Zakir Ali Rajnish's science fiction Bye Bye Princess
राज्यवर्धन की एकमात्र संतान है हर्षवर्धन। उसने अपने पिता के सारे गुण विरासत में पाए हैं। दौलत का नशा, सत्ता की हनक और दबंगई की ठसक उसकी रग-रग में समाई हुई है। उसकी नजर में आम इंसान कीड़े-मकोड़े से ज्यादा कुछ भी नहीं। उन्हें जब और जहां पर चाहे पैरों तले रौंदा जा सकता है।
वह 22 अगस्त की एक काली रात थी। राजधानी के एक भोज में शामिल होने के बाद हर्षवर्धन अपने घर लौट रहा था। उस दिन मौसम बेहद खराब था। आसमान में काले बादल छाए हुए थे और मूसलाधार बारिश हो रही थी। पर इससे बेपरवाह हर्षवर्धन की एसयूवी निलमथा-नगराम मार्ग पर 100 की स्पीड में भागी चली जा रही थी।
अचानक आसमान में जोर से बिजली कड़की। घबराहट में न जाने कैसे ड्राइवर कल्लू के हाथ से गाड़ी की स्टेयरिंग छूट गयी और पलक झपकते ही गाड़ी एक पेड़ से जा टकरायी। गाड़ी का अगला हिस्सा बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया। अगर एयर-बैग सही समय पर न खुलते, तो ड्राइवर और हर्षवर्धन दोनों का बचना नामुमकिन था।
कल्लू ने अपने आप को संभाला और गाड़ी को दुबारा स्टार्ट करने की कोशिश की। पर वह इसमें कामयाब न हो सका। यह देखकर हर्षवर्धन झल्ला उठा, ‘‘अबे कलुआ, एक तो गाड़ी खराब, दूसर फोनौ डिस्चार्ज, अब रात हियैं बिताए का परी का?’’
कल्लू अपना मोबाइल और गाड़ी में पड़ी रहने वाली यूएसबी केबल अपने घर पर भूल आया था। और खीझते हुए बोला, ‘‘मालिक, हियैं बगलै मां एक बंगला है। हुवां चलिके देखित है, शायद कउनो जुगाड़...।’’
कल्लू की बात सुनकर हर्षवर्धन ने मुंह से एक बुरी सी गाली निकाली और बारिश के पानी में भीगते हुए कल्लू के साथ चल पड़ा।
निलमथा नगराम मार्ग से लगभग 700 मीटर अंदर बनी वह बिल्डिंग विमेंस पैराडाइज़ के नाम से जानी जाती थी। वह इमारत शहरी सीमा से लगभग 10 किमी0 दूर खेतों के बीच बनी हुई थी। लेकिन उसकी भव्यता कुछ ऐसी थी कि दिन में भी उसे देखने वालों की आंखें चैंधिया जातीं।
लेकिन उस रोज विमेंस पैराडाइज़ पूरी तरह से अंधेरे में डूबा हुआ था। यह देखकर कल्लू बुदबुदाया, ‘‘हिंया तो मरघट वाला सन्नाटा फइला है, न कउनो लाइट-बाती, न कउनो गारड-शारड!’’
कल्लू ने गेट के अंदर हाथ डालकर सांकल को टटोला। उसमें एक छोटा सा ताला झूल रहा था। यह देखकर कल्लू के चेहरे पर कुटिल मुस्कान दौड़ गयी। उसने ताले पर अपनी पकड़ मजबूत बनाई और फिर उसे एक जोरदार झटका दिया। अगले ही पल वह ताला उसके हाथ में आ गया।
दोनों लोग बेरोक-टोक विमेंस पैराडाइज़ के परिसर में जा पहुंचे।
गेट से लगभग 15 फीट की दूरी पर बिल्डिंग का मुख्य प्रवेश द्वार था। कल्लू ने कॉलबेल की तलाश में इधर-उधर देखा, लेकिन जब स्विच कहीं नजर नहीं आया, तो वह जोर-जोर से दरवाजा पीटने लगा।
लगभग 10 मिनट के बाद चर्ररर की आवाज के साथ विमेंस पैराडाइज़ का दरवाजा खुला। इसी के साथ मुख्य द्वार और उसके आसपास लगे बल्ब जगमगा उठे।
सामने का दृश्य देखकर हर्षवर्धन हक्का-बक्का रह गया। उसके सामने एक 25 साल की खूबसूरत सी लड़की विराजमान थी। उसने अलसाई सी आवाज में पूछा, ‘‘कौन हैं आप लोग? इतनी रात में...?’’
गोल सा चेहरा, बिखरे हुए बाल, उनींदी सी आंखें। हर्षवर्धन को लगा जैसे आसमान से कोई परी उसके सामने अवतरित हो गयी हो और पूछ रही हो- आपकी क्या अभिलाषा है माननीय?
हर्षवर्धन को घूरते देखकर लड़की असहज हो उठी। वह बोली, ‘‘सॉरी, विमेंस पैराडाइज़ में पुरुषों का प्रवेश निषेध है।’’ और वह तेजी से दरवाजे के पल्लों को बंद करने लगी।
पर इससे पहले कि दोनों पल्ले पूरी तरह से बंद होते, हर्षवर्धन ने उनके बीच अपना दाहिना हाथ घुसेड़ दिया।
पल्लों में वजन भी था और वेग भी, लिहाजा हर्षवर्धन की चीख निकल गयी।
यह देखकर लड़की के हाथ खुद-ब-खुद रुक गये। कल्लू इसी मौके के इंतजार में था। उसने तत्क्षण पल्लों को जोर से धक्का दिया और हर्षवर्धन के साथ विमेंस पैराडाइज के प्रतिबंधित क्षेत्र में प्रविष्ठ हो गया।
ठीक उसी समय आकाशीय बिजली कड़की, शायद कहीं बेहद करीब। उसकी तीव्रता इतनी अधिक थी कि सम्पूर्ण विमेंस पैराडाइज़ काफी देर तक थरथराता रहा।
22 अगस्त की वह रात विमेंस पैराडाइज़ ही नहीं बाहुबली विधायक राज्यवर्धन चौधरी के जीवन की भी काली रात साबित हुई। रात के ढ़ाई बजे उसकी नींद टूटी। कुंडी पीटने की आवाज सुनकर उसने गरियाते हुए कमरे का दरवाजा खोला। सामने कल्लू मौजूद था और उसकी बलिष्ठ बाहों में चालीस वर्षीय हर्षवर्धन का निर्जीव सा जिस्म झूल रहा था।
यह देखकर राज्यवर्धन चौधरी के चेहरे का रंग उड़ गया। वह कातर स्वर में बोला, ‘‘का भवा कलुआ? हमरे लल्ला को का भवा?’’
‘‘बिजली लगी है मालिक...’’
‘‘अरे, तो खड़ा-खड़ा हमार मुंह का देखत है? गड़िया निकार, गड़िया।’’ राज्यवर्धन तेजी से चिल्लाया।
हर्षवर्धन को झटपट पास के नर्सिंग होम में पहुंचाया गया। इमरजेंसी में मौजूद डॉक्टर ने मरीज का निरीक्षण किया, पर उसे कुछ समझ में नहीं आया। उसने मरीज को मेडिकल कॉलेज के लिए रेफर कर दिया।
तमाम चिकित्सकीय परीक्षणों के उपरांत यह पता चला कि बिजली के तेज झटके के कारण हर्षवर्धन को पैरालिसिस का अटैक पड़ा है। यह अटैक इतना तीव्र था कि उसकी गर्दन के नीचे का पूरा शरीर निष्क्रिय हो गया था।
राज्यवर्धन ने अपने पुत्र के इलाज में करोड़ों रुपये स्वाहा कर दिये, पर हर्षवर्धन की स्थिति में रत्ती भर का फर्क न पड़ा। लखनऊ, दिल्ली, मुम्बई, जहां कहीं भी उसे पता चला, वह अपने पुत्र को लेकर पहुंच गया। पर नतीजा वही, ढ़ाक के तीन पात!
नतीजतन राज्यवर्धन का दिमागी संतुलन बिगड़ना ही था। उसने भैरव बाबा के सामने सौगंध उठाई- ‘‘जिसकी वजह से मेरे बेटे की यह हालत हुई है, मैं उसे बर्बाद कर दूंगा।’’
सौगंध की परिणति का पहला पड़ाव है यह मुकदमा, जिसकी सुनवाई कुछ ही पलों में शुरू होने वाली है।
केस की प्रतिवादी के रूप में दामिनी का नाम दर्ज है। पर दामिनी कौन है, यह बात सिर्फ एक व्यक्ति जानता है। वह है विमेंस पैराडाइज़ की प्रिंसेस। लेकिन यह प्रिंसेस कौन है, यह बात स्वयं दामिनी भी नहीं जानती।
वास्तव में प्रिंसेस विमेंस पैराडाइज़ की रचयिता है। अपनी कल्पना शक्ति और सामर्थ्य से उसने एक अद्भुत-लोक का सृजन किया है। लगभग एक बीघे में फैले उस तीन मंजिले भवन में लगभग 300 लड़कियां और महिलाएं काम करती है। वे वहां पर पढ़ती हैं, आत्म-रक्षा की ट्रेनिंग लेती हैं और मन लगाकर अचार, मुरब्बा, पापड़ जैसी चीजें बनाने का काम भी करती हैं।
अपनी इस अनूठी संकल्पना के कारण विमेंस पैराडाइज़ देश में ही नहीं दुनिया भर में चर्चित है। अक्सर विश्व के कोने-कोने से शोधार्थी, पत्रकार और समाजसेवी उसे देखने व समझने के लिए आते रहते हैं।
विमेंस पैराडाइज़ की प्रिंसेस आज तक किसी से नहीं मिली। वह हमेशा अपने प्रयोगशालानुमा कक्ष में स्वयं को बंद रखती है। प्रिंसेस के उस अत्यंत गोपनीय कक्ष में जाने की अनुमति सिर्फ और सिर्फ दामिनी को ही हासिल है। वही प्रिंसेस से मिलती हैं और उनसे मिले निर्देशों के क्रम में विमेंस पैराडाइज़ की व्यवस्था को संचालित करती है।
लेकिन आज उस विश्व प्रसिद्ध विमेंस पैराडाइज़ की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। सिक्कों की खनक से तैयार नकली गवाहों और वकीलों की फौज के बल पर राज्यवर्धन के वकीलों ने कुछ ही समय में दामिनी को अटेम्ट टू मर्डर का दोषी सिद्ध कर दिया। दर्षक दीर्घा में बैठी प्रिंसेस चुपचाप अदालत की कार्यवाही देखती रही। उसने पहचान छुपाने के लिए एक स्कार्फ से अपना चेहरा ढ़क रखा था। वकीलों के झूठे तर्कों और गवाहों के झूठे बयानों को सुन-सुन कर उसकी रगों में ज्वालामुखी धधक रहा था। बार-बार उसके भीतर से आवाज आती कि उठो और इन झूठे वकीलों और गवाहों की असलियत सबके सामने बता दो और अपनी बेटी को बचा लो।
लेकिन हर बार एक विवशता उसके आड़े आ जाती। प्रिंसेस को अपने आप पर कोफ्त हो रही थी। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर 22 अगस्त के दिन ऐसी कौन सी बात हुई, जिसकी वजह से विमेंस पैराडाइज़ की सीसीटीवी लाइन ध्वस्त हो गयी? अगर ऐसा नहीं हुआ होता, तो शायद...
अन्ततः वह पल भी आ गया, जिसका सभी को इंतजार था। गवाहों और वकीलों की जिरह सुनने के बाद जज साहब फैसला सुनाने के लिए स्वयं को तैयार करने लगे।
प्रिंसेस के लिए जज के मस्तिष्क से उत्सर्जित होने वाली तरंगों को पढ़कर उनका निर्णय जान लेना बहुत छोटी सी बात थी। और जैसे ही उसने उन तरंगों को डिकोड किया, वह विचलित हो उठी।
तो क्या उसकी बीस वर्षों की तपस्या व्यर्थ चली जाएगी? क्या चंद कदमों की दूरी पर दिख रहा उसका स्वप्न महल एक झटके में धराशाई हो जाएगा?
‘‘नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। मेरे जीतेजी, दामिनी का बाल भी बांका नहीं हो सकता।’’ अपनी कुर्सी पर बैठे-बैठे ही प्रिंसेस जोर से चीख उठी।
प्रिंसेस की प्रतिक्रिया देखकर हॉल में बैठे लोग हतप्रभ रह गये। वे आपस में भुनभुनाने लगे। जज साहब ने ‘ऑर्डर-ऑर्डर’ कहते हुए अपना हथौड़ा पीटा। लेकिन इससे पहले कि वे और कुछ कहते, प्रिंसेस अपनी सीट से उठ खड़ी हुई- ‘‘जज साहब, इससे पहले कि आप अपना फैसला सुनाएं, मैं आपके सामने इस घटना की सच्चाई रखना चाहती हूं।’’
प्रिंसेस की आवाज में मशीन जैसी खरखराहट साफ महसूस की जा सकती थी। उसकी बात सुनकर दामिनी के मुर्झाए हुए चेहरे में जान आ गयी। उसने अपने वकील वैभव कुलकर्णी की ओर इशारा किया। कुलकर्णी ने एक क्षण की भी देर नहीं लगाई और जज साहब से प्रिंसेस को कटघरे में बुलाने की अनुमति हासिल कर ली।
‘‘जज साहब, मैं ‘प्लेनेटेरा ग्रह’ की प्रिंसेस जेनेसीका भारतीय संविधान की सौंगध उठाकर कहती हूं कि जो कुछ कहूंगी सच कहूंगी, सच के सिवा कुछ न कहूंगी।’’ कहते हुए प्रिंसेस ने अपने चेहरे पर लपेटा नकाब हटा दिया।
‘अरे यह तो कोई रोबोट है!’
‘नहीं, शायद कोई ऐलियन...’
‘हां, देखो इसका चेहरा कैसा चपटा सा है।’
‘और हां, आवाज भी तो किसी मशीन की तरह है...।’
जितने मुंह, उतनी बातें! उन सबको चुप कराने के लिए जज साहब को अपना हथौड़ा पीटना पड़ा। प्रिंसेस जेनेसीका ने एक गहरी सांस ली। जैसे वह भीतर खदबदा रहे ज्वालामुखी को नियंत्रित करने का प्रयत्न कर रही हो।
‘‘जज साहब, मैं एक साइबोर्ग हूं। साइबोर्ग, यानी मनुष्य और रोबोट का मिला-जुला रूप।’’ जेनेसीका ने अपनी बात शुरू की, ‘‘मेरा ग्रह ‘प्लेनेटेरा’ धरती से दस ‘प्रकाश वर्ष’ की दूरी पर स्थित ‘जेमान’ ब्रह्माण्ड का हिस्सा है। हमारे ग्रह का आकार बेहद छोटा है और वहां पर आए दिन ज्वालामुखी विस्फोट होते रहते हैं। इस वजह से वहां पर जीवन बेहद चुनौतीपूर्ण है। यही कारण है कि हमारे वैज्ञानिक किसी ऐसे ग्रह की तलाश में रहते हैं, जहां पर हम सुरक्षित रह सकें। इसी उद्देश्य से मैंने आज से 20 साल पहले धरती पर पहली बार कदम रखे थे। …पर यहां आकर मैंने एक ऐसी घटना देखी, जिसने मुझे झिंझोड़ कर रख दिया, ...जिसने मेरे जीवन का उद्देश्य ही बदल दिया।’’
‘‘ऑब्जेक्शन मीलार्ड!’’ वादी पक्ष के वकील निरंजन खेरा ने प्रतिवाद किया, ‘‘भला 20 साल पुरानी किसी घटना से इस केस का क्या सम्बंध हो सकता है? ये मोहतरमा बिना वजह कोर्ट का समय नष्ट कर रही हैं।’’
‘‘ऑब्जेक्शन ओवररूल्ड!’’ जज साहब ने वकील का तर्क काट दिया, ‘‘मुकदमे से जुड़े हर शख्स को अपनी बात कहने का अधिकार है। पर मोहतरमा, कृपया आप कोर्ट के समय का महत्व समझें और अपनी बात संक्षेप में कहें।’’
‘‘शुक्रिया जज साहब।’’ प्रिंसेस ने अपनी बात आगे बढ़ाई, ‘‘मैं सीधे अपनी बात पर आती हूं। वह 20 साल पहले की एक अंधेरी रात थी। मेरा यान ‘पूरे बिसवां’ क्षेत्र के ‘नीम करोरे’ गांव में उतरने के लिए एक झोपड़ी के ऊपर मंडरा रहा था। ठीक उसी समय एक युवक अपने दो साथियों के साथ समर बहादुर के घर में घुसा। उन लोगों ने समर बहादुर की पांच साल की लड़की के सामने उसकी मां के साथ गैंगरेप किया और उसकी हत्या कर दी। इसके बाद वे दरिंदे उस बच्ची को भी जंगली कुत्तों की तरह नोचने लगे...।’’
कहते-कहते प्रिंसेस का स्वर भरी हो गया। उसने एक गहरी सांस ली और फिर जोर से बोली, ‘‘जज साहब, उस घ्रणित और जघन्य कांड की अगुवाई करने वाला वह दरिंदा और कोई नहीं, यही स्ट्रेचर पर पड़ा हुआ हर्षवर्धन था।’’
‘‘ऑब्जेक्शन मीलार्ड।’’ वादी पक्ष के वकील निरंजन खेरा ने प्रतिवाद किया, ‘‘यह मोहतरमा बिना किसी सुबूत के हमारे मुवक्किल के खिलाफ आरोप लगा रही हैं।’’
‘‘ऑब्जेक्शन सस्टेन्ड!’’ जज साहब ने प्रिंसेस को टोका, ‘‘क्या आपके पास उस घटना से सम्बंधित सुबूत हैं?’’
‘‘जी, जज साहब!’’
‘‘ठीक है, तब आप अपनी बात संक्षेप में और संतुलित शब्दावली में कोर्ट के सामने रखें।’’
जज की अनुमति पाकर प्रिंसेस ने बात आगे बढ़ाई, ‘‘जज साहब, मैंने उस 20 साल पुरानी घटना की चर्चा इसलिए की, क्योंकि उस घटना और इस केस का आपस में गहरा सम्बंध है। उस वक्त जिस लड़की के साथ हर्षवर्धन चौधरी ने दरिंदगी की थी, वह और कोई नहीं आज के केस की आरोपी दामिनी ही है। 20 साल पुरानी वह घटना आज भी दामिनी के मस्तिष्क के एक कोने में दर्ज है। इसीलिए 22 अगस्त की आधी रात को जब हर्षवर्धन ने विमेंस पैराडाइज में जबरदस्ती घुसकर दामिनी के साथ जोर-जबरदस्ती करनी चाही, तो उसका ‘आपातकालीन प्रतिरक्षा तंत्र’ सक्रिय हो उठा और उसने अपने बचाव में तेज करेंट पैदा किया। इससे हर्षवर्धन के शरीर को लकवा मार गया और वह इस हालत में जा पहुंचा।’’
‘‘ऑब्जेक्शन मीलार्ड!’’ निरंजन खेरा ने पुनः प्रतिवाद किया, ‘‘इन मोहतरमा की बातों से लगता है कि यह कोई कोर्ट नहीं, पिक्चर हॉल है, और यहां पर साइंस फिक्शन मूवी दिखाई जा रही है!’’
इस बार जज साहेब के बोलने के पहले ही प्रिंसेस ने वकील को डपट दिया, ‘‘अभी मेरी बात पूरी नहीं हुई है मिस्टर निरंजन खेरा! और मैं यह बात पहले भी कह चुकी हूं कि मेरे पास अपनी हर बात का पुख्ता सुबूत मौजूद है। इसलिए पहले मेरी बात समाप्त होने का इंतजार करें, उसके बाद आपको जो ऑब्जेक्शन करना हो, कर लीजिएगा।’’
‘‘वकील साहब, आप अपनी जगह पर बैठ जाएं और प्रिंसेस की बात पूरी होने दें।’’
जज साहब का आदेश सुनकर वकील महोदय शांत हो गये। प्रिंसेस ने अपनी बात आगे बढ़ाई, ‘‘जज साहब, मैंने अदालत को पहले ही बताया था कि मैं एक साइबोर्ग हूं! इसी तरह दामिनी भी एक साइबोर्ग है, यानी मनुष्य और रोबोट का मिला-जुला रूप। और मुझे दामिनी को साइबोर्ग के रूप में इसलिए परिवर्तित करना पड़ा, ताकि मैं इसे बचा सकूं! अगर मैं ऐसा नहीं करती, तो यह 20 साल पहले ही खत्म हो जाती! ...मैंने अपने वैज्ञानिकों की मदद से न सिर्फ इसे साइबोर्ग के रूप में परिवर्तित करके इसका जीवन बचाया, वरन इसके प्रतिरक्षा तंत्र को विकसित करके इसमें करेंट उत्पन्न करने की प्रणाली भी विकसित की। जिससे यह भविष्य में हर्षवर्धन जैसे भेड़ियों से खुद को बचा सके, उन्हें सबक सिखा सके।’’
कहते-कहते प्रिंसेस बुरी तरह से हांफने लगी। उसने दो-चार लम्बी-लम्बी सांसें लीं और फिर अपनी बात आगे बढ़ाई, ‘‘जज साहब, वह 20 साल पुरानी घटना और यह 22 अगस्त की घटना दोनों ही दामिनी के मस्तिष्क में सुरक्षित हैं। आप उन्हें मेरे इस यंत्र ‘मेमोरी प्रोजेक्टर’ की मदद से वीडियो की भांति देख सकते हैं। इससे मेरी बातें प्रमाणित हो जाएंगीं और हर्षवर्धन की सारी सच्चाई आपके सामने आ जाएगी।’’
कहते हुए प्रिंसेस जेनेसीका ने एक साबुन जितना यंत्र आगे बढ़ाया। कोर्ट में मौजूद अर्दली ने वह यंत्र जज साहब के पास पहुंचा दिया। उन्होंने आश्चर्यपूर्व उस यंत्र को हाथ में लेकर देखा और फिर अर्दली को एक सफेद पर्दा लाने का हुक्म दिया।
उनके शांत होते ही अदालत में खुसर-पुसर शुरू हो गयी। दामिनी, जो अब तक अपने आप पर जब्त किये बैठी थी, दौड़ती हुई प्रिंसेस के पास पहुंची और उससे लिपट कर जोर-जोर से रोने लगी। प्रिंसेस ने बेसाख्ता दामिनी को अपनी बांहों में भींच लिया और उसका सिर सहलाने लगी।
तभी वहां पर एक अलार्म जैसी आवाज गूंजने लगी।
यह देखकर प्रिंसेस असहज हो उठी। वह जज से मुखाबित होते हुए बोली, ‘‘जज साहब, अब मुझे अपने ग्रह वापस जाना होगा। मैंने अपने ग्रह की ‘गवर्निंग बॉडी’ को यह वचन दिया था कि मैं तभी तक इस ग्रह पर रह सकती हूं, जब तक मेरी पहचान छिपी रहे। अब चूंकि यह नियम भंग हो चुका है, इसलिए मुझे तत्काल यहां से कूच करना होगा।’’ कहती हुई प्रिंसेस कटघरे के बाहर आ गयी।
‘‘पर मां, आपका वह शोध, जिसके लिए आप 20 साल से...’’ दामिनी ने उत्सुकतापूर्वक प्रिंसेस की ओर देखा।
प्रिंसेस पुन: दामिनी के पास पहुंची और उसके गालों को सहलाते हुए बोली, ‘‘मेरी बच्ची, मुझे यह कहते हुए बेहद खुशी हो रही है कि मेरा प्रतिरक्षा जीन सम्बंधी शोध पूरा हो गया है। शोध सम्बंधी वह डाटा मेरे दिमाग में संग्रहीत है। मैं उसे अभी तुम्हारे मस्तिष्क में ट्रांसफर किये देती हूं।’’
कहते हुए प्रिंसेस ने अपना दाहिना हाथ दामिनी के माथे के बीचोबीच रखा और अपनी आंखें बंद कर लीं। अगले ही पल एक कौंध सी उठी और दामिनी का पूरा शरीर सुनहरी आभा से जगमगा उठा।
यह देखकर जज महोदय भी चमत्कृत हुए बिना न रह सके। वे बोले, ‘‘आप किस प्रतिरक्षा जीन की बात कर रही हैं प्रिंसेस?’’
‘‘जज साहब, जैसा कि आप जानते ही हैं कि इस धरती पर रोज ही लाखों बच्चियां और महिलाएं पुरुषों की हवस का शिकार होती हैं। इसीलिए मैं मानव शरीर में एक ऐसे प्रतिरक्षा तंत्र का विकास करना चाहती थी, जो आपात स्थिति में स्त्रियों की रक्षा कर सके। ...इसका रास्ता मुझे समुद्र में पाई जाने वाली ‘इलेक्ट्रिक फिश’ ने दिखाया। इस प्रजाति की मछलियों में एक खास किस्म का जींस पाया जाता है, जो संकट के समय एक इलेक्ट्रिक करेंट उत्पन्न करता है। इससे दुश्मन को जोरदार झटका लगता है और वह भागने के लिए मजबूर हो जाता है। मैंने उस जींस को न सिर्फ प्रयोगशाला में विकसित करने में, वरन उसे मानव शरीर में स्थापित करने में भी सफलता प्राप्त कर ली है। अब यह हमारे पास वैक्सीन के रूप में उपलब्ध है। ...इस वैक्सीन को अगर एक माह के भीतर जन्मी किसी भी बच्ची में लगा दिया जाए, तो एक साल के अंदर उसके शरीर में यह प्रतिरक्षा तंत्र विकसित हो जाता है।’’
‘‘लेकिन जज साहब, इससे तो हमारे समाज में बड़ी उथल-पुथल मच जाएगी।’’ निरंजन खेरा ने आशंका जताई, ‘‘फिर तो हर कोई इसे अपने बच्चे में लगाना चाहेगा और फिर इसका दुरुपयोग...’’
‘‘नहीं, इसका दुरुपयोग संभव नहीं है।’’ प्रिंसेस ने वकील को जवाब दिया, ‘‘पहली बात तो ये कि यह एक अनैच्छिक प्रतिरक्षा प्रणाली है, जो हमारे चाहने से नहीं, मस्तिष्क से मिले संकेतों के आधार पर काम करती है। जैसे किसी गरम चीज से छू जाने पर हमारा हाथ अपने आप पीछे हट जाता है, ठीक वैसे ही। दूसरी बात ये कि यह प्रतिरक्षा तंत्र तभी सक्रिय होता है, जब जीव के सामने जीवन-मरण जैसी गम्भीर स्थित उत्पन्न होती है। और तीसरी बात ये कि यह वैक्सीन सिर्फ फीमेल बॉडी में जन्मने के एक माह के भीतर लगाए जाने पर ही सक्रिय होती है। यदि किसी लड़के अथवा किसी बड़ी उम्र की लड़की में भी इसे लगाया जाएगा, तो उसके शरीर में मौजूद श्वेत रक्त कणिकाएं इसे अवांछित पदार्थ मानकर नष्ट कर देंगीं।’’
अगले पल अदालत में एक साथ दो घटनाएं घटीं। एक ओर से अर्दली प्रोजेक्टर वाला व्हाइट बोर्ड लेकर वहां उपस्थित हुआ, दूसरी ओर लगभग आठ फिट व्यास का एक गोलाकार यान अदालत के बीचोबीच प्रकट हुआ।
‘‘जज साहब, मैं आपसे क्षमा चाहती हूं, अब मुझे यहां से तत्काल जाना होगा।’’ कहते हुए प्रिंसेस अपने यान के पास जा पहुंची। यान में से एक सीढ़ीनुमा दरवाजा खुल गया। दामिनी एक बार फिर दौड़ कर प्रिंसेस के पास जा पहुंची। उसने प्रिंसेस को अपनी बाहों में जकड़ लिया।
‘‘बेटी, मैंने तुम्हें अपनी पुत्री माना है। तुम कभी खुद को मुझसे दूर नहीं समझना। मैं अपनी मानसिक तरंगों के जरिए हमेशा तुमसे जुड़ी रहूंगी। मैं विश्वास दिलाती हूं, कि जब भी तुम्हें मदद की जरूरत होगी, मुझे अपने सामने हाजिर पाओगी।’’ कहते हुए प्रिंसेस ने दामिनी का माथा चूम लिया।
यह भावुक दृश्य देखकर हाल में मौजूद सभी लोग अपनी-अपनी जगह पर खड़े हो गये। प्रिंसेस ने झुक कर सभी लोगों को अभिवादन किया और यान में सवार हो गयी। अगले ही पल यान का दरवाजा बंद हो गया। वह तेजी से हॉल के मुख्य द्वार की ओर बढ़ा और अदृश्य हो गया।
अदालत में मौजूद दर्शक और वकील ही नहीं स्वयं जज महोदय भी काफी देर तक उस दिशा में देखते रहे, जहां से प्रिंसेस का विमान गायब हुआ था।
लगभग 10-11 सेकेंड बाद जज महोदय की तंद्रा टूटी। वे धीरे से बुदबुदाए ‘‘बॉय-बॉय प्रिंसेस, मानवता के इतिहास में तुम्हारा यह योगदान स्वर्णाक्षरों में अंकित किया जाएगा।’’
इसके बाद जज महोदय अपनी सीट पर दुबारा नहीं बैठे। उन्होंने कोर्ट को अगले दिन के लिए मुल्तवी कर दिया और भारी मन से चलते हुए कक्ष से बाहर निकल गये। ('विज्ञान प्रगति' सितम्बर, 2024 में प्रकाशित)
वाह, इसे कहते हैं विज्ञान कथा
जवाब देंहटाएंविज्ञान क्या नहीं कर सकता, बहुत ही ज्ञानवर्धक व संभावनाओं की ओर संकेत करती कहानी।
जवाब देंहटाएंबहुत ही ज्ञानवर्धक कहानी, विज्ञान की क्षमता क्या नहीं कर सकती।
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