Covid and Heart Attack Risk in Hindi
कोराना संक्रमण के दौरान और उससे उबरने के बाद भी रोगियों में डी-डाइमर प्रोटीन की अधिकता देखी जा रही है, जिसके कारण उनमें हार्ट अटैक और हार्ट फेल जैसी समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। हाल के दिनों में अनेक बड़े चिकित्सक, पत्रकार, कलाकार और राजनेता भी इसके शिकार हुए हैं। इसमें सबसे ताज़ा मामला जाने माने न्यूज़ एंकर रोहित सरदाना का है। वे कोविड संक्रमण से मुक्त होने के बाद हार्ट अटैक का शिकार हो गये थे। तो आइए जानते हैं कि क्या हैं डी-डाइमर प्रोटीन क्या है, इसके लक्षण क्या हैं और हम कैसे इससे बच सकते हैं।
कोरोना के मरीजों में हार्ट अटैक से मौतें चिंताजनक
पिछले कुछ समय से यह देखने में आ रहा है कि कोरोना के अनेक मरीज़ संक्रमण से उबरते—उबरते, हार्ट अटैक के भी शिकार हो रहे हैं। जबकि प्रारम्भ में कोरोना के रोगियों में फेफड़ों के संक्रमण के कारण सांस फूलने, ऑक्सीजन की कमी, फेफड़ों के काम न करने के कारण ही जीवन लीला समाप्त होने की खबरें आ रही थीं। पर बाद में इसमें हार्ट फेल और हृदयाघात जैसे कारण भी जुड़ गये हैं, जिससे डॉक्टरों के माथे पर चिंता की लकीरें बढ़ गयी हैं और अध्ययनकर्ताओं का ध्यान इस ओर आकृष्ट हुआ है। इससे कोरोना के मरीजों में हार्ट अटैक के कारणों के अध्ययन आरम्भ हुए, जिससे अनेक तथ्य सामने आए हैं।
कोविड के पहले दौर में जहां युवा और बच्चों में संक्रमण के मामले नहीं थे, पर मौजूदा दौर में छोटे बच्चे, युवा भी इससे संक्रमित हो रहे हैं। इन रोगियों में ज्यादातर बुखार, खाँसी, बदन दर्द, डायरिया, जैसे लक्षण सामने आ रहे हैं, वहीं अधिकांश मामलों में इसका प्रभाव श्वसन तंत्र और फेफड़ों पर भी पड़ रहा है, जिससे सांस लेने की तकलीफ, सांस फूलना और शारीरिक कमजोरी जैसे लक्षण प्रकट हो रहे हैं।
कोरोना वायरस में म्यूटेशन होने व अलग अलग स्ट्रेन आने के कारण रोगियों में अलग अलग लक्षण उभर रहे हैं। हाल के दिनों में यह भी देखा गया है कि कोरोना संक्रमितों में डी-डाइमर प्रोटीन तेजी से बढ़ रहा है, जिससे शरीर में खून का थक्का बनने लगता है। खून गाढ़ा होने पर बन रहे ये थक्के ही दरअसल हार्ट अटैक और दिल का दौरा पड़ने की बड़ी वजह बन रहे हैं। इसकी वजह से ही ब्रेन स्ट्रोक व फेफड़े, हृदय की धमनी में अवरोध के मामले सामने आ रहे हैं।
इसमें सबसे चिंताजनक बात यह है कि संक्रमितों के साथ ही संक्रमण से उबर चुके लोगों के खून में भी डी-डाइमर प्रोटीन बढ़ा हुआ पाया गया है। आमतौर पर होम आइसोलेशन में रहने वाले संक्रमित इसको लेकर अनजान होते हैं तथा उनकी खून की जांच नहीं हो पाती है। उन्हें पॉजिटिव रिपोर्ट आने पर बुखार, एंटीबायोटिक, विटामिन आदि की दवा लक्षणानुसार दी जाती है, जिससे उनके लक्षण ठीक हो जाते हैं और वे वायरस के संक्रमण से उबरने लगते हैं।
पर ऐसे मरीजों में निगेटिव होने के बाद भी कुछ दिनों तक उन्हें चिकित्सकीय परामर्श की आवश्यकता होती है, जिस पर उनका ध्यान नहीं जाता है, जिसकी वजह से बाद में कुछ मरीजों में ऑक्सीजन लेवल गिरने, छाती में दर्द होने, घबराहट आदि की शिकायत होती है।
चिकित्सकों के अनुसार संक्रमण खत्म होते ही ज्यादातर लोग यह मान लेते हैं कि वे पूरी तरह से स्वस्थ हो चुके हैं। जबकि यह सही नहीं है। यह वायरस शरीर में कई दुष्प्रभाव छोड़ता है। मध्यम या गंभीर रूप से कोरोना संक्रमित होने वाले 20 से 30 फीसदी मरीजों में स्वस्थ होने के बाद भी अनेक मरीजों में डी-डाइमर प्रोटीन तय मात्रा से पांच गुना तक ज्यादा मिल रहा है। होम आइसोलेशन में रहने वाले 30 फीसदी संक्रमितों में ऐसा मिल रहा है। यही कारण है कि पोस्ट कोविड ओपीडी में हर दिन कुछ मरीज इस तरह के आ रहे हैं।
चिकित्सकों के अनुसार कई ऐसे मरीज भी मिल रहे हैं, जिन्हें कोई लक्षण नहीं हैं। उनके फेफड़े का सीटी स्कैन भी सामान्य मिल रहा है, लेकिन उनमें डी-डाइमर तीन से पांच गुना तक बढ़ा हुआ पाया गया है। ऐसे रोगियों में ज्यादा थकान, मांसपेशियों में दर्द और सांस फूलना डी-डाइमर बढ़ने का संकेत हो सकता है। आमतौर से ऐसी दशा में रोगियों को खून पतला करने की दवाएं दी जाती हैं, जो उन्हें काफी राहत देती हैं।
हाल के दिनों में कोरोना से संक्रमित मरीजों को लेकर कई तरह के अध्ययन किये गये हैं। अमेरिका के माउंट सिनाई अस्पताल के शोधकर्ताओं के अनुसार, इस तरह के मामले पाए गए हैं, डॉक्टरों को इस तरह की संभावित जटिलताओं के प्रति अवगत रहना चाहिए। अध्ययन की प्रमुख शोधकर्ता और इकान स्कूल ऑफ मेडिसिन की निदेशक ने कहा है कि उन कुछ चुनिंदा लोगों में भी हार्ट फेल होने का खतरा पाया गया, जिनमें पहले से इस जोखिम का कोई कारक नहीं था। हमें इस संबंध में और समझने की जरूरत है कि कोरोना वायरस हृदय प्रणाली को कैसे सीधे प्रभावित कर सकता है।
अमेरिकन कॉलेज ऑफ कार्डियोलॉजी पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक, शोधकर्ताओं ने पिछले साल 27 फरवरी से लेकर 26 जून के दौरान माउंट सिनाई हेल्थ सिस्टम के अस्पतालों में भर्ती रहे 6,439 कोरोना मरीजों के चिकित्सीय इतिहास पर अध्ययन किया था। उन्होंने इनमें से 37 रोगियों में हार्ट फेल के नए केस पाए थे। हैरानी की बात यह है कि इन रोगियों में से आठ में पहले से हृदय संबंधी कोई समस्या नहीं थी। हालांकि 14 पीड़ित व्यक्ति हृदय रोग का पहले सामना कर चुके थे, जबकि 15 हृदय रोग से पीड़ित नहीं थे, लेकिन इनमें हार्ट अटैक के खतरे का एक कारक पाया गया था।
एक अन्य अध्ययन के अनुसार कोविड-19 रोगियों को संक्रमण के बाद दिल का दौरा पड़ने पर मौत होने का खतरा हो सकता है। कुछ दिनों पहले प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया है कि इस मामले में महिलाएं विशेष रूप से अधिक संवेदनशील हैं। स्वीडन में किये गए अध्ययन में पाया गया है कि कोविड-19 की चपेट में आईं महिलाओं की दिल का दौरा पड़ने से मौत होने की आशंका पुरुषों के मुकाबले अपेक्षाकृत अधिक है।
'यूरोपियन हार्ट' पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में बताया गया है कि इसमें 1,946 ऐसे लोगों को शामिल किया गया, जिन्हें बीते साल एक जनवरी से 20 जुलाई के बीच अस्पताल के बाहर किसी दूसरे स्थान पर दिल का दौरा पड़ा, जबकि 1,080 ऐसे लोग शामिल किये गए जिनके साथ अस्पताल में ऐसा हुआ था। स्वीडन के गोथेनबर्ग विश्वविद्यालय के अध्ययनकर्ताओं के अनुसार महामारी के दौरान किये गए अध्ययन में अस्पताल में दिल के दौरे का शिकार हुए 10 प्रतिशत लोग कोरोना वायरस से संक्रमित थे जबकि अस्पताल से बाहर ऐसे रोगियों की संख्या 16 प्रतिशत थी।
उन्होंने कहा कि अस्पताल में दिल के दौरे का शिकार हुए लोगों के तीस दिन के अंदर जान गंवाने का खतरा 3.4 गुणा बढ़ गया था, जबकि जिन लोगों के साथ अस्पताल से बाहर ऐसा हुआ, उनके समान अवधि में मरने का खतरा 2.3 गुणा अधिक था।
गोथेनबर्ग विश्वविद्यालय ने इस सम्बंध में कहा है, ''हमारे अध्ययन से साफ पता चलता है कि दिल का दौरा पड़ना और कोरोना वायरस से संक्रमित होना एक घातक संयोजन है।''
इस सम्बंध में दिल्ली के प्रसिद्ध हृदय रोग चिकित्सक डॉक्टर के.के. अग्रवाल ने कुछ दिनों पहले एक वीडियो जारी कर कहा है, यदि कोरोना के संक्रमण के समाप्त होने के बाद भी किसी व्यक्ति के सीने के बीचों-बीच जलन, घुटन, दवाब अथवा दर्द हो रहा है, पसीना या सांस फूलने जैसे लक्षण दिख रहे हैं, तो ऐसे में रोगियों को तुरंत वॉटर सॉल्युबल ऐस्प्रिन 300 मिली ग्राम की गोली चबा कर ले लेनी चाहिए, जिससे हृदयाघात की संभावना 22 फीसदी कम हो जाती है। उन्होंने जानकारी देते हुए कहा कि अगर किसी व्यक्ति की उम्र 30 साल से ऊपर है, कोविड का संक्रमण हुआ है, या उससे अभी उबरे हैं, और अचानक छाती के बीचोबीच, दबाव, घुटन जैसे लक्षण दिखें तो सबसे पहले ऐस्प्रिन चबा लें। अगर ऐस्प्रिन नहीं है तो आप डिस्प्रिन भी ले सकते हैं। ऐसे मामले में तुरंत चिकित्सक से सम्पर्क करना चाहिए, क्योंकि इस मामले में तनिक भी लापरवाही रोगी को बेहद भारी पड़ सकती है।
आभार
जवाब देंहटाएंमहत्वपूर्ण जानकरी के लिए
सादर
स्थिति चिंताजनक और बहुत गंभीर है आजकल
जवाब देंहटाएंसच तो यह है कि कोरोना वायरस को पूरी तरह से अभी तक कोई पकड़ ही नहीं पाया पाया है, बस नए-नए प्रयोगों का दौर चल रहा है नए-नए भयवाह स्ट्रेन आ रहे है देखने को, जाने क्या होगा बस यही सोच रहे हैं
बहुत सटीक जानकारी युक्त आलेख।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत लाभदायक लेख |
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