वैज्ञानिक होमी जहांगीर भाभा (Homi Jehangir Bhabha) की जीवनी और उनके आविष्कार
अंतत: दक्षिण मुंबई के मालाबार हिल क्षेत्र में स्थित मशहूर वैज्ञानिक डॉ होमी जहांगीर भाभा का 1,593 वर्ग मीटर जमीन पर बना बंगला 'मेहेरंगीर' 372 करोड़ रूपये में नीलाम हो गया। हालांकि देश के वैज्ञानिकों की एक टीम ने इस नीलामी का विरोध किया था। भारत रत्न से सम्मानित वैज्ञानिक सी.एन.आर. राव ने इस महीने की शुरुआत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर इस बंगले की नीलामी को रोकने और इसे परमाणु ऊर्जा संग्रहालय के रूप में परिवर्तित करने का अनुरोध किया था। इसे लेकर मुम्बई हाईकोर्ट में भी रिट दायर की गयी थी, किन्तु उसने भी इसकी बिक्री पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था।
यह बंगला डॉ. होमी जहांगीर भाभा के निधन के बाद से जमशेद भाभा के पास था और 2007 में उनके निधन के बाद से नेशनल सेंटर फॉर दा परफार्मिंंग आर्ट्स (National Centre for the Performing Arts-NCPA) के पास चला गया था, जो जेआरडी टाटा और जमशेद भाभा ने स्थापित किया था। बंगले की नीलामी को लेकर मुम्बई हाईकोर्ट में अगली सुनवाई 23 जून को होगी। और कोर्ट यह कह चुका है कि अगर सुनवाई से पहले बंगला नीलाम भी हो जाता है, तो जरूरत महसूस होने पर उसे रद्द भी किया जा सकता है।
भारत में परमाणु ऊर्जा के प्रणेता डॉ. होमी जहाँगीर भाभा
होमी जहांगीर सिर्फ वैज्ञानिक ही नहीं बल्कि एक स्वप्नदृष्टा थे जिन्होंने अपनी समर्पण भावना के द्वारा भारत को परमाणु उर्जा के क्षेत्र में प्रतिष्ठित मकाम दिलाया। उन्होंने 1944 में जब चंद वैज्ञानिकों के साथ नाभिकीय उर्जा पर अनुसंधान कार्य प्रारम्भ किया, तो किसी को यकीन नहीं था कि इसमें सफल हो सकेंगे। लेकिन उन्होंने उस स्वप्न को न सिर्फ साकार कराया, बल्कि देश को एटामिक शक्ति सम्पन्न राष्ट्रों की पंक्ति में भी शामिल कराया। यही कारण है कि उन्हें सम्मान के साथ 'आर्किटेक्ट ऑफ इंडियन एटॉमिक एनर्जी प्रोग्राम' भी कहा जाता है।
[post_ads]
जन्म एवं बचपन:
होमी जहांगीर भाभा का जन्म 30 अक्टुबर 1909 को मुम्बई के एक पारसी परिवार में हुआ था। उनके पिता जहांगीर भाभा जानेमाने वकील थे। उनकी माता उच्च घराने से सम्बंधित थीं और दादा मैसूर राज्य में उच्च शिक्षा अधिकारी के पद पर कार्यरत थे।
होमी को बचपन में बहुत कम नींद आती थी। इसलिए उनका रूझान पुस्तकों की ओर हो गया। उनकी इस रूचि को देखते हुए उनके पिता ने घर पर ही पुस्तकालय बनवा दिया, जिसमें वे ज्ञानवर्द्धन पुस्तकों का अध्ययन किया करते थे। उनकी भौतिक शास्त्र और गणित में विशेष रूचि थी। उन्होंनं 15 वर्ष की उम्र में आइंस्टीन का सापेक्षता का सिद्धान्त पढ़ लिया था।
होमी की प्रारंभिक शिक्षा कैथरेडल स्कूल में सम्पन्न हुई। उसके बाद वे जॉन केनन स्कूल में पढने गये। उन्होंने एलफिस्टन कॉलेज से 12वीं की परीक्षा पास की और उसके बाद कैम्ब्रिज चले गये। वे अत्यंत मेधावी छात्र थे, यकी कारण था कि उन्हें लगातार छात्रवृत्ति मिलती रही। उन्होंने 1930 में मैकेनिकल इंजीनियर की डिग्री हासिल की और 1934 में पीएचडी की डिग्री प्राप्त की। इसी दौरान उन्हें रुदरफोर्ड, डेराक एवं नील्सबेग जैसे प्रसिद्ध वैज्ञानिकों के साथ काम करने का अवसर भी मिला।
शोध एवं योगदान:
होमी भाभा अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद भारत लौट आए। वे चाहते तो किसी भी देश में नौकरी करके मान-सम्मान प्राप्त कर सकते थे। परन्तु उन्होंने रूपयों-पैसों की तुलना में अपने देश के लिए कार्य करने का निश्चय किया। होमी भाभा ने अंतरिक्ष में पृथ्वी के वायुमण्डल में प्रवेश करने वाली कॉस्मिक किरणों पर कार्य किया और 'कॉस्केटथ्योरी ऑफ इलेक्ट्रान' का प्रतिपादन किया।
[next]
भाभा सन 1940 में भारतीय विज्ञान संस्थान, बंगलुरू में रीडर के पद पर नियुक्त हुए। वहां पर उन्होंने कॉस्मिक किरणों की खोज के लिए अलग विभाग की स्थापना की। कॉस्मिक किरणों पर उनकी खोज के कारण उन्हें विशेष ख्याति मिली और उन्हें सन 1941 में रॉयल सोसाइटी का सदस्य चुन लिया गया। उस समय उनकी आयु मात्र 31 वर्ष थी।
टाटा इन्सट्यूट ऑफ फण्डामेंटल रिसर्च की स्थापना:
होमी भाभा की प्रेरणा से टाटा ने देश में वैज्ञानिक शोध को बढ़ावा देने के लिए 'टाटा इन्सट्यूट ऑफ फण्डामेंटल रिसर्च' की स्थापना की, जिसके वे महानिदेशक बने। उस समय विश्व स्तर पर परमाणु शक्ति से चलने वाले बिजली घर बहुत कम थे। होमी भाभा ने उसी समय परमाणु ऊर्जा के महत्व को पहचान लिया था। उन्होंने इस दिशा में शोध कार्य प्रारम्भ कराया, ताकि भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा किया जा सके और सस्ती ऊर्जा प्राप्त किया जा सके।
सन 1955 में होमी भाभा को जिनेवा में आयोजित होने वाले एक सम्मेलन में भाग लेने के लिए बुलाया गया। वहां पर उनके विचारों को सुनकर कनाडा सरकार ने भारत को परमाणु रिएक्टर बनाने में सहयोग देने का प्रस्ताव दिया, जिसके फलस्वरूप 'सायरस' परियोजना प्रारंभ हुई।
वैसे भारत में इससे पहले ही 6 अगस्त 1956 को परमाणु ऊर्जा रिएक्टर के निर्माण का कार्य प्रारम्भ हो चुका था। सायरस परियोजना आने से इस योजना को बल मिला और इसपर जोर-शोर से कार्य प्रारम्भ हो गया। सन 1960 में यह योजना पूरी हुई तथा इसके बाद सन 1961 में 'जेरिलिना परियोजना' भी अपने परिणाम पर जा पहुंची। इन रिएक्टरों के निर्माण से देश में परमाणु शक्ति से चलने वाली विद्युत परियोजना का मार्ग प्रशस्त हुआ।
भाभा के प्रयासों से राजस्थान में राणाप्रताप सागर तथा तमिलनाडु में कल्पकम में भी परमाणु ऊर्जा संयत्र स्थापित किये गये। उन्होंने इन संयंत्रों के लिए मंहगे यूरेनियम की तुलना में देश में उपलब्ध थोरियम पर ध्यान केन्द्रित किया और थाम्ब्रे में अपरिष्कृत थोरियम को हाइड्रोआक्साइड तथा यूरेनियम के संसाधन का संयत्र लगाने के लिए सरकार को प्रेरित किया। भाभा की प्रेरणा से बंगलुरू से 80 किलोमिटर दूर भूगर्भीय विस्फोटों तथा भूकंपो के प्रभावों का अध्यनन करने के लिए एक केन्द्र खोला गया।
असामयिक निधन:
दुर्भाग्यवश डॉ. भाभा अधिक दिनों तक राष्ट्र की सेवा नहीं कर पाए। वे 24 जनवरी 1966 को एक अर्तंराष्ट्रीय परिषद में शान्ति मिशन में भाग लेने के लिए देश से निकले। दुर्भाग्यवश वे जिस बोइंग विमान में यात्रा कर रहे थे, वह कंचन जंघा के क्षेत्र में बर्फीले तूफान में उलझकर दुर्घटना का शिकार हो गया। और इस तरह एक महान स्वप्नद्रष्टा भारत मां से अलविदा कह गया।
उनके निधन के बाद मैनचेस्टर की इंपीरियल कैमिकल कंपनी में काम करने वाले वैज्ञानिक होमी नौशेरवांजी सेठना, जोकि डॉ. भाभा के आहवान पर ही देश लौटे थे, ने उनके इस मिशन को आगे बढ़ाया और आगे चलकर सन 1974 में शांतिपूर्ण परमाणु विस्फोट करके राष्ट्र ने परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्र का दर्जा हासिल किया। उनके इस असामयिक निधान के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए भारत सरकार ने 12 जनवरी 1967 को टॉम्ब्रे संस्थान का नामकरण उनके नाम पर 'भाभा अनुसंधान केन्द्र' कर दिया।
[next]
पुस्तकें एवं मान-सम्मान:
भाभा विज्ञान एवं देश के प्रति सारी उम्र समर्पित रहे। वे न सिर्फ आजीवन अविवाहित रहे, बल्कि देश के बार कार्य कर रहे भारतीय वैज्ञानिकों को भारत में आकर कार्य करने के लिए प्रेरित करते रहे। उन्होने नाभकीय भौतिकी के क्षेत्र में महत्वपूर्ण काम किये और मेहसाण नामक प्राथमिक तत्व की खोज की। उनकी तीन पुस्तकें क्वांम्टम थ्योरी, एलिमेंट्री फिजीकल पार्टिकल्स तथा कॉस्मिक रेडियेशन विश्व स्तर पर चर्चित हैं।
नाभिकीय ऊर्जा के क्षेत्र में उनके द्वारा किये गये अप्रतिम योगदानों के लिए उन्हें 1941 में रॉयल सोसाइटी ने फैलो चुना। उन्हें सन 1943 में एडम्स पुरस्कार प्राप्त हुआ। इसके अलावा उन्हें सन 1948 में हॉपकिन्स पुरस्कार प्रदान किया गया। उन्हें अनेक विश्वविद्यालयों ने डॉ. ऑफ सांइस की उपाधि से विभूषित किया। सन 1954 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण सम्मान से अलंकृत किया।
डॉ. परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग पर 1958 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा जेनेवा में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के उप-सचिव चुने गये। वे संयुक्त राष्ट्र की वैज्ञानिक सलाहकार समिति के सदस्य रहे और 1966 से 1981 तक अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी की वैज्ञानिक सलाहकार समिति के सदस्य रहे।
डॉ. भाभा के नेतृत्व में भारत में एटॉमिक एनर्जी कमीशन की स्थापना की गई। उनके 'एटॉमिक एनर्जी' के विकास के लिए समर्पित प्रयासों के फलस्वरूप भारत ने वर्ष 1956 में ट्रांबे में एशिया का पहले 'एटॉमिक रिएक्टर' की स्थापना की गई। वे सन 1956 में जेनेवा में आयोजित 'यूएन कॉफ्रेंस ऑन एटॉमिक एनर्जी' के चेयरमैन भी चुने गये।
महान व्यक्तित्व के स्वामी:
डॉ. भाभा एक सच्चे वैज्ञानिक थे। उनके भीतर निजी लालसा और घमण्ड बिलकुल भी न था। यही कारण था कि एक बार जब उन्हें केन्द्रिय मंत्रिमंडल में शामिल होने का प्रस्ताव मिला, तो उन्होंने बड़ी विनम्रता के साथ उसे अस्वीकृत कर दिया था।
डॉ. भाभा का व्यक्तित्व बहुमुखी प्रतिभा से सम्पन्न था। उन्हें शास्त्रीय संगीत एवं मूर्तिकला में भी विशेष रूचि थी। इसके साथ ही चित्रकारी में भी समान रूचि रखते थे तथा उसे प्रोत्साहन देने के लिए चित्रों को खरीदकर अपने कार्यालय में सजाया करते थे। वे संगीत के कार्यक्रमों में भी पूरे मन से हिस्सा लेते थे और कला के विभिन्न पक्षों पर खुलकर वक्तव्य देते थे।
-X-X-X-X-X-
विश्व के अन्य चर्चित वैज्ञानिकों के बारे में पढ़ने के लिए यहां पर क्लिक करें। |
---|
अत्यंत शानदार ब्लॉग और आलेख है... पढ़ कर बहुत अच्छा लगा....
जवाब देंहटाएंbahut achhe dhang se aapne होमी जहांगीर भाभा ji ke baare me btaya
जवाब देंहटाएंKnowledge Bank enhancer article.
जवाब देंहटाएंWell done Zakir.
Keep it up.
itna mast blog design kya baat hai wah ji wah... (h)
जवाब देंहटाएंहोमी जहांगीर जी ने देश में थोरियम पर चलने वाले न्यूक्लिअर तकनीक को बना लिया था।
जवाब देंहटाएंपर दुर्भाग्यबस ये सब अमेरिका को पता चल गया।
और उसने CIA से षड़यंत्र करा के उन्ह मरवा दिया।
वरना आज हमे नुक्लेअर ईंधन के लिए ऑस्ट्रेलिया canada अमेरिका etc के आगे हाथ नही फ़ैलाने होते।
हमारे यहाँ थोरियम भरपूर है।
यूरेनियम नही है।
भाभा ने मौजूद थोरियम पे चलने वाले प्लांट की तकनीक बना ली थी।और ये बात CIA को पता चल गयी थी।
आपका कार्य सराहनीय है। और आपकी पोस्ट को मैं अपने पेज पर जरूर शेयर करूँगा
जवाब देंहटाएं