क्‍या है विज्ञान कथा ? -डॉ0 अरविंद मिश्र

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(' क्षेत्रीय भाषाओं में विज्ञान कथा लेखन ' कार्यशिविर में डॉ0 अरविंद मिश्र द्वारा दिया गया आधार वकतव्‍य) विज्ञान कथा को ल...

('क्षेत्रीय भाषाओं में विज्ञान कथा लेखन' कार्यशिविर में डॉ0 अरविंद मिश्र द्वारा दिया गया आधार वकतव्‍य)

विज्ञान कथा को लेकर प्रायः लोगो मे तरह तरह के कयास लगाए जाते हैं. भारत मे इसे लेकर काफी भ्रम की स्थिति है. कोई यह समझता है कि जैसे आग की कहानी, कोयले की कहानी, स्टील कि कहानी वैसे ही विज्ञान की कहानी. मगर ऐसा नही है. विज्ञान कथा दीगर साहित्यिक कहानियों की तरह ही कहानी की एक विधा है जिसमें अमूमन आने वाले कल की तस्वीरें दिखने को मिलती हैं; जबकि सामाजिक कहानियों मे अतीत या वर्त्तमान की झलक देखने को मिलती है. बस अपने भविष्य दर्शन की विशेषता के ही चलते विज्ञान कथाएं दूसरी साहित्यिक कहानियों से अलग तेवर और कलेवर रखती हैं. अन्यथा विज्ञान कथाओं और दूसरी अनेक प्रकार की कहानियों जैसे प्रेम कथाओं, रहस्य-रोमांच और जासूसी कथाओं मे कोई तात्विक अंतर नही होता.

मगर फिर भी विज्ञान कथाओं की कोई सर्वमान्य परिभाषा देना एक मुश्किल काम है, हाँ इसके बारे मे बताया या समझाया जरूर जा सकता है. महान विज्ञान कथाकार आईजक आसिमोव के अनुसार विज्ञान कथा मानव समाज अथवा व्यक्ति विशेष पर विज्ञान और प्रौद्योगिकी के प्रत्याशित प्रभावों के प्रति बुद्धिजीवियों और रचनाकारों के मन में उभरने वाली साहित्यिक प्रतिक्रिया है. इसमे वर्णित होनेवाली दुनिया हमारी अपनी जानी पहचानी और परिचित दुनिया नही है बल्कि आने वाली एक दुनिया हो सकती है. अब जैसे जार्ज आर्वेल नामके ब्रितानी लेखक ने अपने मशहूर उपन्यास १९८४ मे दुतरफा संवाद वाले टीवी जैसी जुगत की कल्पना कर ली थी, भले ही आज भी अपना टीवी दुतरफा न हो पाया हो, कंप्यूटर तो दुतरफा हो चला है. यह दूर की कौड़ी आर्वेल १९३९ मे ही अपने उपन्यास मे इंगित कर चुके थे.

ऐसे अनेक उदाहरण हैं. जैसे फ्रांसीसी रचनाकार जूल्स वेर्न ने चांद की सैर का वर्णन 1860 मे ही अपने उपन्यास फ्राम अर्थ टू मून मे ही कर डाला था जो सौ सालों बाद एक हकीकत बन गया. यह है विज्ञानकथा की सर्वकालिक महत्ता. मगर यहाँ भारत मे और खासकर हिंदी मे इसे जो आदर मिलाना चाहिए था वह अभी भी नही मिल सका है.

ऐसा इसलिए भी है कि भारतीय साहित्यकार इस विधा को शुरू से ही गंभीरता पूर्वक न लेकर इसे फंतासी, अजीब गरीब कहानियों, जादू टोने, बच्चों की कहानियों के इर्द गिर्द एक हाशिये का साहित्य ही मानते रहे ...और इसे "उच्च स्तरीय", मानव समाज के करीब के साहित्य की श्रेणी से अलग हल्का फुल्का साहित्य मानने के सहज बोध की अभिजात्य सोच से ग्रस्त रहे हैं और आज भी स्थति कमोबेस ऐसी ही है. इसके पीछे इस विशिष्ट विधा की उनकी अपनी समझ की कमी ही मुख्य कारण रही है-जबकि आचार्य चतुरसेन शास्त्री ने एक विज्ञान कथा उपन्यास ‘खग्रास’ लिखकर तत्कालीन हिदी साहित्कारों को इस विधा की ओर उन्मुख किया था और उनकी बेरुखी के प्रति उन्हें चेताया भी था. डॉ. संपूर्णानंद ने पृथ्वी से सप्तर्षि मंडल लिख कर भी साहित्यकारों में इस विधा की ओर रूचि जगायी थी. सन १९२४ में राहुल सांकृत्यायन ने बाइसवीं सदी लिखा तो उसके पीछे रचनाकारों को इस विधा की ओर उन्मुख करना ही था ...मगर ये विरले युग द्रष्टा रचनाधर्मी थे ...यह दुर्भाग्य ही रहा कि इन रचनाओं ने भी साहित्यकारों में इस विधा के प्रति अपेक्षित रूचि नहीं उत्पन्न की.

विज्ञान कथा मे फिक्शन और फंतासी दोनो का समावेश है. फिक्शन लातिनी शब्द है जिसका मतलब आविष्कार करना होता है और फंतासी यूनानी शब्द है जिसका अर्थ कल्पना करना है. अंग्रेजी साहित्य मे तो साइंस फिक्शन और साइंस फंतासी की अलग अलग पहचान है, मगर हिंदी मे अभी तक इन दोनो उप विधाओं के लिए 'विज्ञान कथा ' शीर्षक से ही काम चलाया जा रहा है. विज्ञान फिक्शन मे विज्ञान के ज्ञात और मान्य नियमों मे फेरबदल की कतई गुंजाइश नही रहती मगर फंतासी मे ऐसा कोई बन्धन नही रहता. विज्ञान कल्पना के नाम पर आप फंतासी मे जी भर के बेसिर पैर की हांक सकते है. खूब वैज्ञानिक गप्पबाजी कर सकते हैं, विज्ञान के ज्ञात नियमों को तोड़ मरोड़ सकते हैं. यदि आप प्रकाश की गति से भी तेज चलाने कि कोई जुगत निकाल लेते हैं तो यह विज्ञान फंतासी का नमूना है और यदि मौजूदा अंतरिक्ष यानों से अपने सौर मंडल की सैर पर नौ दिन चले अढाई कोस की रफ़्तार से भी चल कर कोई नया तीर मार लेते हैं, जैसे चांद पर हीरे की कोई खान खोज लेते हैं तो यह विज्ञान फिक्शन कि कैटेगरी मे आयेगा. एक और बात भी है-फिक्शन का आशय नयी सूझ या विचार से भी है और फंतासी का अर्थ चित्रांकनों /इमजेज से है.

आशय यह कि आपके पास यदि कोई जोरदार वैज्ञानिक आइडिया है और उस पर आप ने कहानी लिख मारी और उसका लोकेशन आने वाली दुनिया का है तो यह एक विज्ञान फिक्शन है और यदि आप अपने मन मे चांद सितारों कि दुनिया की अनेक काल्पनिक तस्वीरें बना चुके हैं तो शायद आप के दिमाग मे किसी फंतासी का कीडा कुलबुला रहा है. अब यह आप पर है कि आप किस तरह की विज्ञान कथा लिखने मे अपने को सहज पाते हैं. मगर फर्क क्या पड़ता है आपके इन दोनो तरह की रचनाओं के लिए हिंदी मे तो अभी तक एक ही कैटेगरी है-विज्ञान कथा. 

विज्ञान कथा और आम फंतासी का एक अंतर इस बात से भी स्पष्ट हो सकता है कि अगर आप आज की /मौजूदा प्रौद्योगिकी के स्तर में कोई परिकल्पित परिवर्तन करके उससे उत्पन्न कोई एक नए समाज /दुनिया से रूबरू हो जाते हैं तो वह विज्ञान कथा की एक संभावित दुनिया होगी मगर यदि आज की प्रौद्योगिकी में बदलाव के बाद भी आप किसी कथित दुनियां का दर्शन नहीं कर पा रहे हैं तो वह विज्ञान फंतासी नहीं है बस एक स्वैर-कल्पना, घोर फंतासी या मिथकों की दुनिया होगी ...आशय यह कि आज हम मौजूदा किसी भी तकनीक /प्रविधि में बदलाव से विश्वकर्मा कृत मिथकीय संरचनाओं को मूर्त रूप नहीं दे सकते, स्वर्ग नरक को साकार नहीं कर सकते- इसलिए ये विवरण महज फंतासी हैं .......विज्ञान फंतासी नहीं हैं.

हिंदी में विज्ञान कथा का अतीत और वर्तमान मील के कई पत्थरों से आलोकित है.पहली विज्ञान कथा पंडित अम्बिकादत्त व्यास ने १८८४ से १८८८ के बीच मध्य प्रदेश की तत्कालीन मशहूर पत्रिका पीयूष प्रवाह मे धारावाहिक रुप से लिखी थी जिसका नाम थाआश्चर्य वृत्तांत.फिर सरस्वती के अंक ६ वर्ष १९०० में चन्द्रलोक की यात्रा छपी जिसके लेखक थे केशव प्रसाद सिंह. ये दोनो कहानियाँ दरअसल जुल्स वर्न के जर्नी टू द सेंटर आफ द अर्थ और जर्नी फ्राम अर्थ टू द मून से काफी प्रभावित थीं. वर्न की एक और कथा-फाइव वीक इन अ वलून का भी प्रभाव चन्द्रलोक की यात्रा पर पड़ा था, जिसमे कहानी का नायक एक गुब्बारे मे चांद की सैर को उड़ चलता है. डाक्टर नवल बिहारी मिश्र और यमुना दत्त वैष्णव अशोक का इस विधा के उन्नयन मे काफी योगदान रहा. डाक्टर नवल बिहारी मिश्र ने जहाँ विदेशी विज्ञान कथाओं के हिंदी अनुवाद की कमान संभाली वैष्णव जी ने मौलिक विज्ञान कथाओं का ताना बाना बुना आधुनिक विज्ञान कथाओं के लेखन की सतत शुरुआत पिछली सदी के सातवें दशक से दिखाई देती है जब कैलाश शाह, देवेन्द्र मेवाड़ी, शुकदेव प्रसाद आदि ने इस विधा को अपनी लेखनी का स्पर्श दिया ..समकालिक सक्रिय रचनाकारों के बारे मे मैं अन्यत्र(ब्लॉग-साईंस फिक्शन इन इंडिया) पहले लिख चुका हूँ .भारत में विज्ञान कथा लेखन के एक उल्लेखनीय पड़ाव के रूप में भारतीय विज्ञान कथा लेखक समिति कि स्थापना १९९५ मे फैजाबाद मे हुई जिसने विज्ञान कथा लेखन को संगठित स्वरूप देने का प्रयास आरम्भ किया है. डाक्टर राजीव रंजन उपाध्याय इसके अध्यक्ष हैं.

विज्ञान कथा के भारतीय अध्याय में तस्लीम के इस आयोजन ने एक और सुनहला पृष्ठ जोड दिया है और यह हमारे लिए गौरव की बात है कि वैश्विक विज्ञान कथा के एक जाने माने हस्ताक्षर डॉ. अनिल मेनन इन क्षणों के साक्षी बन रहे हैं ...और मुझे ऐसा लग रहा है कि मौजूदा आयोजन हमारी अपनी समकालिक दुनियाँ में न होकर किसी अन्य वैकल्पिक दुनिया में मूर्तमान हो रहा है जिसमें मेनन साहब एक कालयात्री हैं ....एक नया इतिहास रच उठा है.....
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विज्ञान कथाओं पर कुछ अन्य महत्वपूर्ण आलेख:

विज्ञान कथा के 100 साल -डॉ. जाकिर अली रजनीश
 समकालीन बाल विज्ञान कथाएं : एक अवलोकन -डॉ. जाकिर अली रजनीश
विज्ञान से जुड़ा है विज्ञान कथा का भविष्य -विष्णु प्रसाद चतुर्वेदी
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Keywords: Vigyan Prasar, National Book Trust, Science Fiction Workshop, Science Fiction in India, science fiction stories, science fiction books, science fiction authors, indian science fiction writers, Dr. Arvind Mishra



What is Science Fiction?

COMMENTS

BLOGGER: 9
  1. विज्ञान कथाएँ चमत्कृत करती हैं, वास्तविक दुनिया से आगे की बात करती हैं, कल्पना की तरंगों पर चढ़कर बहुत दूर तक आगे बढ़ती हैं। यह सब बच्चों को अधिक पसंद तो आएगा ही। शायद इसीलिए मुख्यधारा के साहित्यकार इसे बाल-साहित्य की श्रेणी में रखना चाहते हों। मेरे विचार से यह उचित नहीं है।

    आपका आलेख बहुत जानकारी देने वाला है, बढ़िया है।

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  2. रोचक विचरण है!

    विज्ञान कथा दीगर साहित्यिक कहानियों की तरह ही कहानी की एक विधा है

    सारा लफ़ड़ा सब चीजों को साह्त्यिक बनाने का होता है। साह्त्यिकता का आग्रह थोड़ा कम होता तो शायद और विज्ञान कथायें बनतीं! :)

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  3. Badhai,
    एक नए ब्लागर के लिए लिखने से अधिक पढ़ना सुविधाजनक होता है.
    हिंदी में टिप्पणी करना भी अभी कठिन है.

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  4. नया लेखन प्रारम्भ करने वालों के लिए ज्ञानवर्धक लेख
    आभार

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  5. ---कथा का अर्थ ही साहित्यिकता से है...साहित्यिकता के बिना सिर्फ़ विग्यान से विग्यान कथा कैसे हो सकती है....
    ---वस्तुतः गल्प नाम की विधा पहले से ही हिन्दी में उपस्थित है अतः विग्यान कथा या फ़न्तासी की आवश्यकता नहीं हुई....नियमों से परे सोच फ़न्तासी या गल्प ही कही जायगी...चहे वे विग्यान के नियम हों या सामाजिक....
    ---- भारतीय सोच ..साहित्य से भी सामाजिक-तत्व-ग्यान सम्प्रेषण की है ..जो इन कथाओं में नहीं होता..अतः वे प्रचलित नहीं हुईं..

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  6. यह भारतीय विज्ञान कथा साहित्य के लिए गौरव की बात है कि हिंदी में विज्ञान कथा का अतीत और वर्तमान मील के कई पत्थरों से आलोकित है .

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  7. विज्ञान-कथाएं अगर थोड़ा साहित्यिक-स्पर्श पा जाएँ तो बिलकुल रोचक हो सकती हैं !

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  8. विज्ञान कथा के ऊपर बहुत बढ़िया प्रकाश डालता हुआ आलेख । हार्दिक बधाई सभी आलेख रचयिता को।

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वैज्ञानिक चेतना को समर्पित इस यज्ञ में आपकी आहुति (टिप्पणी) के लिए अग्रिम धन्यवाद। आशा है आपका यह स्नेहभाव सदैव बना रहेगा।

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Scientific World: क्‍या है विज्ञान कथा ? -डॉ0 अरविंद मिश्र
क्‍या है विज्ञान कथा ? -डॉ0 अरविंद मिश्र
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