Stephen Hawking Biography in Hindi
प्रसिद्ध भौतिक और ब्रह्माण्ड विज्ञानी, अदम्य जिजीविषा के धनी और लेखक स्टीफन विलियम हॉकिंग Stephen William Hawking पूरी दुनिया के प्रेरणा के केन्द्र थे। वे कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में सैधांतिक ब्रह्माण्ड विज्ञान केंद्र Centre For Theoretical Cosmology के शोध निर्देशक रहे। उन्होंने ब्लैक होल और बिग बैंग थ्योरी की समझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके अतिरिक्त उन्होंने विकिरण radiation के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। शारीरिक रूप से पूर्णत: अक्षम होने के बावजूद उन्होंने दुनिया को यह दिखा दिया कि अगर व्यक्ति के भीतर हौसला हो, तो उसके लिए नामुमकिन कुछ भी नहीं है।
स्टीफन हॉकिंग का जन्म और बचपन
स्टीफ़न हॉकिंग का जन्म 8 जनवरी 1942 को ऑक्सफ़ोर्ड, इंग्लैंड में हुआ था। उनके पिता का नाम फ्रैंक (1905-1986) और माता का नाम इसोबेल (1915-2013) था। उनकी माता एक चिकित्सा अनुसंधान संस्थान में सचिव के रूप में कार्यरत थी और फ्रेंक उसी संस्थान में अनुसंधानकर्ता के रूप में कार्य करते थे। लेकिन इसके बावजूद उनकी आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं रही। द्वितीय विश्व युद्ध प्रारम्भ होने पर वे लोग आजीविका के लिए ऑक्सफोर्ड आ गये, जहां पर हॉकिंग का जन्म हुआ।
हॉकिंग के पिता चाहते थे वे जीव विज्ञान की पढ़ाई करें। पर उन्हें गणित में रूचि थी। उनकी गणितीय रूचि इस बात से पता चलती है कि उन्होंने गणितीय समीकरणों को हल करने के लिए कुछ लोगों की मदद से पुराने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के हिस्सों से एक कंप्यूटर ही बना दिया था।
स्टीफन हॉकिंग की शिक्षा दीक्षा
प्रारम्भिक शिक्षा के बाद हॉकिंग ने यूनिवर्सिटी कॉलेज, ऑक्सफोर्ड में प्रवेश लिया। स्टीफन हॉकिंग बचपन में बेहद सामान्य छात्र थे, लेकिन वे स्नातक की परीक्षा में फिजिक्स में अव्वल रहे। इसके बाद वे कॉस्मोलॉजी पढ़ने के लिए कैंब्रिज चले गये। वहां उन्होंने ब्रह्मांड विज्ञान में शोध किया। उन्होंने इसी विषय में पीएच.डी. की उपाधि हासिल की।
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दुर्लभ बीमारी की चपेट में
स्टीफन हॉकिंग जब 21 साल के थे, तो सीढियों से उतरते हुए बेहोश होकर नीचे गिर पड़े। उसी दौरान उनके शरीर में कुछ विशेष बदलाव देखने को मिले। जब उनकी गम्भीर जांच की गयी, तो डॉक्टरों को पता चला कि वे मांसपेशियों और मस्तिष्क से जुड़ी बीमारी अमायोट्राफिक लेटरल स्कलेरोसिस की चपेट में हैं। इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति के सारे अंग धीरे धीरे काम करना बंद कर देते है। और अंतत: श्वास नली बंद हो जाने से मरीज की मृत्यु हो जाती है।
डॉक्टरों ने बताया कि हॉकिंग अब अधिकतम दो सालों के मेहमान हैं। लेकिन हॉकिंग ने हार नहीं मानी। उन्होंने कहा कि मैं दो नहीं, बीस नहीं, पूरे पचास सालों तक जियूंगा। उस समय किसी को उनकी बात पर भरोसा नहीं था। लेकिन सभी लोगों ने उन्हें ढाढस बंधाने के लिए उनकी हां में हां मिला दी। पर दृढ इच्छाशक्ति के धनी हॉकिंग ने जो कहा वो कर दिखाया। और वे आगे पचास सालों से भी अधिक समय तक समाज को अपनी सेवाएं देते रहे।
स्टीफन हॉकिंग का विवाह
जनवरी 1965 में नये साल के जश्न में स्टीफन हाकिंग की मुलाकात जेन वाइल्ड से हुयी। जेन हॉकिंग के खुशदिल स्वभाव और उनकी मेधा से बहुत प्रभावित हुईं और वे उनसे प्रेम करने लगीं। 14 July 1965 को जेन और स्टीफन का विवाह हो गया। तब तक हॉकिंग का पूरा दाहिना हिस्सा निर्जीव हो चुका था और वो स्टिक के सहारे ही चल-फिर पाते थे। लेकिन जेन ने उनका साथ नही छोड़ा। वे समर्पित भाव से स्टीफेन की सेवा में लगी रहतीं, जिससे वे अपना सम्पूर्ण समय अपने शोध कार्य को दे सकें। इस बीमारी के चलते उन्हें बाद में बोलने में भी काफी परेशानी होती थी, इस वजह से वे स्पीच जनरेटिंग डिवाइस का उपयोग करने लगे। बीमारी बढ़ने पर जब वे चलने-फिरने में पूर्णत: असमर्थ हो गये, तो उन्होंने तकनिकी रूप से सुसज्जित व्हील चेयर का इस्तेमाल शुरू कर दिया, पर कभी बीमारी के आगे हार नहीं मानी।
स्टीफन हॉकिंग तीन बच्चों के पिता भी बने। लेकिन सन 1995 में स्टीफन हॉकिंग को उनकी पहली पत्नी जेन वाइल्ड ने तलाक दे दिया। इस तलाक की वजह उनके नास्तिकता सम्बंधी विचारों को माना जाता है। वे तर्कशील वैज्ञानिक थे और अपने तर्कों से ईश्वर की सत्ता को चुनौती देते रहते थे, जो जेन वाइल्ड को पसंद नहीं थे। इसके बाद इलियाना मेसन नामक नर्स से उनकी दूसरी शादी हुई। लेकिन यह शादी भी लम्बी नहीं चली और 2007 में फिर उनका तलाक हो गया।
स्टीफन हॉकिंग के शोध कार्य
स्टीफन ने कभी भी बीमारी को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। उन्होंने शारीरिक अक्षमता के बावजूद अपना रिसर्च कार्य जारी रखा। सन 1965 में उनका पहला शोध लेख 'ऑन द हॉयले नार्लीकर थ्योरी ऑफ ग्रेविएशन' प्रोसीडिंग ऑफ द रॉयल सोसाइटी में प्रकाशित हुआ। 1966 में उन्हें डॉक्टरेट की डिग्री मिली। उन्होंने इसके बाद लंदन के गणितज्ञ रोजर नेलरोज के साथ मिलकर ब्लैक होल पर शोध कार्य प्रारम्भ किया और क्वांटम सिद्धांत और सामान्य आपेक्षिकता का उपयोग करके ब्लैक होल से विकिरण उत्सर्जन का प्रदर्शन करने में सफलता प्राप्त हुई।
हॉकिंग को 32 साल की उम्र में रॉयल सोसायटी का सदस्य चुना गया। ये यह उपलब्धि हासिल करने वाले सबसे कम्र उम्र के वैज्ञानिक थे। सन 1979 में वे कैम्ब्रिज में गणित के प्रोफेसर बने। सन 1988 उनकी “A BRIEF HISTORY OF TIME“ पुस्तक प्रकाशित हुई, जिसने दुनिया भर तहलका मचा दिया। गिनीज बुक के अनुसार यह सर्वाधिक बिक्री वाली सदाबहार पुस्तक है, जो सभी को आकर्षित करती रहती है।
हॉकिंग की खोजों से सम्बंधित उनकी दूसरी पुस्तक 'The Cosmos Explained' है, जो 1998 में प्रकाशित हुई। इस पुस्तक में उन्होंने मानव के अस्तित्व के आधार और आसपास मौजूद चीजों से उसके सम्बंध को व्याख्यायित किया है। उनकी एक अन्य पुस्तक 'Universe in a Nutshell' (2001) है, जिसमें उन्होंने भौतिकी की हाल की खोजों का रहस्योदघाटन किया है।
स्टीफन हॉकिंग के जीवन पर आधारित फिल्म
स्टीफन हॉकिंग और जेन वाइल्ड की लव स्टोरी पर वर्ष 2014 में 'The Theory of Everything' भी बनी। इस हॉलीवुड मूवी में स्टीफन हॉकिंग का किरदार ब्रिटिश एक्टर एडी रेडमैन ने निभाया। फिल्म में एडी के किरदार को बहुत पसंद किया गया। इसके लिए उन्हें उस साल का बेस्ट एक्टर का ऑस्कर भी प्राप्त हुआ।
स्टीफन हॉकिंग ने स्वयं भी अनेक टीवी शो में भाग लिया। खासकर मशहूर टीवी शो 'The Bigbang Theory' में उन्होंने कई एपीसोड में भाग लिया और ब्रह्मांड की घटनाओं को समझाने वाले नियमों को सरल भाषा में दर्शकों को समझाया।
स्टीफन हॉकिंग के पुरस्कार एवं सम्मान
स्टीफन हॉकिंग को यूं तो एक दर्जन से अधिक पुरसकार/सम्मान प्राप्त हुए, जिनमें रॉयल सोसाइटी मेडल (1976), अल्बर्ट आइंस्टाइन मेडल (1979), आर्डर ऑफ द ब्रिटिश एंपायर (1982), भौतिकी का वुल्फ अवार्ड (1988), प्रिंस ऑफ आस्ट्रियन अवार्ड (1989), अमेरिकी फिजिक्स सोसाइटी का जूलियस एडगर लिनिफील्ड अवार्ड (1999) और अमेरिका का सर्वोच्च नागरिक सम्मान राष्ट्रपति पदक (2009) प्रमुख हैं।
स्टीफन हॉकिंग की मृत्यु
स्टीफन हॉकिंग को जीनियसों का भी जीनियस माना जाता है। उनका IQ 160 है, जो स्वयं इस बात की गवाही देता है। हॉकिंग ने जीवन में सभी तरह की चुनौतियों का सामना डट कर किया और उनपर फतेह पाई। वर्ष 2007 में उन्होंने विशेष रूप से तैयार किये गये विमान में गुरूत्वाकर्षणविहीन क्षेत्र में उड़ान भरी और सकुशल धरती पर लौटे। उन्होंने अपनी बीमारी से जूझते हुए 76 साल का सफलतम जीवन जिया। और अन्त में 14 मार्च 2018 को वे धरती को अलविदा कह गये। पर अपने पीछे छोड़ गये एक ऐसी प्रेरक दास्तान जो आने वाली सदियों तक लोगों को प्रेरित करते रहेंगे।
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