तारों के आकार प्रकार और सूर्य के स्वरूप पर केंद्रित एक शोधपरक आलेख।
ब्रह्माण्ड के रहस्यों को जानने के क्रम में पिछली कडियों में आपने तारों का जन्म और सूर्य के महत्व एवं उसका आकार-प्रकार में बारे में पढ़ा। इस कड़ी में पढिए सौर कलंक और सूर्य के आदर्श स्वरूप के बारे में:
क्या सूर्य एक आदर्श तारा है?
-प्रदीप कुमार
सौर-कलंक (Sunspot):
अगर हम सौर फिल्टरों की सहायता से सूर्य का निरीक्षण करें, तो इसकी सतह पर काले धब्बे जैसे नजर आते हैं। ये धब्बे सौर-कलंक के नाम से जाने जाते हैं। इन कलंको के आकार तथा संख्या में समय-समय पर परिवर्तन होता रहता है। वैज्ञानिकों के अनुसार सौर-कलंकों में हर ग्यारह साल में सक्रियता बढ़ जाती है। इसे इस तरह से भी कह सकते हैं कि हर ग्यारह वर्षों के अंतराल में सौर-कलंको की संख्या घटती-बढ़ती रहती है।
पिछली बार सन् 2012 में सौर-कलंकों की सक्रियता चरम पर दिखाई पड़ी थी। वैसे वैज्ञानिक अभी भी सौर-कलंकों को भलीभांति समझ नहीं सके हैं, फिर भी इनके बारे में हमारे पास काफी जानकारी उपलब्ध है। वैज्ञानिकों के अनुसार इन कलंकों की द्रव्यराशि का तापमान आस-पास की अन्य द्रव्यराशि से थोडा-सा कम होता है। यही कारण है कि वहां का स्थान हमें काला प्रतीत होता है।
सूर्य: आकाशगंगा का एक आदर्श तारा (Ideal star):
जब हम रात में आकाश को देखते हैं तो हम तारों की दीप्ति के वैभव से प्रफुल्लित हो उठते हैं। यदि हम किसी गांव में रहकर आकाश का दर्शन करते हैं तो और भी सुंदर दृश्य दिखाई पड़ता है, क्योंकि शहरों की अपेक्षा गाँवों का वातावरण स्वच्छ एवं शांत होता है और वहां पर बिजली की रोशनी की चकाचौंध भी कम होती है।
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जब हम प्रतिदिन आकाश का अवलोकन करते हैं तो हमें धीरे-धीरे यह पता चलता है कि सभी तारों से निकलने वाला प्रकाश और उनके रंग अलग-अलग हैं। हम अपनी नंगी आंखों से जितने भी तारों एवं तारासमूहों (Constellations) को देख सकते हैं, वे सभी एक अत्यंत विराट योजना के सदस्य हैं, जो आकाश में लगभग उत्तर से दक्षिण तक फैला हुआ नदी के समान प्रवाहमान प्रतीत होता है। इसे 'आकाशगंगा' या 'मंदाकिनी' (Galaxy) के नाम से जाना जाता है।

हम यह जानते हैं कि हमारे ब्रह्माण्ड में करोड़ों-अरबों आकाशगंगाएं हैं। और प्रत्येक आकाशगंगा में तारों के अतिरिक्त गैसों तथा धूलों के विशाल बादल भी शामिल होते हैं। ताराभौतिकी में इन विशाल बादलों को 'नीहारिका' (Nebula) के नाम से पुकारा जाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार आकाशगंगा के कुल द्रव्य का 98% भाग तारों तथा शेष 2% भाग गैस एवं धूल के विशाल बादलों (Gas and Dust Cloud) से निर्मित होता है।
हमारा सूर्य और उसका सौरमंडल जिस आकाशगंगा के सदस्य हैं, उसका नाम दुग्ध-मेखला (Milky way) है। जनमानस में ऐसी धारणा व्याप्त है कि आकाश का प्रत्येक पिण्ड गोल अथवा चपटी गेंद के समान होता है, परन्तु ऐसा नहीं है। आकाशगंगा के आकार को समझने के लिए अगर कोई उदाहरण समीचीन है, तो वह है एक चपटी रोटी का, जिसका बीच वाला भाग थोडा सा फूला हुआ हो।
हमारी आकाशगंगा का व्यास लगभग एक लाख प्रकाशवर्ष है और इसमें शामिल तारों की संख्या सौ अरब से भी अधिक है। इसे इस तरह से भी कह सकते हैं कि इसका सम्पूर्ण द्रव्यमान हमारे लगभग 100 अरब सूर्यों के बराबर है। हमारी आकाशगंगा यानी दुग्धमेखला 24 आकाशगंगाओं के एक समूह का सदस्य है, जिसे ‘स्थानीय समूह’ (Local groups) कहते हैं।
हमारा सूर्य आकाशगंगा के केंद्र से लगभग 30,000 प्रकाशवर्ष दूर है। सूर्य 220 किलोमीटर प्रति सेकेण्ड की गति से आकाशगंगा के केंद्र की ओर परिक्रमा कर रहा है। आकाशगंगा की इस परिक्रमा को पूर्ण करने में हमारे सूर्य को लगभग 25 करोड़ साल लगते हैं। इसमें सबसे मजेदार बात यह है कि पृथ्वी पर मानव के सम्पूर्ण अस्तित्व-काल में सूर्य अपनी आकाशगंगा की एक भी परिक्रमा पूर्ण नहीं कर सका है। इससे यह भी अर्थ ध्वनित होता है कि सूर्य हमारी आकाशगंगा का एक सामान्य तारा मात्रा है, जिसे हम एक आदर्श तारा भी कह सकते हैं।
वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन के द्वारा आकाशगंगा में कुछ ऐसे तारों के बारे में भी पता लगाया है, जो सूर्य से सैकड़ों गुना बड़े हैं। इन्हें 'महादानव तारे' (Giant Star) कहते हैं। इन तारों का व्यास सूर्य से 100 गुना अधिक होता है।
हमारी आकाशगंगा में अनेक ऐसे भी तारे हैं, जो सूर्य से काफी छोटे है। इसमें से कुछ तारे इतने छोटे हैं कि वे पृथ्वी तथा बुध जैसे ग्रहों से भी छोटे हैं। ऐसे तारों को 'श्वेत वामन तारे' (White Dwarf Star) अथवा 'बौने तारे' कहा जाता है। ये तारे भले ही सूर्य से छोटे होते हैं, परन्तु इनका द्रव्यमान लगभग सूर्य के बराबर ही होता है।
अगर हम तारों के घनत्व की बात करें, तो महादानव तारों के द्रव्य का घनत्व पानी के घनत्व की अपेक्षा लगभग एक लाख गुना कम होता है, जबकि श्वेत वामन तारों या बौने तारों का घनत्व बहुत अधिक होता है। इनका घनत्व पानी के घनत्व की तुलना में दस लाख गुना अधिक हो सकता है। ऐसे तारों का एक घन सेंटीमीटर द्रव्य सौ टन से भी अधिक हो सकता है।
जिन तारों का घनत्व पानी की तुलना में एक लाख अरब गुना अधिक होता है, ऐसे तारे 'पल्सर' या 'न्यूट्रॉन' तारे के नाम से जाने जाते हैं। इनका व्यास 40 किलोमीटर से भी कम हो सकता है।
अब हम आते हैं सूर्य के आदर्श स्वरूप के बारे में। यह एक आदर्श तारा इसलिए है क्योंकि यह न तो बहुत बड़ा है और न ही बहुत छोटा। इसलिए सूर्य के लिए ‘आदर्श तारा’ का विशेषण उपयोग में लाया जाता है।
अगली कडी में पढिए सूर्य की आंतरिक संरचना, सूर्य की तेजस्विता एवं सूर्य का जन्म और अंत।
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uttam lekh
जवाब देंहटाएंधन्यवाद :) :) :)
हटाएंधन्यवाद :)
हटाएंthe description of various stars,sun and sunspot,milky way is very itoo nteresting .and a layman can understand it easily.the sun is an ideal star as it is neither big nor too small and neither too hot and toocold and so life exists on the planet earth.
जवाब देंहटाएं:) धन्यवाद सर
हटाएंअगर ग्रह सूर्य की परिक्रमा करता है, और सूर्य अपने आकाश गंगा की परिक्रमा करता है, लेकिन एक आकाश गंगा में अनेक सूर्य हैं, तथा ब्रम्हांड में अनेक आकाशगंगा है तो प्रश्न यह उठता है कि ये आकाशगंगा किसकी परिक्रमा करता हैl
हटाएंबहुत सरल और सुन्दर व्याख्या......
जवाब देंहटाएंbahut sundar....
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