Hargobind Khorana Biography in Hindi | Hargobind Khorana in Hindi
प्रोफेसर हर गोविन्द खुराना
नवनीत कुमार गुप्ता
आधुनिक विज्ञान जगत में जिन भारतीय वैज्ञानिकों का योगदान अहम रहा है उनमें से प्रोफेसर हर गोविन्द खुराना प्रमुख हैं। गिने-चुने भारतीय वैज्ञानिकों में से एक प्रोफेसर हर गोविन्द खुराना भी हैं जिन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। प्रोफेसर हर गोविन्द खुराना ने कोशिकाओं के अन्दर आनुवाँशिक सूचनाऒं के प्रोटीन में पहुँचने की प्रक्रिया को विस्तार से समझाया था। इसी प्रक्रिया के ज़रिये जीवित कोशिकाओं में विभिन्न प्रक्रियाएं सम्पन्न होती हैं। अपने इस कार्य के लिये प्रोफेसर हर गोविन्द खुराना को शरीर क्रिया विज्ञान के क्षेत्र में दो अन्य वैज्ञानिकों के साथ नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया था। प्रोफेसर हर गोविन्द खुराना विज्ञान के क्षेत्र में वे सर सी. वी. रामन और प्रो. चन्द्रशेखर के बाद भारतीय मूल के तीसरे वैज्ञानिक थे, जिन्हें अपने अभिनव शोध कार्य के कारण नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
ऐसे महान वैज्ञानिकों और उनके कार्यों के बारे में जनमानस में जागरूकता का प्रसार करना आवश्यक है ताकि आने वाली पीढ़ियां इनसे प्रेरणा प्राप्त कर सके। इसी दिशा में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत कार्यरत स्वायत्तशासी संस्थान विज्ञान प्रसार द्वारा प्रोफेसर हर गोविंद खुराना सहित पांच अन्य प्रेरक वैज्ञानिकों के जन्म को 100 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में पूरे वर्ष कई कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। प्रेरक वैज्ञानिकों की जन्म शताब्दी कार्यक्रम का शुभारंभ भारत के उपराष्ट्रपति श्री वेंकेया नायडू द्वारा नई दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में विज्ञान प्रसार द्वारा 22 दिसंबर, 2021 को आयोजित एक कार्यक्रम में किया गया। इन वैज्ञानिकों में, प्रोफेसर हर गोबिंद खुराना, डॉ. जी.एन. रामचंद्रन, डॉ. येलावर्ती नायुदम्मा, प्रोफेसर बालासुब्रमण्यम राममूर्ति, डॉ. जी.एस. लड्डा और डॉ. राजेश्वरी चटर्जी शामिल हैं। इस सभी वैज्ञानिकों का जन्म वर्ष 1922 था।
हर गोविन्द खुराना चार भाइयों और एक बहन में सबसे छोटे थे। उस समय उनके गॉव में सिर्फ़ उनका गोविन्द का परिवार ही साक्षर था। वर्तमान पश्चिमी पंजाब के मुल्तान (पाकिस्तान) में डी.ए.वी. कॉलेज़ से हाईस्कूल की पढ़ाई करने के बाद, हर गोविन्द खुराना ने पंजाब विश्वविद्यालय, लाहौर से बी.एससी. और एम.एससी. की डिग्री प्राप्त की। जीवन भर हर गोविन्द खुराना अपने प्रारम्भिक शिक्षकों में से रतन लाल और महान सिंह को याद करते। अपने शिक्षकों के प्रति उनका सम्मान ताउम्र रहा। 1945 में उन्हें इंग्लैंड में पढाई करने के लिये सरकारी छात्रवृत्ति मिली। इस प्रकार अपने शोध कार्य के लिए इंग्लैंड के लिवरपूल विश्वविद्यालय चले गये। वहाँ उन्होंने प्रसिद्ध वैज्ञानिक रोज़र एस.बीर के निर्देशन में शोध कार्य किया। पोस्ट-डॉक्टोरल के लिये उन्हें स्विट्ज़रलैंड जाना पड़ा। वहां 1948-1949 में उन्होंने प्रोफ़ेसर व्लादिमीर प्रेलॉग के साथ काम किया। एक शोध छात्र के रूप में उन्होंने विज्ञान को काफी बारिकी से समझा, उन्हें विज्ञान के प्रति नया नज़रिया मिला, जिसने उन्होंने पूरा जीवन बिना थके हुये लगातार विज्ञान की सेवा की।
सन 1949 में कुछ समय के लिये वे भारत आये और 1950 में वे फिर सरकारी वज़ीफ़ा मिलने पर इंग्लैंड चले गये। इंग्लैंड पहुंचने पर उन्होंने कैम्ब्रिज़ विश्वविद्यालय में प्रो. ए.आर. टॉड के साथ काम किया, यहीं पर उनकी रुचि न्यूक्लियिक अम्लों और प्रोटीन्स में उत्पन्न हुयी। 1952 में उन्हें काउंसिल ऑफ़ ब्रिटिश कोलम्बिया, कनाडा से नौकरी का प्रस्ताव आया। उन्होंने इस प्रस्ताव में रुचि दर्शायी और वे कनाडा चले आये। 1952 में ही उन्होंने अपने स्विटज़रलैंड के समय की दोस्त एस्थर सिब्लर से विवाह किया। 1960 में उनके जीवन में महत्वपूर्ण मोड़ आया। इस वर्ष वे शोध कार्य के लिये विस्कॉन्सिन विश्वविद्यालय, अमेरिका चले आये। अमेरिका स्थित इंस्टीच्यूट ऑफ़ एन्जाइम्स रिसर्च में किये गये शोध कार्य के लिये उन्हें बाद में 1968 में शरीर क्रिया विज्ञान में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वह निरंतर शोध कार्य में आगे बढ़ते गए। 1966 में उन्होंने अमेरिकी नागरिकता स्वीकार कर ली प्रोफेसर खुराना का शोधकार्य कभी बाधित नहीं हुआ। वर्ष 1970 में उन्हें मेसाच्युसेट्स इंस्टीच्य़ूट ऑफ़ टेकनोलॉजी में सम्मानित अल्फ़्रेड स्लोन प्रोफ़ेसर ऑफ़ केमिस्ट्री एंड बायोलॉजी का पद मिला। इस संस्थान में शोध कार्य करते हुये प्रोफेसर खुराना ने आनुवाँशिकी से सम्बन्धित कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में कार्य किया। सन 2007 में इस पर से वानिवृत्त हो गये। हालांकि अपने जीवन के अंत में वे एम.आई.टी में एमेरिटस प्रोफ़ेसर थे। 10 नवंबर 2011 को उनका निधन हुआ। उस दिन मेसाच्युसेट्स इंन्स्टीच्यूट ऑफ़ टेकनोलॉजी ने अपनी वेबसाइट पर घोषणा की कि रसायन शास्त्र और शरीर क्रिया विज्ञान के शिखरों में से एक प्रोफेसर हर गोविन्द खुराना 9 नवंबर 2011, को हमें हमेशा के लिये छोड़कर चले गये। वे 89 वर्ष के थे और अंतिम समय तक विद्यार्थियों से लगातार मिलते रहे।
प्रोफेसर हर गोविन्द खुराना का सफ़र शून्य से शिखर तक का सफ़र कहा जा सकता है। उन्होंने कोशिका और उसके अंगों और उपअंगों की क्रियाविधि के बारे में वैश्विक वैज्ञानिक परिवार और मानव की समझदारी विकसित हुई। 1953 में वॉटसन और क्रिक ने डी.एन.ए. के दोहरी कुंडली जैसी संरचना की खोज की थी जिसके लिये वाटसन और क्रिक को नोबेल पुरस्कार मिला था। हालांकि , वॉटसन और क्रिक डी.एन.ए. से प्रोटीन की निर्माण प्रक्रिया और अन्य आनुवाँशिक और शारीरिक क्रियाविधियों में इसकी हिस्सेदारी के बारे में नहीं जानते थे। नीरेनबर्ग और प्रोफेसर हर गोविन्द खुराना ने पहली बार स्पष्ट किया कि कैसे न्यूक्लियोटाइड्स से बनी संरचना अमीनॊ अम्लों का निर्माण करती हैं जो कि प्रोटीन का एक अहम हिस्सा हैं। रसायनिक अभिक्रिया के ज़रिये प्रोफेसर खुराना ने आर.एन.ए. में आनुवाँशिक कोडों की संरचना के बारे में विसतार से बताया।
नोबेल पुरस्कार मिलने के चार साल बाद प्रोफेसर हर गोविन्द खुराना को रसायनिक विधियों द्वारा पूर्णतः कृत्रिम जीन का निर्माण करने में सफ़लता प्राप्त हुई। इसके बाद प्रोफेसर हर गोविन्द खुराना ने कई जीनों का कृत्रिम तरीकों से निर्माण किया जिनमें से दृष्टिदॊष से सम्बन्धित जीन रोडोस्पिन का कृत्रिम निर्माण प्रमुख था। इन खोजों ने मूलभूत विज्ञान और औद्योगिक क्षेत्र में क्रान्ति ला दी। आनुवांशिकी में प्रोफेसर हर गोविन्द खुराना की खोजें आज भी महत्वपूर्ण हैं। उनके कार्यों का उपयोग मूलभूत विज्ञान से लेकर औद्योगिक क्षेत्र में लगातार हो रहा है। प्रोफेसर हर गोविन्द खुराना एक सफ़ल शिक्षक भी थे, वे हमेशा छात्रों से घिरे रहते। उनके एक शोध छात्र माइकल स्मिथ को भी 1993 में डी.एन.ए. में फ़ेरबदल करने की तकनीक खोजने के लिये नोबेल पुरस्कार मिला। उनके छात्र प्रोफेसर हर गोविन्द खुराना को एक उत्कृष्ट शिक्षक और हमेशा बेहतर शोध करने के लिये उत्साहवर्धन करने वाले अच्छे इंसान के रुप में याद करते है।
-लेखक परिचय-
नवनीत कुमार गुप्ता पिछले दस वर्षों से पत्र-पत्रिकाओं, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन आदि जनसंचार के विभिन्न माध्यमों द्वारा वैज्ञानिक दृष्टिकोण और पर्यावरण संरक्षण जागरूकता के लिए प्रयासरत हैं। आपकी विज्ञान संचार विषयक लगभग एक दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं तथा इन पर गृह मंत्रालय के ‘राजीव गांधी ज्ञान विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन पुरस्कार' सहित अनेक पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। आप विज्ञान संचार के क्षेत्र में कार्यरत संस्था ‘विज्ञान प्रसार’ से सम्बंद्ध हैं। आपसे निम्न मेल आईडी पर संपर्क किया जा सकता है:
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