लखनऊ में आयोजित ' क्षेत्रीय भाषाओं में विज्ञान कथा लेखन ' राष्ट्रीय विज्ञान कथा लेखन कार्यशाला के अवसर पर दैनिक समाचार पत्र ...
लखनऊ में आयोजित 'क्षेत्रीय भाषाओं में विज्ञान कथा लेखन' राष्ट्रीय विज्ञान कथा लेखन कार्यशाला के अवसर पर दैनिक समाचार पत्र 'जनसंदेश टाइम्स' में रविवारीय परिशिष्ट में प्रकाशित विज्ञान कथाकारों की सम्मतियां
इसी के साथ परिशिष्ट में विज्ञान कथा के 100 साल के सफर को भी इस नाचीज़ के द्वारा आलोचनात्मक नजरिये से परखने का प्रयास किया गया है। उसे पढ़ने के लिए कृपया यहां पर क्लिक करें।
भारतीय प्रकाशकों को विज्ञान कथाओं में रूचि नहीं है
भारतीय विज्ञान कथाओं में मेरी विशेष रूचि है। मेरे विचार में भारतीय विज्ञान कथाओं को देशी विज्ञान कथाएँ कहना ज्यादा उचित है। भारतीय भाषाओं में विज्ञान कथा को लेकर काफी काम हुआ है, लेकिन यह दु:ख का विषय है कि वैश्विक स्तर पर इनकी पहचान नहीं बन पाई है। मेरे विचार में इसका एक प्रमुख कारण यह भी है कि भारतीय प्रकाशकों में विज्ञान कथा के प्रति रूचि नहीं है। मेरी समझ से वे इसे लेकर नकारात्मक सोच रखते हैं। यह परिदृश्य निराशाजनक है, जिसे बदला जाना अति आवश्यक है। मेरी हार्दिक अभिलाषा है कि भारतीय विज्ञान कथाएँ भी विश्व स्तर पर जानी जाएँ। इसके लिए काफी काम किए जाने की आवश्यकता है। इसी उद्देश्य से मैंने 2 साल पहले आई आई टी कानपुर में आयोजित दो सप्ताह की वर्कशाप में भाग लिया था। इसी क्रम में इस वर्ष बंगलुरू में आयोजित वर्कशाप में भी मेरा भारत आना हुआ है। मुझे यह जानकर अत्यंत प्रसन्नता हुई कि 26-27 दिसम्बर को विज्ञान प्रसार और तस्लीम लखनऊ में विज्ञान कथाओं पर एक कार्यशाला का आयोजन कर रहे हैं, जहाँ पर देश के चर्चित विज्ञान कथाकार एकत्रित हो रहे हैं। मैं समझता हूँ देश में विज्ञान कथा के प्रति सकारात्मक माहौल बनाने का यह एक अच्छा तरीका है। मैं इस कार्यशाला में शामिल होकर विज्ञान कथाकारों से मिलना और उनके विचारों को जानना चाहूँगा।
अनिल मेनन, अमेरिका (Anil Menon, Science Fiction Writer)
चर्चित विज्ञान कथाकार
विज्ञान कथाकार एक संवेदनशील लेखक और दूरदर्शी आर्किटेक्ट होता है
विज्ञान कथाएँ वैज्ञानिक दृष्टिकोण के प्रोत्साहन में सहायक होने के साथ-साथ सामाजिक सामंजस्य के विकास में कारगर होती हैं। अगर विज्ञान विधि को विज्ञान कथाओं के कथा सूत्र में पिरोकर पेश किया जाए, तो इससे समाज में वैज्ञानिक सोच सम्पन्न हो सकेगी।
यह दुर्भाग्य का विषय है कि भारत में विज्ञान कथा की बात चलने पर लोग इसे सहजता से एलियन से जोड़कर सोचते हैं, जबकि दूसरे असंख्य कथा सूत्र है, जो हमारे वर्तमान जीवन को प्रभावित करते हैं और इन पर केंद्रीभूत होकर उसके समानान्तर चलते हुए भावी मानव जीवन का ताना-बाना बुना जा सकता है। विज्ञान कथा लेखक एक संवेदनशल लेखक और दूरदर्शी आर्किटेक्ट होता है, इसमें कोई दो-राय नहीं है।
समाज में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के प्रसार हेतु समर्पित संस्था ‘तस्लीम’ विज्ञान कथा की क्षेत्रीय भाषाओं में वस्तुस्थिति के मूल्याँकन के लिए दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन लखनऊ में करने जा रही है। इससे विज्ञान कथा साहित्य की श्रीवृद्धि होगी, ऐसी अपेक्षा की जानी चाहिए।
डॉ0 सुबोध महंती (Dr. Subodh Mahanti, Hindi Science Fiction Writer)
विज्ञान प्रसार, नई दिल्ली
फोटॉन और ऊर्जा केन्द्रित होगी विज्ञान कथा की आगामी शती
विज्ञान कथा और साहित्यिक कहानी में कोई तात्त्विक अन्तर नहीं होता है। इनके कथोपकथन, शिल्प भाषा-शैली आदि सभी उभयनिष्ठ होते हैं, परन्तु सामाजिक कहानी मुख्यतः भूगामी होती है। वह समाज की समस्याओं, विद्रूपताओं, विसंगतियों आदि का चित्रण करती है, परन्तु विज्ञान कथायें मुख्यतः भविष्योन्मुखी होने के कारण उर्ध्वगामी होती हैं। इनके पात्र, नायक, नायिकायें, ग्रुप लीडर, सहयोगी सभी शिक्षित तकनीकी ज्ञान सम्पन्न प्रखर बौद्धिकता के व्यक्ति होते हैं। परिस्थिति के अनुरुप प्रत्युत्पन्न मत होना इनकी विशेषता रहती है। इन विज्ञान कथाओं में परिस्थिति के अनुरूप भविष्य में होने वाली विज्ञान सम्मति प्रगति के दर्शन होते हैं। वैश्विक परिप्रेक्ष्य में इस शताब्दी की पृष्ठभूमि में इलेक्ट्रॉनिकी और जेनेटिक इन्जीनियरिंग विधायें रही हैं, परन्तु आगामी शती फोटानों पर, ऊर्जा पर आधारित विज्ञान कथाओं की होगी, यह मेरा पूर्वानुमान है।
डॉ. राजीव रंजन उपाध्याय (Dr. Rajiv Ranjan Upadhyay, President, Bhartiya Vigyan Katha Lekhak Samiti)
अध्यक्ष-भारतीय विज्ञान कथा लेखक समिति, फैजाबाद
उपेक्षा की शिकार हैं विज्ञान कथा
विज्ञान कथा को लेकर लोगों में तरह-तरह के कयास लगाए जाते हैं। भारत में इसे लेकर काफी भ्रम की स्थिति है। कोई यह समझता है कि जैसे आग की कहानी, कोयले की कहानी, स्टील कि कहानी वैसे ही विज्ञान की कहानी. मगर ऐसा नहीं है। विज्ञान कथा दीगर साहित्यिक कहानियों की तरह ही कहानी की की एक विधा है जिसमें अमूमन आने वाले कल की तसवीरें दिखने को मिलती हैं, जबकि सामाजिक कहानियों मे अतीत या वर्त्तमान की झलक देखने को मिलती है। मगर फिर भी विज्ञान कथाओं की कोई सर्वमान्य परिभाषा देना एक मुश्किल काम है। हाँ इसके बारे मे बताया या समझाया जरूर जा सकता है। महान विज्ञान कथाकार आईजक आसिमोव के अनुसार विज्ञान कथा मानव समाज अथवा व्यक्ति विशेष पर विज्ञान और प्रौद्योगिकी के प्रत्याशित प्रभावों के प्रति बुद्धिजीवियों और रचनाकारों के मन में उभरने वाली साहित्यिक प्रतिक्रिया है। इसमे वर्णित होने वाली दुनिया हमारी अपनी जानी पहचानी और परिचित दुनिया नहीं है बल्कि आने वाली एक दुनिया हो सकती है। अब जैसे जार्ज आर्वेल नाम के ब्रितानी लेखक ने अपने मशहूर उपन्यास 1984 में दुतरफा संवाद वाले टीवी जैसी जुगत की कल्पना कर ली थी। यह है विज्ञानकथा की सर्वकालिक महत्ता। मगर यहाँ भारत मे और खासकर हिंदी मे इसे जो आदर मिलाना चाहिए था वह अभी भी नही मिल सका है।
डॉ0 अरविंद मिश्र (Dr. Arvind Mishra, Secretary, President, Bhartiya Vigyan Katha Lekhak Samiti))
सचिव-भारतीय विज्ञान कथा लेखक समिति
क्यों विस्मृत हैं विज्ञान कथाएँ?
हिंदी में विज्ञान गल्प अथवा विज्ञान-कथा विधा को यद्यपि एक शताब्दी से भी अधिक समय हो चुका है, लेकिन साहित्य के क्षेत्र में अब भी इसकी मुकम्मल पहचान बाकी है। हिंदी साहित्य में इसे जो सम्मानित स्थान मिलना चाहिए था, वह अब तक नहीं मिला है। क्यों नहीं मिला है, यह एक विचारणीय विषय है। शायद इसलिए कि इस विधा में हिंदी के साहित्यकारों ने लिखने से परहेज किया या, इसलिए कि इस विधा में ‘विज्ञान’ तत्व को जटिल मान कर वे दूर ही रहे या, शायद इसलिए कि विज्ञान को साहित्य का उलट विषय मान लिया गया? लेकिन, सम्मानित समालोचकों और हिंदी साहित्य के इतिहासकारों को क्या हुआ? पूरी बीसवीं शताब्दी के दौरान लिखी गई हिंदी विज्ञान कथाओं से उन्होंने क्यों आँखें फेर लीं? क्या साहित्य की इस विधा में विज्ञान के प्रवेश ने उनके लिए इसे वर्जित क्षेत्र बना दिया? क्या पूरी शताब्दी में ऐसी कोई भी विज्ञान कथा हिंदी में नहीं लिखी गई जो समालोचकों और हिंदी कहानी का इतिहास लिखने वाले विद्वानों का ध्यान आकर्षित करती? या कहीं ऐसा तो नहीं कि बाहर से आने के कारण विज्ञान कथा विधा तिरस्कृत रही हो जबकि अनेक कला रूप और शैलियाँ बाहर से आकर समादृत हुई हैं?
यहाँ, यह भी विचारणीय है कि विज्ञान कथा विधा में रचे गए साहित्य की इस स्थिति के लिए कहीं स्वयँ इस विधा के रचनाकार ही तो उत्तरदायी नहीं हैं? क्या विगत एक सदी के दौरान साहित्य की इस विधा को गंभीरता से समझते हुए मनुष्य जीवन और उसके समाज पर पड़ रहे विज्ञान के बहुविध प्रभाव और संभावनाओं का पूरी संवेदना के साथ चित्रण किया गया? क्या कहानी में विगत व वर्तमान के यथार्थ और संभावित स्थितियों के यथार्थ को दर्पण की तरह सामने रखा गया ताकि पाठक अपने जीवन मूल्यों, नैतिक व सामाजिक मूल्यों में विज्ञान की घुसपैठ से हो रहे परिवर्तनों को अनुभव कर सकें और संभावित भविष्य का अनुमान लगा सकें? या कहीं ऐसा तो नहीं कि इस नई व अप्रचलित विधा में महज चकित-विस्मित कर देने के जादुई अंदाज में लिखा गया हो? इतना ही नहीं, अपने पुरखों द्वारा लिखे गए प्राचीन ग्रंथों और धर्मग्रथों में वर्णित उनकी उर्वर कल्पनाओं को तार्किकता के तराजू पर तौले बिना विज्ञान कथा कहने की भूल कर रहे हों?
लब्बो-लुबाब यह कि हमें भी अपने गिरेबाँ में झाँकना होगा। कुछ-न कुछ तो सच है अन्यथा एक सदी से भी अधिक समय से लिखी जा रही हिंदी की विज्ञान कथाओं को इस तरह विस्मृत नहीं किया जाता।
देवेंद्र मेवाड़ी (Devendra Mewari, Hindi Science Fiction Writer)
वरिष्ठ विज्ञान कथाकार
विज्ञान के भय को निकालने में सहायक हैं विज्ञान कथाएँ
विज्ञान कथाओं को विज्ञान और कथा दोनों का एक सरस और रोचक संगम कहा जा सकता है। विज्ञान कथाएँ समाज में वैज्ञानिक प्रवृत्ति के विकास में सहायक हो सकती हैं। विज्ञान कथा का विज्ञान सत्य का ज्ञान कराता है, तो कथा तत्व उसे रोचकता प्रदान करता है। इनके द्वारा समाज में व्याप्त अंधविश्वासों को दूर किया जा सकता है। इतना ही नहीं विज्ञान कथाओं से अनुसंधान को भी नई दिशा मिलती है। लेकिन जब हम विज्ञान कथाओं की वर्तमान स्थिति पर विचार करने का प्रयास करते हैं तो हम पश्चिमी देशों की तुलना में उतने ही पीछे नजर आते हैं जितने की विज्ञान और प्रौद्योगिकी के अन्य क्षेत्रों में। आज उपलब्ध वैज्ञानिक जानकारी ही विज्ञान कथाओं का आधार है। उसी के आधार पर भविष्य की कल्पना की जा सकती है। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि विज्ञान कथाएँ हमें भविष्य में देखने की प्रेरणा देती हैं। विज्ञान कथाएँ न केवल लोगों का मनोरंजन कर सकती हैं बल्कि उनके मन में विज्ञान के प्रति जो भय है उसे दूर कर उन्हें विज्ञान के लिए प्रेरित भी कर सकती हैं।
डॉ0 विनीता सिंघल (Vinita Sinfhal, Hindi Science Fiction Writer)
सह संपादक-निस्केयर, नई दिल्ली
विज्ञान के श्याम पक्ष को उद्घाटित करें विज्ञान कथाएँ
सपने देखना इंसानी फितरत है। सपने, सपने और सपने ही तो नवोन्मेषों की आधार भूमि हैं। विज्ञान गल्पों की सर्जना तो नूतन परिकल्पनाओं की भावभूमि पर की जाती है। लेकिन आवश्यक तो नहीं, सारी कल्पनाएँ साकार हो जाएँ? फिर यह दुराग्रह ही क्यों कि भविष्य विज्ञान हैं विज्ञान कथाएँ ? आसमान में परिन्दों को उड़ता देखकर ही तो इंसान ने उड़ने की कल्पना की और परम साहसी वीरों ने अपनी जानों को भी जोखिम में डालकर इन सपनों में रंग भरा और एक दिन आदमी चाँद पर भी हो आया। यह इंसानी हिकमत और फितरत का ही सबब है कि मनुष्य निर्मित यान अंतरिक्ष को खंगाल चुके हैं और अपने सौर परिवार को अलविदा करके अंतरिक्ष की अतल गहराइयों में खो चुके हैं, लेकिन पृथ्वेतर जीवन संधान के क्रम में आदमी के हाथ कुछ नहीं लगा। अत: विज्ञान गल्पों के अंतरिक्ष प्रसंग अब नेपथ्य में चले जाने चाहिए।
तकनीकी प्रगति ने मानव-मानव के बीच एक लंबी सी विभाजन रेखा खींची है, यह खाई और भी गहराती जा रही है। आज उसे पाटने की दरकार है। हमें सुपर टेक्नोलॉजी के दूसरे चेहरे को भी देखना चाहिए और जनसामान्य को भावी विज्ञान के आसन्न खतरों से आगाह करना चाहिए। नए-नए रूपों में महामारियों का पुनरागमन, कूड़ाघर बनता जा रहा अंतरिक्ष, भोपाल और चेरनोबिल त्रासदियाँ, ध्रुवों की पिघलती बर्फ, बढ़ता हरितगृत प्रभाव आदि आसन्न संकट हैं और हमें इनसे निजात पानी है। विज्ञान गल्पकारों का दायित्व यह भी है कि विज्ञान के श्याम पक्ष से साक्षात्कार करें।
शुकदेव प्रसाद (Shukdev Prasad, Hindi Science Fiction Writer)
वरिष्ठ विज्ञान कथा लेखक
वैज्ञानिक सोच के प्रसार में सहायक हैं विज्ञान कथाएँ
विज्ञान कथा कल्पना और विज्ञान के तथ्यों का मिश्रण है। कुछ लोग इसे भविष्य का विज्ञान कहते हैं। एक अर्थ में यह सही है क्योंकि काफी विज्ञान कथाओं में आज के विज्ञान-प्रौद्योगिकी से आगे बढ़ कर विवरण होता है। विज्ञान कथा मनोरंजन एवं विज्ञान के अनेक पक्ष सिखाने के अतिरिक्त हमें भविष्य में होने वाले परिवर्तनों के लिए तैयार भी करती है, वह भी रोचक तरीके से। यह महत्त्वपूर्ण है क्योंकि विज्ञान-प्रौद्योगिकी का सीधा प्रभाव समाज पर पड़ता है। समाज की सोच तार्किक और वैज्ञानिक करने में विज्ञान कथा का बहुत बड़ा योगदान हो सकता है और इसमें समाज की अनेक समस्याओं का हल छुपा है। हाँ, पाठकों के अनुसार अलग-अलग तरह और स्तर की विज्ञान कथा हो सकती हैं।
बच्चों के लिए लिखी कथा में कम जटिल विज्ञान होगा, फंतासी अधिक होगी। सबसे बड़ी सावधानी यह रखनी पड़ेगी कि हम विज्ञानके सारे नियमों का उल्लंघन न कर डालें। जहां नियम से छूट लें, स्पष्ट होना चाहिए। अन्यथा गलत सन्देश चला जाएगा। अच्छी लेखन क्षमता के वैज्ञानिकों को भी इसमें आगे आना चाहिए। यह ज़रूरी है कि समाचारपत्रों और पत्रिकाओं के अतिरिक्त टीवी और फिल्मों के लिए विज्ञान कथाएं लिखी जाएं, क्योंकि वे उस आदमी तक भी पहुँचते हैं जो पढ़ नहीं सकता या नहीं पढता।
डॉ. सी0एम0 नौटियाल (C.M. Nautiyal, Hindi Science Fiction Writer)
वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं विज्ञान लेखक
वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने में सहायक हैं विज्ञान कथाएँ
विज्ञान कथा के नाम पर पूरी दुनिया में फैंटेसी का मायाजाल फैलाया जाता रहा है। मगर वास्तव में विज्ञान कथा विज्ञान और तकनीकी के मान्य सिद्धाँतों पर आधृत होती है। अगर अवैज्ञानिक कल्पनाओं (फैंटेसी) को विज्ञान कथा का नाम देकर पाठकों को गुमराह किया जा रहा है, तो इससे विज्ञान कथा और समाज दोनों का नुकसान है। समाज का इसलिए क्योंकि विज्ञान कथाएँ समाज में वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने में अहम भूमिका निभाती हैं।
भारतीय भाषाओं सहित हिन्दी में विज्ञान कथा साहित्य सृजन के वर्तमान परिदृश्य का एक विश्लेषणपरक जायजा लेने और उसके अनुसार भावी दिशा तय करने के लिए लखनऊ की गैर सरकारी संस्था ‘तस्लीम’, विज्ञान प्रसार के सहयोग और सानिध्य में एक कार्यशाला का आयोजन करने जा रही है। यह सभी ऐसे लोगों केलिए अच्छा अवसर है, जो विज्ञान कथा में रूचि रखते हैं।
मनीष मोहन गोरे (Manish Mohan Gore, Hindi Science Fiction Writer)
युवा विज्ञान कथाकार
विज्ञान कथा के 100 साल -डॉ. जाकिर अली रजनीश
समकालीन बाल विज्ञान कथाएं : एक अवलोकन -डॉ. जाकिर अली रजनीश
विज्ञान से जुड़ा है विज्ञान कथा का भविष्य -विष्णु प्रसाद चतुर्वेदी
विज्ञान कथाओं का अनुवाद : समस्याएँ एवं निवारण -बुशरा अलवेरा
Keywords: Science Fiction in India, science fiction stories, science fiction books, science fiction authors, indian science fiction writers, Anil Menon, Vinita Singhal, Dr. Subodh Mohanti, Vishnu Prasad Chaturvedi, Manish Mohan Gore, C M Nautiya, Devevdra Mewari, Dr. Rajiv Ranjan Upadhyay
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विज्ञान कथाओं पर कुछ अन्य महत्वपूर्ण आलेख:
क्या है विज्ञान कथा? -डॉ. अरविंद मिश्र (What is Science Fiction?)विज्ञान कथा के 100 साल -डॉ. जाकिर अली रजनीश
समकालीन बाल विज्ञान कथाएं : एक अवलोकन -डॉ. जाकिर अली रजनीश
विज्ञान से जुड़ा है विज्ञान कथा का भविष्य -विष्णु प्रसाद चतुर्वेदी
विज्ञान कथाओं का अनुवाद : समस्याएँ एवं निवारण -बुशरा अलवेरा
Keywords: Science Fiction in India, science fiction stories, science fiction books, science fiction authors, indian science fiction writers, Anil Menon, Vinita Singhal, Dr. Subodh Mohanti, Vishnu Prasad Chaturvedi, Manish Mohan Gore, C M Nautiya, Devevdra Mewari, Dr. Rajiv Ranjan Upadhyay
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Achchha laga. aabhar.
जवाब देंहटाएंKrishna Rawat, Atarra.
शानदार प्रस्तुति .जाने माने विज्ञान कथाकारों के वक्तव्य और चिंतन परक विचार पढ़े .विज्ञान कथा के प्रति शेष कथाकारों का उपेक्षा भाव ईर्षा और डाह प्रेरित ज्यादा लगता है कोई साहित्येतर साहित्यकार हो कैसे सकता है ?
जवाब देंहटाएंकथा व साहित्य का मूल उद्देश्य सामाजिक विग्यान है न कि तकनीकी विग्यान । साहित्य का मूल उद्देश्य मानव सदाचरण होता है, समयोपेक्ष मानव सदाचरण की कथाओं में विग्यान तो स्वतः ही आजाता है ,अतः किसी अलग विधा की कोई आवश्यकता नहीं है..इसीलिये यहां इस विधा का अधिक प्रचलन नही हुआ...
जवाब देंहटाएंउपरोक्त सभी तथाकथित विग्यान-कथा लेखक हैं...विद्वान नही....वे स्वयं अपनी बात तो सही कहेंगे ही.....
जवाब देंहटाएं@ डाक्टर रजनीश ,
जवाब देंहटाएंइन सभी विज्ञान कथाकारों को शुभकामनायें !
@ डाक्टर श्याम गुप्ता,
"उपरोक्त सभी तथाकथित विग्यान-कथा लेखक हैं...विद्वान नही"
आपके कथन को ज़रा विस्तार से समझाइये !