जी हाँ, मेरी पिछली पोस्ट " क्या मेरे शरीर में बिजली बन रही है " , पर पाठकों की दिल खोल कर प्रतिक्रियाएँ आई हैं। उन्हें पढ कर पता च...
जी हाँ, मेरी पिछली पोस्ट "क्या मेरे शरीर में बिजली बन रही है", पर पाठकों की दिल खोल कर प्रतिक्रियाएँ आई हैं। उन्हें पढ कर पता चला है कि ज्यादातर लोगों के शरीर में आवेश का निर्माण होता है।
वैसे बचपन में हम लोग अक्सर एक खेल खेला करते थे। खेल के दौरान प्लास्टिक के कंघे को सूखे बालों में रगड कर जब कागज के टुकडों के पास ले जाते थे, वे कंघे से चिपक जाते थे। यह एक सामान्य सी बात है। क्योंकि जब हम प्लास्टिक के कंघे को सूखे बालों से रगडते हैं, तो उनमें आवेश आ जाता है, जो कागज के टुकडों को अपनी ओर खींच लेता है। लेकिन मनुष्यों के शरीर में इस तरह का आवेश कब और कैसे आ जाता है, इस पर फिलहाल कोई एक्सपर्ट राय नहीं है। बकौल समीर लाल जी यह "स्टेटिक इलेक्ट्रिसिटी का मसला मालूम पड़ता है और अक्सर जगह विशेष से संबंधित रहता है।"
शनीचरी पहेली के संचालक ताउ रामपुरिया के अनुसार, "मुझे खुद को रेफ़्रिजरेटर का हैंडल करंट मारता है और करीब २५ या ३० सालों से. दूसरे कार का दरवाजा बंद करते समय बेहतरीन करंट लगता है। शुरु शुरु मे मैने कम्पनी वालों को खूब तपाया कि तुम्हारी कार मे अर्थिंग है. उन्होने काफ़ी खोज बीन के बाद ये फ़ंडा बताया." अल्पना वर्मा जी ने अपनी जानकारी को बांटने के उददेश्य से बताया " एक बार जी टी वी में एक महिला को दिखाया था जो सिर्फ हाथ रख दें तो १००० वाट का हीटर जल जाता था पंखा चल जाता था॥और एक पुरुष जो मिक्सी चला कर दिखा रहे थे।" लेकिन साथ ही उन्होंने खेद भी जताया है "मुझे नहीं लगता आप को ऐसी कोई शक्ति मिलने वाली है॥:)"
वैसे ऐसा प्लास्टिक की कुर्सी पर देर तक बैठने पर भी हो सकता है। और ऐसा कहना है विवेक सिंह एवं अनिल कान्त का। इसीसे मिलता जुलता अनुभव ज्ञानदत्त पाण्डेय जी का भी है। वे बताते हैं कि "रतलाम में मेरा घर बिजली के कार्यालय की बगल में था और शुष्क समय में स्टेटिक इलेक्ट्रिसिटी के झटके की बहुधा समस्या होती थी।" जबकि राज भाटिया जी इसका एक दूसरा सम्भावित कारण बताते हुए कहते हैं "कारण बिलकुल साफ़ है या तो आप के घर मै कलीन बिछा होगा , या फ़िर आप ने ऎसे कपडे पहने होगे जिस मओ पोलियस्ट्र (पलास्टीक) ज्यादा होगा, ओर जब आप उस कलीन पर चलते है या जो कपडे आप ने पहन रखे है वो आपस मै रगड खाते है तो आप के शरीर मै बिजली बन जाती है, ओर जब आप किसी भी चीज को छुने की कोशिश करते है तो एक क्षण के लिये आप को हल्का सा झटका लगता है, एक दिन आप सुती ओर सिर्फ़ सुती कपडे पहन कर देखॊ, ओर उस कलीन पर मत चलो( एक दिन के लिये कलीन के ऊपर कोई चदार बिछा दो फ़िर देखे आप का बिजली घर फ़ेल।" साथ ही उन्होंने एक मजेदार सलाह भी दी है, "वेसे आप एक बिजली की तार नाक मै दुसरी कान मै डाल कर अपने घर की बिजली का खर्च बचा सकते है:)"
वैसे बात जब सलाह देने की हो, तो कोई पीछे नहीं रहता। फिर भला अनिल जी भी कैसे पीछे रहते। वे बोले, "ऊनी या कृत्रिम रेशे (पौलियेस्टर) से बने कपड़े पहनने पर अकसर ऐसा होता है। सिर्फ सूती कपड़े पहनें। पैरों में रबड़ की चप्पल पहनने से इसकी संभावना कम हो जाती है।"
जीशान हैदर जैदी को लगा अपनी विज्ञान कथा का प्रचार का यह अच्छा मौका है। वे फौरन बोल उठे, "जाकिर भाई, मेरी ताज़ी विज्ञान कथा इसी विषय पर आधारित है. http://hindisciencefiction.blogspot.com/"
विनय भाई को लगा कि यह मामला अर्थिंग का है। सो उन्होंने अपना एक्सपर्ट कमेण्ट देते हुए कहा, "आपने नया घर बनवाया है तो अभी नमी बाकी है सो अर्थिंग की प्राबल्म रहती है, मेरे साथ भी हुई है, साल भर रहेगी नहीं तो आप 7-8 हज़ार का जुगाड़ करके अर्थिंग बनवा ही डालो!"
मेरे से मिलता जुलता अनुभव मोहन वशिष्ठ जी का भी है। वे बोले, "जब भी मैं गेट खोलता तो ऐसे ही करंट सा लगता था फिर मैंने अपने गेट के हैंडल पर कागज चिपका दिए और ऊपर से टेप लगा दी फिर कभी करंट नहीं लगा आप भी कागज चिपका लो सभी हैंडलस पर।"
नरेश सिंह राठौड तो मजाक के मूड में नजर आए। उन्होंने बहुत ही अपनेपन से कहा, "इस तरह कि बातों को बताया नही करते । अगर कही किसी विधुत विभाग वाले ने सुन लिया तो आपसे शुल्क वसूल करना शुरू कर देंगे । यह पहला रोग है जिसके बढ़ने मे फायदा नजर आ रहा है ।"
मोहन लेले जी ने थोडा वैज्ञानिक दृष्टिकोण दिखाते हुए कहा, "शरीर मे जो उर्जा बनती है, उसमे विद्युत उर्जा का निर्माण भी होता है। डिसेक्शन के समय मेंढक के शरिरसे निर्माण होनेवाली उर्जा वोल्ट्मीटर के सहाय्यतासे गीनी भी जा सकती है. कुछ मछलियोंके आखोसे निर्माण होनेवाले विद्युत उर्जासे पानीमे बिजली जैसी चमक निर्माण होती है. अगर ईस चीजसे आपको परेशानी हो रही है तो खानेमे क्षार यानेकी साल्ट, खट्टी चीजे कम करे,एवं हमेशा हाथमे चांदीमे गुंफ़ी रुद्राक्ष माला पहने.आप अगर योग साधना करे तो तेज निर्माणसे आपको बहोत लाभ हो सकता है."
प्रकाश गोविन्द भाई को लगा कि ये ब्लॉगर आदमी ठहरा। जरूरी हर समय कम्प्यूटर पर पिला रहता होगा। सो उन्होंने सलाह दे डाली, "मैं कई सालों से यह करेंट झेल रहा हूँ ! इधर समय की कमी की वजह से मैं कंप्यूटर पर बहुत कम काम कर पाता हूँ तो करेंट लगने की शिकायत अपने आप ख़तम हो गयी है ! आप भी कुछ दिन कंप्यूटर से दूर रहकर देखिये !"
आप सबकी प्रतिक्रियाएँ देखकर गदगद हूं। आप लोगों ने जो सुझाव दिये हैं, उनके लिए हार्दिक आभार। लेकिन संयोग की बात यह है कि आप लोगों ने जो भी कारण बताए हैं, मेरी स्थिति उनसे सर्वथा भिन्न है। न तो मेरे घर में अर्थिंग की समस्या है, न कपडों से जुडी कोई समस्या है, और मेरे घर में कोई कालीन है ही नहीं, फिर उसको लेकर कोई प्राब्लम होने से रही। कपडे भी मैं अधिकतर सूती ही पहनता हूं, इसलिए उनकी वजह से शरीर में आवेश के निर्माण का प्रश्न ही नहीं उठता।
हाँ, इधर कुछ दिनों से मैंने यह महसूस किया है कि करेन्ट की समस्या अधिकतर खाना खाने के बाद होती है। हालाँकि मोहन लेले जी ने कहा कि खाने में एसिटिक चीजों का प्रयोग कम करें, पर मजेदार बात यह है कि मैं एसेटिक चीजों का सेवन ही नहीं करता हूं। यहाँ तक कि नींबू का भी प्रयोग नहीं करता।
लेकिन इस सबके बावजूद मेरे शरीर में लगातार आवेश का निर्माण क्यों हो रहा है, यह चिन्ता का विषय बनता जा रहा है। इस पोस्ट को यहाँ पर पब्लिश करने का मेरा उददेश्य है इसकी तह तक पहुंचना और लोगों को इसके प्रति जागरूक करना। अगर आपको इससे सम्बंधित कोई जानकारी मिले, तो कृपया उसे हमारे साथ अवश्य साझा करें।
वैसे बचपन में हम लोग अक्सर एक खेल खेला करते थे। खेल के दौरान प्लास्टिक के कंघे को सूखे बालों में रगड कर जब कागज के टुकडों के पास ले जाते थे, वे कंघे से चिपक जाते थे। यह एक सामान्य सी बात है। क्योंकि जब हम प्लास्टिक के कंघे को सूखे बालों से रगडते हैं, तो उनमें आवेश आ जाता है, जो कागज के टुकडों को अपनी ओर खींच लेता है। लेकिन मनुष्यों के शरीर में इस तरह का आवेश कब और कैसे आ जाता है, इस पर फिलहाल कोई एक्सपर्ट राय नहीं है। बकौल समीर लाल जी यह "स्टेटिक इलेक्ट्रिसिटी का मसला मालूम पड़ता है और अक्सर जगह विशेष से संबंधित रहता है।"
शनीचरी पहेली के संचालक ताउ रामपुरिया के अनुसार, "मुझे खुद को रेफ़्रिजरेटर का हैंडल करंट मारता है और करीब २५ या ३० सालों से. दूसरे कार का दरवाजा बंद करते समय बेहतरीन करंट लगता है। शुरु शुरु मे मैने कम्पनी वालों को खूब तपाया कि तुम्हारी कार मे अर्थिंग है. उन्होने काफ़ी खोज बीन के बाद ये फ़ंडा बताया." अल्पना वर्मा जी ने अपनी जानकारी को बांटने के उददेश्य से बताया " एक बार जी टी वी में एक महिला को दिखाया था जो सिर्फ हाथ रख दें तो १००० वाट का हीटर जल जाता था पंखा चल जाता था॥और एक पुरुष जो मिक्सी चला कर दिखा रहे थे।" लेकिन साथ ही उन्होंने खेद भी जताया है "मुझे नहीं लगता आप को ऐसी कोई शक्ति मिलने वाली है॥:)"
वैसे ऐसा प्लास्टिक की कुर्सी पर देर तक बैठने पर भी हो सकता है। और ऐसा कहना है विवेक सिंह एवं अनिल कान्त का। इसीसे मिलता जुलता अनुभव ज्ञानदत्त पाण्डेय जी का भी है। वे बताते हैं कि "रतलाम में मेरा घर बिजली के कार्यालय की बगल में था और शुष्क समय में स्टेटिक इलेक्ट्रिसिटी के झटके की बहुधा समस्या होती थी।" जबकि राज भाटिया जी इसका एक दूसरा सम्भावित कारण बताते हुए कहते हैं "कारण बिलकुल साफ़ है या तो आप के घर मै कलीन बिछा होगा , या फ़िर आप ने ऎसे कपडे पहने होगे जिस मओ पोलियस्ट्र (पलास्टीक) ज्यादा होगा, ओर जब आप उस कलीन पर चलते है या जो कपडे आप ने पहन रखे है वो आपस मै रगड खाते है तो आप के शरीर मै बिजली बन जाती है, ओर जब आप किसी भी चीज को छुने की कोशिश करते है तो एक क्षण के लिये आप को हल्का सा झटका लगता है, एक दिन आप सुती ओर सिर्फ़ सुती कपडे पहन कर देखॊ, ओर उस कलीन पर मत चलो( एक दिन के लिये कलीन के ऊपर कोई चदार बिछा दो फ़िर देखे आप का बिजली घर फ़ेल।" साथ ही उन्होंने एक मजेदार सलाह भी दी है, "वेसे आप एक बिजली की तार नाक मै दुसरी कान मै डाल कर अपने घर की बिजली का खर्च बचा सकते है:)"
वैसे बात जब सलाह देने की हो, तो कोई पीछे नहीं रहता। फिर भला अनिल जी भी कैसे पीछे रहते। वे बोले, "ऊनी या कृत्रिम रेशे (पौलियेस्टर) से बने कपड़े पहनने पर अकसर ऐसा होता है। सिर्फ सूती कपड़े पहनें। पैरों में रबड़ की चप्पल पहनने से इसकी संभावना कम हो जाती है।"
जीशान हैदर जैदी को लगा अपनी विज्ञान कथा का प्रचार का यह अच्छा मौका है। वे फौरन बोल उठे, "जाकिर भाई, मेरी ताज़ी विज्ञान कथा इसी विषय पर आधारित है. http://hindisciencefiction.blogspot.com/"
विनय भाई को लगा कि यह मामला अर्थिंग का है। सो उन्होंने अपना एक्सपर्ट कमेण्ट देते हुए कहा, "आपने नया घर बनवाया है तो अभी नमी बाकी है सो अर्थिंग की प्राबल्म रहती है, मेरे साथ भी हुई है, साल भर रहेगी नहीं तो आप 7-8 हज़ार का जुगाड़ करके अर्थिंग बनवा ही डालो!"
मेरे से मिलता जुलता अनुभव मोहन वशिष्ठ जी का भी है। वे बोले, "जब भी मैं गेट खोलता तो ऐसे ही करंट सा लगता था फिर मैंने अपने गेट के हैंडल पर कागज चिपका दिए और ऊपर से टेप लगा दी फिर कभी करंट नहीं लगा आप भी कागज चिपका लो सभी हैंडलस पर।"
नरेश सिंह राठौड तो मजाक के मूड में नजर आए। उन्होंने बहुत ही अपनेपन से कहा, "इस तरह कि बातों को बताया नही करते । अगर कही किसी विधुत विभाग वाले ने सुन लिया तो आपसे शुल्क वसूल करना शुरू कर देंगे । यह पहला रोग है जिसके बढ़ने मे फायदा नजर आ रहा है ।"
मोहन लेले जी ने थोडा वैज्ञानिक दृष्टिकोण दिखाते हुए कहा, "शरीर मे जो उर्जा बनती है, उसमे विद्युत उर्जा का निर्माण भी होता है। डिसेक्शन के समय मेंढक के शरिरसे निर्माण होनेवाली उर्जा वोल्ट्मीटर के सहाय्यतासे गीनी भी जा सकती है. कुछ मछलियोंके आखोसे निर्माण होनेवाले विद्युत उर्जासे पानीमे बिजली जैसी चमक निर्माण होती है. अगर ईस चीजसे आपको परेशानी हो रही है तो खानेमे क्षार यानेकी साल्ट, खट्टी चीजे कम करे,एवं हमेशा हाथमे चांदीमे गुंफ़ी रुद्राक्ष माला पहने.आप अगर योग साधना करे तो तेज निर्माणसे आपको बहोत लाभ हो सकता है."
प्रकाश गोविन्द भाई को लगा कि ये ब्लॉगर आदमी ठहरा। जरूरी हर समय कम्प्यूटर पर पिला रहता होगा। सो उन्होंने सलाह दे डाली, "मैं कई सालों से यह करेंट झेल रहा हूँ ! इधर समय की कमी की वजह से मैं कंप्यूटर पर बहुत कम काम कर पाता हूँ तो करेंट लगने की शिकायत अपने आप ख़तम हो गयी है ! आप भी कुछ दिन कंप्यूटर से दूर रहकर देखिये !"
आप सबकी प्रतिक्रियाएँ देखकर गदगद हूं। आप लोगों ने जो सुझाव दिये हैं, उनके लिए हार्दिक आभार। लेकिन संयोग की बात यह है कि आप लोगों ने जो भी कारण बताए हैं, मेरी स्थिति उनसे सर्वथा भिन्न है। न तो मेरे घर में अर्थिंग की समस्या है, न कपडों से जुडी कोई समस्या है, और मेरे घर में कोई कालीन है ही नहीं, फिर उसको लेकर कोई प्राब्लम होने से रही। कपडे भी मैं अधिकतर सूती ही पहनता हूं, इसलिए उनकी वजह से शरीर में आवेश के निर्माण का प्रश्न ही नहीं उठता।
हाँ, इधर कुछ दिनों से मैंने यह महसूस किया है कि करेन्ट की समस्या अधिकतर खाना खाने के बाद होती है। हालाँकि मोहन लेले जी ने कहा कि खाने में एसिटिक चीजों का प्रयोग कम करें, पर मजेदार बात यह है कि मैं एसेटिक चीजों का सेवन ही नहीं करता हूं। यहाँ तक कि नींबू का भी प्रयोग नहीं करता।
लेकिन इस सबके बावजूद मेरे शरीर में लगातार आवेश का निर्माण क्यों हो रहा है, यह चिन्ता का विषय बनता जा रहा है। इस पोस्ट को यहाँ पर पब्लिश करने का मेरा उददेश्य है इसकी तह तक पहुंचना और लोगों को इसके प्रति जागरूक करना। अगर आपको इससे सम्बंधित कोई जानकारी मिले, तो कृपया उसे हमारे साथ अवश्य साझा करें।
Please tell us about your meeting with Her Execellency Smt. Pratibha Singh Patil, in Delhi.
जवाब देंहटाएंshamim uddin
बहुत खूब.. इस बिजली वाले मामले में गहन शोध हो गया यह तो.. आभार
जवाब देंहटाएंअब यह विषय गंभीर होता जा रहा है । आपको भी यह समस्या आन पड़ी । शरीर में इस तरह का बदलाव चिंता का विषय है ।
जवाब देंहटाएंमुझे पूर विश्वास है कि गूगल में खोजने पर आपको अपनी समस्या का हल मिल जाएगा। कुछ साल पहले मेरी बेटी की एक सहेली को भी अचानक इस समस्या ने आ घेरा था। उसे छूने से भी करेंट लगता था। फ़िर अपने आप ऐस होना बन्द भी हो गया।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
मुझे पूर विश्वास है कि गूगल में खोजने पर आपको अपनी समस्या का हल मिल जाएगा। कुछ साल पहले मेरी बेटी की एक सहेली को भी अचानक इस समस्या ने आ घेरा था। उसे छूने से भी करेंट लगता था। फ़िर अपने आप ऐस होना बन्द भी हो गया।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
इसमें कोई शक नहीं की मामला गंभीर है.....वजह चाहे जो भी हो , अब इस बारे मे इतना कुछ आस पास सुना नहीं और तजुर्बा भी नहीं तो आप की कोई भी मदद ना कर पाने की वजह से अपने को बडा ही असहाय महसूस कर रही हूँ.....उम्मीद है कोई कोई न रास्ता जरुर होगा . यही दुआ है की आपकी ये समस्या जितनी जल्दी हो दूर हो जाये......"
जवाब देंहटाएंRegards
मैं भी दुआ करता हूँ कि इस समस्या से जल्द उबरें.
जवाब देंहटाएंसमस्या तो गंभीर लग रही है. हमारे पास कोई जानकारी भी नहीं है. दोस्तों से सलाह करते हैं.
जवाब देंहटाएंपिछली पोस्ट पढने से रह गयी थी ... सचमुच मामला गंभीर है ... दुआ करूंगी कि इस समस्या से जल्द राहत मिले ... वैसे जानना चाहूंगी कि यह कितने दिनों से हो रहा है।
जवाब देंहटाएंदुआ तो हम भी करेंगे !!
जवाब देंहटाएंपर
किसी में आज के जमाने में आवेश तो बन रहा है वर्ना तो हम आवेशी न होने का ही उपदेश देते रहते हैं !!
चलिए इसी वार्ता के क्रम में हल निकल आएगा .
जवाब देंहटाएंअच्छी खासी बात चीत हो गयी ..इस विषय पर ..पढ़ा कई जगह मैंने भी है इस विषय पर ..जल्दी ही यह समस्या ठीक हो यही कहेंगे
जवाब देंहटाएंआपकी इस समस्या से मैं भी दो-चार हुआ हूँ.. ऐसा अक्सर गर्मियों में ही होता है.. जहाँ तक मैं जनता हूँ तो हवा में शामिल धुल के कण और तमाम तरह की गैस से हमारे शरीर के पसीने आदि से मिल के हमारे शरीर में एक पल के लिए बिजली पैदा होती है जो किसी लोहे की चीज को छूने या फिर किसी इंसान को छूने से शाक मारती है...
जवाब देंहटाएंमीत
अब क्या किया जाए सोचना होगा सोचो इस समस्या का हल कैसे निकले आप भी सोचो और हम सभी भी सोचें भगवान करे ये समस्या जल्द से जल्द समाप्त हो जाए और हमें इसका हल भी पता चल जाए ताकि फिर किसी और को ये प्राब्लम हो तो उसका भी भला हो जाए
जवाब देंहटाएंआप वैज्ञानिक लेखों से हम लोगों का ज्ञान वर्धन करते आ रहे हैं. अपनी इस समस्या का हल भी विज्ञान आधारित और चिकित्सकीय सलाहों से ज्ञात कर हमें भी अवगत करायें.
जवाब देंहटाएंतस्लीम का भी विद्युतीय आकर्षण हो गया है ! आप निश्चिंत रहे यह कोई असामान्य बात नहीं है ! और न ही आप फ्रैंकेंस्तीन बननें वाले हैं -अपने ब्लॉग मित्रों का नाहक ही डरा रहे हैं !
जवाब देंहटाएंमैं कल दस बजे आता हूँ, कल डाक्टार के पास चलते हैं, मेरी नहीं मानी मगर इतने लोगों की तो माने लेवें!
जवाब देंहटाएं@SANGITA JI, mujhe ye samasya lagbhag 3maah se hai, par notismaine 1 maah se hi liya hai.
जवाब देंहटाएं@ARVIND JI,main kisi ko daraa nahee rahaa hoon. Ab samasya hai to kyakaroon. Aaphi koi raah dikhaayen. Aaj to gajab hi ho gayaa,din menkhaanaa khaane ke baad maine anaayaas apni patni ko chhuwa, to bhi mujhe jhatka lagaa. Meri kuchh samajh men nahi aa rahaa haiki kyaa karoon.
लगता है कि इस विषय में तो किसी गहरे शोध की आवश्यकता है......खैर शायद इस प्रकार की वार्ता क्रम में कोई समाधान निकल आए..
जवाब देंहटाएंउम्मीद है विद्वतजनों के मंथन से कोई राह अवश्य निकलेगी।
जवाब देंहटाएंapne own experience ke adhar par ye bata raha hoon...//koi scientific reason nahi hai//main jis office main kaam karta hoon waha bhi yada kada mujhe current lagta hai...//aur doobara haath lagao to nahi//ye samasya office main hi hai ghar main nahi//aur ye current ashahniya nahi hota//tolerable hota hai//to main to old cooment ki baat se sehmat hote hue kehna chahoonga ki hamara sharer condenser ki tarah hota hai//moreover kuch log is current ki prati kuch zayada hi prone hote hain aur kuch immune...//hamar office main bhi sabko ye current nahi lagta..// ye mera niji vishleshan hai...
जवाब देंहटाएंMujhe bhi 4-5 Din se current lagne ki samsya h. Pani ki Tonti, lohe ka gate ya kisi ki body se hath touch hota h to sparking ke Sath current lagta h. Dr. Ise normal samsya bata rahe h.mujhe ab har cheej chhune se dar lagne laga h. Main Kya Kar?
जवाब देंहटाएंSir me bi bhut paesn hu,google me ilaj khoj rha tha,apka post mila yani meri smsya kyo me h,ganv me dukan chlata hu costmer duriya bna ne lge h
जवाब देंहटाएंIska samadhan ye h ki jab bhi current lage to ye jarur dekhe ki current lagne se just pahle kya kiya tha. Yani kis par bethe the? kya khaya tha? etc. Har baar current lagne me kya common h. Bas isko ignore kar de.Mera manana h ki kuch samadhan ho jayega.
जवाब देंहटाएंसर यही समल्या मेरी भी है
जवाब देंहटाएंसर यही समस्या मेरी है
जवाब देंहटाएंमेरे साथ भी कुछ समय से ऐसा हो रहा है।अब तो मै लोगो को भी करंट मारने लगा हूं।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं