Albert Einstein General Theory of Relativity in Hindi
अल्बर्ट आइंसटाइन को दुनिया का महानतम वैज्ञानिक क्यों माना जाता है और उनका सापेक्षता का सिद्धांत आखिर क्या कहता है? इसी बात को समझने की कोशिश में लेखों की यह श्रृंखला यहां पर प्रस्तुत की गयी है। इस कड़ी में आपने अब तक अल्बर्ट आइंस्टीन और उनका सापेक्षता का सिद्धांत एवं विशेष-सापेक्षता सिद्धांत के प्रभाव एवं निष्कर्ष लेख पढ़े। अब इस कड़ी में पढ़ें आइन्सटाइन के सामान्य सापेक्षता सिद्धांत के बारे में, जिसने उन्हें महानतम वैज्ञानिक का दर्जा दिलाने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई।
सामान्य सापेक्षता सिद्धांत
-प्रदीप कुमार
विशेष सापेक्षता सिद्धांत (Theory of Special Relativity) एक-दूसरे के सापेक्ष सरल रेखाओं में तथा एकसमान वेगों से गतिशील प्रेक्षकों/वस्तुओं के लिए लागू होती है, परन्तु यदि किसी वस्तु की गति जब अ-समान, तीव्र अथवा धीमी होने लगे, या फिर सर्पिल अथवा वक्रिल मार्ग में घूमने लगे, तो क्या होगा? यह प्रश्न आइन्स्टाइन के मस्तिष्क में विशेष सापेक्षता सिद्धांत के प्रकाशन के दो वर्ष पश्चात् कौंधने लगा। आइन्स्टाइन के जिज्ञासु स्वभाव ने अपने सिद्धांत का और विस्तार कर ऐसे त्वरणयुक्त-फ्रेमों में विकसित करने के लिए प्रेरित किया, जिन्हें एक-दूसरे के सापेक्ष त्वरित किया जा सकता हो। आइन्स्टाइन ने विशेष सापेक्षता सिद्धांत के पूर्व मान्यताओं को कायम रखते हुए तथा त्वरित गति को समाहित करते हुए सामान्य सापेक्षता सिद्धांत (Theory of General Relativity) को वर्ष 1916 में ‘जर्मन ईयर बुक ऑफ़ फ़िजिक्स’ में प्रकाशित करवाया।
सामान्य सापेक्षता सिद्धांत को ‘व्यापक सापेक्षता सिद्धांत’ भी कहते हैं। इस सिद्धांत में आइन्स्टाइन ने गुरुत्वाकर्षण के नये सिद्धांत को समाहित किया था। इस सिद्धांत ने न्यूटन के अचर समय तथा अचर ब्रह्माण्ड की संकल्पनाओं को समाप्त कर दिया। कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार यह सिद्धांत ‘सर्वोत्कृष्ट सर्वकालिक महानतम बौद्धिक उपलब्धि’ है। दरअसल बात यह है कि इस सिद्धांत का प्रभाव, ब्रह्माण्डीय स्तर पर बहुत व्यापक है।
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वस्तुतः हम पृथ्वी पर आवास करते हैं, जिसके कारण हम ‘यूक्लिड की ज्यामिती’ को सत्य मानते हैं, परन्तु दिक्-काल में यह सर्वथा असत्य है। और हम पृथ्वी पर अपने अनुभवों के कारण ही यूक्लिड की ज्यामिती को सत्य मानते हैं और सामान्य सापेक्षता सिद्धांत यूक्लिड के ज्यामिती से भिन्न ज्यामिती को अपनाती है। इसलिए सामान्य सापेक्षता सिद्धांत को समझना आशा से अधिक चुनौतीपूर्ण माना जाता है।
सामान्य सापेक्षता सिद्धांत ‘समतुल्यता के नियम (Equivalence Principle)’ पर आधारित है और गुरुत्वाकर्षण बल (Gravity) प्रकाश के ही वेग से गतिमान रहता है। समतुल्यता के नियम को दर्शाने के लिए कल्पना कीजिये कि भौतिकी से सबंधित प्रयोग के लिए पृथ्वी पर एक बंद कमरा है तथा अन्तरिक्ष में त्वरित करता हुआ (9.8 मीटर/से०) एक अन्य कमरा है। दोनों ही कमरे प्रयोग करने के लिए एकसमान होंगे। आइंस्टाइन ने समतुल्यता के नियम के ही द्वारा यह सिद्ध किया कि त्वरण एवं गुरुत्वाकर्षण एक ही प्रभाव उत्पन्न करते हैं। इसके लिए उन्होंने प्रसिद्ध ‘लिफ्ट एक्सपेरिमेंट’ (lift experiment) नामक वैचारिक प्रयोग का सहारा लिया।
सर्वप्रथम आप यह कल्पना कीजिये कि एक लिफ्ट है, जो किसी इमारत की सबसे ऊपरी मंजिल पर है। लिफ्ट के तार को काट दिया जाता है और लिफ्ट स्वतंत्रतापूर्वक नीचे गिरने लगता है। जब लिफ्ट गिरने लगेगा तो उसमे सवार लोगों पर भारहीनता का प्रभाव पड़ेगा, ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार से अन्तरिक्ष यात्री अन्तरिक्ष यान में सवार हो करके करते हैं। उस समय पृथ्वी की ओर बेरोकटोक तीव्र गति से गिरने का अनुभव होगा।
यदि कोई व्यक्ति, जो लिफ्ट के अंदर उपस्थित हो और लिफ्ट के बाहर का कोई दृश्य न देख सके, तो उसका अनुभव ठीक उसी प्रकार से होगा, जिस प्रकार से अन्तरिक्ष यात्रियों को होता है। कोई भी व्यक्ति यह नहीं बता सकता है कि लिफ्ट में जो घटनाएँ घटीं, वह गुरुत्वाकर्षण के कारण घटी हैं अथवा त्वरण के कारण। अत: सामान्य सापेक्षता के सिद्धांत के अनुसार त्वरण तथा गुरुत्वाकर्षण मूलतः एक ही प्रभाव उत्पन्न करते हैं तथा उनके बीच अंतर स्पष्ट करना असम्भव है।
वास्तविकता में, आइन्स्टाइन के सिद्धांत के अनुसार गुरुत्वाकर्षण एक बल नही हैं, बल्कि त्वरण तथा मंदन का कारक है एवं सूर्य के नजदीक ग्रहीय-पथ एवं ग्रहों के निकट उपग्रहीय-पथ को वक्रिल बनाता है। किसी अत्यंत सहंत पिंड के इर्दगिर्द दिक्-काल वक्र हो जाता है। वस्तुतः अब यह पुरानी मान्यता हो चुकी है कि सूर्य के गुरुत्वाकर्षण बल के कारण उसके इर्दगिर्द ग्रह वृत्ताकार कक्षाओं में परिक्रमा करते रहते हैं, बल्क़ि यह कहना कहीं अधिक उचित होगा कि सूर्य का द्रव्यमान अपने इर्दगिर्द के दिक्-काल (space-time) को वक्र कर देता है। और दिक्-काल की वक्रता के ही कारण चन्द्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करता है।
इस भौतिक विश्व में हम जिन घटनाओं को घटित होते हुए देखते हैं, वह दिक् (अन्तरिक्ष) के तीन आयामों लम्बाई, चौड़ाई और ऊँचाई से निर्मित होता है। मगर, सामान्य सापेक्षता सिद्धांत के अनुसार दिक् के तीन आयामों के अतिरिक्त साथ में चौथा आयाम ‘समय’ भी जुड़ता है। और ये चारों आयाम जुड़कर ‘दिक्-काल सांतत्यक (Space time Continuum)’ का निर्माण करते हैं।
आइंस्टाइन द्वारा प्रतिपादित इस नवीन सिद्धांत की सहायता से उस समस्या का सुनिश्चित स्पष्टीकरण मिला, जिसको लेकर भौतिकविद् बहुत लम्बे समय से शंकित थे। समस्या थी- सूर्य के समीप स्थित ग्रह बुध के कक्षा में विचलन। न्यूटन के नियमों के अनुसार इस विचलन को पूरी तरह से नहीं समझा जा सकता था। अंतर केवल थोड़ा ही था। परन्तु आइंस्टाइन के सामान्य सापेक्षता सिद्धांत के द्वारा इस समस्या का भी समाधान निकाल लिया गया था। उनके अनुसार प्रत्येक शताब्दी में 43 सेकेण्ड का विचलन अतिरिक्त होनी चाहिये; और यह विचलन निरीक्षणों से मेल खाता था। और इस तरह ही आइन्स्टाइन ने सामान्य सापेक्षता सिद्धांत का प्रथम प्रमाण स्वयं प्रस्तुत कर दिया।
सामान्य सापेक्षता सिद्धांत ने एक और भविष्यवाणी की, कि अत्यंत प्रबल गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र से आने वाले प्रकाश में अभिरक्त विस्थापन (Red-shift) होना चाहिये, जोकि न्यूटन के सिद्धांतों के अनुरूप नहीं था। आप सोच रहे होंगे कि ये अभिरक्त विस्थापन क्या होता है? दरअसल जब वर्णक्रम (Spectrum) की रेखाएँ लाल सिरे की ओर खिसकने लगती हैं, अर्थात् वे प्रेक्षक से दूर जा रही होती हैं। यदि वे प्रेक्षक के नजदीक आ रही होती हों, तो बैंगनी विस्थापन होता! हाँ, तो आइन्स्टाइन के कलन अनुसार अत्यंत प्रबल गुरुत्वीय क्षेत्र से आने वाले प्रकाश में विचलन पाया गया।
सामान्य सापेक्षता सिद्धांत ने एक नए संकल्पना को जन्म दिया, जिसके अनुसार- ‘‘यदि प्रकाश की एक किरण अत्यंत प्रबल गुरुत्वाकर्षण के क्षेत्र से गुजरेगी, तो वह मुड़ (वक्रित) जायेगी।’’
इसका तात्पर्य यह है कि प्रकाश सरल-रेखा में न गमन करके वक्र-रेखाओं में गमन करता है। आइंस्टाइन ने अपने सिद्धांत के परीक्षण के लिए यह सुझाव दिया कि सूर्य के प्रबल गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र से गुजरने वाले तारों का प्रेक्षण करके इस तथ्य को सिद्ध किया जा सकता है। जाहिर है कि दिन में सूर्य के अतितेजस्वी प्रकाश के कारण तारों को देख पाना सम्भव नहीं होगा। परन्तु खग्रास सूर्य ग्रहण; पूर्ण सूर्य ग्रहण (जब चन्द्रमा सूर्य और पृथ्वी के मध्य आकर के, सूर्य को पूरी तरह से ढक लेता हो) के अवसर पर सूर्य एवं तारे दोनों ही स्पष्ट दिखाई देते हैं।
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इसका तात्पर्य यह है कि प्रकाश सरल-रेखा में न गमन करके वक्र-रेखाओं में गमन करता है। आइंस्टाइन ने अपने सिद्धांत के परीक्षण के लिए यह सुझाव दिया कि सूर्य के प्रबल गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र से गुजरने वाले तारों का प्रेक्षण करके इस तथ्य को सिद्ध किया जा सकता है। जाहिर है कि दिन में सूर्य के अतितेजस्वी प्रकाश के कारण तारों को देख पाना सम्भव नहीं होगा। परन्तु खग्रास सूर्य ग्रहण; पूर्ण सूर्य ग्रहण (जब चन्द्रमा सूर्य और पृथ्वी के मध्य आकर के, सूर्य को पूरी तरह से ढक लेता हो) के अवसर पर सूर्य एवं तारे दोनों ही स्पष्ट दिखाई देते हैं।
29 मार्च, 1919 के खग्रास सूर्य ग्रहण के अवसर पर बिट्रेन के खगोलविदों के एक दल, जिसका नेतृत्व सर आर्थर स्टेनली एडिंग्टन (Sir Arthur Stanley Eddington) कर रहे थे, ने पश्चिमी अफ्रीका (प्रिंसिप) और ब्राजीलियाई नगर सोबर्ल में सूर्य ग्रहण के चित्र उतारे। सामान्य सापेक्षता के अनुसार, जब तारों का प्रकाश सूर्य के प्रबल गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र से गुजरेगा, तो उसे थोडा सा मुड़ जाना चाहिये यानी तारे अपने स्थान से विस्थापित नज़र आने चाहिये।
आइन्स्टाइन के अनुसार, लगभग 1.75 कोणीय सेकेण्ड का विस्थापन होना चाहिए, जबकि एडिंग्टन के दल ने लगभग 1.64 कोणीय सेकेण्ड का विस्थापन मालूम किया। वर्ष 1952 में एक अमेरिकी अभियान ने अत्यंत सूक्ष्मग्राही उपकरण से 1.70 कोणीय सेकेण्ड का विस्थापन ज्ञात किया। और बाद के भी अभियानों में भी कुछ इसी प्रकार के परिणाम प्राप्त हुए। दिलचस्प बात यह है कि ये सभी परिणाम आइन्स्टाइन के पूर्वनिर्धारित भविष्यवाणी को बिलकुल सत्य सिद्ध करते हैं। इस प्रभाव को आज ‘गुरुत्वीय लेंसिग (gravitational lensing)’ के नाम से जाना जाता है।
जब आइंस्टाइन को यह पता चला कि उनके इस निष्कर्ष की पुष्टि प्रयोगिक तौर पर हो चुकी है, तो उन्होंने अपने प्रिय मित्र और अपने समकालीन महान भौतिकविद् मैक्स प्लांक (Max Karl Ernst Ludwig Planck) को एक पत्र में लिखा: ‘‘इस दिन तक मुझे जीवित रख कर के भाग्य ने मुझ पर विशेष कृपा की है...’’।
आइंस्टाइन के इस सिद्धांत को न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत के बाद दुनिया का सबसे बड़ा आविष्कार माना जाता है। इसके बाद आइन्स्टाइन इस विश्व के सबसे प्रसिद्ध वैज्ञानिक बन गए और बच्चा-बच्चा उनसे परिचित हो गया। आज भी जब कोई बच्चा भौतिकी अथवा गणित में ज्यादा अच्छी रूचि दिखाता है, तो हम उसे स्नेहपूर्वक ‘हेल्लो यंग आइंस्टाइन’ कहकर सम्बोधित करते हैं।
बहुत से लोग ऐसा मानते हैं कि आइन्स्टाइन धर्म और भगवान में बेहद विश्वास करते थे। और बहुत से लोग आइंस्टाइन के इस कथन का हवाला देते हैं: ‘‘धर्म के बिना विज्ञान लंगड़ा और विज्ञान के बिना धर्म अंधा हैं’’। दरअसल आइन्स्टाइन का सबंध ईसाई, पारसी, हिन्दू इत्यादि किसी भी धर्म से कोई भी सम्बंध नही था। यह धर्म था: कॉस्मिक धर्म था और इस धर्म के भगवान थे– स्पिनोजा, जोकि बहुत बड़े नास्तिक थे। यह धर्म ब्रह्माण्ड की अनुरूपता से गहरा सबंध रखता हैं। और इसी धर्म ने आइन्स्टाइन को तथ्यों की गहराई तक पहुँचाया, जिससे उनके सापेक्षता सिद्धांत का जन्म हुआ।
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लेखक परिचय: श्री प्रदीप कुमार यूं तो अभी दिल्ली के जी.बी.एस.एस. स्कूल में दसवीं के विद्यार्थी हैं, किन्तु विज्ञान संचार को लेकर उनके भीतर अपार उत्साह है। आपकी ब्रह्मांड विज्ञान में गहरी रूचि है और भविष्य में विज्ञान की इसी शाखा में कार्य करना चाहते हैं। वे इस छोटी सी उम्र में न सिर्फ 'विज्ञान के अद्भुत चमत्कार' नामक ब्लॉग का संचालन कर रहे हैं, वरन फेसबुक पर भी इसी नाम का सक्रिय समूह संचालित कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त आप 'साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन' के भी सक्रिय सदस्य के रूप में जाने जाते हैं।
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अत्यंत सरल शब्दों में आपने यह जानकारी प्रदान की है। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंvery informative...
जवाब देंहटाएंउमदा
जवाब देंहटाएंआसान भाषा के कारण विज्ञान के इस कठिन नियम को समझ पा रहा हूँ एक अच्छा नियम जो जीवन को जीने का नजरिया भी बदल सकता है...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद्! :) :) :)
जवाब देंहटाएंविज्ञान हमेशा से हि तर्क. पर आधारित होता है.. आज तक विज्ञान ये नही बता पाया कि युनिव्हर्स बाना क्यो है...
हटाएंtumhara ye puchna bilkul galt hai ki kyu universe bna hai kuki kyu ka javab nhi hota hai
हटाएंtumhara ye puchna bilkul galt hai ki kyu universe bna hai kuki kyu ka javab nhi hota hai
हटाएंBahut Khub...Badate rahe....
जवाब देंहटाएंit's to helpful in brief
जवाब देंहटाएंPradeep meri bhi science ke kshetra me bahut jyaada ruchi hai aur mai is tarah ke niymo ko hamesha padhta rahta hu magar tumhaari is samagri se samajhna aur bhi aasan ho jata hai thanks...
जवाब देंहटाएंPradeep meri bhi science ke kshetra me bahut jyaada ruchi hai aur mai is tarah ke niymo ko hamesha padhta rahta hu magar tumhaari is samagri se samajhna aur bhi aasan ho jata hai thanks...
जवाब देंहटाएंkya big bank ke survat main pahile time bana ya spce bana hai???
जवाब देंहटाएंJi ha bahut si bramand ham se purane hai
हटाएंसर जी मुझे ये नही समझ मे आया कि space time क्या है प्लीज कॉल me +918827674425
जवाब देंहटाएंThanks for giving me this type of information in hindi.
जवाब देंहटाएंBig bang hai....bank nahi scientist uske baad time aur space ki soch
जवाब देंहटाएंऊर्जा को न तो नष्ट किया जा सकता है और न ही बनाया जा सकता है फिर ब्रम्हाड में इतनी ऊर्जा आयी कहा से?
जवाब देंहटाएंVery good and thank you for information
जवाब देंहटाएंinsaan marta q hai????? please frinds answer me
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