शाकाहार बनाम मांसाहार की बहस बहुत पुरानी है। जहाँ बहुत से लोग स्वाद के लिए मांसाहार को वरीयता देते हैं और घर परिवार वालों के विरोध के बावजू...
शाकाहार बनाम मांसाहार की बहस बहुत पुरानी है। जहाँ बहुत से लोग स्वाद के लिए मांसाहार को वरीयता देते हैं और घर परिवार वालों के विरोध के बावजूद लुक-छिप कर इसका सेवन करते हैं, वहीं ऐसे लोगों की भी कमी नहीं जो जीव हत्या के कारण मांसाहार का नाम लेना भी उचित नहीं समझते हैं। लेकिन अब नीदरलैण्ड के वैज्ञानिकों द्वारा कृत्रिम मांस के निर्माण की दिशा में हासिल की गयी महत्वपूर्ण सफलता ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या जीव हत्या के कारण मांसाहार से दूर रहने वाले लोग इस कृत्रिम मांस की ओर आकर्षित होंगे?
जैसा कि आप विदित ही हैं कि हालैण्ड सरकार और ससेज मैनुफैक्चर के सहयोग से कृत्रिम मांस के निर्माण के लिए चल रहे प्रयोग की सफलता की सूचना पिछले दिनों मीडिया में छाई रही है। इस प्रयोग के दौरान वैज्ञानिकों ने सबसे पहले सुअर की मांसपेशियों से मायोब्लास्ट कोशिकाओं को अलग किया, फिर उन्हें प्रोग्रामिंग द्वारा ऊतक में परिवर्तित कर दिया। उसके बाद इसे जानवर के भ्रूण से बनाए गये न्यूट्राइंट आधारित सॉल्यूशन में डाल दिया। जिसके फलस्वरूप कोशिकाओं की संख्या बढ़ने लगी और मांसपेशियों के ऊतक तैयार होने लगे।
हालाँकि इस कृत्रिम मांस को बाजार तक आने में कम से कम 5 साल का समय लगने की संभावना है, फिरभी इस छोटी सी सफलता से वैज्ञानिक बहुत उत्साहित हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि एक अनुमान के मुताबिक सन 2050 तक दुनिया भर में डेयरी उत्पादों की खपत दोगुनी होनी की संभावना है। यदि इस मांग को दृष्टिगत रखते हुए पशु पालन को बढ़ावा दिया जाए, तो इससे उनकी पाचन क्रिया के दौरान निकलने वाली मीथेन गैस वातावरण में बढ़ जाएगी। ध्यातव्य है कि मीथेन गैस पर्यावरण के लिए कार्बन डाई आक्साइड की तुलना में 23 गुना ज्यादा खतरनाक होती है। आज जबकि दुनिया की ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन वाली कुल गैसों में 18 प्रतिशत के जिम्मेदार ये मवेशी हैं और सारी दुनिया पर इन गैसों के उत्सर्जन पर लगाम लगाने की कवायद की जा रही है, ऐसे में कृत्रिम मांस का उत्पादन एक शुभ संकेत की तरह हमारे सामने आया है।
नीदरलैण्ड के वैज्ञानिकों ने जिस मांस को प्रयोगशाला में उत्पन्न किया है, इसे अभी चखा नहीं गया है। लेकिन वैज्ञानिकों को आशंका है कि इस मांस का स्वाद भिन्न हो सकता है। हालाँकि वैज्ञानिकों का दावा है कि वे इस कृत्रिम मांस को लोकप्रिय बनाने के लिए इसमें न्यूट्रिएंट की संख्या बढ़ा सकते हैं, जिससे सामान्य मांस की तुलना में इसमें अपशिष्ट पदार्थों की संख्या कम हो जाएगी और यह अधिक पौष्टिक हो जाएगा। लेकिन जानवरों के शरीर में पाए जाने वाले विभिन्न तरह के वसा, रक्त वाहिकाएँ, कोलेजन और टेक्सचर इस कृत्रिम मांस में नहीं होंगे, जिससे इसके स्वाद में निश्चित रूप से फर्क पड़ेगा।
ऐसे में वैज्ञानिकों को एक डर यह भी है कि मांस के शौकीन लोगों को पता नहीं इसका नया स्वाद पसंद आएगा अथवा नहीं। इसके अतिरिक्त इस मांस के साथ झटका और हलाल वाला लोचा भी है। जहाँ तक भारत जैसे देश की बात है, तो इतना तो तय है कि यहाँ के परम्परागत रूढिवादी व्यक्ति इसे कतई नहीं स्वीकारेंगे। लेकिन जो लोग सिर्फ जीव हत्या के कारण मांसाहार को उचित नहीं समझते हैं, वे अवश्य ही इसकी ओर आकर्षित हो सकते हैं।
आगे क्या होगा, यह तो आने वाला समय बताएगा, लेकिन इस खबर के आने के बाद से जानवरों के अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठन इस खबर से खासे उत्साहित हैं। आपका इस बारे में क्या सोचना है? समय मिले, तो अपने विचार हम तक अवश्य पहुचाएं।
जैसा कि आप विदित ही हैं कि हालैण्ड सरकार और ससेज मैनुफैक्चर के सहयोग से कृत्रिम मांस के निर्माण के लिए चल रहे प्रयोग की सफलता की सूचना पिछले दिनों मीडिया में छाई रही है। इस प्रयोग के दौरान वैज्ञानिकों ने सबसे पहले सुअर की मांसपेशियों से मायोब्लास्ट कोशिकाओं को अलग किया, फिर उन्हें प्रोग्रामिंग द्वारा ऊतक में परिवर्तित कर दिया। उसके बाद इसे जानवर के भ्रूण से बनाए गये न्यूट्राइंट आधारित सॉल्यूशन में डाल दिया। जिसके फलस्वरूप कोशिकाओं की संख्या बढ़ने लगी और मांसपेशियों के ऊतक तैयार होने लगे।
हालाँकि इस कृत्रिम मांस को बाजार तक आने में कम से कम 5 साल का समय लगने की संभावना है, फिरभी इस छोटी सी सफलता से वैज्ञानिक बहुत उत्साहित हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि एक अनुमान के मुताबिक सन 2050 तक दुनिया भर में डेयरी उत्पादों की खपत दोगुनी होनी की संभावना है। यदि इस मांग को दृष्टिगत रखते हुए पशु पालन को बढ़ावा दिया जाए, तो इससे उनकी पाचन क्रिया के दौरान निकलने वाली मीथेन गैस वातावरण में बढ़ जाएगी। ध्यातव्य है कि मीथेन गैस पर्यावरण के लिए कार्बन डाई आक्साइड की तुलना में 23 गुना ज्यादा खतरनाक होती है। आज जबकि दुनिया की ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन वाली कुल गैसों में 18 प्रतिशत के जिम्मेदार ये मवेशी हैं और सारी दुनिया पर इन गैसों के उत्सर्जन पर लगाम लगाने की कवायद की जा रही है, ऐसे में कृत्रिम मांस का उत्पादन एक शुभ संकेत की तरह हमारे सामने आया है।
नीदरलैण्ड के वैज्ञानिकों ने जिस मांस को प्रयोगशाला में उत्पन्न किया है, इसे अभी चखा नहीं गया है। लेकिन वैज्ञानिकों को आशंका है कि इस मांस का स्वाद भिन्न हो सकता है। हालाँकि वैज्ञानिकों का दावा है कि वे इस कृत्रिम मांस को लोकप्रिय बनाने के लिए इसमें न्यूट्रिएंट की संख्या बढ़ा सकते हैं, जिससे सामान्य मांस की तुलना में इसमें अपशिष्ट पदार्थों की संख्या कम हो जाएगी और यह अधिक पौष्टिक हो जाएगा। लेकिन जानवरों के शरीर में पाए जाने वाले विभिन्न तरह के वसा, रक्त वाहिकाएँ, कोलेजन और टेक्सचर इस कृत्रिम मांस में नहीं होंगे, जिससे इसके स्वाद में निश्चित रूप से फर्क पड़ेगा।
ऐसे में वैज्ञानिकों को एक डर यह भी है कि मांस के शौकीन लोगों को पता नहीं इसका नया स्वाद पसंद आएगा अथवा नहीं। इसके अतिरिक्त इस मांस के साथ झटका और हलाल वाला लोचा भी है। जहाँ तक भारत जैसे देश की बात है, तो इतना तो तय है कि यहाँ के परम्परागत रूढिवादी व्यक्ति इसे कतई नहीं स्वीकारेंगे। लेकिन जो लोग सिर्फ जीव हत्या के कारण मांसाहार को उचित नहीं समझते हैं, वे अवश्य ही इसकी ओर आकर्षित हो सकते हैं।
आगे क्या होगा, यह तो आने वाला समय बताएगा, लेकिन इस खबर के आने के बाद से जानवरों के अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठन इस खबर से खासे उत्साहित हैं। आपका इस बारे में क्या सोचना है? समय मिले, तो अपने विचार हम तक अवश्य पहुचाएं।
Rochak ..... vigyaan ki unnati ke bahut se aayam hain .... jaha iske faayde hain vaheen nuksaan bhi hain ... dehiye aage aage kya hota hai ....
जवाब देंहटाएंजब तक मांग और पूर्ति का सवाल है तबतक तो ठीक है। लेकिन जहां तक मांसाहार नही करने वालों को इस ओर आकर्षित होने की बात है वह मुश्किल ही लगता है।
जवाब देंहटाएंजो अण्डा नही खाते वह देसी या फार्म किसी भी तरह का अण्डा नही खाते हैं।
प्रणाम
जैसा की आपने कहा की, "सुअर की मांसपेशियों से मायोब्लास्ट कोशिकाओं को अलग किया ,फिर उन्हें प्रोग्रामिंग द्वारा ऊतक में परिवर्तित कर दिया उसके बाद ..........."
जवाब देंहटाएंमतलब साफ है की 'हलाल' और 'झटके' से पहले 'हराम' भी मौजूद है इसके बाद 'स्वाद' की कोई निश्चित खबर तक नहीं ! लगता है की शाकाहारियों के साथ साथ मांसाहारियों की बड़ी संख्या भी इसे खाद्य पदार्थ के रूप में स्वीकार करने से हिचकेगी !
वैसे उम्मीद है की यह आहार पश्चिमी देशों में पर्याप्त लोकप्रिय होने वाला है और एफ्रो-एशियाई देशों में एक खास आबादी इसकी मुरीद हो जायेगी अगर कीमतें वाजिब हों तो !
लेकिन ये भी तो हो सकता है की वैज्ञानिक आगामी पांच सालों में और बेहतर विकल्प दे बैठें ?
सार्थक शब्दों के साथ तार्किक ढ़ंग से विषय के हरेक पक्ष पर प्रकाश डाला गया है। आपके विचारों से एकमत हूं।
जवाब देंहटाएंअली साहब, अभी तो सुअर की मांसपेशियों को लेकर ही काम किया गया है। एक बार इस तकनीक पर काम चालू हो जाएगा, ता फिर क्या चिकन क्या मटन सभी कुछ मिलने लगेगा। हाँ, इसमें कीमत वाला फैक्टर तो महत्वपूर्ण रहेगा ही।
जवाब देंहटाएंयह तो आने वाला समय ही बताएगा।
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शानदार रही लखनऊ की ब्लॉगर्स मीट
नारी मुक्ति, अंध विश्वास, धर्म और विज्ञान।
अंतर सोहेल जी की टिप्पणी से सहमत हूं कि भारतीय शाकाहारी तो इसे अपनाने से रहे, चाहे यह जितना पौष्टिक हो। हाँ जो पहले से ही खाते हैं, उन्हें तो अच्छा ही लगेगा।
जवाब देंहटाएंRajnish ji, aapne bhi kahan maans ka naam le liya. Main to anda bhi nahi khata.
जवाब देंहटाएंयह खोज एस मामले मे मह्त्वपूर्ण नही है कि मार्केट पर क्या प्रभाव पडेगा या मांस के शौकीन लोगों को पता नहीं इसका नया स्वाद पसंद आएगा अथवा नहीं । मह्त्वपूर्ण बात यह है कि यह शाकाहार और मांसाहार की पुरानी परिभाषाओ को बदल कर रख देगा । अभी बहुत से सवाल पहले से ही अनुत्तरित है.... जैसे कि क्लोन का प्राक्रतिक स्वरूप मे स्वीकार्यता ,अब क्लोन के मांस को प्राक्रतिक मानेगे या कृतिम । अगर निरपेक्ष रूप से देखा जाय तो शाकाहार और मांसाहार केवल विचारो की उदघोषणा है । हमारा शरीर सबसे पहले खुद का ही भक्षण करता है , जब भी जरूरत होती है शरीर द्वारा संचित मांस का उपयोग हमारा शरीर कर लेता है यह पूरी तरह प्राक्रतिक क्रिया है , बाकी की सारी शाकाहारी और मांसाहारी कहानिया हमारे विचारो की देन है । शाकाहारी और मांसाहारी होना आहार से सम्बन्धित नही है यह केवल सम्वेदनशीलता की व्याख्या है । शाकाहारी शाक के प्रति सम्वेदित नही है ,कोइ भी सब्जी आप उनके सामने काट सकते है ,सब्जी को वे केवल आहार की वस्तु समझेंगे उअसके अन्दर कोइ सम्वेदनशीलता की संभावना नही दिखेगी , और यही प्रतिक्रिया मांसाहारी की छोटे जीवो के प्रति है ।
जवाब देंहटाएंSamay Batayega.
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