(' क्षेत्रीय भाषाओं में विज्ञान कथा लेखन ' कार्यशिविर में बुशरा अलवेरा ) प्रस्तावना- विज्ञान कथाओं का क्षेत्रीय भाषाओं में अन...
('क्षेत्रीय भाषाओं में विज्ञान कथा लेखन' कार्यशिविर में बुशरा अलवेरा)
प्रस्तावना- विज्ञान कथाओं का क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। यह एक विस्तृत क्षेत्र है, जिसे पूर्णतया वर्णित करना अत्यधिक कठिन है। अनुवाद हेतु चुनी गयी कथा, जिस भाषा में लिखी होती है, वह भाषा ‘स्त्रोत भाषा’ कहलाती है जबकि जिस भाषा में कथा का अनुवाद करना होता है, उसे ‘लक्ष्य भाषा’ कहते हैं।
विज्ञान कथाओं के अनुवाद में आने वाली कुछ प्रमुख समस्याएँ और उनका निवारण (सम्भावित) निम्न प्रकार हैं-
1. शीर्षक का नाम- यह अब भी बहस का एक प्रमुख मुद्दा है, कि शीर्षकों का अनुवाद होना चाहिए अथवा नहीं, उदाहरण के लिए ‘एलियन्स रिटर्न’ नामक शीर्षक का उर्दू भाषा में अनुवाद करें तो यह ‘दूसरी दुनिया के लोगों की वापसी’ होगा, जोकि कथा के आकर्षण को कम करता प्रतीत होता है। यही कारण है कि विज्ञान कथा आधारित विदेशी फिल्मों को अनुवादित करते समय उनके शीषर्कों को ज्यों का त्यों ही रखा जाता है। उदाहरणार्थ- ‘स्टारवार’, ‘द डे आफटर टुमैरो’ इत्यादि।
शीर्षकों का प्रयोग दो भिन्न प्रकार से किया जाता है- स्थान अथवा किसी व्यक्ति की पहचान के लिए तथा दूसरा उसके कार्यों को वर्णित करने के लिए।
अतः उन शीर्षकों को अनुवादित नहीं किया जाना चाहिए जिन्हें ‘नाम’ के रुप में प्रयोग किया जाए। केवल उन्ही शीषकों की अनुवादित करें, जो किसी कार्य को वर्णित करते हो। जैसे- ‘रिंग रोड’। इस शीर्षक का अनुवाद नहीं किया जायेगा, क्योंकि यह एक नाम के रुप में प्रयुक्त हुआ है।
इस बात पर भी ध्यान देना आवश्यक है कि यदि ‘स्त्रोत भाषा’ का कोई शब्द ‘लक्ष्य भाषा’ में प्रचलित है, तो उसका अर्थ क्या है? उदाहरण के लिए गुजरती तथा हिन्दी दोनों भाषाओं में ‘मोटा’ शब्द आता है, परन्तु पूर्णतया भिन्न अर्थों में।
2. शब्दकोशों का अभाव- वर्तमान विज्ञान कथा क्षेत्र में प्रान्तीय भाषाओं में वैज्ञानिक शब्दों के लिए सटीक शब्दों का अभाव है। साथ ही विज्ञान शब्दकोश उतने समृद्ध नहीं है, कि जिनसे वैज्ञानिक शब्दों का अन्तरप्रान्तीय भाषाओं में अनुवाद हो सकें। जिसके कारण तकनीकी शब्दों के अनुवाद में विज्ञान कथा लेखकों का अत्यधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
3. शब्दों का अनुवाद- शब्दों का पृथक रुप में अनुवाद नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि शब्द अपना ‘अर्थ’ वाक्यों से ही प्राप्त करते हैं। जैसे कि इन उदाहरणों में देख सकते हैं।
‘पनडुब्बी जल में समा गयी’ तथा ‘पनडुब्बी आग में जल गयी’ इन दोनों वाक्यों में जल शब्द प्रयुक्त हुआ है, परन्तु इसका अर्थ भिन्न-भिन्न है, अर्थात् प्रथम वाक्य में ‘पानी’ के अर्थ में तथा दूसरे वाक्य में ‘अग्नि में भस्म होने’ के अर्थ में।
अतः कथाओं में शब्दों के अनुवाद के बजाए विषयक विशेष अनुवाद पर अधिक बल देना चाहिए।
4. संयोजक शब्दों का प्रयोग- कुछ महत्वपूर्ण संयोजक शब्द है- ‘जैसा कि’, ‘फिर भी’, ‘लेकिन’ आदि। इनका प्रयोग शब्दों के मध्य सम्बन्ध स्थापित करने में होता है। यदि अनुवाद की प्रक्रिया में इन शब्दों का त्रुटिपूर्ण प्रयोग हो जाए तो अर्थ का अनर्थ भी हो सकता है।
5. यूफोमिज़्म- सांस्कृतिक भिन्नताओं का भाषा पर बहुत प्रभाव पड़ता है। कुछ भाषाओं में कटु तथ्यों को छिपा लेने अथवा उन्हे कम आक्रमक ढंग से प्रस्तुत करने की क्षमता होती है। भाषा के इस व्यवहार को अंग्रेजी में यूफोमिज़्म कहते हैं।
इसी प्रकार व्यंग्य का प्रयोग भी भाषा की आक्रामकता को कम करता है। आजकल विज्ञान कथाओं में व्यंगात्मक भाषाओं का प्रचालन आरम्भ हुआ है, जो काफी प्रभावकारी सिद्ध हुआ है। इसके माध्यम से कठोर तथ्यों को भी सरलतापूर्वक पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत किया जा सकता है।
6. क्रियाओं का प्रयोग- क्रियाएं भिन्न-भिन्न भाषाओं में अपने भिन्न भिन्न रुपों के कारण अनुवाद में समस्याएं उत्पन्न करती है, यदि इनके प्रयोग में कोई शंका उत्पन्न हो, तो बेहतर यही होगा कि इन्हें अनदेखा कर दिया जाए अथवा उसके अर्थ को किसी अन्य प्रकार से अनुवाद समाहित कर दिया जाए।
7. सटीकता- क्षेत्रीय/प्रान्तीय भाषाओं में कुछ निश्चित क्षेत्रों में ही सटीकता होती है। उदाहरण के लिए-किसी प्रान्त विशेष में पकाया जाने वाला कोई विशिष्ट व्यन्जन जो केवल उस क्षेत्र से ही सम्बन्धित है। ऐसे शब्दों के लिए एक सटीक शब्द ‘लक्ष्य भाषा’ में ढूंढ पाना अत्याधिक कठिन होता है।
भाषा में अस्पष्टता होने के कारण भी सटीकता पर बुरा प्रभाव पड़ता है, जैसे कि उ0प्र0 प्रान्त की कुछ क्षेत्रीय बोलियों में ‘स्पष्ट दिखाई’ देने के लिए ‘चमकना’ शब्द का प्रयोग होता है, जबकि शुद्ध हिन्दी में इसे ‘प्रकाशमय’ अथवा प्रकाशित होना के अर्थ में प्रयोग किया जाता है।
अन्त में कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर दृष्टि डालते है जो सफल अनुवाद तथा सम्बन्धित समस्याओं के निवारण में लाभदायक है-
-विज्ञान कथाओं में भाषा को सदैव स्पष्ट तथा सरल रखें, ताकि पाठक अथवा श्रोता को समझने में कठिनाई न हो।
-वाक्यों को अधिक लम्बा न करें, साथ ही एक वाक्य में दो या तीन से अधिक विचारों को न डालें।
-यदि विज्ञान के क्षेत्र का कोई नया शब्द आ जाए तो उसके लिए निकटतम व सरल शब्द का प्रयोग करें।
-अनुवाद करते समय व्याकरण पर विशेष ध्यान दें
-जब भी अनुवाद करें, तो अर्थ का अनुवाद करें, न कि शब्दों का।
-पाठक अथवा श्रोता वर्ग को सदैव ध्यान में रखकर अनुवाद करें।
अतः इस प्रकार हम देखते हैं कि विज्ञान कथाओं के अनुवाद में समस्याएं हैं, परन्तु बुद्धि और युक्ति के तालमेल से इन समस्याओं को दूर किया जा सकता है।
बुशरा अलवेरा
मकान संख्या-1052, सिविल लाइन, लाइनपुरवा, बाराबंकी, उत्तर प्रदेश-225001
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Keywords: Vigyan Prasar, National Book Trust, Science Fiction Workshop, Science Fiction in India, science fiction stories, science fiction books, science fiction authors, indian science fiction writers, Bushra Alwera
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अनुवाद की दुनिया में purist अनुवाद को हास्यास्पद तक बना देते हैं, अनूदित रचना के रास्ते का ही रोड़ा बना बैठता है इस तरह का अनुवाद
जवाब देंहटाएंसही व्याख्या की गई है।
जवाब देंहटाएंएक पठनीय आलेख ,मगर लेखिका को चाहिए की इन सूत्रों के जरिये वे खुद कुछ कहानियों का अनुवाद करें ..यह क्षेत्र भी अधूरा है !
जवाब देंहटाएंNice.
जवाब देंहटाएंसही अनुवाद भी अपने आप में कौशल है.इसलिए भाव को संभालना अनुवादक की ज़िम्मेदारी है !
जवाब देंहटाएंएक अनुवादक के तौर पर,यह आलेख मेरे लिए अधिक उपयोगी है।
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