जैव विविधता के संरक्षण में सहायक धार्मिक मान्यताओं पर एक खोजपरक आलेख।
प्राकृतिक संसाधनो के संरक्षण में भी धार्मिक मान्यताओं की अहम भूमिका है। नदी, कुंआ, तालाबों एवं पवित्र पेड़ पौधों की पूजा इसी उदेश्य से की जाती है की इनका संरक्षण हो। मानसून में गंगा में मछुआरों द्वारा मछलियों का शिकार नहीं किया जाता है इससे गंगा की संकटापन्न मछली की प्रजाति 'हिलसा इलिसा' (Hilsa ilisha) को पनपने का मौका मिलता है। जानवरों के शिकार के भी नियम हैं जैसे गर्भवती हिरणी का शिकार नहीं किया जाता, बंगाल में कच्चे बेर नहीं तोड़े जाते। ये सभी मान्यताएं जैव विविधता को सरंक्षण प्रदान करती हैं।
जैव विविधता के संरक्षण में सहायक धार्मिक मान्यताएं
-सुशील कुमार शर्मा
जैव विविधता (Biodiversity) का अर्थ है विभिन्न प्रकार के जीवों एवं वनस्पतियों का पारिस्थितिक तंत्र से सामंजस्य होना। 'जैव विविधता' शब्द का अविष्कार 1985 में वॉटर जी. रोजेन (Walter G. Rosen) ने किया था। जैव विविधता की दो प्रमुख अवधारणा हैं (1) अनुवांशिक विविधता (2) पारिस्थितिक विविधता।
एक ही प्रजाति के विभिन्न सदस्यों के मध्य एवं विभिन्न प्रजातियों के मध्य पाई जाने वाली अनुवांशिक परिवर्तिता अनुवांशिक विविधता कहलाती है, तथा किसी जैविक समुदाय में पायी जाने वाली प्रजातियों की संख्या पारिस्थितिक विविधता कहलाती है। जैव विविधता के सिद्धांत के अंतर्गत परमाणु से लेकर पर्यावरण के सम्पूर्ण कारक जैसे मानव, जीनो टाइप, जनसँख्या एवं प्रजातियां सम्मिलित हैं।
भारत में करीब 32 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र जैव विविधता की दृष्टि से अत्यंत सम्पन्न है। यहां विभिन्न जंतुओं की लगभग 65000 प्रजातियां पाई जाती हैं। जिसमें 50000 अकेले कीटों की प्रजातियां हैं, मोलस्का की 4000, अकेशरूकीय प्राणियों की 6000, मछलियों की 2000, उभयचरों की 140, सरीसृपों की 450, पक्षियों की 1200, स्तनधारियों की 350, एवं वनस्पतियों की 45000 प्रजातियां पाई जाती हैं।
मनुष्य आधुनिकता के अंधे दौर में जीवों एवं वनस्पतियों का अंधाधुंध दोहन कर रहा है। प्रकृति के अतिरेक दोहन से प्राकृतिक संतुलन बिगड़ रहा है। मानवीय संवेदनाओं की कमी के कारण प्रजातियों की विलुप्तीकरण की दर बढ़ रही है।
धर्म हमेशा से मनुष्य की पहचान है। सभी धर्मों का मूल सिद्धांत प्रकृति एवं मनुष्य के बीच समन्वय है। धार्मिक मान्यताएं हमेशा से प्रकृति के संरक्षण में निहित हैं। कोई भी धर्म प्रकृति के विरुद्ध चल कर अस्तित्व में नहीं रह सकता है।
हिन्दू मान्यता के अनुसार मनुष्य का अस्तित्व ही प्रकृति से निर्मित है, अतः इस धर्म की प्रत्येक मान्यता एवं परम्परा में प्रकृति का संरक्षण केंद्र बिंदु है। हिन्दू धर्म की हर एक मान्यता एवं परम्परा में जैव विविधता के सन्देश है। इस धर्म में देवताओं के अवतार ही जैव विविधता पर आधारित हैं। विष्णु का मत्स्य अवतार, कूर्म अवतार, वराह अवतार, हनुमानजी का वानर रूप, जामवंत, जटायु आदि सभी अवतार जैव विविधता का ही प्रतिनिधित्व करते हैं। हिंदू धर्म के हर त्यौहार में किसी न किसी जंतु या वनस्पति के संरक्षण का सन्देश है। नवमी को आंवले के वृक्ष की पूजा, वट सावित्री को बरगद की पूजा, दशहरा पर शमी वृक्ष की पूजा, नागपंचमी को सर्पों की पूजा, गणेश पूजन में हाथियों एवं चूंहों का संरक्षण, दुर्गा पूजा में शेरों का संरक्षण का संदेश यह त्यौहार देते हैं।
शिव जी तो साक्षात जैव विवधता के अधिष्ठाता हैं। हिमालय की सम्पूर्ण जैव विविधताओं के संरक्षक माने जाते हैं। रामचन्द्रजी ने 14 वनवास करके सम्पूर्ण वनवासियों एवं वन सम्पदाओं को राक्षसों से सुरक्षित किया था। कृष्ण ने गोवर्धन की पूजा करवा कर गोकुलवासियों को सन्देश दिया था की जैव विविधताओं के संरक्षण से ही उनकी सुरक्षा जुडी हुई है।
समुद्र मंथन तो जैव विविधताओं का आदर्श उदहारण है। इसमें जितने भी रत्न निकले सभी जैव विविधताओं का ही प्रतिनिधित्व करते हैं। नवदुर्गा एवं कजलियों पर जवारों का रोपण, मछलियों को दाना एवं चीटियों को आंटा खिलाना, अन्नकूट पर गौ की पूजा, दीपावली पर गांवों में मड़ई में वनदेवी की पूजा ये सभी मान्यताएं एवं परम्पराएँ प्राणियों एवं वनस्पतियों की सुरक्षा का सन्देश देतीं हैं एवं जैव संरक्षण में महत्व पूर्ण योगदान देतीं हैं।
जैन धर्म में अहिंसा शब्द पर्यावरण संरक्षण से ही जुड़ा है। सभी जैन मुनि मुंह पर मास्क लगाते हैं ताकि छोटे से छोटे जीव भी उनके साँस लेने या बोलने से नष्ट न हो जाएँ। जैन धर्म में अपरिग्रह भी इस बात का सन्देश देते हैं कि ज्यादा संग्रह की प्रवृत्ति से पर्यावरण को नुकसान होता है।
बौद्ध धर्म की मूल शिक्षा प्रकृति एवं मनुष्य के बीच आत्मिक संपर्क की है। इस धर्म में वृक्षों को काटना जघन्य अपराध है। भगवन बुद्ध को पीपल के पेड़ के नीचे ही बोधिसत्व प्राप्त हुआ था।
ईसाई धर्म में प्रकृति से जुड़ाव को प्रमुखता दी गई। बाइबिल में कहा गया है की पेड़ पौधे ईश्वर की देन है एवं उनकी सुरक्षा करना हर ईशु भक्त का परम धर्म है। इसलिए उनके त्यौहार क्रिसमस पर 'क्रिसमस ट्री' को सजाया जाता जो उनकी हर इच्छा को पूरा करने वाला कल्प वृक्ष है।
इस्लाम धर्म में पेड़ पौधों को अल्लाह की नियामत कहा गया है एवं उनकी देखभाल एवं सुरक्षा का सन्देश कुरान में मिलता है, इस्लाम में खजूर के पेड़ की विशेष इबादत की जाती है।
चीन एवं जापान में बौद्ध मठों में 'गिंक्लो बाइलोबा' (Ginkgo biloba) नामक वृक्ष उगाया जाता है। धार्मिक आस्था के कारण यह वृक्ष जीवित जीवाश्म के रूप में पूजा जाता है।
हिन्दू, जैन एवं बौद्ध सन्यासी ध्यान लगाने के लिए प्राकृतिक एवं शांत वातावरण का उपयोग करते थे। ये शांत वातावरण जंगल में ही मिलता था। वंहा किसी उचित स्थान को मंदिर का रूप दिया जाता था। धार्मिक आस्था के कारण उस जगह जंगल की सुरक्षा होती थी एवं जंगली जानवरों का शिकार भी नहीं किया जाता था।
प्राकृतिक संसाधनो के संरक्षण में भी धार्मिक मान्यताओं की अहम भूमिका है। नदी, कुंआ, तालाबों एवं पवित्र पेड़ पौधों की पूजा इसी उदेश्य से की जाती है की इनका संरक्षण हो। मानसून में गंगा में मछुआरों द्वारा मछलियों का शिकार नहीं किया जाता है इससे गंगा की संकटापन्न मछली की प्रजाति 'हिलसा इलिसा' (Hilsa ilisha) को पनपने का मौका मिलता है। जानवरों के शिकार के भी नियम हैं जैसे गर्भवती हिरणी का शिकार नहीं किया जाता, बंगाल में कच्चे बेर नहीं तोड़े जाते। ये सभी मान्यताएं जैव विविधता को सरंक्षण प्रदान करती हैं।
वृन्दावन जो कि हिन्दुओं का सर्वाधिक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है, नब्बे के दशक में बदहाली का शिकार हो गया था। वृक्षों की संख्या नगण्य थी एवं नगर में हर तरफ कचरे का ढेर लगा होता था। एक NGO ने 1990 में स्थानीय लोगों की मदद से 'वृन्दावन फारेस्ट रिवाइवल प्रोजेक्ट' (Vrindavan Forest Revival Project) शुरू किया जिसके अन्तर्गत सम्पूर्ण वृन्दावन में एवं विशेष कर 'परिक्रमा पथ' पर स्थानीय निवासियों, मंदिरों के पुजारियों तथा नगर निगम के संयुक्त प्रयासों से वृक्षारोपण एवं कचरे को साफ करने का अभियान छेड़ा और पूरे वृन्दावन को हरा भरा कर दिया।
पर्यावरण के संरक्षण एवं जैव विविधता को बचाने के लिए भारतीय संसद ने जैव विविधता अधिनियम 2002 (Biological Diversity Act, 2002) में पारित किया। यह परम्परागत जैविक संसाधनो और ज्ञान के उपयोग से होने वाले लाभों के सामान वितरण के लिए तंत्र प्रदान करता है। इसके क्रियान्वयन के लिए 2003 में राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (National Biodiversity Authority -NBA) की स्थापना की गई है। पूरे विश्व में 22 मई को जैव विविधता दिवस (Biodiversity Day) मनाया जाता है।
भारतीय सामाजिक एवं धार्मिक परम्पराओं में जैव संरक्षण एक आवश्यक अंग है। ये परम्पराएँ पौराणिक साहित्य, स्थानीय अधवासी किवदंतियों व परम्परागत आस्थाओं से नियंत्रित होती हैं। इन धार्मिक मान्यताओं एवं परम्पराओं से आपस में स्नेह व प्रकृति की सुरक्षा का भाव जाग्रत होता है एवं इनसे जुड़ीं व्यवहारिक बातें पर्यावरण के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभातीं हैं।
आज आवश्यकता है इन धार्मिक मान्यताओं एवं आस्थाओं को समाज में सही ढंग से प्रदर्शित करने की, ताकि हमारा समाज जैव विविधता की महत्ता को समझे एवं उसके संरक्षण में अपना योगदान दे। जिस तरह सितार की एक कड़ी टूट जाने पर उससे मधुर लहरी निकल पाना कठिन है, उसी प्रकार प्रकृति की जीवन श्रृंखला से जीवों एवं वनस्पतियों की किसी भी कड़ी का टूटना हानिकारक है जो समूचे पर्यावरण चक्र को प्रभावित करता है।
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लेखक परिचय:
सुशील कुमार शर्मा व्यवहारिक भूगर्भ शास्त्र और अंग्रेजी साहित्य में परास्नातक हैं। इसके साथ ही आपने बी.एड. की उपाधि भी प्राप्त की है। आप वर्तमान में शासकीय आदर्श उच्च माध्य विद्यालय, गाडरवारा, मध्य प्रदेश में वरिष्ठ अध्यापक (अंग्रेजी) के पद पर कार्यरत हैं। आप सामाजिक एवं वैज्ञानिक मुद्दों पर चिंतन करने वाले लेखक के रूप में भी जाने जाते हैं तथा अापकी रचनाएं समय-समय पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। आपसे सुशील कुमार शर्मा (वरिष्ठ अध्यापक), कोचर कॉलोनी, तपोवन स्कूल के पास, गाडरवारा, जिला-नरसिंहपुर, पिन -487551 (MP) के पते पर सम्पर्क किया जा सकता है।
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सुशील कुमार शर्मा व्यवहारिक भूगर्भ शास्त्र और अंग्रेजी साहित्य में परास्नातक हैं। इसके साथ ही आपने बी.एड. की उपाधि भी प्राप्त की है। आप वर्तमान में शासकीय आदर्श उच्च माध्य विद्यालय, गाडरवारा, मध्य प्रदेश में वरिष्ठ अध्यापक (अंग्रेजी) के पद पर कार्यरत हैं। आप सामाजिक एवं वैज्ञानिक मुद्दों पर चिंतन करने वाले लेखक के रूप में भी जाने जाते हैं तथा अापकी रचनाएं समय-समय पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। आपसे सुशील कुमार शर्मा (वरिष्ठ अध्यापक), कोचर कॉलोनी, तपोवन स्कूल के पास, गाडरवारा, जिला-नरसिंहपुर, पिन -487551 (MP) के पते पर सम्पर्क किया जा सकता है।
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इस विश्व के सभी धर्मं संप्रदाय फिर चाहे वो हिन्दू हो मुस्लिम हो सिख हो ईसाई हो धार्मिक मान्यताओं के द्वारा हमेशा ही पर्यावरण के प्रति जागरूकता फ़ैलाने का कार्य किया है सभी जन समुदाय को प्रकृति के प्रति प्रेम प्रदर्शित करने का उपदेश दिया है।
जवाब देंहटाएंपरन्तु हम कहीं न कहीं इन धार्मिक मान्यताओं के मूल भाव को न समझकर कट्टरवादिता के प्रति अग्रसित हैं ।
इस बढती हुई आधुनिकता के दौर में कहीं न कहीं हमें आत्मचिंतन की आवश्यकता है के हम कहीं प्रकृति की उसकी विविधता की अनदेखी तो नही कर रहे हैं।
सुशील शर्माजी जी द्वारा लिखित लेख बहुत ही सारगर्भित है
जवाब देंहटाएंबहुत ही उपयोगी जानकारी है जैव विविधता को सभी धार्मिक मान्यता से जोड़कर किया प्रस्तुतीकरण लाजबाब है
जवाब देंहटाएंभैया बहुत ही उपयोगी जानकारी और लाजबाब प्रस्तुतीकरण के लिए हार्दिक बधाई । नवनीत
जवाब देंहटाएंजीवन में ऐसी बहुत सी बातें है जिन्हें जानना बहुत जरूरी है उनमे से बहुत कुछ चीजें इस लेख से मिली है आदरणीय सुनील जी शर्मा को साधुवाद धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंBahut hi bAdhiyaan lekh
जवाब देंहटाएंsabhi ko bahut dhanyawad
हटाएंशानदार लेख
जवाब देंहटाएंशानदार लेख
जवाब देंहटाएंBahut hi achha likha hai sir aapne. ise padne k bad jin logon ko jev shakti ka gyan nahi hai unhe bahut gyan milega or log aage is chij ko samjhenge.
जवाब देंहटाएंमानव अपने भौतिक उपयोग के लिए जैव विविधता का दोहन कर रहा है
जवाब देंहटाएंजैव विविधता की हमारी संस्कृति के और वातावरण के लिए एक अनमोल खजाना है
इसको बचाने के लिए हर मनुष्य को जागरुक होना पडेगा
इसके लिए सर का प्रयास गौरवान्वित सराहनीय है इसके लिए आपका बहुत बहुत बधाई और धन्यवाद