Malaria: Symptoms: Causes, Prevention and Treatment in Hindi
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 1955 में घोषणा की थी कि मलेरिया पर मनुष्य की विजय का समय आ गया है और जल्दी ही यह रोग नेस्तनाबूद हो जाएगा। मगर, मलेरिया ने पलट कर हमला किया और आज यह दुनिया भर में हर साल करीब 22-50 करोड़ लोगों पर हमला करके 7-8 लाख लोगों की जान ले रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 2013 में विश्व भर में करीब 19 करोड़ 80 लाख लोग मलेरिया से पीड़ित हुए और लगभग 5 लाख 84 हजार मरीजों की मृत्यु हो चुकी है।
विश्व मलेरिया दिवस (25 अप्रैल)
मलेरिया से सावधान रहने की आवश्यकता
-नवनीत कुमार गुप्ता
आज जहां दुनिया में कैंसर, एड्स, बर्ड फ्लू, स्वाइन फ्लू जैसे रोगों के लिए दवाएं विकसित की जा रही हैं, वहीं एक बार फिर मलेरिया से होने वाली मौतों ने पूरे विश्व का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। सदियों से दुनिया भर में कराड़ों लोगों की जान लेने वाले मलेरिया के खिलाफ मनुष्य की मोर्चाबंदी लगातार जारी है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 1955 में घोषणा की थी कि मलेरिया पर मनुष्य की विजय का समय आ गया है और जल्दी ही यह रोग नेस्तनाबूद हो जाएगा। मगर, मलेरिया ने पलट कर हमला किया और आज यह दुनिया भर में हर साल करीब 22-50 करोड़ लोगों पर हमला करके 7-8 लाख लोगों की जान ले रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 2013 में विश्व भर में करीब 19 करोड़ 80 लाख लोग मलेरिया से पीड़ित हुए और लगभग 5 लाख 84 हजार मरीजों की मृत्यु हो चुकी है।
हालांकि कई लोगों का अनुमान तो यह है कि मलेरिया के मरीजों और इससे मरने वालों की वास्तविक संख्या इससे भी कहीं अधिक हो सकती है। विश्व की करीबन सवा अरब आवादी को मलेरिया होने का खतरा है। वर्ष 2014 में करीबन 97 देशों में मलेरिया का प्रभाव देखा गया। मलेरिया से होने वाली मौतों में से कुल 80 प्रतिशत मौतें मलेरिया से सबसे अधिक प्रभावित 18 देशों में हुई। प्रत्यक्ष तौर पर मलेरिया के कारण वैश्विक स्तर पर प्रतिवर्ष 12 अरब अमेरिकी डॉलर की हानि होती है।
भारत के संदर्भ में बात करें तो हर साल मलेरिया से करीब 20 लाख लोग प्रभावित होते हैं। जिनमें से प्रत्येक वर्ष एक हजार लोगों की मौत मलेरिया के कारण हो जाती है। आंध्रपद्रेश, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीगढ़, गुजरात, झारखंड एवं उड़ीसा राज्य सर्वाधिक मलेरिया प्रभावित राज्यों में शामिल हैं।
पिछले लगभग 300 वर्षों से मलेरिया के इलाज में काम आने वाली कडवी कुनैन आज बेअसर साबित हो रही है। क्लोरोक्विन से भी इसका कारगर इलाज नहीं हो पा रहा है। डी डी टी और दूसरे कीटनाषकों के छिड़काव से आस जगी थी कि अब मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों का सफाया हो जाएगा, लेकिन वे ग्रामीण इलाके ही नहीं बल्कि शहरी इलाकों में भी पूरी ताकत से हमला बोल रहे हैं।
जहां मलेरिया को पहले ग्रामीण क्षेत्रों का रोग माना जाता था वहीं अब यह शहरी इलाकों का भी एक गंभीर रोग बन चुका है। हालांकि आज भी हमारे देश की कुल आबादी में से 80.5 प्रतिशत लोग ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं, जहां मलेरिया का खतरा सबसे अधिक है। मलेरिया के वैश्विक खतरों को देखते हुए प्रत्येक वर्ष 25 अप्रेल को ‘विश्व मलेरिया दिवस’ मनाया जाता है, जिससे इस रोग की भयानकता और इससे बचाव का संदेश प्रचारित किया जा सके। इस वर्ष के मलेरिया दिवस का विषय ‘मलेरिया को हराएं और भविष्य को संवारे’ है।
भारत में मलेरिया का प्रकोप सदियों से हो रहा है। ‘चरक संहिता’ आदि प्राचीन ग्रंथों में इसका उल्लेख किया गया है। आजादी से पहले तक देष की लगभग एक चौथाई आबादी मलेरिया से प्रभावित होती थी। 1947 में भारत की 33 करोड़ आबादी में से 7.5 करोड़ लोग मलेरिया से पीड़ित हुए और 8 लाख लोग मारे गए। हालांकि भारत में सन् 1946 से डीडीटी का उपयोग आरंभ हो गया था।
राष्ट्रीय मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम:
इस घातक रोग पर काबू पाने के लिए भारत सरकार ने 1953 में ‘राष्ट्रीय मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम’ लागू किया। यह कार्यक्रम काफी सफल रहा और इससे मलेरिया के रोगियों की संख्या में काफी कमी आई। इस कार्यक्रम की सफलता से उत्साहित होकर सरकार ने 1958 में ‘राष्ट्रीय मलेरिया उन्मूलन’ कार्यक्रम शुरू किया। डी डी टी आदि कीटनाशक दवाइयों के छिड़काव में ढील के कारण 1960 और 1970 के दषक में मलेरिया के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ गई, और 1976 में राष्ट्रीय मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम के तहत देश भर में 60 लाख 45 हजार केस दर्ज किए गए।
मलेरिया की रोकथाम के तमाम प्रयासों के कारण रोगियों की संख्या काफी घट गई लेकिन 1990 के दशक में यह रोग नई ताकत के साथ वापस लौट आया। इसकी वापसी के कारण थेः
- कीटनाशकों के लिए मच्छरों की प्रतिरोधिता
- खुले स्थानों में मच्छरों की बढ़ती तादाद
- जल परियोजनाओं, शहरीकरण, औद्योगिकीकरण, मलेरिया परजीवी के रूप बदलने और क्लोरोक्विन तथा
- मलेरिया की अन्य दवाइयों के लिए प्लाज्मोडियम फैल्सिपेरम की प्रतिरोधिता।
भारत में मलेरिया की रोकथाम पर राष्ट्रीय रणनीति के तौर पर एक पंचवर्षीय योजना 2007 से 2012 के लिए बनाई गई थी, जिसका लक्ष्य मलेरिया मुक्त भारत था। इस योजना की अच्छी बात यह थी कि इसमें अपनी अवधि यानी 2012 के बाद भी मलेरिया उन्मूलन के लिए प्रयास किए जाने पर चर्चा की गई थी।
कैसे फैलता है मलेरिया:
मलेरिया की समस्या के लिए जिम्मेदार जीव है नन्हा सा मच्छर। मच्छर खतरनाक रोगाणु वाहक कीट हैं। इनकी एनोफेलीज प्रजाति के मादा मच्छर मलेरिया फैलाते हैं। मादा मच्छर आदमी का खून चूसते हैं जबकि इसी प्रजाति के नर मच्छर फूलों आदि का रस चूसते हैं। असल में मलेरिया एक सूक्ष्म परजीवी प्लाज्मोडियम (Plasmodium) के कारण होता है। इसकी चार प्रजातियों प्लाज्मोडियम फैल्सिपेरम (Plasmodium falciparum), प्लाज्मोडियम वाइवैक्स (Plasmodium vivax), प्लाज्मोडियम ओवेल (Plasmodium ovale), और प्लाज्मोडियम मलेरी (Plasmodium malariae) से मनुष्यों को मलेरिया रोग होता है। इसकी पांचवीं प्रजाति प्लाज्मोडियम नोलेसी (Plasmodium knowlesi) जूनोटिक है। यानी, इससे मैकाक बन्दरों और मनुष्यों को मलेरिया होता है जो एक-दूसरे में फैल सकता है।
कैसे हुई मलेरिया की खोज:
इस बात का पता 1880 में फ्रांसीसी चिकित्सक चार्ल्स लुई अल्फोंसे लेवेरान (Charles Louis Alphonse Laveran) ने लगाया कि मलेरिया एक सूक्ष्म प्रोटोजोआ परजीवी के कारण होता है। लेकिन, तब यह पता नहीं था कि यह परजीवी मनुष्यों के शरीर में कहां से आता है। इस रहस्य का पता लगाया 1898 में भारतीय सेना के चिकित्सक रोनाल्ड रॉस (Ronald Ross) ने। उन्होंने सिकंदराबाद व कलकत्ता में मच्छरों पर लगातार परीक्षण किए और मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों के आमाशय की परत में उभरे मस्सों से फूटते हंसिए के आकार के हजारों सूक्ष्मजीव देखे। वे मच्छर की लार ग्रंथियों में जा रहे थे। तब रॉस ने कहा कि मलेरिया के रोगाणुओं को मनुष्यों के शरीर में मच्छर फैलाते हैं। रोनाल्ड रॉस को मनुष्यों के शरीर में मच्छरों द्वारा परजीवी पहुंचाने की खोज के लिए 1902 में, और चार्ल्स लेवेरान को मलेरिया परजीवी की खोज के लिए 1907 में ‘नोबेल पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।
मलेरिया के लक्षण:
इस परजीवी सूक्ष्मजीव को एनोफेलीज प्रजाति के मादा मच्छर फैलाते हैं। जब वे किसी मलेरिया के रोगी का खून चूसते हैं तो मलेरिया परजीवी यानी स्पोरोजॉइट उनकी लार ग्रंथियों में पहुंच जाते हैं। वहां से रक्त वाहिनियों के जरिए लिवर यानी यकृत में पहुंचते हैं। वहां परिपक्व होकर लाखों मेरोजॉइट बनाते हैं। वे रक्त प्रणाली में पहुंच कर लाल रक्त कोषिकाओं में लाखों की तादाद में बढ़ते हैं। 48 से 72 घंटे के भीतर वे लाल रक्त कोषिकाएं फट जाती हैं। इस तरह लाल रक्त कोशिकाएं बड़ी संख्या में नष्ट हो जाती हैं और मलेरिया का मरीज एनीमिया का शिकार हो जाता है।
मलेरिया के मुख्य लक्षण हैं- एनीमिया, ठंड के साथ कंपकंपी, जूड़ी बुखार, ऐंठन, सिर दर्द, मल में खून, उल्टी, पसीना निकलना और बेहोषी। मलेरिया के लक्षण आमतौर पर 10 दिन से 4 सप्ताह तक के भीतर प्रकट हो जाते हैं। लक्षण हर 48 से 72 घंटे बाद प्रकट होते है।
कुनैन और मलेरिया:
मलेरिया की पुरानी प्रचलित दवा कुनैन थी। इसे सिनकोना के पेड़ की छाल से बनाया जाता था। 1943 में क्लोरोक्विन दवा की खोज हुई जिससे मलेरिया के उपचार में बहुत मदद मिली। मनुष्यों को मलेरिया से बचाने के लिए टीके की खोज भी जारी है। आनुवंषिकीविद् मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों के जीनों में हेर-फेर करके ऐसे मच्छर तैयार करने की कोषिष कर रहे हैं, जिनके शरीर में परजीवी जाना ही न चाहें या ऐसे मच्छर मनुष्य का खून न चूसना चाहें। वैसे हमारे देश में मलेरिया के उपचार के लिए व्यापक स्तर पर कार्य किया जा रहा है। केन्द्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान, लखनऊ ने भी कुछ समय पूर्व मलेरिया के इलाज के लिए ‘ई-माल’ तथा ‘आब्लाक्विन’ नामक औषधियों का विकास किया है। इसके अलावा अनेक संस्थाएं मलेरिया की नयी दवाओं के विकास के लिए कार्यरत हैं।
मलेरिया नियंत्रण के उपाय:
मलेरिया की रोकथाम के लिए वैज्ञानिकों का ध्यान पुराने प्रचलित और प्राकृतिक तरीकों की ओर भी गया है। मच्छरदानियों को रसायनों में भिगा-सुखा कर काम में लाया जा रहा है। ऐसी दवा-बुझी मच्छरदानियों से कई विकासशील देशों में लोग मलेरिया की मार से बच रहे हैं। मच्छरों की लार्वा खाने वाली मछलियों की संख्या बढ़ाने पर भी बल दिया जा रहा है। इनके अलावा मेढक और अन्य पानी में रहने वाले जीवों की संख्या बढ़ाने पर भी विचार किया जा रहा है।
इस प्रकार पूरी दुनिया में मलेरिया से निपटने के विभिन्न उपायों को खोजा जा रहा है ताकि इस बीमारी से निजात पाई जा सके। इस कार्य में हमें भी अपने घरों के आसपास पानी जमा नहीं होने देना चाहिए जिससे वहां मच्छर नहीं पनप सकें। साथ ही कूलरों में भी नियमित तौर पर पानी बदलते रहना चाहिए ताकि वहां मच्छर नहीं पनप सकें। अब तो भारत सरकार भी स्वच्छता अभियान चला रही है। अतः मलेरिया से बचाव के लिए जनमानस में जागरूकता का प्रचार-प्रसार किया जाना आवश्यक है।
इसी परिप्रेक्ष्य में पिछले वर्ष वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद एवं विज्ञान प्रसार ने देश के हिंदी भाषी राज्यों के विद्यार्थियों के लिए मलेरिया पर एक राष्ट्रीय निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया था, जिसके अंतर्गत हजारों विद्यार्थियों ने भाग लेकर मलेरिया के बारे में जानकारी का प्रचार-प्रसार किया। ऐसे ही प्रयासों के चलते हम साफ-सफाई रखकर मच्छरों को पनपने से रोक सकते है। जिससे मलेरिया उन्मूलन में मदद मिलेगी।
लेखक परिचय:
नवनीत कुमार गुप्ता पिछले दस वर्षों से पत्र-पत्रिकाओं, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन आदि जनसंचार के विभिन्न माध्यमों द्वारा वैज्ञानिक दृष्टिकोण और पर्यावरण संरक्षण जागरूकता के लिए प्रयासरत हैं। आपकी विज्ञान संचार विषयक लगभग एक दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं तथा इन पर गृह मंत्रालय के ‘राजीव गांधी ज्ञान विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन पुरस्कार' सहित अनेक पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। आप विज्ञान संचार के क्षेत्र में कार्यरत संस्था ‘विज्ञान प्रसार’ से सम्बंद्ध हैं। आपसे निम्न मेल आईडी पर संपर्क किया जा सकता है:
नवनीत कुमार गुप्ता पिछले दस वर्षों से पत्र-पत्रिकाओं, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन आदि जनसंचार के विभिन्न माध्यमों द्वारा वैज्ञानिक दृष्टिकोण और पर्यावरण संरक्षण जागरूकता के लिए प्रयासरत हैं। आपकी विज्ञान संचार विषयक लगभग एक दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं तथा इन पर गृह मंत्रालय के ‘राजीव गांधी ज्ञान विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन पुरस्कार' सहित अनेक पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। आप विज्ञान संचार के क्षेत्र में कार्यरत संस्था ‘विज्ञान प्रसार’ से सम्बंद्ध हैं। आपसे निम्न मेल आईडी पर संपर्क किया जा सकता है:
keywords: malaria symptoms in hindi, malaria treatment in hindi, malaria tablets in hindi, malaria life cycle in hindi, malaria causes in hindi, malaria prevention in hindi, symptoms of malaria in hindi, symptoms of malaria fever in hindi, symptoms of malaria in children in hindi, symptoms of malaria in adults in hindi, signs and symptoms of malaria in hindi, early symptoms of malaria in hindi
COMMENTS