गुरूजी सचमुच गुरूजी हैं। उम्र में युवा, देखने में स्मार्ट,चेहरे पर चमक और उस पर जब फरार्टेदार अंग्रेजी बोलते हैं, तो सामने वाला एकदम मंत्रम...
गुरूजी सचमुच गुरूजी हैं। उम्र में युवा, देखने में स्मार्ट,चेहरे पर चमक और उस पर जब फरार्टेदार अंग्रेजी बोलते हैं, तो सामने वाला एकदम मंत्रमुग्ध सा हो जाता है। यही कारण उनके पास भक्तों का जमावड़ा लगा रहता है।
गुरूजी से हमारी मुलाकात करीब 15 वर्ष पुरानी है। उस समय वे अंग्रेजी से एम0 ए0 कर रहे थे और अपने जेब खर्च के लिए ट्यूशन पढ़ाया करते थे। शुरू शुरू में जब वे इस कार्य के लिए हमारे घर आए, तो मैंने कुछ ध्यान नहीं दिया। लेकिन जब उन्होंने हमारे गॉंव का जिक्र छेड़ा तो मेरे कान खड़े हो गये। पहले तो मुझे लगा कि वे यूँ ही बना रहे होंगे, पर जब उन्होंने गॉंव के एक व्यक्ति का नाम और उसके घर की स्थिति बताई, तो यकीन न करने का कोई कारण ही नहीं बचा था।
दरअसल बात यह थी कि वे हमारे गॉंव की एक विधवा के घर कुछ तंत्र मंत्र करने गये थे। मैंने जब उनका यह रूप जाना, तो आश्चर्यचकित रह गया। उसके बाद मेरी गुरूजी में रूचि बढ़ गयी।
एक दिन मैंने अपनी मम्मी से बातें करते हुए गुरूजी के मुख से सुना कि वे किसी मंदिर के बारे में बात कर रहे थे। पता चला कि वह रायबरेली रोड पर सेनानी विहार के पास वाला मंदिर है। वे बता रहे थे कि मंदिर के बगल वाली जमीन भी मंदिर की ही है। ऑन रोड जमीन है। लगभग ढ़ाई हजार स्कावर फिट से क्या कम होगी। वे सोच रहे हैं कि वहॉं पर पुजारी का काम शुरू करें।
मैंने सोचा कि गुरूजी यूँही कह रहे होंगे। पर जब अभी कुछ दिन पहले उस मंदिर के पास से गुजरा, तो गुरूजी को देखकर मेरे कदम खुद ब खुद रूक गये। वे मंदिर में पूजा करने में लीन थे। मैं मंदिर के पास ही रूक गया और उनके फ्री होने की प्रतीक्षा करने लगा।
मुझे देखते ही गुरूजी मुस्कराए। वे बाहर निकल कर आए और मंदिर के पीछे बने अपने कमरे में ले गये। मेरे बैठने के साथ ही उन्होंने अपनी कहानी बतानी शुरू कर दी, जिसका आशय यह था कि किराए के कमरे में लोगों को ट्यूशन पढ़ाते हुए नौकरी के फार्म भरना और ईश्वर से प्रार्थना करते रहने से अच्छा है कि यहॉं बैठ कर भगवान का प्रसाद ग्रहण किया जाए।
इसके बाद उन्होंने ढ़ेर सारे केले, सेब और तरह-तरह की चीजें सामने लाकर रख दीं। मैंने जब खाने में अस्मर्थता व्यक्त की, तो वे बोले- ''प्रसाद तो लेना ही पड़ेगा।''
उन्होंने न सिर्फ मन से प्रसाद खिलाया, बल्कि ढ़ेर सारा प्रसाद घर के लिए भी दिया। चलते समय मैंने उनसे पूछा- ''अच्छा गुरूजी, जब आप स्वयं तंत्र मंत्र में निष्णात हैं, तो क्यों नहीं अपने लिए एक बढि़या सी नौकरी....''
''बदमाश़...'' कहते हुए हुए उन्होंने मेरी पीठ पर एक धौल जमाई और बात को बदलते हुए घर के बारे में पूछने लगे।
मैं सोचने लगा कि बदमाश मैं हूँ, या गुरूजी, जो भगवान के घर में रहते हुए लोगों को भगवान के नाम पर बेवकूफ बना रहे हैं? क्या इन्हें भगवान से जरा भी डर नहीं लगता?
और हॉं, एक बात तो बताना भूल ही गया। गुरूजी के चेहरे की चमक पहले की तुलना में काफी बढ़ गयी है। आखिर बढ़े भी क्यों नहीं? सूखी रोटी सब्जी खाने वाला व्यक्ति जब हराम का तर माल पाएगा, तो भला वह अपना रंग क्यों नहीं दिखाएगा?
नोट- कृपया इसे कहानी न समझें, यह हमारे देश की विडम्बनाओं की जीती-जागती तस्वीर है।
चित्र- साभार गूगल सर्च।
चित्र- साभार गूगल सर्च।
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तो यकीन करने का कोई कारण ही नहीं था या यकीन न करने का कोई कारण नहीं था
जवाब देंहटाएंबिचारे ने इतना तर माल से आपको तर भी किया फिर भी .....
एक बार मुझे भी ऐसा क्या इससे भी कहीं ज्यादा और भोग विलास भी आमंत्रण भी उपलब्ध करा दिया गया था
जैसा की भरत की आगवानी भारद्वाज आश्रम में हुयी थी ...
स्थान वही ,रिवायत वही ,मगर समय भूतकाल ..
मैंने भी मन कर दिया था ......मनुष्य को अपने जीवन में कभी कभार विवेक से काम भी ले लेना चाहिए !
बाबाजी की जै।
जवाब देंहटाएंवैसे मिश्रा जी सही कह रहे हैं। जाकिर भाई खाए के खाए, घर भी ले गए, उसके बाद भी बाबा जी छीछालेदर।
जवाब देंहटाएंलो जी प्रसाद खाकर भी आप उन्हें बदमाश बता रहे हैं :)
जवाब देंहटाएंचारों ओर छाये पडे हैं ऐसे लोग
प्रणाम
पाथेर पांचाली के एक दृश्य में,भूकंप से भगवान की प्रतिमा को भी हिलते दिखाया गया है। जब तक भगवान के प्रति आम लोगों की अवधारणा नहीं बदलेगी,ऐसे पुजारी यों ही अपनी तोंद बढ़ाते रहेंगे।
जवाब देंहटाएंइस तरह के बाबा और गुरुजी लोग भगवान से नहीं डरते, बल्कि उल्टा होता है, शायद भगवान ही इनसे डरते हों।
जवाब देंहटाएंये एक कटु सच्चाई है कि आज नौकरी खोजने से अच्छा और आसान तरीका यही रह गया है कि बस थोडा सा ज्ञान जोड़ो और उलटे उस्तरे लोगों को मूढो(बेरोजगारी इसका बहुत बड़ा कारण है).सरकारी ज़मीन पर आसानी से कब्ज़ा करना है तो बस कोई धार्मिक प्रतीक चिह्न वहां रख दीजिये और धीरे धीरे मुफ्त का माल हड़प लीजिये फिर चाहें उसकी आड़ में शराब का ठेका ही क्यों न खोल लें.
जवाब देंहटाएंधार्मिकता की आड़ में पाखण्ड का बखूबी चित्रण करती रचना.
अरविंद जी, त्रुटि की ओर ध्यान दिलाने का शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंGali gali men aise guruji bhare pare hain.
जवाब देंहटाएं5/10
जवाब देंहटाएंरोचक पोस्ट
ऐसे गुरु एक खोजो हजार मिलेंगे इस पुन्य भूमि में और मिलें भी क्यों न ? जब भक्त पहले से तैयार हों.
यह भी तो एक तरह का प्रोफेशन है भाई .जय गुरुदेव.
जवाब देंहटाएंमुसीबतज़दा की मजबूरी का फायदा उठाने वाले ऐसे ढोंगी गुरु बाबा बहुत हैं.इनके चक्कर में अच्छे खासे पढ़े-लिखे लोग भी पड़ जाते हैं.
जवाब देंहटाएंकाश,आपके इस रोचक प्रसंग को पढ़कर ही लोगों में जागृति आये
आज कल हर जगह ऐसे गुरूजी मिल जाते हैं ...यह भी एक व्यवसाय बन चुका है ...वैसे चित्र शीबू सोरेन से बहुत मिलता है
जवाब देंहटाएंसब इस "गुरू" नाम की ही महिमा है :)
जवाब देंहटाएंईमानदारी से उन्होंने आपकी पीठ पर धौल जमाकर अपनी वास्तविकता जाहिर कर दी.
जवाब देंहटाएंआजकल यह भी व्यावसायिक हो गए हैं...... तभी तो इस कदर फल फूल रहे हैं..... अच्छी पोस्ट
जवाब देंहटाएंआदरणीय भाई जाकिर अली 'रजनीश'जी
जवाब देंहटाएंनमस्कर !
हमारे राजस्थान में कहावत है
मोफत रा माल मिले , सांड रैवै सोरा मुफ्त के माल खाने वाले काम क्यों करेंगे …
अच्छी पोस्ट , बधाई !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
वैसे तो आपकी बात सही है पर हमारे देश में ऐसे बड़े बड़े मठाधीश और स्वामी हैं जो लोगों का धार्मिक और मानसिक शोषण करके करोड़ों, अरबों की सम्पत्ति खड़ी कर चुके हैं। उनके सामने ये गुरुजी तो कुछ भी नहीं हैं।
जवाब देंहटाएंमक्कारों से मिलवाने का शुक्रिया!
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इस पोस्ट की चर्चा
आज के चर्चा मंच पर भी है!
http://charchamanch.blogspot.com/2010/11/337.html
धार्मिकता की आड़ में पाखण्ड का बखूबी चित्रण करती रचना.
जवाब देंहटाएंगुरुतर प्रविष्टि !
जवाब देंहटाएंबहुत सही लिखा आपने !
जवाब देंहटाएंबहुत सही लिखा आपने !
जवाब देंहटाएंएक बार मैंने भी लिखा था एक पोस्ट 'क्या गुरुओं से भी अब सावधान होना पड़ेगा'
जवाब देंहटाएंसच बयान किया है आपने
धर्म के सहारे लोगों को छलने का काम हर धर्म या मज़हब में होता है ... कहीं गुरु तो कहीं मौलबी तो कहीं पादरी के रूप में ...
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