' तस्लीम ' की पिछली पोस्ट ' थोड़ी अक्ल लगाएँ, खूब करें एन्ज्वॉय ', जिसमें खाने की " तासीर " (आयुर्वेदिक और यूनान...
'तस्लीम' की पिछली पोस्ट 'थोड़ी अक्ल लगाएँ, खूब करें एन्ज्वॉय', जिसमें खाने की "तासीर" (आयुर्वेदिक और यूनानी चिकित्सा पद्धति में प्रचलित धारणा) के बारे में जानकारी दी गयी थी, पर प्रवीण शाह जी ने कमेंट करते हुए लिखा है-
"दुख के साथ कह रहा हूँ कि आपकी यह पोस्ट आपके ब्लॉग के घोषित मकसद के एकदम विपरीत है। आधुनिक आहार विज्ञान 'तासीर' की इस अवधारणा को नहीं मानता, यह अवधारणा आयुर्वेद, सिद्ध और यूनानी चिकित्सा पद्धतियों की देन हैं पर प्रायोगिक तौर पर ऐसा होना साबित नहीं है। आज के दौर के सभी शीर्ष खिलाड़ी आधुनिक आहार विज्ञान के सहयोग से अपने स्वास्थ्य और फिटनेस को सर्वोच्च स्तर पर बनाये रखते हैं। यदि शरीर में पहले से कोई रोग नहीं है तो आप द्वारा बताई ठंडी तासीर वाले खाद्य रात को भी खाने पर कोई दिक्कत नहीं होगी, यह आप खुद कर आजमा सकते हैं।
बताना तो नहीं चाहिये पर श्रीमती जी ने आज डिनर में मक्के की रोटी, बंद गोभी की सब्जी और राजमा चावल बनाया है। अमरूद अभी कमेंट करते करते खा ही रहा हूँ... तो आपके हिसाब से मैं तो गया काम से... :)
अब बस करता हूँ सुबह दौड़ जो लगानी है... :("
बताना तो नहीं चाहिये पर श्रीमती जी ने आज डिनर में मक्के की रोटी, बंद गोभी की सब्जी और राजमा चावल बनाया है। अमरूद अभी कमेंट करते करते खा ही रहा हूँ... तो आपके हिसाब से मैं तो गया काम से... :)
अब बस करता हूँ सुबह दौड़ जो लगानी है... :("
आदरणीय प्रवीण शाह जी, आपका कमेंट मैंने उसी समय पढ़ लिया था, लेकिन व्यस्ततावश उसका जवाब उस समय नहीं दे सका। फिर व्यक्तिगत कार्यवश जब काफी समय के बाद जवाब लिखने बैठा, तो जवाब इतना लम्बा हो गया कि मुझे लगा कि इसे टिप्पणी के रूप में न प्रकाशित करके पोस्ट ही बना दिया जाए। लेकिन इस जवाब को देने से पहले मैं इतना कहना चाहूँगा कि मेरे इस जवाब का मकसद किसी विवाद को जन्म देना नहीं है। हाँ, आपने जो बातें अपनी टिप्पणी में उठाईं थीं, कोशिश कर रहा हूँ कि अपनी पोस्ट के संदर्भ में उनका जवाब अवश्य दे सकूँ।
र्स्वप्रथम मैं यही कहूँगा कि आपकी इस बात से असहम होने का कोई मतलब नहीं कि आधुनिक आहार विज्ञान के सहारे आज के खिलाड़ी अपने स्वास्थ्य और फिटनेस के उच्चतर स्तर को बनाए रखते हैं। लेकिन सवाल यह है कि किस कीमत पर? इस स्तर को बनाने के लिए उन्हें कितने पैसे खर्च करने पड़ते हैं, यह मुझे नहीं मालूम। पर इतना मुझे अंदाजा अवश्य है कि उसे अफोर्ड करना निश्चय ही इस देश के 80 प्रतिशत लोगों के लिए सम्भव नहीं होगा। और मुझे यह बताने में कोई शर्म नहीं महसूस हो रही है कि इस कटेगरी में मैं भी आता हूँ। मुझे लगता है कि इस देश की अधिकांश जनता (गरीब, दिहाड़ी मजदूर, नौकरी पेशा, छोटे-मोटे दुकानदार आदि) भी इसी श्रेणी में आती है।
ये आम नागरिक जब बाजार जाते हैं, तो इनकी नजर पौष्टिक चीजों को नहीं, सस्ती और काम चलाउ चीजों को खोजती है। 90 रूपये किलो अरहर दाल खरीद कर खा पाना इनके वश में नहीं होता, तो ये विकल्प के रूप में मटर और दूसरी सस्ती दालों से काम चलाते हैं। इनकी पहुंच मल्टीविटामिन, पॉवरफुल फूड सप्लीमेंट, मंहगे बोतलबंद जूस और कीमती फलों को तो छोड़ ही दीजिए बीस रूपये किलो का अमरूद तक भी कभी-कभार ही हो पाती है।
ऐसे लोगों के लिए क्या हमारे आधुनिक आहार विज्ञान के पास कुछ है? नहीं। तब ऐसे लोग क्या करें? जाहिर सी बात है कि अगर ये अपना जो रोज का खाना खाते हैं, उसे ही अगर व्यवस्थित कर लें, तो उनका स्वास्थ्य सुधर सकता है। "तासीर" की अवधारणा कोई कपोलकल्पना नहीं है, यह आयुर्वेद और यूनानी पद्धति में वर्षों से प्रयोग में लाई जा रही है और प्रामाणिक है। यदि इसे आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने प्रमाणित नहीं किया, तो इसका मतलब यह नहीं हो जाता कि यह गलत है। यह हमारे आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के लिए चुनौती है। यदि यह सब बकवास होता, तो विदेशी कम्पनियां फटाफट हमारे देशी फामूर्लों (हल्दी, नीम आदि) पर पेटेंट हासिल करने के लिए पागल न हो जातीं और न ही हमारी सरकार कुम्भकर्णी नींद से जागकर पारम्परिक ज्ञान को संरक्षित करने के लिए प्रयासरत हुई होती।
आपने लिखा है कि 'यदि शरीर में पहले से कोई रोग नहीं है तो आप द्वारा बताई ठंडी तासीर वाले खाद्य रात को भी खाने पर कोई दिक्कत नहीं होगी।' यदि आप अन्यथा न लें तो मैं आपसे पूछना चाहूँगा कि क्या आप बता सकते हैं कि आप पूरी तरह से स्वस्थ हैं? हमारे शरीर में सिर्फ किसी बीमारी का न दिखना ही स्वास्थ्य की निशानी नहीं होती। यदि हम आधुनिक चिकित्सा पद्धति की बात करें, तो क्या हम किन्हीं दस ऐसी दवाओं के नाम बता सकते हैं, जिनके साइड इफेक्ट न होते हों। (जिस प्रकार साइड इफेक्ट दवा खाते ही नहीं पता चलते, उसी प्रकार खाने की तासीर भी शरीर पर असर करने में कुछ समय लेती है।) गम्भीर बीमारियों में काम आने वाली दवाओं को अगर छोड़ भी दिया जाए, तो 'ब्रूफेन' जैसे बेहद कॉमन और डॉक्टरों द्वारा धड़ल्ले से लिखी जा रही दवा को ही लें, तो यह जितना फायदा हमें पहुंचाती है, उससे ज्यादा हमारे शरीर के लिए नुकसानदायक ही साबित होती है। और फिर धड़ल्ले से बिक रही नकली दवाओं, ज्यादा कमीशन के लालच में डाक्टरों द्वारा लिखी जा रही कम कारगर दवाओं को अगर छोड़ भी दिया जाए, तो भी दूध से लेकर वनस्पति घी तक तक फैले मिलावट के आधुनिक राक्षस के चलते कोई व्यक्ति आजके समय में कैसे निरोगी रह सकता है?
और ऐसे विकल्पहीन, निराशा से सराबोर समाज में अगर सदियों से आजमाया हुआ नुस्खा बताकर अगर हम पाठकों को सचेत कर रहे हैं, तो मुझे नहीं लगता कि हम अवैज्ञानिक हो रहे हैं। हाँ, यदि इससे बेहतर कोई उपाय आपके पास हों, तो हमें जरूर बताएं। हम आपके हृदय से आभारी होंगे।
अगर आपको 'तस्लीम' का यह प्रयास पसंद आया हो, तो कृपया फॉलोअर बन कर हमारा उत्साह अवश्य बढ़ाएँ। |
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यह तो एक सैधांतिक वाद हो गया पूर्वी तथा पश्चिमी ज्ञान के बीच|मैं किसी व्यक्ति विशेष पर टिप्पड़ी नहीं कर रहा हूँ परन्तु अंग्रेजो और अंग्रेजी के प्रभाव के कारण कुछ लोगो की मानसिकता ऐसी हो जाती है की वो काम अच्छी विदेशी चीजों को प्राथमिकता देते हैं ज्यादा अच्छी देशी चीजों पर और चिकित्सा विज्ञान भी अपवाद नहीं है | जब कोई गौरांग(white) योग ,हल्दी, यज्ञ तथा मंत्र की तरह इसका गुणगान करेगा तब यह भी उत्तम हो जायेगा | तब तक की प्रतीक्षा |
जवाब देंहटाएंकल की पोस्ट में आपने बाजरा को ठंडी तासीर वाला बताया था जी।
जवाब देंहटाएंमेरे घर में सर्दियों में बाजरे की खिचडी और रोटियां बनाई जाती हैं।
मेरी माता जी का कहना है कि यह खिचडी और रोटियां गर्म तासीर वाली होती है।
आप इस बारे में कुछ बतायें
प्रणाम
सोहिल जी, मैंने कल की पोस्ट में जो बातें बतायीं थीं, वह आयुर्वेद के डाक्टरों द्वारा प्रदान की गयी जानकारी पर आधारित थीं। और उस जानकारी के अनुसार बाजरा ठण्डी तासीर का ही अन्न है। ऐसे में उससे बने सभी पदार्थ भी ठण्डी तासीर के ही होने चाहिए।
जवाब देंहटाएंMere vichar men bhojan ko uski taseer ke anusaar khane men koi nuksaan bhi to nahi hai. fir ismen vivad kyun?
जवाब देंहटाएंBhojan ki taaseer ke bare jaankar achchha laga, abse iska paalan karoonga.
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जाकिर भाई,
अब क्या कहूँ मैं आपसे इस बारे में...तासीर, परहेज, ठंडा-गर्म आदि आदि धारणाओं के साथ साथ पल कर ही बड़े होते हैं हम लोग... बहुत सी ऐसी चीजें मानते हैं जिन पर हंसा ही जा सकता है...तासीर, परहेज, ठंडा-गर्म आदि के मानने ने भी भारत की आधी से अधिक आबादी को कुपोषित रखने में कम योगदान नहीं किया है...अच्छा होता कि आप अपनी पोस्ट लिखने से पहले किसी Nutritionist से राय लेकर आधुनिक मत भी लिखते...
बहुत दुख होता है कभी-कभी जब टीबी के उस मरीज को देखकर जो बीमारी से पहले ६० किलो का था और अब ३८ का रह गया है, डॉक्टर प्रोटीन इनटेक बढ़ाने के लिये कहता है कि २-३ अन्डे रोज खाओ पर वह कहता है कि गर्मी के मौसम में वह गर्म तासीर वाली चीज नहीं खायेगा।
अब आपकी कल की ही पोस्ट के विरोधाभासों को देख लीजिये...
मीठे सेब, नाशपाती, अमरूत, खूमानी, केला और तरबूज जैसे फल ठण्डी तासीर वाले होते हैं। इस हाड़ कंपाती सर्दी में इनका उपयोग न ही किया जाए तो बेहतर है।
सेब अधिकतर लोग मीठा ही पसंद करते हैं, केला साल भर बिकता और खाया जाता है...अमरूद तो सर्दियों में ही फल देता है...ठंडी तासीर का समझ कर लोग न खायें तो अमरूद के बाग उजड़ जायेंगे और गरीबों के हाथ से एक सस्ता देशी फल गया...
मीठे पानी की मछली, गाय, घोड़े और सुअर का मांस ही गर्म तासीर रखता है। जबकि चिकन और बकरे का मांस मिली जुली तासीर रखता है। इसके विपरीत समुद्री मछलियाँ तथा अन्य प्राणियों का मांस तथा अन्य प्रकार के मांस ठण्डी तासीर रखते हैं।
गाय के मांस पर पाबंदी है, जो बेचारे गरीब और मध्यवर्गीय ईसाई और मुस्लिम भाई भैंस का मांस इन दिनों खा रहे हैं उनके तो पूरे कुनबे बीमार हो कर रहेंगे।
सभी खट्टे फल जैसे अंगूर, संतरा, नींबू, बेर आदि इसके साथ ही साथ बादाम, अखरोड, मूँगफी, नाशपाती, कीवी, खट्टे सेब भी गर्म तासीर वाले फल हैं, जिनका सर्दी में अधिक से अधिक सेवन करना चाहिए।
मैं सर्दियों में इनके सेवन का विरोधी नहीं पर यह क्या सही नहीं है कि जिस्म जलाती गर्मी में आदमी का मन करता है और वह पीता भी है नींबू पानी, संतरे या मुसम्बी का रस और बेर का शर्बत...
चावल, मक्का, जौ, बाजरा, मसूर, राजमा, पकी मटर, बंद गोभी, लौकी, कद्दू, भिंडी, बैंगन, प्याज, खीरा, ककड़ी, चुकन्दर ठण्डी तासीर वाले होते हैं। यदि आप सर्दी में इन सबसे दूरी बनाकर रखें, तो ही बेहतर है।
चुकन्दर सर्दियों में ही होता है, ठन्डे प्रदेशों और चीन जैसे सर्द देशों का STAPLE FOODGRAIN चावल ही है...
गुड़ को आप गरम कह रहे हैं और चीनी जो उस का परिष्कृत रूप है उसे ठंडा... फिर भी चीनी डल ही रही है चाय, काफी आदि आदि में...और हर कोई ले रहा है...शायद सब बीमार होकर ही रहेंगे।
यदि आप अन्यथा न लें तो मैं आपसे पूछना चाहूँगा कि क्या आप बता सकते हैं कि आप पूरी तरह से स्वस्थ हैं? हमारे शरीर में सिर्फ किसी बीमारी का न दिखना ही स्वास्थ्य की निशानी नहीं होती।
साल में एक दो बार हल्का फुल्का जुकाम तो हो ही जाता है वैसे मैं स्वस्थ हूँ, हाँ नजर का चश्मा कक्षा १० से लगा रहा हूँ... उम्मीद करता हूँ कि वैज्ञानिकता, तर्क और तथ्य के प्रति मेरे आग्रह को तो आप बीमारी की संज्ञा नहीं देंगे।
एक छोटा सा अनुरोध आपसे भी...हिम्मत कीजिये और एक दो दिन ठंडी तासीर वाले खाद्यों का ही सेवन कीजिये... फिर देखियेगा... फिर से सूरज निकलेगा... आप समय पर ही आफिस जायेंगे... हंसते हुऐ... और यह हंसी होगी परहेज और तासीर के चंगुल से बाहर निकलने की उनमुक्त हंसी...
आभार!
प्रवीण जी, आपकी बातें नई सोच की प्रतीक हैं। पर अगर आयुर्वेद के डाक्टर इस बात को कह रहे हैं, तो बिना वजह तो नहीं कह रहे होंगे। तासीर वाली बातों को इस तरह से भी देखा जा सकता है कि ठण्डी तासीर वाली चीजों को खाना ही हो, तो सुबह जब मौसम साफ हो, या दिन के समय खाया जाए तो क्या हर्ज है। रात में खाने से बचा जाए। मेरी समझ से इसमें किसी का नुकसान नहीं होगा। और वैसे भी मैं कोई आयुर्वेद का प्रकांड विद्वान नहीं हूं। मुझे यह जानकारी मिली और विश्वसनीय जगह से मिली, तो मैंने सोचा कि इसे पाठकों के साथ बांटा जाए। और वैसे भी सही गलत तो सभी जगह होता है, चाहे वह आयुर्वेद हो, अथवा एलोपैथ। पर इसका मतलब यह नहीं कि हम इस बहाने किसी जानकारी को सिरे से ही नकार दें।
जवाब देंहटाएंएक बात और, आपकी इन बातों से भी मैं इत्तेफाक रखूंगा कि एक दो दिन ठण्डी तासीर वाली चीजों का सेवन किया जाए, तो एक नया अनुभव होगा। पर जरूरी नहीं कि आपकी तरह मेरा शरीर भी उसे झेल सके, क्योंकि हर शरीर की प्रकृति अलग अलग होती है। एक ही चीज दो लोगों पर अलग अलग तरह से असर करती है। कुछ लोग दो किमी० दौड सहजता से लगा लेते हैं, पर ज्यादातर 100 मीटर में ही हांफ जाते हैं। कुछ लोग सालों डाक्टर का चेहरा नहीं देखते, पर ज्यादातर लोग अक्सर ही बीमार पड़ जाते हैं, कभी खांसी, कभी बुखार, कभी पेट दर्द, कभी कब्ज, कभी दस्त। ऐसे लोग अगर अपने खानपान पर ध्यान दें, तो उनकी सेहत सुधर सकती है। शायद तासीर वाला मामला उनके ज्यादा काम का हो।
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जाकिर भाई,
आभारी हूँ आपका कि मेरे उत्तर को आपने अन्यथा न लेकर एक सही सोच के साथ परखा और समझा...
एक बात और, आपकी इन बातों से भी मैं इत्तेफाक रखूंगा कि एक दो दिन ठण्डी तासीर वाली चीजों का सेवन किया जाए, तो एक नया अनुभव होगा। पर जरूरी नहीं कि आपकी तरह मेरा शरीर भी उसे झेल सके...
जाकिर भाई ऐसे मामले में यदि हमारी मान्यता दॄढ़ और स्थापित हो चुकी है तो उसके कारण कुछ असहजता हो सकती है पर आप तो खुली और वैज्ञानिक सोच रखते हैं इस लिये आगे बढ़िये और लीजिये एक नया अनुभव... मैं ने तो बचपन में ही तोड़ डाला आहार के इन परहेजों को... और ८१ वर्षीय मेरे पिता भी अब मुझसे इत्तेफाक रखते हैं...यह परहेज और तासीर की धारणायें पुरानी चिकित्सा पद्धतियों में शायद उनकी Limitations के कारण हैं... मरीज आपके इलाज के बावजूद ठीक न हुआ... तो बोल दो, परहेज नहीं किया होगा या उल्टी तासीर वाली चीज खाई होगी... वैसे भी परहेज और तासीर की List इतनी Exhaustive है कि क्या करेगा बेचारा, सिवाय सर हिलाने और अपने रोग का जिम्मेदार अपनी जीभ को मानने के...
आभार!
यहां तो खानपान के फायदे और नुकसान पर घमासान है! भाई ज़ाकिर और भाई प्रवीण हमें तो लगता है की अपने अपने सूचना स्रोत के हिसाब से आप दोनों सही है !
जवाब देंहटाएंहमारे हिसाब से जिस मौसम में जो भी फल या सब्जियां मिले खा लेना चाहिए! उसके बाद यूनान आयुर्वेदिस्तान और इंग्लिशतान के डाक्टर क्या कहते हैं उस पर कान दिया जाये !
जाकिर भाई, आपसे सहमत हूँ.
जवाब देंहटाएंजाकिर भाई, आपसे सहमत हूँ.
जवाब देंहटाएं.
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जाकिर जी,
यदि आपके पास समय से टिप्पणी क्लियर कर पाने का समय नहीं है तो कृपया माडरेशन न ही लगायें, इतनी ज्यादा देर करने से आप आहार संबंधी आदतों पर एक स्वस्थ चर्चा की संभावना को ही खत्म किये दे रहें हैं।