आप सबको बताते हुए हमें अत्यंत हर्ष की अनुभूति हो रही है कि ‘ ब्लॉग लेखन के द्वारा विज्ञान संचार ’ कार्यशाला तथा ‘ बाल साहित्य में ...
भारत में विज्ञान कथाओं का इतिहास काफी पुराना है। हिन्दी में प्रारम्भिक विज्ञान कथाओं के रूप में ‘आश्चर्य वृत्तांत’ तथा ‘चंद्रलोक की यात्रा’ के नाम आते हैं। लेकिन इन दोनों रचनाओं पर जूल्स बर्न के प्रभाव के कारण ‘सरस्वती के अप्रैल-जुलाई, 1908 में प्रकाशित सत्यदेव परिव्राजक की कहानी ‘आश्चर्यजनक घंटी’ को हिन्दी की पहली मौलिक विज्ञान कथा का दर्जा दिया जाता है।
सन 1908 से लेकर आज तक अनेकानेक लेखकों ने विज्ञान कथाओं के विकास में अपना योगदान दिया है। सिर्फ हिन्दी में ही नहीं बल्कि सभी प्रमुख भाषाओं में विज्ञान कथाएँ प्रमुख रूप से लिखी जाती रही हैं। इनमें से जिन भाषाओं में काफी स्तरीय कार्य हुआ है, उनमें बंगला और मराठी का नाम प्रमुख है। इस कार्यशिविर में विज्ञान कथाओं के सभी प्रमुख बिन्दुओं और लगभग सभी प्रमुख भाषाओं की विज्ञान कथाओं पर चर्चा करने का प्रयास किया जाएगा।
कार्यक्रम का उद्घाटन दिनांक 26 दिसम्बर, 2011 को अपराह्न 02.00 बजे प्रस्तावित है। उद्घाटन सत्र के अतिरिक्त कार्यक्रम में चार तकनीकी सत्र भी होंगे, जिनमें से पहला तकनीकी सत्र दिनांक 26 दिसम्बर को तथा शेष सत्र 27 दिसम्बर, 2011 को 10.30 से 05.00 के मध्य सम्पन्न होंगे। कार्यशिविर के तकनीकी सत्र में चर्चा के लिए जो बिन्दु निर्धारित किए गये हैं, उनका विवरण निम्नवत है:
प्रथम तकनीकी सत्र: विज्ञान कथाओं का महत्व: दशा और दिशा
द्वितीय तकनीकी सत्र: भारतीय भाषाओं की विज्ञान कथाओं का परिचय एवं चर्चा
तृतीय तकनीकी सत्र: विज्ञान कथाओं के वैश्विक घटक और भारतीय विज्ञान कथाएँ
चतुर्थ तकनीकी सत्र: विज्ञान कथाओं के अनुवाद कार्य, सम्भावनाएँ एवं समस्याएँ
कार्यशिविर में हिन्दी के प्रमुख विज्ञान कथाकारों के साथ-साथ अन्य भाषाओं की विज्ञान कथाओं के जानकार भाग लेंगे। इसमें भाग लेने वाले प्रमुख लेखकों के नाम इस प्रकार हैं:
श्री जी0एस0 उन्नीकृष्णन नायर (वंचियूर, केरल), डॉ0 पी0एस0 नवराज (मदुरै, तमिलनाडु), श्री चंदन सरकार (धनबाद, बिहार), डॉ0 वाई0एच0 देशपाण्डे (औरंगाबाद, महाराष्ट्र), डॉ0 अरविंद मिश्र (वाराणसी, उ0प्र0), श्री देवेन्द्र मेवाड़ी (नई दिल्ली), डॉ0 राजीव रंजन उपाध्याय (फैजाबाद, उ0प्र0), श्री विष्णु प्रसाद चतुर्वेदी (पाली, राजस्थान), श्री जीशान हैदर ज़ैदी (लखनऊ, उ0प्र0), सुश्री बुशरा अलवेरा (बाराबंकी, उ0प्र0)
प्रसन्नता का विषय है कि विश्व विज्ञान कथा साहित्य के प्रमुख हस्ताक्षर श्री अनिल मेनन जी इन दिनों भारत में हैं। यह हमारे लिए सौभाग्य की बात है कि वे कार्यशिविर में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हो रहे हैं।
यह कार्यक्रम विज्ञान कथाओं में लोगों की रूचि/समझ विकसित करने तथा उसको प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से आयोजित किया जा रहा है। कार्यशिविर का माध्यम द्विभाषीय (हिन्दी और अंगरेजी) होगा। यदि आप विज्ञान संचार, विज्ञान कथा अथवा विज्ञान लेखन में रूचि रखते हैं, तो आपका इस कार्यक्रम में हार्दिक स्वागत है।
यदि आपके पास कार्यशिविर को बेहतर बनाने के लिए कोई सुझाव हो या इस सम्बंध में आपकी कोई जिज्ञासा हो, तो उसका भी स्वागत है। कार्यक्रम के सम्बंध में अन्य जानकारी तथा रिपोर्ट इस ब्लॉग के माध्यम से पाठकों तक पहुँचाई जाती रहेगी।
अद्यतन- प्रसन्नता का विषय है कि कार्यशिविर में सहभागिता के लिए नेशनल बुक ट्रस्ट ने भी सहमति दे दी है। आशा है इससे कार्यक्रम को ज्यादा गरिमापूर्ण ढंग से सम्पन्न करने में मदद मिल सकेगी।
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स्वागत योग्य -बहुत शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंआप लोगों के भरोसे बहुत सीख पाने का ख्याल हमेशा बना रहता है ! एक बेहतरीन आयोजन के लिए दुआएं !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई ...
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति इक सुन्दर दिखी, ले आया इस मंच |
जवाब देंहटाएंबाँच टिप्पणी कीजिये, प्यारे पाठक पञ्च ||
cahrchamanch.blogspot.com
चलो जी बड़ी अच्छी बात है.
जवाब देंहटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा और सार्थक काम हो रहा है।
शुभकामनाएं।
इस आयोजन की सफलता हेतु हार्दिक शुभकामनाऐं
जवाब देंहटाएंअनुकरणीय है प्रयास
जवाब देंहटाएंcongratulation's
जवाब देंहटाएंबहुत शुभकामनायें
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