Indian Achievements in Science and Technology in Hindi.
भारत में आज़ादी के बाद विज्ञान और प्रौद्योगिकी उपलब्धियां
सचिन नरवड़िया
भारत में विज्ञान की परम्परा विश्व की प्राचीनतम वैज्ञानिक परम्पराओं में से एक है। भारत के इतिहास पर नज़र डाले तो यहाँ विज्ञान का उदय 3000 ईसा पूर्व में हुआ था। हड़प्पा और मोहेंजोदड़ो की खुदाई से यह प्रमाण मिलते है की उन लोगो में वैज्ञानिक समझ थी। प्राचीन काल में अनेक क्षत्रो में भारत में विज्ञान में विविध खोज की गयी। इन खोजों में योगदान देनेवाले वैज्ञानिक चरक एवं सुश्रुत–चिकित्सा विज्ञान से, आर्यभट, ब्रह्मगुप्त और आर्यभट्ट द्वितीय – गणित से, नागार्जुन –रसायन विज्ञान से। इनकी खोजों का उपयोग आज के आधुनिक विज्ञान में किसी न किसी रूप में हो रहा हैं।
आज विज्ञान का स्वरूप काफी विकसित हो चुका है। पूरी दुनिया में तेजी से वैज्ञानिक खोजें हो रही हैं। इन आधुनिक वैज्ञानिक खोजों की दौड़ में भारत के जगदीश चंद्र बसु, प्रफुल्ल चंद्र राय, सी. वी. रमन, सत्येंद्रनाथ बोस, मेघनाथ साहा, प्रशांतचंद्र महाललोबिस, श्रीनिवास रामानुजन, हरगोविंद खुराना आदि का वनस्पति, भौतिकी, गणित, रसायन, यांत्रिकी, चिकित्सा विज्ञान, खगोल विज्ञान आदि क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान है।
सिन्धु सभ्यता के दौर में भवन-निर्माण, धातु-विज्ञान, वस्त्र-निर्माण, परिवहन-व्यवस्था आदि उन्नत दशा में विकसित हो चुके थे। फिर आर्यों के साथ भारत में विज्ञान की परंपरा और भी विकसित हो गई। इस काल में गणित, रसायन, खगोल, चिकित्सा, धातु आदि क्षेत्रों में विज्ञान ने खूब उन्नति की। विज्ञान की यह परंपरा ईसा के जन्म से लगभग 200वर्ष पूर्व से शुरू होकर ईसा के जन्म के बाद लगभग 11वीं सदी तक काफी उन्नत अवस्था में थी।
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भारत की आजादी के बाद भारत में प्रथम प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरु जी ने ऐसे कदम उठाये जिनके कारण उच्च शिक्षा और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी को बढावा मिल। भारत में भारतीय प्रोधोगिकी संस्थान (आई आई टी ) की स्थापना 22 सदस्यों की समिति जिनमें उस समय के प्रसिद्ध विज्ञानिको का समावेश था। आई आई टी का शुभारम्भ 18 अगस्त 1951 को खड़गपुर, पश्चिम बंगाल में उस समय के शिक्षा मंत्री श्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के द्वारा किया गया था। सन 1960 तक और ज्यादा आई आई टी बड़े शहर जैसे बॉम्बे, कानपुर और दिल्ली में खोले जा चुके थे। सन 1960 की शुरुवात में सोवियत संघ ने भारत में भारतीय अन्तरिक्ष संस्थान (ISRO) की स्थापना में सहयोग देते हुए भारत के अन्तरिक्ष अनुसन्धान कार्यक्रम को दिशा प्रदान की। भारत में अपने उन्नत परमाणु शक्ति का परिचय देते हुए 18 मई 1974 को पोखरण में पहला सफल परिक्षण किया।
26 सितंबर 1942 को सर ए. रामास्वामी मुदालियर और डॉ॰ शांतिस्वरूप भटनागर के प्रयासों के फलस्वरूप वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद्_Council of Scientific and Industrial Research-CSIR की स्थापना, नई दिल्ली में एक स्वायत्त संस्था के रूप में हुई।
स्वतंत्रता प्राप्ति के तुरंत बाद भारत का वैज्ञानिक विकास देश के प्रथम प्रधनमंत्री श्री पं॰ जवाहरलाल नेहरू के समय में हुआ। उन्होंने देश के वैज्ञानिक विकास के लिए लोगों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण यानी साइंटिफिक टेम्पर जगाने का संकल्प लिया। अपने वैज्ञानिक दृष्टिकोण के कारण ही उन्होंने इस कार्य को डॉ॰ शांतिस्वरूप भटनागर को सौंप दिया, जिसे डॉ॰ भटनागर ने सहर्ष स्वीकारा। परिणामस्वरूप, उन्हें औद्योगिक अनुसंधान का प्रणेता होने का गौरव प्राप्त हुआ। वैज्ञानिक अनुसंधान और आविष्कारों के लिए दिया जाने वाला देश का सर्वोच्च शांतिस्वरूप भटनागर पुरस्कार इन्हीं के नाम पर वैज्ञानिकों को दिया जाता है।
देश के समुचित वैज्ञानिक और औद्योगिक विकास के लिए डॉ॰ भटनागर ने अथक परिश्रम किया और इसके लिए उन्हें पं॰ नेहरू का भरपूर सहयोग मिला जिसके परिणामस्वरूप भारत में राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं की कड़ी स्थापित होती चली गई। इस कड़ी की पहली प्रयोगशाला पुणे स्थित राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला थी, जिसका उद्घाटन 3 जनवरी 1950 को पं॰ नेहरू ने किया। इसके बाद दिल्ली में राष्ट्रीय भौतिकी प्रयोगशाला तथा जमशेदपुर में राष्ट्रीय धत्विक प्रयोगशाला की स्थापना हुई। 10 जनवरी 1953 को नई दिल्ली में सी. एस. आई. आर. मुख्यालय का उद्घाटन हुआ। 1 जनवरी 1955 को जब डॉ॰ भटनागर की मृत्यु हुई थी, तब तक देश में विभिन्न स्थानों पर लगभग 15 राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं की स्थापना हो चुकी थी और ये सभी प्रयोगशालाएँ किसी-न-किसी उद्योग से जुड़ी थीं। इन सभी प्रयोगशालाओं का उद्घाटन और शिलान्यास पं॰ नेहरू द्वारा ही संपन्न हुआ। प्रयोगशालाओं की बढ़ती कड़ी को ‘नेहरू-भटनागर प्रभाव’ कहा गया है।
भारत की तृतीय प्रधनमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के अथक प्रयासों से आज स्थिति यह है कि भारत विज्ञान के किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं है। विकास की इस कड़ी में द्वितीय प्रधानमंत्री श्री लालबहादुर शास्त्री के ‘अधिक अन्न उपजाओ’ अभियान ने जहाँ हरित क्रांति के द्वारा खोले, वहीं अन्य क्षेत्रों में भी वैज्ञानिक प्रगति हुई। परिणामस्वरूप आजादी के बाद के इन वर्षों में कृषि, चिकित्सा, परमाणु ऊर्जा, इलेक्ट्रॉनिकी, संचार, अंतरिक्ष, परिवहन और रक्षा विज्ञान के क्षेत्र में हुई प्रगति के कारण आज भारत देश विकासशील देशों की श्रेणी में अग्रणी है।
कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का मुख्य अंग रही है। देश की कुल आबादी के लगभग 70 प्रतिशत व्यक्ति कृषि व्यवसाय से जुड़े हैं। डॉ॰ बी. पी. पाल, डॉ॰ एस.एम. स्वामीनाथन और डॉ॰ नॉरमन बोरलॉग के प्रयासों से भारत में आई हरित क्रांति के फलस्वरूप हम खाद्यान्न उत्पादन में विश्व में प्रथम स्थान पर हैं। कूरियन ने श्वेत क्रांति द्वारा हमें दुग्ध उत्पादन में भी शीर्ष स्थान पर पहुँचा दिया है, तो पशु-पालन, मछली-पालन, कुक्कुट पालन में हम स्वावलंबी बन चुके हैं। वर्ष 1905 में पूसा, बिहार में इम्पीरियल एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना से लेकर वर्तमान 'भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद तक हमने लंबा सफर तय करके कम समय में अधिक उपज देने वाली नई-किस्में विकसित कर ली हैं।
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10 अगस्त 1948 को परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग के लिए डॉ॰ होमी जहाँगीर भाभा के प्रयासों से परमाणु ऊर्जा आयोग का गठन हुआ था। तब से लेकर आज तक हुए विकास के फलस्वरूप हम खनिज अनुसंधान के लिए ईंधन निर्माण, व्यर्थ पदार्थों से ऊर्जा उत्पादन, कृषि चिकित्सा उद्योग एवं अनुसंधान में आत्मनिर्भर हो गए हैं। परमाणु ऊर्जा के अंतर्गत नाभिकीय अनुसंधान के क्षेत्र में मुंबई स्थित भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र की भूमिका सराहनीय है। यहाँ हो रहे नित नए अनुसंधानों के कारण हम पोखरण-2 का सफल परीक्षण कर विश्व की परमाणु शक्ति वाले देशों की पंक्ति में आ खड़े हुए हैं।
सन् 1970 में भारत सरकार ने इलेक्ट्रॉनिकी विभाग की स्थापना की। यह विभाग इलेक्ट्रॉनिकी उद्योग के प्रत्येक क्षेत्र में नीतियाँ तैयार करता है। सूचना प्रौद्योगिकी, विशेष रूप से कंप्यूटर तथा संचार की दिशा में हो रहे विकास ने दूरसंचार तथा कंप्यूटर उद्योग में क्रांति ला दी है। डिजिटल प्रौद्योगिकी पर आधरित मोबाइल, सेलुलर, रेडियो, पेजिंग, इंटरनेट के आगमन ने सूचना और संचार के क्षेत्र में काफ़ी परिवर्तन ला दिया है। प्रत्यक्ष प्रमाण आज हमारे सामने हैं।
इसी तरह चिकित्सा के क्षेत्र में कैट-स्कैनर, रक्षा विज्ञान के क्षेत्र में मिसाइलें, राडार और परमाणु अस्त्र, सूचना जगत में उपग्रहों, परिवहन के क्षेत्र में मोटर कारों व वायुयानों तथा कृषि के क्षेत्र में रासायनिक उर्वरकों और कृषि उपकरणों का विकास भी मिश्रित वैज्ञानिक उपलब्धियाँ हैं। भारत इन सभी क्षेत्रों में सहभागी है। आज भारत न सिर्फ दूसरे देशों से तकनीक लेकर अद्भुत कार्य कर रहा है बल्कि मौलिक स्तर पर भी अपना योगदान कर रहा है। भारत हर प्रकार से समाज के विभिन्न क्षेत्रों में वैज्ञानिक विकास में अग्रणी है।
आधुनिक युग में भारत में विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में नए-नए प्रयोग लगातार होते रहे, किंतु कुछ भारतीय वैज्ञानिक उपलब्धियों के कारण पूरी दुनिया में भारत का नाम रोशन हुआ। प्रमुख वैज्ञानिकों में जगदीश चंद्र बोस, सी.वी. रमण, होमी जहाँगीर भाभा, शांतिस्वरूप भटनागर, एम. एन. साहा, प्रफुल्लचंद्र राय, हरगोविंद खुराना आदि नाम उल्लेखनीय हैं। जगदीश चंद्र बोस ने उचित साधनों और उपकरणों के अभाव में भी अपना कार्य जारी रखा। उन्होंने लघु रेडियो तरंगों का निर्माण किया। विद्युत चुंबकीय तरंगों के प्रयोग उन्होंने मारकोनी से पहले ही पूरे कर लिए थे। पौधं में जीवन के लक्षणों की खोज उनकी महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है।
सी.वी. रमण एक प्रतिभावान वैज्ञानिक थे। उन्होंने प्रकाश किरणों की गुणधर्मिता तथा आकाश और समुद्र के रंगों की व्याख्या पर विशेष शोध किया। अपने शोध के लिए उन्हें 1930 में नोबेल पुरस्कार भी मिला। एस. रामानुजन असाधरण प्रतिभावान गणितज्ञ थे। गणितीय सिद्धंतों के क्षेत्र में उनके अनुसंधान के कारण उन्हें बहुत यश और ख्याति मिली। इसी विद्वत-शृंखला में एक प्रसिद्ध वनस्पति और भूभर्ग शास्त्र बीरबल साहनी भी थे।
बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध का शिखर छूने वाले वैज्ञानिकों में एम. एन. साहा, एस.एन. बोस, डी. एन. वीजिया और प्रफुल्लचंद्र राय के नाम उल्लेखनीय हैं।
खगोल विज्ञान में प्राचीन अधययनों के आधर पर ही भारत के वैज्ञानिक अंतरिक्ष अनुसंधान कार्यों में लगे हैं। आज भारत के अंतरिक्ष वैज्ञानिक अपने बलबूते पर उपग्रह बनाकर और अपने ही शक्तिशाली राकेटों से उन्हें अंतरिक्ष में स्थापित करने में समर्थ हैं। पूर्णतः स्वदेश में निर्मित ध्रवीय प्रक्षेपण यान पी.एस.एल.वी.सी. 2 ने 26 मई 1999 को 11 बजकर 52 मिनट पर श्रीहरिकोटा से एक सफल उड़ान भरी और एक भारतीय उपग्रह तथा दो विदेशी उपग्रहों को अंतरिक्ष में निर्धरित कक्षा में स्थापित कर दिया। अंतरिक्ष कार्यक्रमों में भारत काफ़ी आगे पहुँच चुका है। इसके साथ ही भारत के दूर संवेदी नेटवर्क में 634 ग्रह शामिल हो गए हैं। हमारा यह दूर संवेदी नेटवर्क संसार का सबसे बड़ा दूरसंवेदी नेटवर्क है। अंतरिक्ष कार्यक्रमों का विकास संचार माधयमों तथा रक्षा मामले संबंध सफलताओं में काफ़ी सहायक सिद्ध हुआ है। आज भारत विभिन्न दूरियों तक मार करने वाले प्रक्षेपास्त्र बनाने में समर्थ है। प्रतिरक्षा के क्षेत्र में अनेक उल्लेखनीय सफलताएँ मिली हैं।
भारत में विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी निति 2013 की कुछ ख़ास बातें हैं:-
• विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवीनता के बीच सहक्रियाओं का विकास करना
• भारतीय संदर्भ में नवाचार पर एक नए परिप्रेक्ष्य प्रदान करना
• भारत में एक विज्ञान, शोध और नवाचार प्रणाली बनाने के लिए एक उच्च-प्रौद्योगिकी पथ का उल्लेख करना
• समाज के सभी वर्गों में वैज्ञानिक स्वभाव के प्रसार को बढ़ावा देना
• सभी सामाजिक स्तरों से युवाओं के बीच विज्ञान के अनुप्रयोगों के लिए कौशल को बढ़ाना
• प्रतिभाशाली छात्रों के लिए आकर्षक विज्ञान, शोध और नवाचार में करियर बनाना
• विज्ञान के कुछ चुनिंदा सीमावर्ती क्षेत्रों में वैश्विक नेतृत्व प्राप्त करने के लिए विश्व स्तर के आरएंडडी ढांचे की स्थापना
• 2020 तक भारत की शीर्ष 5 वैश्विक वैज्ञानिक शक्तियों में स्थिति
• विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास में निवेश करने के लिए निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित करना।
• पीपीपी मोड के माध्यम से बड़े पैमाने पर आर एंड डी सुविधाएं स्थापित करना।
• अन्वेषकों और निवेशकों के बीच बौद्धिक संपदा साझा करने के लिए नियामक ढांचे की स्थापना
• नई तंत्र के माध्यम से एस एंड टी-आधारित उच्च जोखिम वाले नवाचारों को सुविधाजनक बनाना
• मानसिकता और मूल्य प्रणालियों में ट्रिगर करने वाले परिवर्तनों को पहचानने, सम्मान और इनाम देने के लिए
• 2034 तक जीडीपी के 2.4 प्रतिशत के लिए आर एंड डी खर्च बढ़ाना
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12 वी पंचवर्षीय योजना जो की 2012 से 2017 तक की अवधि में है उसकी विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी से संबंधित मुख्य विषय है।
भागीदारी के तहत प्रमुख राष्ट्रीय सुविधाओं का निर्माण, केंद्र-राज्य प्रौद्योगिकी साझेदारी के लिए कार्यक्रम, विज्ञान शिक्षण के लिए शिक्षकों बढावा, भारत और विदेशों में आर एंड डी के बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए मेगा विज्ञान में निवेश भागीदारी, अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों को बढ़ाने के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थानों में उचित संस्थागत ढांचे का निर्माण।
2010-2020 को अभिनव और उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए नवाचार का दशक घोषित किया गया है ताकि स्वास्थ्य देखभाल, ऊर्जा, आधारभूत संरचना संबंधी, जल एवं परिवहन जैसी सामाजिक आवश्यकताओं के समाधान के लिए यह उपयोगी साबित हो सके।
वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने पर लक्ष्य:
• डिजिटल मीडिया, लोक मीडिया और डिजिटल का उपयोग करने वाले लोगों को विज्ञान और प्रौद्योगिकी का संचार करना
राष्ट्रीय विज्ञान प्रौद्योगिकी संचार परिषद NCSTC के अंतर्गत किये जाने वाले कार्य:
• विज्ञान और प्रौद्योगिकी संचार, प्रोत्साहन कार्यक्रमों में प्रशिक्षण पर ध्यान देंना
एस एंड टी सॉफ्टवेयर, विकास और अनुसंधान के उत्पादन और प्रसार। एनसीएसटीसी के तहत महत्वपूर्ण पहलुओं में गणित जागरूकता। वैज्ञानिक जागरूकता के वर्ष पर अभियान, राष्ट्रीय विज्ञान दिन, राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस, विज्ञान एक्सप्रेस, आदि का समावेश है।
2015 में, पंजाब विश्वविद्यालय को भारत अग्रणी विज्ञान संस्थान के रूप में स्वीकार किया गया है| जो की 2010-14 के दौरान प्रकाशित शोध पत्रों के आधार पर किया गया। ये शोध पत्र साइटेशन इम्पैक्ट 1.4 वाले जर्नल में प्रकाशित हुए है।
नवंबर 2016 में, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, भारत सरकार और समुद्री एजेंसी-जापान के मध्य शैक्षिक अनुसंधान की उन्नति के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए।
नवंबर 2016 में, भारत एक परमाणु अनुसंधान के लिए यूरोपीय संगठन सहयोगी सदस्य बन गया है।
2016 में, भारत दुनिया भर में आर एंड डी खर्च के मामले में 6 वें स्थान पर रहा और 2018 तक जर्मनी और दक्षिण कोरिया से आगे निकल जाने की संभावना है।
2016 में, भारत में आर एंड डी के निवेश का अनुमान जीडीपी का 0.85 प्रतिशत था, जो आगे बढ़कर 2034 तक 2.4 प्रतिशत हो सकता है।
आरएंडडी निवेश 2020 के दौरान लगभग दो गुना वृद्धि दर्ज करके लगभग 38 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच जाएगा।
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