्लेन की तरह दिखने वाले स्पेसक्राफ्ट का परीक्षण करके एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। यह स्पेसक्राफ्ट 6.5 मीटर लंबा है, और इसका वजन है 1.75 टन। इसपर 95 करोड़ की लागत आई है। इसी के साथ इसरो ने यह भी स्पष्ट किया है कि यह सिर्फ एक परीक्षण यान है, असली यान बनने में अभी 10-15 वर्षों का समय लगेगा।
पुनः प्रयोग किये जा सकने वाली अंतरिक्ष तकनीक
(Reusable Launch Vehicle Technology):
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि पुन: प्रयोग किये जा सकने वाली तकनीक अमरीका और रूस जैसे देश बहुत पहले खारिज कर चुके हैं। रूप से हालांकि इस परियोजना के तहत 'बुरान' प्रोजेक्ट प्रारम्भ किया था, लेकिन एक परीक्षण के बाद उसे समाप्त कर दिया गया। इसी तरह अमेरिकी अंतरिकी संस्था नासा का इस तकनीक को लेकर चलने वाला कार्यक्रम भी बहुत पहले बंद किया जा चुका है। ऐसे में भारत ने इस परीक्षण के द्वारा सफलता हासिल कर विश्व के अन्य देशों को इस दिशा में सोचने के लिए मजबूर कर दिया है।
दरअसल अंतरिक्ष यात्रा/उपग्रह प्रक्षेपण हेतु जिन प्रक्षेपण यानों का उपयोग किया जाता है, वे दुबारा उपयोग के लायक नहीं रहते। इसीलिए यह कार्यक्रम बेहद खर्चीला बन जाता है। इसी कारणवश भारतीय वैज्ञानिकों ने पुन: प्रयोग किये जाने वाले प्रक्षेपण यानों की तकनीक पर कार्य प्रारमभ किया और अपनी लगन और समर्पण के बल पर इसमें सफलता अर्जित की, जिसकी चारों ओर प्रशंसा हो रही है।
कैसे काम करती है आरएलवी-टीडी प्रणाली?
इसरो ने अपने इस अभियान की पहली औपचारिक घोषणा 7 जनवरी 2015 को की थी। अपनी उस घोषणा को अमली जामा पहनाते हुए इसरो ने 23 मई 2016 को इसका परीक्षण किया। परीक्षण की प्रक्रिया में सुबह 07 बजे आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र से आरएलवी-टीडी ने एचएस 9 सॉलिड रॉकेट बूस्टर (HS9 Solid Rocket Booster) की मदद से हायपरसोनिक प्रयोग उड़ान [Hypersonic Flight Experiment (HEX)] भरी।
ठोस ईंधन से संचालित बूस्टर की 91.1 सेकेंड की उड़ान के बाद एचएस9 बर्न आउट किया गया। अब तक अंतरिक्षयान में समुद्र तल से 56 किमी की ऊंचाई पर पहुंच चुका था। इस ऊंचाई पर पहुंचने के बाद एचएस9 और आरएलवी-टीडी अलग हो गए। प्रक्षेपण के बाद प्रक्षेपण राकेट अंतरिक्ष में गिर गया, लेकिन अपने स्पेशल थर्मल प्रोटेक्शन सिस्टम के कारण अंतरिक्ष यान ग्लाइड करते हुए बिना नष्ट हुए बंगाल की खाड़ी में अपने नियत स्थान पर उतर गया।
आरएलवी-टीडी की यह सफल उड़ान 770 सेकेंड की थी, जो पूरी तरह से कंट्रोल सिस्टम के नियंत्रण में रही। हालांकि इस परीक्षण उड़ान के बाद इस स्केल मॉडल को समुद्र से सकुशल प्राप्त नहीं किया सकेगा, क्योंकि यान पानी में तैरने की दृष्िट से डिजाइन नहीं किया गया है।
अभी इससे सम्बंधित कई प्रयोग किये जाने हैं। इनके अन्तर्गत आरएलवी के बर्बोफैन इंजन की जांच, यान के अंतरिक्ष में जाने के बाद धरती पर उड़ान पट्टी पर पुन: अवतरण और यान का Scramjet Propulsion Experiment शामिल हैं। वैज्ञानिकों ने आशा जताई है कि ये प्रयोग भी भलीभांति सम्पन्न कर लिये जायेंगे।
आरएलवी-टीडी अंतरिक्ष यान की विशेषताएं:
आरएलवी-टीडी अंतरिक्ष के बनने में लगभग पांच वर्ष का समय लगा और इसके निर्माण में 95 करोड़ रूपये का खर्च आया। इस प्रक्षेपझा यान की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह स्वदेशी तकनीक पर आधारित है और इसे एक से अधिक बार प्रयोग किया जा सकेगा।
आरएलवी-टीडी अंतरिक्ष यान के विकास और निर्माण में 600 वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की दिन-रात की मेहनत शामिल है। इस प्रयोग के बाद इस स्केल मॉडल को बंगाल की खाड़ी से बरामद नहीं किया जा सकेगा। क्योंकि इसे पानी में तैरने लायक नहीं बनाया गया है।
इसरो ने प्रेक्षण यान को डेल्टा विंग के सहयोग से तैयार किया है। इसके प्रेक्षण के दौरान इस बात की पड़ताल की जानी है कि ये अंतरिक्ष यान ध्वनि की गति से पांच गुना तेज गति पर ग्लाइड और नेविगेट करने में समर्थ है अथवा नहीं।
इस प्रेक्षण यान की सफलता से उपग्रह प्रक्षेपण लागत में काफी कमी आ जाएगी। प्रारम्भ में इसका उपयोग उपग्रहों के प्रक्षपण में किया जाएगा, लेकिन बाद में इसका प्रयोग मानव मिशन में भी किया जा सकेगा।
हालांकि आरएलवी-टीडी के पूरी तरह से तैयार होने में लगभग 10-15 का समय लगेगा। लेकिन इसकी प्रायोगिक सफलता हर्ष का विषय है। इसके लिए इसरो के वैज्ञानिक निश्चय ही बधाई के पात्र हैं।
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