विज्ञान संचार पर विशेष श्रृंखला - कड़ी 5 विज्ञान संचार के नए आयाम New dimensions in Science Communication -अभय एस डी राजपूत एवं नवनीत...
विज्ञान संचार पर विशेष श्रृंखला- कड़ी 5
ऐसी मांगों को ध्यान में रखते हुए, हमें भारतीय विश्वविद्यालयों में मौजूदा विज्ञान पाठ्यक्रमों को मजबूत करने और विभिन्न विश्वविद्यालयों/संस्थानों, विशेषकर विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, चिकित्सा और कृषि के क्षेत्र में काम करने वाले संस्थानों में विज्ञान संचार के नए केंद्रों को स्थापित करने की आवश्यकता है। भारत में औपचारिक शिक्षा और अनुसंधान के रूप में विज्ञान संचार को पुनर्जीवित करने के लिए, आईआईटी (IITs), आईसर (IISERs), एनआईटी (NITs) एवं केंद्रीय विश्वविद्यालयों (Central Universities) जैसे विज्ञान और प्रौद्योगिकी आधारित डिग्री देने वाली संस्थाओं को इस दिशा में पहल करना चाहिए।
वर्तमान परिदृश्य के साथ जहां विज्ञान संचार में विश्वविद्यालय शिक्षा के मौजूदा औपचारिक पाठ्यक्रम बंद हो रहे हैं, हमें औपचारिक शिक्षा (पूर्णकालिक डिग्री और डिप्लोमा पाठ्यक्रम) के द्वारा विज्ञान संचार में क्षमता निर्माण के वैकल्पिक तरीकों को भी देखने की जरूरत है। कई वैज्ञानिक, विज्ञान स्नातक, विज्ञान संचारक, विज्ञान संचार उत्साही ऐसे तरीकों में रुचि रखते हैं। असल में कई लोगों के लिए औपचारिक शिक्षा के माध्यम से पूर्णकालिक एक या दो साल के कोर्स में शामिल होना मुश्किल हो सकता है। ऐसे में, विज्ञान संचार के भिन्न पहलूओं पर आधारित कम समय के कोर्स (short-duration courses), उदाहरण के लिए एक-दिन, दो-दिवसीय या एक सप्ताह, ज्यादा उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं।
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इस क्षेत्र में, दूरस्थ शिक्षा भी बेहद उपयोगी हो सकती है। अब, ऑनलाइन शिक्षा उन लोगों के लिए एक बेहतर विकल्प हो सकता है जिनकी इंटरनेट और आईटी-सक्षम प्लेटफॉर्म तक पहुंच है, जहां पठन सामग्री के साथ ही ऑडियो, वीडियो, लाइव-स्ट्रीमिंग, चर्चा, वाद-विवाद, मूल्यांकन, आदि सब ऑनलाइन हो सकते हैं। शिक्षा में, मूक (MOOC – Massive Online Open Courses) एक नया प्रयोग है। जिनकी रुचि है, उनको विज्ञान संबंधी प्रशिक्षण का विस्तार करने के लिए मूक का उपयोग प्रभावी हो सकता है। मूक में, नामांकन से लेकर अध्ययन, मूल्यांकन और प्रमाणीकरण सब कुछ ऑनलाइन किया जाता है। कुशल विज्ञान संचार शिक्षकों की कमी को देखते हुए और विश्वविद्यालय में मौजूदा विज्ञान संचार के पाठ्यक्रमों को बंद होता हुआ देखकर, मूक वास्तव में इस अंतर को भर सकता है। इससे सुदूर क्षेत्रों में रहने वाले छात्रों के लिए भी विज्ञान संचार से जोड़ा जा सकता है। वैज्ञानिकों और अन्य लक्ष्य समूहों की विशिष्ट मांगों के लिए मूक को डिज़ाइन किया जा सकता है।
हमें ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म और सोशल मीडिया पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है। इनकी मदद से, वैज्ञानिक सामग्री को प्रसारित करने और एक इंटरैक्टिव तरीके से उसे आकर्षक बनाने के साथ विज्ञान संचार को एक नया माध्यम मिला है। विज्ञान प्रसार (Vigyan Prasar) द्वारा आरंभ की गयी इंडिया साइंस वायर (India Science Wire) इस दिशा में अच्छा कदम है। इसी प्रकार से दृश्य विज्ञान कार्यक्रमों के लिए निस्केयर द्वारा सीएसआईआर—निस्केयर टयूब (CSIR-NISCAIR Tube) एक अच्छा माध्यम है। विज्ञान प्रसार द्वारा भी इंटरनेट बेस टीवी (IPTV) पर कार्य किया जा रहा है जिसके माध्यम से देश भर में उपलब्ध लोकप्रिय विज्ञान के दृश्य कार्यक्रमों को आसानी से इंटरनेट के द्वारा मोबाईलों, कम्प्यूटरों आदि में देखा जा सकेगा।
युवा पीढ़ी द्वारा स्मार्ट फोन का उपयोग और डिजिटल इंडिया स्कीम के तहत जनता तक हाई-स्पीड इंटरनेट पहुंचने की बढ़ती हुई उम्मीद इस दिशा में और सहायक हो सकती है। सोशल मीडिया और अन्य ऑनलाइन प्लेटफार्मों का इस्तेमाल, विज्ञान संचार को तेजी से प्रसारित करने और उपयोगकर्ताओं से प्रतिक्रियाओं को आकर्षित करने के लिए भी किया जा सकता है। विज्ञान संचार में क्षमता निर्माण के लिए भी ये उपयोगी हो सकते हैं । इसी तरक चित्रकलाओं आदि में माध्यम से भी विज्ञान को लोकप्रिय करने की शुरूआत हुई है।
केंद्र सरकार की डिजिटल भारत योजना के शुभारंभ के साथ, सभी विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालयों, विभागों और संस्थानों (अन्य के बीच) को पहले ही सूचित किया गया है कि वे विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर अपनी उपस्थिति दर्ज करें और जनता को सूचनाएं प्रसारित करें और जनता से जुड़ें। अब इनमें से अधिकतर सरकारी संस्थान फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब, आदि प्लेटफार्मों के माध्यम से जनता से संवाद स्थापित कर रहे हैं।
समाज में विज्ञान लोकप्रियकरण और विज्ञान के सामान्यीकरण के लिए, हमें प्रशिक्षित और कुशल विज्ञान संचार पेशेवरों की आवश्यकता है। इसके लिए विज्ञान संचार में क्षमता निर्माण के लिए लगातार प्रयासों की आवश्यकता है। इस दिशा में विज्ञान संचार में औपचारिक और अनौपचारिक शिक्षा और क्षमता निर्माण के लिए नए रास्ते बनाने और मूक और सोशल मीडिया जैसे विकल्प तलाशने के दौरान मौजूदा विज्ञान पाठ्यक्रमों को मजबूत करना भी शामिल हो सकता है।
अभय एसडी राजपूत विज्ञान संचारक हैं। पिछले कई सालों से विभिन्न मीडिया माध्यमों से विज्ञान संचार के कार्य में संलग्न हैं। आपको रजत जयंती विज्ञान संचार अवार्ड-2008 और एस. रामासेशन विज्ञान लेखन फैलोशिप-2008 के प्राप्त हो चुके हैं। आप विज्ञान लेखन के साथ-साथ, विज्ञान संचार में शोधकार्य में भी रूचि रखते हैं।
नवनीत कुमार गुप्ता पिछले दस वर्षों से विभिन्न माध्यमों द्वारा विज्ञान संचार के कार्य में संलग्न हैं। आपकी विज्ञान संचार विषयक लगभग एक दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं तथा इन पर गृह मंत्रालय के ‘राजीव गांधी ज्ञान विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन पुरस्कार' सहित अनेक पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। आप विज्ञान संचार के क्षेत्र में कार्यरत संस्था ‘विज्ञान प्रसार’ से सम्बंद्ध हैं।
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विज्ञान संचार के नए आयाम
New dimensions in Science Communication
-अभय एस डी राजपूत एवं नवनीत कुमार गुप्ता
वैज्ञानिकों सहित विभिन्न समूहों द्वारा विज्ञान संचार के क्षेत्र में कौशल और क्षमताओं को बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों की कथित मांग उठती रही है। कार्यरत वैज्ञानिक भी अब महसूस कर रहे हैं कि अपने शोध के बारे में सूचना अंतिम उपयोगकर्ताओं और हितधारकों तक प्रभावी ढंग से (सीधे या मीडिया के माध्यम से) प्रेषित करना आवश्यक है।ऐसी मांगों को ध्यान में रखते हुए, हमें भारतीय विश्वविद्यालयों में मौजूदा विज्ञान पाठ्यक्रमों को मजबूत करने और विभिन्न विश्वविद्यालयों/संस्थानों, विशेषकर विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, चिकित्सा और कृषि के क्षेत्र में काम करने वाले संस्थानों में विज्ञान संचार के नए केंद्रों को स्थापित करने की आवश्यकता है। भारत में औपचारिक शिक्षा और अनुसंधान के रूप में विज्ञान संचार को पुनर्जीवित करने के लिए, आईआईटी (IITs), आईसर (IISERs), एनआईटी (NITs) एवं केंद्रीय विश्वविद्यालयों (Central Universities) जैसे विज्ञान और प्रौद्योगिकी आधारित डिग्री देने वाली संस्थाओं को इस दिशा में पहल करना चाहिए।
वर्तमान परिदृश्य के साथ जहां विज्ञान संचार में विश्वविद्यालय शिक्षा के मौजूदा औपचारिक पाठ्यक्रम बंद हो रहे हैं, हमें औपचारिक शिक्षा (पूर्णकालिक डिग्री और डिप्लोमा पाठ्यक्रम) के द्वारा विज्ञान संचार में क्षमता निर्माण के वैकल्पिक तरीकों को भी देखने की जरूरत है। कई वैज्ञानिक, विज्ञान स्नातक, विज्ञान संचारक, विज्ञान संचार उत्साही ऐसे तरीकों में रुचि रखते हैं। असल में कई लोगों के लिए औपचारिक शिक्षा के माध्यम से पूर्णकालिक एक या दो साल के कोर्स में शामिल होना मुश्किल हो सकता है। ऐसे में, विज्ञान संचार के भिन्न पहलूओं पर आधारित कम समय के कोर्स (short-duration courses), उदाहरण के लिए एक-दिन, दो-दिवसीय या एक सप्ताह, ज्यादा उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं।
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इस क्षेत्र में, दूरस्थ शिक्षा भी बेहद उपयोगी हो सकती है। अब, ऑनलाइन शिक्षा उन लोगों के लिए एक बेहतर विकल्प हो सकता है जिनकी इंटरनेट और आईटी-सक्षम प्लेटफॉर्म तक पहुंच है, जहां पठन सामग्री के साथ ही ऑडियो, वीडियो, लाइव-स्ट्रीमिंग, चर्चा, वाद-विवाद, मूल्यांकन, आदि सब ऑनलाइन हो सकते हैं। शिक्षा में, मूक (MOOC – Massive Online Open Courses) एक नया प्रयोग है। जिनकी रुचि है, उनको विज्ञान संबंधी प्रशिक्षण का विस्तार करने के लिए मूक का उपयोग प्रभावी हो सकता है। मूक में, नामांकन से लेकर अध्ययन, मूल्यांकन और प्रमाणीकरण सब कुछ ऑनलाइन किया जाता है। कुशल विज्ञान संचार शिक्षकों की कमी को देखते हुए और विश्वविद्यालय में मौजूदा विज्ञान संचार के पाठ्यक्रमों को बंद होता हुआ देखकर, मूक वास्तव में इस अंतर को भर सकता है। इससे सुदूर क्षेत्रों में रहने वाले छात्रों के लिए भी विज्ञान संचार से जोड़ा जा सकता है। वैज्ञानिकों और अन्य लक्ष्य समूहों की विशिष्ट मांगों के लिए मूक को डिज़ाइन किया जा सकता है।
हमें ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म और सोशल मीडिया पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है। इनकी मदद से, वैज्ञानिक सामग्री को प्रसारित करने और एक इंटरैक्टिव तरीके से उसे आकर्षक बनाने के साथ विज्ञान संचार को एक नया माध्यम मिला है। विज्ञान प्रसार (Vigyan Prasar) द्वारा आरंभ की गयी इंडिया साइंस वायर (India Science Wire) इस दिशा में अच्छा कदम है। इसी प्रकार से दृश्य विज्ञान कार्यक्रमों के लिए निस्केयर द्वारा सीएसआईआर—निस्केयर टयूब (CSIR-NISCAIR Tube) एक अच्छा माध्यम है। विज्ञान प्रसार द्वारा भी इंटरनेट बेस टीवी (IPTV) पर कार्य किया जा रहा है जिसके माध्यम से देश भर में उपलब्ध लोकप्रिय विज्ञान के दृश्य कार्यक्रमों को आसानी से इंटरनेट के द्वारा मोबाईलों, कम्प्यूटरों आदि में देखा जा सकेगा।
युवा पीढ़ी द्वारा स्मार्ट फोन का उपयोग और डिजिटल इंडिया स्कीम के तहत जनता तक हाई-स्पीड इंटरनेट पहुंचने की बढ़ती हुई उम्मीद इस दिशा में और सहायक हो सकती है। सोशल मीडिया और अन्य ऑनलाइन प्लेटफार्मों का इस्तेमाल, विज्ञान संचार को तेजी से प्रसारित करने और उपयोगकर्ताओं से प्रतिक्रियाओं को आकर्षित करने के लिए भी किया जा सकता है। विज्ञान संचार में क्षमता निर्माण के लिए भी ये उपयोगी हो सकते हैं । इसी तरक चित्रकलाओं आदि में माध्यम से भी विज्ञान को लोकप्रिय करने की शुरूआत हुई है।
केंद्र सरकार की डिजिटल भारत योजना के शुभारंभ के साथ, सभी विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालयों, विभागों और संस्थानों (अन्य के बीच) को पहले ही सूचित किया गया है कि वे विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर अपनी उपस्थिति दर्ज करें और जनता को सूचनाएं प्रसारित करें और जनता से जुड़ें। अब इनमें से अधिकतर सरकारी संस्थान फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब, आदि प्लेटफार्मों के माध्यम से जनता से संवाद स्थापित कर रहे हैं।
समाज में विज्ञान लोकप्रियकरण और विज्ञान के सामान्यीकरण के लिए, हमें प्रशिक्षित और कुशल विज्ञान संचार पेशेवरों की आवश्यकता है। इसके लिए विज्ञान संचार में क्षमता निर्माण के लिए लगातार प्रयासों की आवश्यकता है। इस दिशा में विज्ञान संचार में औपचारिक और अनौपचारिक शिक्षा और क्षमता निर्माण के लिए नए रास्ते बनाने और मूक और सोशल मीडिया जैसे विकल्प तलाशने के दौरान मौजूदा विज्ञान पाठ्यक्रमों को मजबूत करना भी शामिल हो सकता है।
-लेखक परिचय-

नवनीत कुमार गुप्ता पिछले दस वर्षों से विभिन्न माध्यमों द्वारा विज्ञान संचार के कार्य में संलग्न हैं। आपकी विज्ञान संचार विषयक लगभग एक दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं तथा इन पर गृह मंत्रालय के ‘राजीव गांधी ज्ञान विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन पुरस्कार' सहित अनेक पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। आप विज्ञान संचार के क्षेत्र में कार्यरत संस्था ‘विज्ञान प्रसार’ से सम्बंद्ध हैं।
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