Wetlands for a Sustainable Urban Future in Hindi.
जैवविविधता का भंडार- नमभूमियां
-नवनीत कुमार गुप्ता
नमभूमियों के अंतर्गत झीलें, तालाब, दलदली क्षेत्र, होज, कुण्ड, पोखर एवं तटीय क्षेत्रों पर स्थित मुहाने, लगून, खाड़ी, ज्वारीय क्षेत्र, प्रवाल क्षेत्र, मैंग्रोव वन आदि ऐसे क्षेत्र शामिल होते हैं। असल में नमभूमि Wetland नमी या दलदली क्षेत्र होते हैं जो अपनी अनोखी पारिस्थितिकी के कारण महत्वूपर्ण हैं। गुजरात को नलसरोहर, उड़ीसा की चिल्का झील और भितरकनिका मैंग्रोव क्षेत्र, राजस्थान का केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान, दिल्ली का ओखला पक्षी अभयारण्य आदि नमभूमियों के कुछ उदाहरण हैं।

नमभूमि की मिट्टी झील, नदी, विशाल तालाब के किनारे का हिस्सा होता है जहां भरपूर नमी पाई जाती है। इसके कई लाभ भी हैं। नमभूमि जल को प्रदूषण से मुक्त बनाता है। वह क्षेत्र नमभूमि कहलाता है जिसका सारा या थोड़ा भाग वर्ष भर जल से भरा रहता है। भारत में नमभूमि ठंडे और शुष्क इलाकों से होकर मध्य भारत के कटिबंधी मानसूनी इलाका और दक्षिण के नमी वाले इलाकों तक में फैली हुई है। हमारे देश में दक्षिण प्रायद्वीप में उपस्थित नमभूमि अधिकतर मानव निर्मित हैं जिन्हें ‘येरी’ यानी हौदी कहते हैं। यह येरी मानव आवश्यकताओं के लिए जल उपलब्ध कराती हैं
भारत में नमभूमियां
नमभूमियां भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 4.7 प्रतिशत क्षेत्रफल पर फैली हुई हैं यानी कुल 15,26,000 वर्ग किलोमीटर भूमि पर। अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र, अहमदाबाद द्वारा तैयार राष्ट्रीय नमभूमि एटलस 2011 के अनुसार देश भर में लगभग 2,01,503 नमभूमियों की पहचान कर ली गयी है। कुल नमभूमियों में से 69.22 प्रतिशत क्षेत्र आंतरिक नमभूमियां क्षेत्र हैं। जबकि तटीय नमभूमियों का प्रतिशत 27.13 है।
नमभूमियों की भूमिका
नमभूमियों के असंख्य लाभों के कारण ये हमारे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। असल में नमभूमि की मिट्टी झील, नदी, विशाल तालाब या किसी नमीयुक्त किनारे का हिस्सा होता है जहां भरपूर नमी पाई जाती है। इसके कई लाभ भी हैं। भूमिगत जल स्तर को बढ़ानें में भी नमभूमियो की महत्वपूर्ण भूमिका है। इसके अलावा नमभूमि जल को प्रदूषण से मुक्त बनाता है। बाढ़ नियंत्रण में भी इनकी भूमिका महत्वपूर्ण होती है। नमभूमि तलछट का काम करती है जिससे बाढ़ जैसी विपदा में कमी आती है। नमभूमि शुष्क काम के दौरान पानी को सहजे रखती है बाढ़ के दौरान नमभूमियां पानी का स्तर कम बनाए रखने में सहायक होती है। इसके अलावा ऐसे समय में नमभूमि पानी में मौजूद तलछत और पोषक तत्वों को अपने में समा लेती है और सीधे नदी में जाने से रोकती है। इस प्रकार झील, तालाब या नदी के पानी की गुणवत्ता बनी रहती है। समुद्री तटरेखा को स्थिर बनाए रखने में भी नमभूमियां का महत्वपूर्ण योगदान होता है। ये समुद्र द्वारा होने वाले कटाव से तटबंध की रक्षा करती हैं।
[post_ads]
जैवविविधता का स्वर्ग- नमभूमियां
नमभूमियां जैव विविधता संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है। नमभूमियां बहुत सारे विलुप्त प्राय जीव का ठिकाना है। हमारे देश की पारिस्थितिकी सुरक्षा में इन नमभूमियों की अहम भूमिका है। खाद्यान्नों की कमी और जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरों के बीच हमें नमभूमियों को बचाने की जरूरत है ताकि वे अपनी पारिस्थितिकी भूमिका निभा सकें। नमभूमियां जैवविविधता को सुरक्षित रखती है। नमभूमियां शीतकालीन पक्षियों और विभिन्न जीव-जंतुओं का आश्रय स्थल होती हैं। विभिन्न प्रकार की मछलियां और जंतुओं के प्रजनन के लिए भी ये उपयुक्त होती हैं। नमभूमियां समुद्री तूफान और आंधी के प्रभाव को सहन करने की क्षमता रखती है।
नम भूमियां पानी के संरक्षण का एक प्रमुख स्रोत है। इन नम भूमियों पर विशेष मौसम में कई पक्षी आते हैं। पक्षियों का कलरव और रंग रूप, हमेशा से पक्षी निहारकों को इन नम भूमियों की ओर आकर्षित करते रहे हैं। ये नम भूमियां जैव विविधता के मामले में बहुत धनी होती हैं। भरतपुर स्थित केऊलादेव पक्षी विहार, कई प्रवासी पक्षियों की प्रसंदीदा स्थल है।
नमभूमियों का आर्थिक महत्व
नमभूमियां अपने आसपास बसी मानव बस्तियों के लिए जलावन, फल, वनस्पतियां, पौष्टिक चारा और जड़ी-बूटियों को स्रोत होती हैं। कमल जो कि दुनिया के कुछ विशेष सुंदर फूल होने के साथ ही भारत का राष्ट्रीय फूल है नमभूमियों में उगता है। नमभूमि विविधता से परिपूर्ण पारिस्थितितंत्र का द्योतक है।
लोकटक झील - अनोखी नमभूमि
मणिपुर की लोकटक झील देशी और विदेशी सैलानियों के लिए आकर्षण का केन्द्र है। इस झील को दुनिया भर में अपनी तरह का अकेला ‘तैरता वन्य प्राणी विहार’ का दर्जा हासिल है। लेकिन प्रदूषण के चलते अब इसमें हानिकारक खरपतवार उग रहे हैं। पारिस्थितिय दृष्टि से यह झील अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस झील में एक तैरता पौध उगता है जिसे ‘बुल लामजाओ खरपतवार’ या ‘फुमड़ी’ कहते हैं। यह पौधा केवल यहीं उगता है और कहीं नहीं। इस पौधे पर एक हिरण की प्रजाति पलती है जिसे पिगभी हरिण (संगाई) कहा जाता है। फुमड़ी पौधे की संख्या कम हो जाने से पिगती हरिण (संगाई) की संख्या भी कम होने लगी है। इनकी संख्या 100 से कम हो गई है।
नमभूमियों पर मंडराता संकट
वर्तमान में भारत की बहुत सी नमभूमियों के भविष्य पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। नमभूमियां प्रदूषण के कारण संकट में हैं। तेजी से बढ़ते कंक्रीट के जंगल, उद्योग, शहरीकरण के लिए जलग्रहण क्षेत्र से छेड़छानी, हजारों टन रेते का जमाव और कृषि रसायनों के जहरीले पानी का आ मिलना नमभूमियों की बर्बादी का कारण है। भारत में ऐसे कई उदाहरण मौजूद हैं जहां नमभूमियां की बर्बादी के साथ ही जंगली जानवरों या पौधों पर संकट मंडरा रहा है। उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल के दलदली क्षेत्र में ‘दलदली हिरण’ पाया जाता है। यह हिरण भी कम हो रहा है। इस प्रजाति के हिरणों की संख्या लगभग एक हजार बची है। इसी प्रकार तराई वाले क्षेत्रों में पाई जाने वाली फिशिंग कैट यानी मच्छीमार बिल्ली पर भी बुरा असल पड़ रहा है। इसके साथ ही गुजरात के कच्छ क्षेत्र में जंगली गधा भी खतरे में है।
असम के काजीरंगा और मानव दलदलीय क्षेत्रों से जुड़ा एक सींग वाला भारतीय गैंड़ा भी विलुप्तप्राय प्राणियों की श्रेणी में शामिल है। इसी प्रकार अनेक ऐसे जीव जो नमभूमियों से जुड़े हैं संकट में है जैसे ओटर, गैंजेटिक डॉल्फिन, डूरोंग, एशियाई जलीय भैस आदि।
नमभूमियां प्रवासी पक्षियों की पनाहस्थली के रूप में विख्यात है। ऐसे क्षेत्र पट्ट शीर्ष राजहंस, पनकौआ, बायर्स वाचार्ड, ओस्प्रे, इंडियन स्किम्मर, श्याम गर्दनी बगुला, संगमरमरी टील, बंगाली फ्लोरीकान पक्षियों का मनपसंद स्थल होते हैं।
रेंगने वाले जीव जैसे समुद्री कछुआ, घड़ियाल, मगरमच्छ, जैतूनी रिडली और जलीय मॉनीटर पर भी नमभूमियों के प्रदूषित होने के कारण संकट मंडरा रहा है। जीवों के अतिरिक्त कुछ वनस्पतियां भी नमभूमि के संकट से प्रभावित हो रही हैं।

संरक्षण के प्रयास
कई सारे वनस्पति, सरीसृप, पक्षियों और जनजाति आदि की निवास स्थली यह नम भूमियां बढ़ते प्रदूषण, बिगड़ती जलवायु, विकास के दुष्परिणामों आदि के कारण अपना स्वरूप खोती जा रही हैं । भारत में नमभूमि के संरक्षण के लिए पर्यावरण मंत्रालय द्वारा 1987 से एक कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत अभी तक 15 राज्यों में 27 नमभूमि क्षेत्र चिन्ह्ति किए गए हैं। इनके अंतर्गत पंजाब में कंजली और हिरके, उड़ीसा में चिल्का, मणिपुर में लोकटक, चंडीगढ़ में सुखना और हिमाचल में रेणुका क्षेत्र हैं। इन जगहों में संरक्षण और उनके बारे में जागरुकता लाने का प्रयास किए जा रहे हैं। इसके अलावा केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान, सुन्दरवन, मनास और काजीरंगा को ‘अंतर्राष्ट्रीय विरासत’ का दर्जा दिया गया है। इन क्षेत्रों में देश-विदेश के मेहमान पक्षी आते हैं। इसलिए इनको बचाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय पर प्रयास किए जा रहे हैं।
रामसर क्षेत्र
अभी तक विश्व भर के 2266 नमभूमियों को रामसर क्षेत्रों के रूप में चिन्हित किया गया है जो करीब 21 लाख हेक्टेयर में फैली हुई हैं। इन क्षेत्रों में से 35 प्रतिशत क्षेत्र पर्यटन संभावित क्षेत्र हैं। इनमें से 45 नमभूमियों को विश्व विरासत सूची में शामिल किया गया है। इस सूची में भारत का केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान भी शामिल है। सबसे अधिक 170 रामसर स्थल ब्रिटेन में हैं।
भारत ने इस समझौते पर 1981 में हस्ताक्षर किए और यहां के केवल 26 नमभियों को रामसार संरक्षित दलदलों का दर्जा हासिल है। जो 6,89,131 हेक्टयर में फैली हैं। उड़ीसा की चिलका झील और राजस्थान का केवलादेव राष्ट्रीय पार्क रामसार के तहत संरक्षित होने वाले पहले दो दलदल थे। भारत का सबसे बड़ा रामसर साइट भीमबंद-कोल वेटलैंड (1512.5) केरल में है।
विश्व नमभूमि दिवस
नमभूमियां व्यापक स्तर पर आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृति का आधार रही हैं। इसीलिए 2 फरवरी 1971 को 70 राष्ट्रों ने दलदलों पर एक सम्मेलन ईरान के रामसार शहर में बुलाया था। इसी दिन नमभूमियों के संरक्षण के लिए वहां एक अंतर्राष्ट्रीय संधि हुई थी जिसे रामसर संधि भी कहा जाता है। अब इस संधि पर 163 देषों ने हस्ताक्षर कर दिए हैं। यह संधि विश्व के दुर्लभ व महत्वपूर्ण नमभूमियों को रामसर स्थल के रूप में चिन्हित करने के साथ ही अनेक अन्य संस्थाओं के साथ मिलकर नमभूमियां के संरक्षण के लिए जागरूकता का प्रसार करती हैं। इसीलिए 1997 से प्रत्येक वर्ष 2 फरवरी को विश्व नमभमि दिवस के रूप में मनाया जाता है। जिसके अंतर्गत व्यापक रूप से आम लोगों को नमभूमियों के महत्व और लाभों के प्रति जागरूक करना है। इस वर्ष की थीम ‘‘कस्बाई क्षेत्रों के सतत विकास के लिए नमभूमि‘‘ (Wetlands for a Sustainable Urban Future) है। इसके अंतर्गत सतत विकास के लिए नमभूमियों के महत्व को प्रचारित करके उनके संरक्षण पर जागरूकता का प्रसार करना है।
- लेखक परिचय -
नवनीत कुमार गुप्ता पिछले दस वर्षों से पत्र-पत्रिकाओं, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन आदि जनसंचार के विभिन्न माध्यमों द्वारा वैज्ञानिक दृष्टिकोण और पर्यावरण संरक्षण जागरूकता के लिए प्रयासरत हैं। आपकी विज्ञान संचार विषयक लगभग एक दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं तथा इन पर गृह मंत्रालय के ‘राजीव गांधी ज्ञान विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन पुरस्कार' सहित अनेक पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। आप विज्ञान संचार के क्षेत्र में कार्यरत संस्था ‘विज्ञान प्रसार’ से सम्बंद्ध हैं। आपसे निम्न मेल आईडी पर संपर्क किया जा सकता है:

keywords: wetland in hindi, wetland information in hindi, wetland importance in hindi, speech on wetland in hindi, wetland day meaning in hindi, wetland in india in hindi, importance of wetland in hindi, world wetland day in hindi,


keywords: wetland in hindi, wetland information in hindi, wetland importance in hindi, speech on wetland in hindi, wetland day meaning in hindi, wetland in india in hindi, importance of wetland in hindi, world wetland day in hindi,
COMMENTS