भूत क्या होते हैं, कैसे जन्म लेते हैं, कहां रहते हैं, जानिए पूरी सच्चाई।
भूत-प्रेत और विज्ञान
-सय्यद मुहम्मद फैज़ान अली
अगर आप भूतों पर विश्वास करते हैं तो आप अकेले नहीं हैं। दुनिया भर की संस्कृतियाँ उन आत्माओं में विश्वास करती हैं जो किसी कारण मृत्यु के बाद परलोक में जाने के बजाए इसी धरती पर भटकती रहती हैं। वास्तव में भूत सबसे व्यापक रूप से विश्वास की जाने वाली अपसामान्य घटनाएँ हैं। अपसामान्य घटनाएँ हैं क्या होती हैं, इसकी चर्चा हम आगे करेगें, बहरहाल लाखों लोग भूतों में रुचि रखते हैं। हज़ारों लोग हर दिन इंटरनेट की फिल्मों, किताबों, लेखों द्वारा भूत की कहानियाँ पढ़ते और फिल्में द्वारा देखते हैं। कई लोग भूतों के विषय में अपने निजी अनुभव लेखों के माध्यम से लोगों को बताते हैं।
अगर आप विश्वास करतें हैं कि भूत होते हैं, तो यकीन मानिए ऐसा करने वाले आप इकलौते नही हैं। विश्व भर की आबादी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भूतों में विश्वास करता है विश्व में भर में करीब 7.8 अरब लोगों की आबादी है जिसमें अधिकतर लोग भूत-प्रेत आत्माओं में विश्वास करते हैं।
अमेरिका में हुए एक सर्वेक्षण के अनुसार वहाँ के 46 प्रतिशत लोग भूत-प्रेत जैसी चीजों में विश्वास करते हैं। वहीं अपने देश भारत में तो आबादी का एक बहुत बड़ा हिस्सा भूत-प्रेत जादू टोना जैसी अपसामान्य घटनाओं में विश्वास करता है। भूतों-प्रेत आत्माओं के अस्तित्व की यह एक ऐसी मान्यता है जो किसी एक देश या धर्म तक सीमित नहीं है बल्कि यह हर जगह प्रचलित है। सभी जगहों में भूत-प्रेत की मान्यताएँ और कहानियाँ मौजूद हैं। यहां तक कि इन विषयों पर बॉलीवुड समेत दुनियाभर के सभी फिल्म जगत में कई फिल्में बन चुकीं हैं। इंटरनेट पर तो भूतों की लोककथाएँ, फिल्में इस बारे में लोगों के विचार जैसे बाढ़ के पानी तरह फैले हुए हैं।
यहाँ तक कि यूरोप, अमेरिका, इंग्लैंड जैसे आधुनिक देशों में भूत-प्रेतों से संबंधित हेलोवीन नाम का उत्सव मनाया जाता है।
इन सब से पता चलता है आत्मा, भूत-प्रेत में विश्वास अभी से बल्कि पीढ़ियों से विश्व के लोगों के दिमाग में गहराई से जुड़ा हुआ है और यह आधुनिक तकनीक और वैज्ञानिक विकास के युग में अभी भी बना हुआ है। इस आधुनिक समय में आज हम हर घटना को विज्ञान के माध्यम से समझ सकते हैं लेकिन विज्ञान भूत-प्रेत के बारे में क्या कहता है? क्या विज्ञान भूतों के अस्तित्व को स्वीकार करता है? इस लेख का मूल प्रश्न यही है क्या वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भूत-प्रेतों का अस्तित्व है या नही?
क्या आप जानतें हैं अमेरिका के वाइट हाउस को भी प्रेत बाधा से ग्रस्त माना जाता है। कई लोगों का विश्वास के अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन अपनी हत्या के बाद भूत रूप में वहां आतें हैं लोगों का दावा है कि उन्होंने राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन की काली परछाई को घूमते देखा है। हालांकि अमरीकी सरकार इस तरह के दावों को खारिज करती है।
अन्य देशों की भांति यहाँ भारत में भी बहुत सी ऐसी इमारतें जीर्ण इमारतें, शाही मकान, किले, घर, जंगल, शमशान, कब्रिस्तान, मंदिर, दरगाहें, पुराने पेड़ आदि हैं जिन पर भूत-प्रेत का साया माना जाता है। विश्व के लगभग हर धर्म में भूत-प्रेतों के अस्तित्व की कहानियाँ और उनको भगाने के तरीके प्रचलित हैं। प्रत्येक धर्म में भूतों को विभिन्न नामों से जाना जाता है। अलग-अलग देशों में अलग-अलग तरह से भूत-प्रेत के बारे में कथा कहानियाँ प्रचलित हैं अलग-अलग तरह से उनके प्रकारों को बताया गया है जैसे हिन्दू धर्म में उन्हें भूत, प्रेत, राक्षस, पिशाच, यम, शाकिनी, डाकिनी, चुड़ैल, पिछलपेरी आदि कहा जाता है । लेकिन समान्यता सब इनको भूत ही कहते हैं।
क्या आप जानतें हैं अमेरिका के वाइट हाउस को भी प्रेत बाधा से ग्रस्त माना जाता है। कई लोगों का विश्वास के अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन अपनी हत्या के बाद भूत रूप में वहां आतें हैं लोगों का दावा है कि उन्होंने राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन की काली परछाई को घूमते देखा है। हालांकि अमरीकी सरकार इस तरह के दावों को खारिज करती है।
अन्य देशों की भांति यहाँ भारत में भी बहुत सी ऐसी इमारतें जीर्ण इमारतें, शाही मकान, किले, घर, जंगल, शमशान, कब्रिस्तान, मंदिर, दरगाहें, पुराने पेड़ आदि हैं जिन पर भूत-प्रेत का साया माना जाता है। विश्व के लगभग हर धर्म में भूत-प्रेतों के अस्तित्व की कहानियाँ और उनको भगाने के तरीके प्रचलित हैं। प्रत्येक धर्म में भूतों को विभिन्न नामों से जाना जाता है। अलग-अलग देशों में अलग-अलग तरह से भूत-प्रेत के बारे में कथा कहानियाँ प्रचलित हैं अलग-अलग तरह से उनके प्रकारों को बताया गया है जैसे हिन्दू धर्म में उन्हें भूत, प्रेत, राक्षस, पिशाच, यम, शाकिनी, डाकिनी, चुड़ैल, पिछलपेरी आदि कहा जाता है । लेकिन समान्यता सब इनको भूत ही कहते हैं।
भूत प्रेत कैसे पैदा होते हैं?
आप सब जानते हैं कि समय के तीन भाग होते हैं- भूत काल, वर्तमान काल, और भविष्य काल। भूत का अर्थ होता है जो बीत गया हो जिसका कोई वर्तमान न हो केवल अतीत ही हो। वही भूत कहलाता है। माना जाता है कि मृत्यु के बाद प्राणी की आत्मा अगर किसी कारण से दूसरे विश्व में प्रवेश न कर अतीत में अटक जाती है, तो वह भूत बन जाती है। इसका न कोई वर्तमान होता है न भविष्य, केवल अतीत होता है। इस प्रकार जो प्राणी मर गया हो और उसकी आत्मा मुक्त न हई हो, धरती पर ही हो, उस भटकती आत्मा को ही लोग भूत कहते हैं। इन बातों पर विश्वास करने वाले लोगों के अनुसार भूत कई कारणों से बनते हैं। जैसे कि अगर किसी व्यक्ति का जीवनकाल 100 वर्ष था, लेकिन अकारण उसकी मृत्यु 20 वर्ष में हो गई। तो उस व्यक्ति की आत्मा बाकी 80 वर्ष भूत प्रेत के रूप में इस धरती पर बिताती है। इन विश्वासों के अनुसार प्राय: हत्या में मारे गये व्यक्तियों की आत्मा भी भूत बन जाती है, जो अपने हत्यारे को पकड़वाने उनसे बदला लेने वापस आती है। लोग यह भी मानते हैं कि यदि किसी व्यक्ति का अंतिम संस्कार उसके धार्मिक कर्मकांड के अनुसार नहीं होता है तो वह भी भूत-प्रेत बन जाते हैं। ऐसा भी माना जाता है कि जिस किसी की मृत्यु से पहले की कोई इच्छा पूर्ण नहीं हो पाती और वह पुनर्जन्म के लिये स्वर्ग या नरक नहीं जा पाते हैं, वह भूत बन जाते हैं।लोगों का मानना है भूत हमारी तरह ठोस नहीं होते बल्कि अदृश्य होते हैं जबकि कुछ विशेष पशु जैसे कुत्ते भूतों को देख सुन सकते हैं। लोगों का कहना है भूतों के पास अलौकिक शक्तियाँ होती हैं जैसे वह हवा में उड़ सकते हैं । किसी भी वस्तु को हवा में उठा सकते हैं किसी ठोस चीज़ के आर पार आ जा सकते हैं दूसरे जीवित लोगों के शरीर पर का कब्ज़ा कर सकतें हैं अपने अनुसार उनसे काम भी करवा सकते हैं। कुछ लोग दावा करते हैं कि उन्होंने भूतों द्वारा की गई अपसामान्य घटनाओं सहित भूतों को देखा है। अमेरिका के एक सर्वेक्षण में पाया गया 28 प्रतिशत लोग मानते हैं उन्होंने भूत देखा है। जबकि ताइवान में 90 प्रतिशत लोगों का मानना है कि उन्होंने भूत देखा है। भारत में लगभग हर तीसरा चौथा व्यक्ति कहीं न कहीं मानता है उसने भूत देखा है बल्कि लोग यह भी मानते हैं कि कुछ लोगों पर भूत-प्रेत आत्माओं या देवी देवताओं का साया है जो विशेष परिस्थितियों में उन पर सवार होता है।
इसी तरह अपसामान्य घटनाओं का अध्ययन परामनोविज्ञान के क्षेत्र में आता है। वास्तव में परामनोविज्ञान मनोविज्ञान की ही एक शाखा है जो विज्ञान और मनोविज्ञान के सिद्धान्तों के माध्यम से इस तरह की अपसामान्य घटनाओं को समझता है। इसी विषय के आधार पर इंग्लैंड लंदन में 1882 में 'द सोसाइटी फॉर साइकिकल रिसर्च' की स्थापना हुई जो कि संगठित विद्वानों के द्वारा अपसामान्य घटनाओं के अध्ययन का प्रथम प्रयास था। हालांकि आज भी वैज्ञानिक परामनोविज्ञान को छद्म विज्ञान का विषय मानते हैं।
हमारे देश भारत में भी इस प्रकार की एक संस्था पैरानॉर्मल सोसाइटी ऑफ इंडिया है जिसकी स्थापना एक जाने माने पैरानार्मल एक्सपर्ट गौरव तिवारी ने की थी। पैरानॉर्मल एक्सपर्ट गौरव तिवारी ने भारत के अपसामान्य घटनाओं से ग्रस्त स्थानों की जांच की और उनके पीछे छुपे विज्ञान से लोगों को रूबरू कराया। पर किन्हीं अज्ञात कारणोंवश गौरव तिवारी ने आत्महत्या करली। उनका शव उनके फ्लैट के बाथरुम में पाया गया। उनकी मौत को भी कई लोग पैरानॉर्मल एक्टिविटी से जोड़ते हैं।
बहुत से लोगों का दावा है न केवल उन्होंने इन अपसामान्य घटनाओं बल्कि इन घटनाओं को अंजाम देने वाले भूत को भी देखा है। साथ ही बहुत से लोग यह भी मानते हैं कि उनका कोई करीबी पर भूत पिशाच देवी जिन्न वैगेरह का साया है जो उन पर सवार होती हैं। इस प्रकार के कई मामले भारत में धार्मिक स्थलों पर सामने आते हैं जैसे भारत के कई प्राचीन मंदिर और सूफी संतों के मज़ार हैं जहाँ भूत-प्रेत बाधा से ग्रस्त लोगों पर यह अलौकिक शक्ति सवार होती है जहाँ मंदिर के इष्ट देव या साहीबे मज़ार अर्थात जिन सूफी की कब्र होती वह परलोकिक विश्व में से ही अपनी दृष्टि से इन ग्रस्त लोगों का उपचार करतें हैं। इस प्रकार के कई विश्वासों के साथ बहुत से पंडितों, तांत्रिकों, अघोरीयों, साधुओं और अन्य प्रकार के आमिल बाबाओं का यह भी दावा है कि न केवल वो भूत पिशाच देवी देवता से संपर्क कर सकते हैं बल्कि किसी व्यक्ति के ऊपर से उनका साया हटा भी सकते हैं। आज भी इस प्रकार के बाबा विश्व भर में हैं। भारत में तो इनकी संख्या काफी अधिक है। एक सर्वेक्षण में पाया गया है के भारत के हर दस परीवारों में से एक परिवार का कोई न कोई सदस्य विभिन्न कामों के लिए इन बाबाओं के संपर्क में आता है। इन बाबाओं का दावा होता है वह भूत उतारने की प्रक्रिया से लोगों पर से भूतों का साया उतार सकते हैं जिसको Exorcism Process कहतें हैं। अलग-अलग धर्म और समुदाय के लोग अलग-अलग तरह से इस प्रक्रिया को अंजाम देते हैं।
लेकिन विज्ञान इन सब अपसामान्य घटनाओं भूत-प्रेत के बारे में क्या कहता है? क्या विज्ञान भूतों के अस्तित्व को स्वीकार करता है? इस लेख का मूल प्रश्न तो यही है क्या वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भूत प्रेतों का अस्तित्व है? क्या इस प्रकार की भूतों द्वरा की गई अपसामान्य घटनाओं को विज्ञान के माध्यम से समझाया जा सकता है? अब हम भूतों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखते हैं।
विज्ञान के दृष्टिकोण से भूत-प्रेतों का अस्तित्व है या नहीं, इसका सीधा उत्तर है विज्ञान भूत-प्रेतों के भौतिक अस्तित्व को स्वीकार नहीं करता। विज्ञान के अनुसार तो आत्मा या भूत धर्म और लोककथाओं में ही वास्तविक हैं। लेकिन फिर उन लोगों के दावों का क्या जिन्होंने भूत देखा या उनको महसूस किया है या उन लोगों और स्थानों का क्या जो भूत प्रेत बाधा से ग्रस्त हैं? विज्ञान ऐसे लोगों के दावों को भी नहीं नकारता और उनके दावों को विज्ञान के सिद्धांतों की कसौटी पर कसने की कोशिश करता है जिसके लिए पैरानॉर्मल एक्सपर्ट कई तरीकों से भूत प्रेत से ग्रस्त स्थानों और लोगों की जाँच करते हैं।
पैरानॉर्मल एक्टिविटी या अपसामान्य घटनाएँ क्या होती हैं?
अपसामान्य घटनाएँ या पैरानॉर्मल एक्टिविटी जिनका वैज्ञानिक दृष्टिकोण से स्पष्टीकरण दिया जाना कुछ कठिन प्रतीत होता है जैसे बिना किसी माध्यम के कुछ घटनाएँ होती हैं। जैसे दरवाजों खिड़कियों का अपने आप बंद होना या खुलना जबकि हवा भी न चल रही हो। किसी चीज़ का अपने आप हवा में उड़ना, भयानक डरावनी आकृतियों का दिखाई देना, अजीब-अजीब आवाज़े सुनाई देना। सड़क पर या व्यक्ति को किसी विशेष स्थान पर काली सफेद परछाइयों का घूमते दिखाई देना। किसी व्यक्ति को भावी घटनाओं का पूर्वाभास होना, टेलीपैथी द्वरा बात, मृत लोगों की आत्माओं से बात आदि घटनाएँ जो सामान्य विज्ञान के दायरे से परे हैं उनको अपसामान्य घटना या पैरानॉर्मल एक्टिविटी कहते हैं ।इसी तरह अपसामान्य घटनाओं का अध्ययन परामनोविज्ञान के क्षेत्र में आता है। वास्तव में परामनोविज्ञान मनोविज्ञान की ही एक शाखा है जो विज्ञान और मनोविज्ञान के सिद्धान्तों के माध्यम से इस तरह की अपसामान्य घटनाओं को समझता है। इसी विषय के आधार पर इंग्लैंड लंदन में 1882 में 'द सोसाइटी फॉर साइकिकल रिसर्च' की स्थापना हुई जो कि संगठित विद्वानों के द्वारा अपसामान्य घटनाओं के अध्ययन का प्रथम प्रयास था। हालांकि आज भी वैज्ञानिक परामनोविज्ञान को छद्म विज्ञान का विषय मानते हैं।
हमारे देश भारत में भी इस प्रकार की एक संस्था पैरानॉर्मल सोसाइटी ऑफ इंडिया है जिसकी स्थापना एक जाने माने पैरानार्मल एक्सपर्ट गौरव तिवारी ने की थी। पैरानॉर्मल एक्सपर्ट गौरव तिवारी ने भारत के अपसामान्य घटनाओं से ग्रस्त स्थानों की जांच की और उनके पीछे छुपे विज्ञान से लोगों को रूबरू कराया। पर किन्हीं अज्ञात कारणोंवश गौरव तिवारी ने आत्महत्या करली। उनका शव उनके फ्लैट के बाथरुम में पाया गया। उनकी मौत को भी कई लोग पैरानॉर्मल एक्टिविटी से जोड़ते हैं।
बहुत से लोगों का दावा है न केवल उन्होंने इन अपसामान्य घटनाओं बल्कि इन घटनाओं को अंजाम देने वाले भूत को भी देखा है। साथ ही बहुत से लोग यह भी मानते हैं कि उनका कोई करीबी पर भूत पिशाच देवी जिन्न वैगेरह का साया है जो उन पर सवार होती हैं। इस प्रकार के कई मामले भारत में धार्मिक स्थलों पर सामने आते हैं जैसे भारत के कई प्राचीन मंदिर और सूफी संतों के मज़ार हैं जहाँ भूत-प्रेत बाधा से ग्रस्त लोगों पर यह अलौकिक शक्ति सवार होती है जहाँ मंदिर के इष्ट देव या साहीबे मज़ार अर्थात जिन सूफी की कब्र होती वह परलोकिक विश्व में से ही अपनी दृष्टि से इन ग्रस्त लोगों का उपचार करतें हैं। इस प्रकार के कई विश्वासों के साथ बहुत से पंडितों, तांत्रिकों, अघोरीयों, साधुओं और अन्य प्रकार के आमिल बाबाओं का यह भी दावा है कि न केवल वो भूत पिशाच देवी देवता से संपर्क कर सकते हैं बल्कि किसी व्यक्ति के ऊपर से उनका साया हटा भी सकते हैं। आज भी इस प्रकार के बाबा विश्व भर में हैं। भारत में तो इनकी संख्या काफी अधिक है। एक सर्वेक्षण में पाया गया है के भारत के हर दस परीवारों में से एक परिवार का कोई न कोई सदस्य विभिन्न कामों के लिए इन बाबाओं के संपर्क में आता है। इन बाबाओं का दावा होता है वह भूत उतारने की प्रक्रिया से लोगों पर से भूतों का साया उतार सकते हैं जिसको Exorcism Process कहतें हैं। अलग-अलग धर्म और समुदाय के लोग अलग-अलग तरह से इस प्रक्रिया को अंजाम देते हैं।
लेकिन विज्ञान इन सब अपसामान्य घटनाओं भूत-प्रेत के बारे में क्या कहता है? क्या विज्ञान भूतों के अस्तित्व को स्वीकार करता है? इस लेख का मूल प्रश्न तो यही है क्या वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भूत प्रेतों का अस्तित्व है? क्या इस प्रकार की भूतों द्वरा की गई अपसामान्य घटनाओं को विज्ञान के माध्यम से समझाया जा सकता है? अब हम भूतों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखते हैं।
विज्ञान के दृष्टिकोण से भूत-प्रेतों का अस्तित्व है या नहीं, इसका सीधा उत्तर है विज्ञान भूत-प्रेतों के भौतिक अस्तित्व को स्वीकार नहीं करता। विज्ञान के अनुसार तो आत्मा या भूत धर्म और लोककथाओं में ही वास्तविक हैं। लेकिन फिर उन लोगों के दावों का क्या जिन्होंने भूत देखा या उनको महसूस किया है या उन लोगों और स्थानों का क्या जो भूत प्रेत बाधा से ग्रस्त हैं? विज्ञान ऐसे लोगों के दावों को भी नहीं नकारता और उनके दावों को विज्ञान के सिद्धांतों की कसौटी पर कसने की कोशिश करता है जिसके लिए पैरानॉर्मल एक्सपर्ट कई तरीकों से भूत प्रेत से ग्रस्त स्थानों और लोगों की जाँच करते हैं।
विज्ञान की कसौटी पर वह भूत-प्रेत आत्माओं को ऊर्जा मानते हैं विज्ञान में उष्मागतिकी का पहला नियम है ऊर्जा न तो उत्पन्न की जा सकती है न ही नष्ट। ऊर्जा का केवल एक रूप से दूसरे रूप में हस्तांतरण ही संभव है। जहाँ ऊर्जा होगी वहाँ ऊष्मा से तापमान भी होगा। इस प्रकार हम अंदाज़ा लगा सकते हैं कि जब हम मर जाते हैं तो हमारी ऊर्जा नष्ट नहीं होती, बल्कि विभिन्न रूपों में पर्यावरण में मिल जाती है। इसी बात को ध्यान में रख कर पैरानॉर्मल एक्सपर्ट भूत-प्रेत को एक नकारात्मक ऊर्जा मानते हैं। लोगों के यह भी दावा है जहाँ भूतों की उपस्थिति होती है वहाँ आश्चर्यजनक रूप से आस पास की अपेक्षा ठंडक होती है। अगर लोगों की इस बात को वैज्ञानिक दृष्टिकोण में रखे तो यह सम्भव नहीं क्योंकि जहाँ ऊर्जा होगी वहाँ कुछ तापमान तो अवश्य होगा। भूतों को पकड़ने या मारने वाले यानी घोस्ट हंटर्स अलग-अलग तरीके अपनाते हैं ताकि भूतों, आत्माओं की मौजूदगी का पता कर सके। इनमें से अधिकतर तरीके वैज्ञानिक होते हैं।
भूतों को देखने और उनकी मौजूदगी जांचने के लिए अत्याधुनिक मशीनों का सहारा लिया जाता है। पैरानॉर्मल एक्सपर्ट भूतों के अस्तित्व को देखने के लिए कई वैज्ञानिक उपकरणों का सहारा लेते हैं। जिससे भूत-प्रेत से ग्रस्त स्थानों में ऊर्जा के मामूली परिवर्तन को भी मापा जा सके। पैरानॉर्मल एक्सपर्ट या घोस्ट हंटर नाईट विज़न कैमरा, ऑडियो रेकॉर्डिंग, ऊर्जा मापने के यंत्र और इस जैसे अन्य साधनों का प्रयोग करते हैं। साथ ही वह भूतों को बुलाने के धार्मिक तरीकों का प्रयोग करते हैं लेकिन फिर भी भूत पिशाच का वैज्ञानिक अस्तित्व अभी तक सिद्ध नहीं हुआ है।
वर्तमान में वैज्ञानिकों का मानना है कि फिलहाल ऐसी कोई तकनीक ही नहीं जिससे किसी भी प्रकार की आत्मा चाहे वह भूत-प्रेत रूप में हो या अच्छे रूप में इनकी मौजूदगी या उनके आकार, व्यवहार का पता किया जा सके। भूत-प्रेत आत्मा के अस्तित्व या उनके किसी स्थान पर होना के समर्थन में वर्तमान में कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है और वैज्ञानिक परामनोविज्ञान के विषय को को छद्म विज्ञान मानते हैं। विज्ञान की भारी सहमति यह है कि भूतों के अस्तित्व का कोई प्रमाण नहीं है।
बहरहाल विज्ञान तो सीधे शब्दों में तो यही कहता है कि भूत प्रेत का कोई भौतिक अस्तित्व नहीं है लेकिन जिन लोगों पर भूत-प्रेत जिन्न देवी की सवारी अति है या लोगों को कुछ स्थानों पर भूत-प्रेत का एहसास होता है? या किसी कारणवश लोगों को अचानक भूत दिखाई देने लगता है? या कुछ पशु जैसे कुत्ता भूतों को देख सकते हैं? या कुछ बाबा लोग अपने कर्मकांडों से भूतों से संपर्क कर सकतें हैं? और साथ ही उन वीडियो और तस्वीरों के दावों का क्या जिसमें भूतों की फोटो या वीडियो ली गई होती है? इन सब बातों में कितनी सच्चाई है क्या यह बातें सिद्ध नहीं करतीं के भूत होते हैं? उत्तर है बिल्कुल नहीं। दरअसल विज्ञान इन सभी पैरानॉर्मल एक्टिविटी के पीछे छिपी हुए वैज्ञानिक तथ्यों को उजागर करता है यह तथ्य हमें बताते हैं कि इन सभी घटनाओं के पीछे कुछ विशेष वैज्ञानिक कारण हैं जिसको हम समझ सकते हैं।
सबसे पहले तो हम इस बात पर वैज्ञानिक विचार करते हैं लोगों को भूत का एहसास क्यों होता है? और क्यों लोगों को भूत दिखाई देता है? इसका वैज्ञानिक दृष्टिकोण से उत्तर यह है भूत वास्तव में हमारे मस्तिष्क की उपज होते हैं। आइये इस बात को एक विशेष स्थिति में वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखते हैं। इस स्थिति में पशुओं जैसे कुत्ते को भूत-प्रेत दिखई या सुनाई देते हैं, इसको भी शामिल कर लेते हैं।
लोगों को भूतों का एहसास इसलिए होता है क्योंकि भूतों के अस्तित्व का विचार सदियों से पीढ़ियों से विश्व के लोगों के दिमाग में गहराई से रचा बसा हुआ है। हम मनुष्यों की कल्पना उड़ान ऐसी है कि उसका मस्तिष्क उन चीज़ों की कल्पना भी बड़ी ही आसानी से कर लेता है जिनकी कोई वास्तविकता भी नही होती। भूत-प्रेत भी इस कल्पना का एक भाग है। जब भूतों में विश्वास करने वाला व्यक्ति किसी सुनसान जगह से या किसी श्मशान घाट या कब्रिस्तान या ऐसी ही किसी भूत-प्रेत से संबंधित स्थान से गुज़र रहा होता है तो भूत-प्रेत के डरावने अस्तित्व की कल्पना को उसके या आपके मस्तिष्क में आना स्वभाविक है। ऐसे स्थानों पर लोग हवा चलने या पेड़ों की सरसराहट से ही डर जातें हैं। बार-बार ऐसा लगता है कि कोई पीछे हो इस प्रकार की अनेकों कल्पनाएँ हावी होती हैं।
दरअसल व्यक्ति का मन मस्तिष्क ही यह भूत-प्रेत के डर का एक अजीब खेल खेल रहा होता है। वास्तव में वहां कोई भूत- प्रेत नहीं होता केवल मस्तिष्क का डर होता है जो उस समय उस चीज़ की कल्पना करता है जिसकी डरावनी वास्तविकता को उस समय कोई नहीं चाहता। क्योंकि उस समय मनुष्य की चेतना भूतों के प्रति जाग्रत हुई होती है उसका मष्तिष्क डर को बाहर ज्ञानइंद्रियों द्वारा यह अहसास करवाता है की भूत है। यही नहीं कुछ लोगों के मस्तिष्क भूतों की इतनी सशक्त कल्पना करते हैं इस प्रकार की परिस्थितियों में उनको दृष्टिभ्रम भी होता है इसी दृष्टिभ्रम में वह पारंपरिक किताबों इंटरनेट की तस्वीरों और फिल्मों में दिखाए भूत को देख लेते हैं और दावा करते हैं कि हमने वास्तव में भूत या प्रेत आत्मा को देखा है।
ऐसा तब होता है जब व्यक्ति के आंखों की रेटीनल रॉड कोशिकाएँ कम रोशनी में सक्रिय हो जाएं। इसके सक्रिय होने से हमारी आँखों को हल्का मुड़ा हुआ सा दिखाई देता है। वैज्ञानिकों के अनुसार आंख की पुतली को बेहद कोने में पहुंचाकर अगर हम और आप आखिरी छोर से कोई मूवमेंट देखें तो वह बहुत साफ नहीं दिखता है सिर्फ काला और सफेद ही दिखता है। इससे निष्कर्ष निकलता है कि रॉड कोशिकाएँ रंग नहीं देख पा रही हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार हो सकता है ऐसी कुछ विशेष परिस्थितियों में हमारा मस्तिष्क सूचना के अभाव को भरने की कोशिश करता हो। चूंकि हमारा मस्तिष्क इन्द्रियों के माध्यम से सूचना का आदान-प्रदान करता है। मस्तिष्क उस सूचना को किसी तार्किक जानकारी में बदलने की कोशिश करता है। जैसे हमने कुछ विचित्र देखा है इस विचित्रता को हमारा मस्तिष्क ऐसी सूचना में बदलने की कोशिश करता जिसे वह समझ सके ऐसे में तर्क के आधार पर हमें लगता है कि शायद कोई भूत है।
भले ही ऐसा कुछ पलों के लिए होता हो लेकिन इसके बाद व्यक्ति के भीतर हलचल शुरू हो जाती है सांस तेज़ चलने लगती है धड़कन तेज़ हो जाती है, शरीर बेहद चौकन्ना हो जाता है कुछ लोगों को बहुत अधिक डर लगता है और कुछ को बहुत कम वैज्ञानिकों के अनुसार जिस तरह हर व्यक्ति में भावनाओं का स्तर अलग-अलग पाया जाता है। बिल्कुल वैसा ही डर के मामले में भी होता है हर किसी का डर का स्तर अलग-अलग होता लेकिन डर कैसे उत्पन्न होता है?
भूत या परिस्थितियोंवश डरावने माहौल या किसी भी प्रकार के डर के माहौल में कुछ लोगों के मस्तिष्क में डोपामाइन नामक रसायन का रिसाव होने लगता है। डोपामाइन मस्तिष्क में एक ऐसा रसायन है जो व्यक्ति की भावनाओं, गतिविधियों, खुशी और दर्द की उत्तेजनाओं को प्रभावित करता है। जब मस्तिष्क में बड़ी संख्या में डोपामाइन रसायन रिलीज़ होता है तो कई सकारात्मक भावनाएँ जैसे प्रेरणा, यादें, खुशी और सुकून आदि मन में पैदा होती हैं वहीं जब कम संख्या में यह रसायन रिलीज़ होता है तो लोगों में निराशा डर जैसी भावनाएँ देखने को मिलते हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार भूतिया परिस्थितियों और डरावने माहौल में कुछ लोगों के मस्तिष्क में डोपामाइन का रिसाव कम अधिक मात्रा में होता है। इसके चलते उन्हें इस माहौल में मज़ा आने लगता है या डर लगता है। वैज्ञानिकों के अनुसार व्यक्ति के अनुभव विशेषकर बचपन के खराब अनुभवों का भी डर से सीधा संबंध है। व्यक्ति के अतीत में हुई कुछ गड़बड़ी व्यक्ति को मानसिक रोगी बना देती है जिसके चलते व्यक्ति को ऐसे कई मनोरोग हो सकते हैं, जो व्यक्ति के मस्तिष्क को भ्रमित कर भूत-प्रेत जैसी कल्पना को उत्पन्न कर सकते हैं।
आप यहाँ यह प्रश्न कर सकते हैं कि उस समय भूतों का विचार ही क्यों आता है? इसका उत्तर है क्योंकि भूतों के अस्तित्व का विचार सदियों से पीढ़ियों से विश्व के लोगों के दिमाग में गहराई से रचा बसा हुआ है। अक्सर भूतिया कहानियों में या डरावनी फिल्में में पुरानी जर्जर गैर आबाद इमारत या कब्रिस्तान शमशान जैसे स्थानों को भूतिया स्थान के रूप में पेश किया जाता है। डरावनी फिल्में देखने वाले लोगों के मन में इन स्थानों के प्रति भूत-प्रेत संबंधित डरावनी यादें बस जाती हैं और जब भी कोई असाधारण वाकया होता है तो यह स्मृतियां कूदने लगती हैं। इस दौरान हमारे मस्तिष्क के रसायन डर पैदा कर मस्तिष्क यह चेतावनी देते हैं कि इस जगह खतरा है कोई भूत-प्रेत है। वैज्ञानिकों ने शोध में यह भी पाया है ऐसा दृष्टिभ्रम विद्युतचुम्बकीय विकिरण का रूप इन्फ्रासाउंड भी उत्पन्न कर सकता है। यह साउंड आम-तौर पर खराब मौसम और मेकेनिकल समानों के खराब होने से उत्पन्न होता है, जिसकी frequency 18.98 hz होती है। जबकि हम जो आवाज़े सुन सकते हैं उसकी सबसे कम frequency 20 hz और अधिकतम 20 kHz होती है। अर्थात हम 20 hz से 20 kHz की बीच की आवाज़े सुन सकते हैं। वहीं इन्फ्रासाउंड की frequency 20 hz से कम होती है जो हमारे सुनने के दायरे से बाहर होती है। इन्फ्रासाउंड हमारे कानों तक तो नही पहुँच पाती लेकिन यह हमारे आँखों से ज़रूर प्रतिक्रिया करती है। वैज्ञानिक हमारी आँखों से इन्फ्रासाउंड की प्रतिक्रिया को रेसोनेंस कहते हैं। पाया गया है यह प्रतिक्रिया भी दृष्टिभ्रम उत्पन्न कर सकती है, जिससे हमें भूत होने और देखने का अहसास होता है।
नींद में भूतों का दिखाई देना
कुछ लोगों का दावा होता है उन्होंने सोते हुए भूत को महसूस किया या उनको देखा है। यह स्थिति वैज्ञानिक रूप से स्लीप पैरालिसिस की होती है। इस रोग के स्लीप पैरालिसिस नाम से ही स्पष्ट है यह रोग सोते समय का है इस रोग में मनुष्य जब सो रहा होता है या यह कहें के आधी अधूरी नींद में होता है तब यह रोग मनुष्य पर हावी होता है। इस रोग की अवस्था में व्यक्ति सोते समय कुछ देर के लिए लकवा ग्रस्त हो जाता है। लेकिन यह लकवा आम लकवा नही होता, इस में शरीर भारी लगने लगता है व्यक्ति सुन तो सकता है पर कुछ बोल नही पता कुछ कर नही पाटा। ऐसा लगता है कि उसके शरीर पर कोई भूत-प्रेत बैठा है जो उसको जकड़े है। कुछ लोगों को इस प्रकार कि अर्ध-जाग्रत अवस्था में लकवे के साथ भयंकर दृश्य भी दिखाई देते हैं और यह दृश्य सपने के रूप में होते हैं। शुरू-शुरू में लोग इसको समझ नहीं पाते थे और इसको भूत-प्रेत बाधा से जोड़ पैरानॉर्मल एक्टिविटी समझते थे। दरअसल यह कोई पैरानॉर्मल एक्टिविटी नहीं बल्कि एक नार्मल घटना है।
दरअसल यह भी हमारे मस्तिष्क का ही अजीब खेल है। सोते समय जब व्यक्ति का मस्तिष्क चेतन और अचेतन अवस्था के बीच होता तब ऐसा होने की संभावना होती है। एक सर्वेक्षण में पाया गया है लगभग 10 प्रतिशत लोगों ने स्लीप पैरालिसिस अनुभव किया है। मैंने भी निजी तौर पर स्लीप पैरालिसिस अनुभव किया है । वैज्ञानिकों के आधार पर ऐसा चेतन और अचेतन मन के बीच की अवस्था की चेतना क्या है?
भूतों को देखने और उनकी मौजूदगी जांचने के लिए अत्याधुनिक मशीनों का सहारा लिया जाता है। पैरानॉर्मल एक्सपर्ट भूतों के अस्तित्व को देखने के लिए कई वैज्ञानिक उपकरणों का सहारा लेते हैं। जिससे भूत-प्रेत से ग्रस्त स्थानों में ऊर्जा के मामूली परिवर्तन को भी मापा जा सके। पैरानॉर्मल एक्सपर्ट या घोस्ट हंटर नाईट विज़न कैमरा, ऑडियो रेकॉर्डिंग, ऊर्जा मापने के यंत्र और इस जैसे अन्य साधनों का प्रयोग करते हैं। साथ ही वह भूतों को बुलाने के धार्मिक तरीकों का प्रयोग करते हैं लेकिन फिर भी भूत पिशाच का वैज्ञानिक अस्तित्व अभी तक सिद्ध नहीं हुआ है।
वर्तमान में वैज्ञानिकों का मानना है कि फिलहाल ऐसी कोई तकनीक ही नहीं जिससे किसी भी प्रकार की आत्मा चाहे वह भूत-प्रेत रूप में हो या अच्छे रूप में इनकी मौजूदगी या उनके आकार, व्यवहार का पता किया जा सके। भूत-प्रेत आत्मा के अस्तित्व या उनके किसी स्थान पर होना के समर्थन में वर्तमान में कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है और वैज्ञानिक परामनोविज्ञान के विषय को को छद्म विज्ञान मानते हैं। विज्ञान की भारी सहमति यह है कि भूतों के अस्तित्व का कोई प्रमाण नहीं है।
बहरहाल विज्ञान तो सीधे शब्दों में तो यही कहता है कि भूत प्रेत का कोई भौतिक अस्तित्व नहीं है लेकिन जिन लोगों पर भूत-प्रेत जिन्न देवी की सवारी अति है या लोगों को कुछ स्थानों पर भूत-प्रेत का एहसास होता है? या किसी कारणवश लोगों को अचानक भूत दिखाई देने लगता है? या कुछ पशु जैसे कुत्ता भूतों को देख सकते हैं? या कुछ बाबा लोग अपने कर्मकांडों से भूतों से संपर्क कर सकतें हैं? और साथ ही उन वीडियो और तस्वीरों के दावों का क्या जिसमें भूतों की फोटो या वीडियो ली गई होती है? इन सब बातों में कितनी सच्चाई है क्या यह बातें सिद्ध नहीं करतीं के भूत होते हैं? उत्तर है बिल्कुल नहीं। दरअसल विज्ञान इन सभी पैरानॉर्मल एक्टिविटी के पीछे छिपी हुए वैज्ञानिक तथ्यों को उजागर करता है यह तथ्य हमें बताते हैं कि इन सभी घटनाओं के पीछे कुछ विशेष वैज्ञानिक कारण हैं जिसको हम समझ सकते हैं।
सबसे पहले तो हम इस बात पर वैज्ञानिक विचार करते हैं लोगों को भूत का एहसास क्यों होता है? और क्यों लोगों को भूत दिखाई देता है? इसका वैज्ञानिक दृष्टिकोण से उत्तर यह है भूत वास्तव में हमारे मस्तिष्क की उपज होते हैं। आइये इस बात को एक विशेष स्थिति में वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखते हैं। इस स्थिति में पशुओं जैसे कुत्ते को भूत-प्रेत दिखई या सुनाई देते हैं, इसको भी शामिल कर लेते हैं।
लोगों को भूतों का एहसास इसलिए होता है क्योंकि भूतों के अस्तित्व का विचार सदियों से पीढ़ियों से विश्व के लोगों के दिमाग में गहराई से रचा बसा हुआ है। हम मनुष्यों की कल्पना उड़ान ऐसी है कि उसका मस्तिष्क उन चीज़ों की कल्पना भी बड़ी ही आसानी से कर लेता है जिनकी कोई वास्तविकता भी नही होती। भूत-प्रेत भी इस कल्पना का एक भाग है। जब भूतों में विश्वास करने वाला व्यक्ति किसी सुनसान जगह से या किसी श्मशान घाट या कब्रिस्तान या ऐसी ही किसी भूत-प्रेत से संबंधित स्थान से गुज़र रहा होता है तो भूत-प्रेत के डरावने अस्तित्व की कल्पना को उसके या आपके मस्तिष्क में आना स्वभाविक है। ऐसे स्थानों पर लोग हवा चलने या पेड़ों की सरसराहट से ही डर जातें हैं। बार-बार ऐसा लगता है कि कोई पीछे हो इस प्रकार की अनेकों कल्पनाएँ हावी होती हैं।
दरअसल व्यक्ति का मन मस्तिष्क ही यह भूत-प्रेत के डर का एक अजीब खेल खेल रहा होता है। वास्तव में वहां कोई भूत- प्रेत नहीं होता केवल मस्तिष्क का डर होता है जो उस समय उस चीज़ की कल्पना करता है जिसकी डरावनी वास्तविकता को उस समय कोई नहीं चाहता। क्योंकि उस समय मनुष्य की चेतना भूतों के प्रति जाग्रत हुई होती है उसका मष्तिष्क डर को बाहर ज्ञानइंद्रियों द्वारा यह अहसास करवाता है की भूत है। यही नहीं कुछ लोगों के मस्तिष्क भूतों की इतनी सशक्त कल्पना करते हैं इस प्रकार की परिस्थितियों में उनको दृष्टिभ्रम भी होता है इसी दृष्टिभ्रम में वह पारंपरिक किताबों इंटरनेट की तस्वीरों और फिल्मों में दिखाए भूत को देख लेते हैं और दावा करते हैं कि हमने वास्तव में भूत या प्रेत आत्मा को देखा है।
ऐसा तब होता है जब व्यक्ति के आंखों की रेटीनल रॉड कोशिकाएँ कम रोशनी में सक्रिय हो जाएं। इसके सक्रिय होने से हमारी आँखों को हल्का मुड़ा हुआ सा दिखाई देता है। वैज्ञानिकों के अनुसार आंख की पुतली को बेहद कोने में पहुंचाकर अगर हम और आप आखिरी छोर से कोई मूवमेंट देखें तो वह बहुत साफ नहीं दिखता है सिर्फ काला और सफेद ही दिखता है। इससे निष्कर्ष निकलता है कि रॉड कोशिकाएँ रंग नहीं देख पा रही हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार हो सकता है ऐसी कुछ विशेष परिस्थितियों में हमारा मस्तिष्क सूचना के अभाव को भरने की कोशिश करता हो। चूंकि हमारा मस्तिष्क इन्द्रियों के माध्यम से सूचना का आदान-प्रदान करता है। मस्तिष्क उस सूचना को किसी तार्किक जानकारी में बदलने की कोशिश करता है। जैसे हमने कुछ विचित्र देखा है इस विचित्रता को हमारा मस्तिष्क ऐसी सूचना में बदलने की कोशिश करता जिसे वह समझ सके ऐसे में तर्क के आधार पर हमें लगता है कि शायद कोई भूत है।
भले ही ऐसा कुछ पलों के लिए होता हो लेकिन इसके बाद व्यक्ति के भीतर हलचल शुरू हो जाती है सांस तेज़ चलने लगती है धड़कन तेज़ हो जाती है, शरीर बेहद चौकन्ना हो जाता है कुछ लोगों को बहुत अधिक डर लगता है और कुछ को बहुत कम वैज्ञानिकों के अनुसार जिस तरह हर व्यक्ति में भावनाओं का स्तर अलग-अलग पाया जाता है। बिल्कुल वैसा ही डर के मामले में भी होता है हर किसी का डर का स्तर अलग-अलग होता लेकिन डर कैसे उत्पन्न होता है?
भूत या परिस्थितियोंवश डरावने माहौल या किसी भी प्रकार के डर के माहौल में कुछ लोगों के मस्तिष्क में डोपामाइन नामक रसायन का रिसाव होने लगता है। डोपामाइन मस्तिष्क में एक ऐसा रसायन है जो व्यक्ति की भावनाओं, गतिविधियों, खुशी और दर्द की उत्तेजनाओं को प्रभावित करता है। जब मस्तिष्क में बड़ी संख्या में डोपामाइन रसायन रिलीज़ होता है तो कई सकारात्मक भावनाएँ जैसे प्रेरणा, यादें, खुशी और सुकून आदि मन में पैदा होती हैं वहीं जब कम संख्या में यह रसायन रिलीज़ होता है तो लोगों में निराशा डर जैसी भावनाएँ देखने को मिलते हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार भूतिया परिस्थितियों और डरावने माहौल में कुछ लोगों के मस्तिष्क में डोपामाइन का रिसाव कम अधिक मात्रा में होता है। इसके चलते उन्हें इस माहौल में मज़ा आने लगता है या डर लगता है। वैज्ञानिकों के अनुसार व्यक्ति के अनुभव विशेषकर बचपन के खराब अनुभवों का भी डर से सीधा संबंध है। व्यक्ति के अतीत में हुई कुछ गड़बड़ी व्यक्ति को मानसिक रोगी बना देती है जिसके चलते व्यक्ति को ऐसे कई मनोरोग हो सकते हैं, जो व्यक्ति के मस्तिष्क को भ्रमित कर भूत-प्रेत जैसी कल्पना को उत्पन्न कर सकते हैं।
आप यहाँ यह प्रश्न कर सकते हैं कि उस समय भूतों का विचार ही क्यों आता है? इसका उत्तर है क्योंकि भूतों के अस्तित्व का विचार सदियों से पीढ़ियों से विश्व के लोगों के दिमाग में गहराई से रचा बसा हुआ है। अक्सर भूतिया कहानियों में या डरावनी फिल्में में पुरानी जर्जर गैर आबाद इमारत या कब्रिस्तान शमशान जैसे स्थानों को भूतिया स्थान के रूप में पेश किया जाता है। डरावनी फिल्में देखने वाले लोगों के मन में इन स्थानों के प्रति भूत-प्रेत संबंधित डरावनी यादें बस जाती हैं और जब भी कोई असाधारण वाकया होता है तो यह स्मृतियां कूदने लगती हैं। इस दौरान हमारे मस्तिष्क के रसायन डर पैदा कर मस्तिष्क यह चेतावनी देते हैं कि इस जगह खतरा है कोई भूत-प्रेत है। वैज्ञानिकों ने शोध में यह भी पाया है ऐसा दृष्टिभ्रम विद्युतचुम्बकीय विकिरण का रूप इन्फ्रासाउंड भी उत्पन्न कर सकता है। यह साउंड आम-तौर पर खराब मौसम और मेकेनिकल समानों के खराब होने से उत्पन्न होता है, जिसकी frequency 18.98 hz होती है। जबकि हम जो आवाज़े सुन सकते हैं उसकी सबसे कम frequency 20 hz और अधिकतम 20 kHz होती है। अर्थात हम 20 hz से 20 kHz की बीच की आवाज़े सुन सकते हैं। वहीं इन्फ्रासाउंड की frequency 20 hz से कम होती है जो हमारे सुनने के दायरे से बाहर होती है। इन्फ्रासाउंड हमारे कानों तक तो नही पहुँच पाती लेकिन यह हमारे आँखों से ज़रूर प्रतिक्रिया करती है। वैज्ञानिक हमारी आँखों से इन्फ्रासाउंड की प्रतिक्रिया को रेसोनेंस कहते हैं। पाया गया है यह प्रतिक्रिया भी दृष्टिभ्रम उत्पन्न कर सकती है, जिससे हमें भूत होने और देखने का अहसास होता है।
कुत्तों को भूत-प्रेत दिखाई देतें हैं या नहीं?
यही नियम कुत्ते पर भी लागू होता है। अक्सर कुत्ते रात के समय उन चीज़ों पर भौंकते हैं जो हमें दिखाई नहीं देतीं। केवल यही नहीं और भी बहुत से पशु ऐसा करते हैं। प्राचीन समय में लोग पशुओं के इस अजीब व्यवहार को नहीं समझ सकते थे, जिस कारण वह मानते थे कि पशु अदृश्य आत्माओं को देख भौंकते हैं। लेकिन पशुओं के व्यहवार का अध्ययन करने वालों, पशु मनोवैज्ञानिकों के शोध हमें बताते हैं कुत्ते में ऊँची ध्वनि तरंगों को सुनने की क्षमता होती है। अक्सर रात में बाज़ारों में चहल-पहल नहीं होती। इस समय कुत्तों की सुनने की क्षमता बढ़ जाती है, जिससे वह दूर तक की आवाज़े सुन सकते हैं। इसी वजह से वह खाली में भौंकते हैं। वैज्ञानिकों ने पशुओं में यह भी पाया है बहुत सी ऊर्जा तरंगें ऐसी होती हैं, जिनकी उच्च frequency पशुओं के लिए हानिकारक होती है जिसके सुनने से उनको तकलीफ होती है। उनके व्यवहार में परिवर्तन का यह भी एक कारण होता है, जिससे वह डरने और भौंकने लगते हैं। और इस वजह से लोग यह कहने लगते हैं की वे भूत प्रेत को देख कर भौंक रहे हैं।नींद में भूतों का दिखाई देना
कुछ लोगों का दावा होता है उन्होंने सोते हुए भूत को महसूस किया या उनको देखा है। यह स्थिति वैज्ञानिक रूप से स्लीप पैरालिसिस की होती है। इस रोग के स्लीप पैरालिसिस नाम से ही स्पष्ट है यह रोग सोते समय का है इस रोग में मनुष्य जब सो रहा होता है या यह कहें के आधी अधूरी नींद में होता है तब यह रोग मनुष्य पर हावी होता है। इस रोग की अवस्था में व्यक्ति सोते समय कुछ देर के लिए लकवा ग्रस्त हो जाता है। लेकिन यह लकवा आम लकवा नही होता, इस में शरीर भारी लगने लगता है व्यक्ति सुन तो सकता है पर कुछ बोल नही पता कुछ कर नही पाटा। ऐसा लगता है कि उसके शरीर पर कोई भूत-प्रेत बैठा है जो उसको जकड़े है। कुछ लोगों को इस प्रकार कि अर्ध-जाग्रत अवस्था में लकवे के साथ भयंकर दृश्य भी दिखाई देते हैं और यह दृश्य सपने के रूप में होते हैं। शुरू-शुरू में लोग इसको समझ नहीं पाते थे और इसको भूत-प्रेत बाधा से जोड़ पैरानॉर्मल एक्टिविटी समझते थे। दरअसल यह कोई पैरानॉर्मल एक्टिविटी नहीं बल्कि एक नार्मल घटना है।
दरअसल यह भी हमारे मस्तिष्क का ही अजीब खेल है। सोते समय जब व्यक्ति का मस्तिष्क चेतन और अचेतन अवस्था के बीच होता तब ऐसा होने की संभावना होती है। एक सर्वेक्षण में पाया गया है लगभग 10 प्रतिशत लोगों ने स्लीप पैरालिसिस अनुभव किया है। मैंने भी निजी तौर पर स्लीप पैरालिसिस अनुभव किया है । वैज्ञानिकों के आधार पर ऐसा चेतन और अचेतन मन के बीच की अवस्था की चेतना क्या है?
चेतना बहुत जटिल चीज़ है। उसको परिभाषित नही किया जस सकता, केवल समझा जा सकता है। आमतौर पर लोग जाग्रत और निद्रा अवस्था में भेद करते हैं। जाग्रत अवस्था में व्यक्ति क्रियाशील मस्तिष्क के नियंत्रण में जो कुछ करता है वह उसकी चेतना का ही फल है, जबकि निद्रा अवस्था में मस्तिष्क क्रियाशील तो होता है पर वैसे काम नहीं करता जैसे जाग्रत अवस्था में करता है। निद्रा अवस्था में हमारी ज्ञानइन्द्रियाँ बाहर से कोई सूचना प्राप्त नहीं करतीं, सूचना के अभाव में मस्तिष्क की क्रियाशीलता हल्की पड़ जाती हैं। जब कभी व्यक्ति जाग्रत अवस्था और निद्रा अवस्था के बीच यानी चेतन और अचेतन मस्तिष्क के बीच होता है, तब ऐसा हो सकता है।
मस्तिष्क चेतन और अचेतन के बीच की अवस्था में क्यों फंस जाता है? वैज्ञानिक बताते हैं कि ऐसा व्यक्ति के भीतर तनाव कारण के हो सकता है। व्यक्ति जब तनावग्रस्त होता है तो पूरी तरह सो नहीं पाता। आधी अधूरी नींद में वह स्लीप पैरालिसिस अवस्था में पहुँच जाता है। वैज्ञानिकों ने यह भी पाया है यह रोग केवल तनाव से नहीं बल्कि विटामिन की कमी और अन्य शारीरिक रोग और मनोरोग ने की वजह से भी हो सकता है।
मस्तिष्क चेतन और अचेतन के बीच की अवस्था में क्यों फंस जाता है? वैज्ञानिक बताते हैं कि ऐसा व्यक्ति के भीतर तनाव कारण के हो सकता है। व्यक्ति जब तनावग्रस्त होता है तो पूरी तरह सो नहीं पाता। आधी अधूरी नींद में वह स्लीप पैरालिसिस अवस्था में पहुँच जाता है। वैज्ञानिकों ने यह भी पाया है यह रोग केवल तनाव से नहीं बल्कि विटामिन की कमी और अन्य शारीरिक रोग और मनोरोग ने की वजह से भी हो सकता है।
भूत-प्रेत से संपर्क और कमरे में कैद भूतों की सच्चाई
अब उन अघोरी और अन्य बाबाओं की बात करते हैं जो दावा करते हैं कि वह भूत-प्रेत से संपर्क कर सकते हैं। संक्षेप में इसका उत्तर है इस प्रकार के सभी बाबा फर्ज़ी होते हैं। जितने भी कर्म-कांड के माध्यम से वह चमत्कार करते हैं, चाहे वह भूत-प्रेत से संपर्क हो या कुछ और सब वैज्ञानिक उपकरणों के माध्यम से होते हैं। और जन-साधारण लोग उसको अलौकिक मान कर उन पर विश्वास करते हैं। वहीं कमरे में कैद भूतों की तस्वीरें, वीडियो भी कंप्यूटर फोटोशॉप अन्य वीडियो सॉफ्टवेयर के माध्यम से बनाई जाती हैं। वह भी फर्ज़ी होती हैं।शरीर में भूत-प्रेत घुसने के पीछे का विज्ञान
जिन लोगों पर देवी-देवता, प्रेत, आत्माओं की सवारी आती है, उनमें कितनी सच्चाई है? दरअसल यह भी कोई भूत-प्रेत नहीं बल्कि मस्तिष्क का ही खेल होता है। बहुत से मनोरोग मस्तिष्क को भूत-प्रेत, देवी देवता की अपने अंदर घुसने की कल्पना करने में सहायक होते हैं। मैं यहाँ दो ऐसे मनोरोगों का उल्लेख करूंगा, जिसके होने से इस प्रकार की कल्पना में कि शरीर में कोई आत्मा प्रवेश कर गई है की प्रबल संभावना है। जब व्यक्ति को ऐसे मनोरोग होते हैं तो रोगी व्यक्ति को देखने वालों को लगता है उसमें आत्मा प्रवेश कर गई है। बहरहाल विशेष रूप से मेरे ज्ञान में ऐसे दो रोग हैं। पहला मनोविदलता या सिज़ोफ्रेनिया और दूसरा बहुव्यक्तित्व विकार।भूत प्रेत का असली कारण- सिज़ोफ्रेनिया
सिज़ोफ्रेनिया रोग (Schizophrenia) से पीड़ित इंसान वास्तविक और काल्पनिक वस्तुओं को समझने की शक्ति खो बैठता है और उसकी प्रतिक्रिया परिस्थितियों के अनुसार नहीं होती है। इस मनोरोग से ग्रस्त व्यक्ति को हमेशा किसी के होने का अंदेशा रहता है या फिर उसे ऐसी कुछ अजीब आवाजें सुनाई पड़ती हैं या कुछ ऐसे प्राणी दिखाई देते हैं जिसका वास्तविकता से लेना देना नहीं होता है। यह रोग भी हमारे मस्तिष्क की प्रबल कल्पना शक्ति के कारण होता है। पर यह सामान्य कल्पना नहीं होती बल्कि इस रोग में ऐसा लगता है कि मस्तिष्क को किसी ने हैक कर लिया हो और हैकर अपने अनुसार मस्तिष्क में कल्पनाएँ डाल रहा हो।इस रोग से ग्रस्त व्यक्ति को भ्रम होता है जैसे कोई उन्हें तंग कर रहा है, जैसे कोई भूत-प्रेत आत्मा या कोई कल्पनिक प्राणी। इसका रोगी कभी-कभी खुद को ताकतवर दैविक शक्तियों से युक्त सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति, महा-मानव या अवतार समझने का भ्रम पाल लेता है। इतना ही नहीं रोगी को अपने इर्द-गिर्द देवी देवताओं के होने तक का एहसास होने लगता है। इसी तरह कई तरह के काल्पनिक स्वाद और सुगंध भी उन्हें महसूस होते हैं, जिसे वैज्ञानिक हैलूसिनेशन की संज्ञा देते हैं। रोग ग्रस्त व्यक्ति अपने दिमाग में पल रहे भ्रम को सच मान लेते हैं, उन्हें काल्पनिक चीजें असली लगने लगती हैं। अर्थात उन्हें वास्तविकता और भ्रम के बीच में कोई स्पष्ट रेखा नज़र नही आती। इस रोग में व्यक्ति को महज़ काल्पनिक चीज़ें दिखाई या सुनाई नहीं देतीं, बल्कि उससे बातें भी करती हैं उन्हें आदेश भी देतीं हैं। इससे पीड़ित लोग कई बार हिंसक भी हो जाते हैं और अपनी जान लेने या किसी और कि हत्या करने से भी नही चूकते।
मनोचिकित्सक मानते हैं कि अलग-अलग रोगी में अलग तरह के लक्षण दिखाई पड़ते हैं। कई मरीज़ों में लक्षण साफ देखे जा सकते हैं लेकिन कई रोगियों में ऐसा दिखाई नहीं पड़ता है। इसके होने के कारण भी वैज्ञानिक अलग-अलग बताते हैं जिनमें अनुवांशिक कारण, पर्यावरण, मस्तिष्क में रासायनों का असंतुलन, तनाव पूर्ण अनुभव, खराब पारिवारिक रिश्ते और दुर्घटना में मस्तिष्क पर लगी चोट व कई अन्य चीजें शामिल हैं। विश्व की आबादी में एक प्रतिशत लोग इस रोग से जूझ रहे हैं। वहीं भारत में 100 करोड़ से ऊपर की जनसंख्या में सिज़ोफ्रेनिया से जूझ रहे मरीजों की संख्या लगभग 40 लाख है। इस बीमारी का इलाज नहीं करवाने वाले 90 फीसदी लोग भारत जैसे विकासशील देशों में देखे जा सकते हैं, जिनमें गरीबी और जानकारी के अभाव में अस्पताल जाने से बचने की आदत रहती है। इसका कारण एक और है। इस रोग में व्यक्ति का व्यवहार इतना असामान्य होता है कि लोग उसको अपसामान्य समझ बैठते हैं और इसका इलाज तंत्र-मंत्र से करते हैं।
अब आतें हैं इस बात पर कि भूत-प्रेत आत्मा देवी देवता कैसे चढ़ जाता है? दरअसल जिनके साथ यह होता है वह सिज़ोफ्रेनिया या ऐसी ही दूसरे मनोरोगों से ग्रस्त होते हैं। मनोचिकित्सकों के अनुसार ज़्यादातर मामलों में रोगी को इस बीमारी की चपेट में आने के बारे में पता ही नहीं चल पाता है। ऐसे लोग घोर धार्मिक प्रवृत्ति के होते हैं।वे शैतान और भूत प्रेत जैसी अवधारणाओं को सच मानते हैं। ऐसे रोगी जब इस तरह के किसी ख़ास माहौल में जाते हैं, तो वहाँ का वातावरण रोगी व्यक्ति के मस्तिष्क पर दबाव डालता है। इस दबाव से व्यक्ति के रोग के बीज फूटने लगते हैं और रोगी व्यक्ति पर उसकी कल्पनाजन्य बातें हावी होने लगती हैं। इससे रोगी का व्यवहार बदलने लगता है। इन लोगों में देवी का शरीर में आगमन होने का जुनून इस हद तक होता है कि उनका व्यवहार बिल्कुल माता की तरह हो जाता है, जो तांडव नृत्य कर भक्तों को आशीर्वाद देतीं हैं। दरअसल इनके मस्तिष्क एक तरह से हैक हो जाते हैं। वह अपने अंदर माता के अस्तित्व को महसूस करने लगते हैं। यही सब उन लोगों के साथ होता है जिनपर भूत-प्रेत आत्माओं की सवारी आती है। देखने वालों को लगता है व्यक्ति के शरीर में देवी-देवता, भूत-प्रेत का प्रवेश हो गया है।
Dissociative Identity Disorder, Multiple Personality Disorder
यह रोग भी कुछ-कुछ सिज़ोफ्रेनिया की तरह है जिसका नाम है Dissociative identity Disorder या Multiple Personality Disorder बहुव्यक्तित्व विकार है।
यह एक ऐसा मनोरोग है जिसके ग्रस्त व्यक्ति के भीतर दो या उससे अधिक व्यक्तित्व समा जाते हैं। एक समय में व्यक्ति अपने वास्तविक व्यक्तित्व होता है तो कभी वही व्यक्ति दूसरे समय किसी और के व्यक्तित्व में ढल जाता है। वास्तविक व्यक्तित्व को छोड़ दूसरे व्यक्तित्व में ढलने के बाद उसको अपने वास्तविक व्यक्तित्व का कोई ज्ञान नहीं होता है। उस समय वह व्यक्ति जिस व्यक्तित्व में होता है, वह उसी को वास्तविक मानता है। वैज्ञानिकों ने यह भी पाया है कि इस रोग से ग्रस्त व्यक्ति एक ही समय में उसके वास्तविक व्यक्तित्व से अलग एक से अधिक व्यक्तित्व समा सकते हैं।
ऐसे में देखने वालों को लगता है यह कोई भूत-प्रेत का चक्कर है।
आपको पता होगा 2007 में बॉलीवुड अभिनेता अक्षय कुमार और अभिनेत्रि विद्या बालन की 'भूल-भुलैया' नाम एक फिल्म आई थी। यह फिल्म डरावनी कॉमेडी थी। पर वास्तव में यह फिल्म इसी बहुव्यक्तित्व विकार पर बनी थी। इसको देखने वाले लोग जानते हैं कि फिल्म में विद्या बालन फिल्म के किरदार अवनि के व्यक्तित्व को कभी-कभी छोड़ पुरानी हवेली की चुड़ैल मनजुलिका के व्यक्तित्व में ढल जाती है। इससे आपको अंदाज़ा हो जाएगा कि यह रोग या विकार कितना अजीब है, जिसमें सामने वालों को लगता है व्यक्ति में कोई आत्मा घुस गई है।
इससे यह स्पष्ट है कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भूत-प्रेत का कोई अस्तित्व नहीं है, केवल इसका अस्तित्व हमारे मस्तिष्क में है। हमारा मस्तिष्क अनेकों चमत्कार कर सकता है। ऐसे-ऐसे लोगों के व्यक्तित्व को गढ़ सकता है जिन्होंने विश्व को देखने का नज़रया ही बदल दिया। हमारा मस्तिष्क भूत-प्रेत जैसी अनेकों कल्पनाओं को भी जन्म दे सकता है। वास्तव में मानव मस्तिष्क ज्ञात ब्रह्मांड की सबसे रहस्यमय और जटिल चीज़ है। अभी तक हम इसके रहस्यों को नहीं जानते। अगर हमने इसके बारे में सब कुछ जान लिया, तो इस रहस्य से भी पर्दा उठ जाएगा कि वास्तव में भूत-प्रेत की कल्पना मस्तिष्क में कैसे उत्पन्न होती है?
आपको पता होगा 2007 में बॉलीवुड अभिनेता अक्षय कुमार और अभिनेत्रि विद्या बालन की 'भूल-भुलैया' नाम एक फिल्म आई थी। यह फिल्म डरावनी कॉमेडी थी। पर वास्तव में यह फिल्म इसी बहुव्यक्तित्व विकार पर बनी थी। इसको देखने वाले लोग जानते हैं कि फिल्म में विद्या बालन फिल्म के किरदार अवनि के व्यक्तित्व को कभी-कभी छोड़ पुरानी हवेली की चुड़ैल मनजुलिका के व्यक्तित्व में ढल जाती है। इससे आपको अंदाज़ा हो जाएगा कि यह रोग या विकार कितना अजीब है, जिसमें सामने वालों को लगता है व्यक्ति में कोई आत्मा घुस गई है।
इससे यह स्पष्ट है कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भूत-प्रेत का कोई अस्तित्व नहीं है, केवल इसका अस्तित्व हमारे मस्तिष्क में है। हमारा मस्तिष्क अनेकों चमत्कार कर सकता है। ऐसे-ऐसे लोगों के व्यक्तित्व को गढ़ सकता है जिन्होंने विश्व को देखने का नज़रया ही बदल दिया। हमारा मस्तिष्क भूत-प्रेत जैसी अनेकों कल्पनाओं को भी जन्म दे सकता है। वास्तव में मानव मस्तिष्क ज्ञात ब्रह्मांड की सबसे रहस्यमय और जटिल चीज़ है। अभी तक हम इसके रहस्यों को नहीं जानते। अगर हमने इसके बारे में सब कुछ जान लिया, तो इस रहस्य से भी पर्दा उठ जाएगा कि वास्तव में भूत-प्रेत की कल्पना मस्तिष्क में कैसे उत्पन्न होती है?
फैज़ान साहब के आलेख पहले भी पढ़े हैं। बेहद शानदार लिखते हैं। उनका यह लेख भी ज़बरदस्त है और लोगों के मन से भूतों का अंधविश्वास दूर करने में पूरी तरह समर्थ है।
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