चोटी काटने वाली घटनाओं का पड़ताल करता एक महत्वपूर्ण आलेख।
रात के अंधेरे में महिलाओं की चोटी काटे जाने की खबरें जंगल में लगी आग की तरह फैल रही हैं। सिर्फ एक गांव या कस्बा नहीं, पूरे देश से ऐसी खबरें आ रही हैं और प्रिंट ही नहीं इलेक्ट्रानिक और सोशल मीडिया पर भी वायरल हो रही हैं। क्या है इन घटनाओं के पीछे का सच। पड़ताल कर रहे हैं युवा विज्ञान संचारक नवनीत कुमार गुप्ता।
कौन है यह चोटी काटने वाली चुड़ैल?
नवनीत कुमार गुप्ता
पिछले कुछ दिनों में भारत के ऐसे दो शीर्ष वैज्ञानिकों का निधन हुआ जिन्होंने अपने मौलिक विज्ञान कार्यों के अलावा देश में वैज्ञानिक सोच यानी वैज्ञानिक दृष्टिकोण के प्रसार के लिए ताउम्र कार्य किया। प्रोफेसर यशपाल और डा. पी. एम. भार्गव दोनों वैज्ञानिक समाज में वैज्ञानिक समझ के प्रसार के लिए कार्यरत रहे। लेकिन कभी—कभार होने वाली घटनाएं और उनके फैलने की तीव्रता हमें यह सोचने पर मजबूर कर देती हैं कि आजादी के 70 सालों के बाद भी समाज का बड़ा वर्ग अभी तार्किक दृष्टिकोण से दूर क्यों खड़ा है।
हाल ही के दिनों में उत्तर भारत के चार राज्यों में महिलाओं की चोटी काटने की घटनाएं प्रथम दृष्टि में मात्र अफवाह ही लगती हैं। जुलाई में सबसे पहले हरियाणा के कुछ इलाकों में महिलाओं की चोटी काटने की बात सामने आयी। धीरे—धीरे दिल्ली, उत्तरप्रदेश और राजस्थान के कुछ क्षेत्रों में भी ऐसी घटनाओं की खबरें आने लगी। खबरें आयी कि रात को सोते हुए कोई अदृश्य शक्ति महिलाओं की चोटी काट रही है।
विज्ञान के युग में इस तरह की बातें करना और उनको प्रसारित करना हमारी उस मानसिक प्रवृत्ति को बताता है जो बिना तर्क के किसी भी बात को मान लेती है। सभ्य और विकसित समाज में ऐसी घटनाएं हमारी सोचने—समझने की क्षमता पर प्रश्नचिन्ह लगाती हैं।
हालांकि यह पहला मौका नहीं है इससे पहले भी कई ऐसी घटनाएं प्रसारित हुई जिनका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं था। कुछ सालों पहले दिल्ली और उससे सटे इलाकों में मंकीमैन का खौफ काफी दिनों तक बना रहा। उस समय मंकीमैन को रबड़ के जूतों और हेलमेट वाला बताया जाता था। हालत यहां तक हो गए थे कि लोगों ने छतों पर सोना छोड़ दिया था। लेकिन बाद में पता चला ऐसा कुछ नहीं था। यह केवल अफवाह थी।
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अक्सर ऐसी घटनाएं कुछ मनचले लोगों की मनगढ़त कहानियां होती हैं जो अफवाह के पंखों पर सवाल होकर समाज के बड़े तबके को भयभीत कर देती हैं। अगर हम इन खबरों की पड़ताल करें तो हमारे हाथ कुछ नहीं आता है। दिल्ली के पालम इलाके में घटित ऐसी घटना की बात करें तो वहां जिस महिला का दावा है कि उसकी चोटी कटी है। वह चोटी कटने के पहले तीन बार सीसीटीवी फुटेज में आयी है। लेकिन चोटी कटने के समय वह सीसीटीवी कवरेज से दूर थी। इस प्रकार उसकी बात पर यकींन नहीं किया जा सकता है। अभी तक ऐसी कोई घटना शहर की किसी हाई—प्रोफाईल सोसायटी में नहीं हुई, जहां सीसीटीवी से हर क्षेत्र पर निगरानी रखी जाती है। चोटी काटने की घटनाएं ग्रामीण तबके में ही अधिक देखी जाती हैं।
ऐसी घटनाओं के चलते कई बार दुर्घनाएं भी घटित हो जाती हैं। इस महीने के शुरूआत में आगरा में भीड़ ने 65 वर्षीय मान देवी को पीट—पीटकर इसलिए हत्या कर दी क्योंकि उन्हें लगा कि यह औरत चौटी काटने आयी है। अनेक बार अनजाने में किसी व्यक्ति को केवल शक के आधार पर ऐसी घटनाओं के लिए प्रताड़ित कर दिया जाता है।
हमारे देश में अभी भी औरतों को डायन घोषित करके दंडित करने की घटनाएं आए—दिन होती रहती हैं। ऐसी घटनाएं सभ्य समाज में तो सहन करने लायक नहीं है। लेकिन निजी हितों और अफवाहों के आधार पर किसी को डायन या अन्य ऐसी नामों से प्रताड़ित कर समाज का एक वर्ग या कुछ लोग अपना हितसाधने का प्रयास करते हैं।
ऐसी घटनाओं के आरंभ में कोई मानसिक रोग भी हो सकता है। लेकिन एक बार अफवाह का रूप लेने के बाद इन घटनाओं से उस मानसिक रोगी का कोई संबंध नहीं रह जाता। फिर तो ऐसी घटनाएं दूसरों को भयभीत करती हैं।
ऐसा एक वाकिया मेरे परिचित का है। मेरे हरियाणा के एक परिचित दिल्ली काम करने आते हैं कभी—कभार रात दिल्ली में ही रूक जाते हैं। कल रात उनकी पत्नी का फोन आया कि ''उन्हें चोटी काटने वाली घटना के भय से नींद नहीं आ रही है। जब उनके पति ने उनसे कहा कि यदि दरवाजा बंद है और ताला भी लगा है तो फिर उन्हें डरने की जरूरत नहीं है तो उन्होंने बताया कि आज गांव की औरतें कह रही थी कि चोटी काटने वाली औरत दिखती नहीं है और कहीं भी आ-जा सकती है उसे कोई दरवाजा रोक नहीं सकता।''
अब इस मामले में दो बातों पर विरोधाभास है यदि चोटी काटने वाली अदृश्य है तो फिर कैसे पता चला कि वह महिला है। असल में ऐसी घटनाओं में हर कोई अपने मन से बात जोड़ता चला जाता है और जो अफवाह राई होती है, वह पहाड़ बन जाती है। हमें ऐसी बातों पर विराम लगाना चाहिए जिससे अफवाह बढ़े नहीं थम जाए।
आवश्यकता है ऐसी घटनाओं को विज्ञान की दृष्टि से समझने और उन पर चिंतन—मनन करने की। अफवाहों के आधार पर भयभीत होने मात्र से काम नहीं चलेगा हमें ऐसी बातों की सचाई भी सामने लानी होगी। इसके लिए हमें केवल विज्ञान विधि का अनुसरण करने की आवश्यकता है यानी जो भी घटना हो रही है उसकी प्रमाणिकता और वास्तविकता को जाने बगैर उसकी सत्यता को स्वीकार नहीं करना है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण का प्रसार गौतब बुद्ध से लेकर प्रोफेसर यशपाल और डा. पी. एम. भार्गव जैसे उन वैज्ञानिकों को सच्ची श्रद्धांजली होगी जो हमेंशा समाज में वैज्ञानिक सोच के प्रसार के लिए कार्यरत रहे हैं।
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नवनीत कुमार गुप्ता पिछले दस वर्षों से पत्र-पत्रिकाओं, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन आदि जनसंचार के विभिन्न माध्यमों द्वारा वैज्ञानिक दृष्टिकोण और पर्यावरण संरक्षण जागरूकता के लिए प्रयासरत हैं। आपकी विज्ञान संचार विषयक लगभग एक दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं तथा इन पर गृह मंत्रालय के ‘राजीव गांधी ज्ञान विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन पुरस्कार' सहित अनेक पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। आप विज्ञान संचार के क्षेत्र में कार्यरत संस्था ‘विज्ञान प्रसार’ से सम्बंद्ध हैं। आपसे निम्न मेल आईडी पर संपर्क किया जा सकता है:

सामयिक लेख। लेखक साधुवाद के पात्र हैं। मुंहनोचवा का भी ऐसा ही आतंक था। और मजे की बात देखिये कि ये घटनायें अमूमन गर्मियों में या बरसात के दिनों में जब उमस अधिक हो पानी कम गिर रहा हो और बिजली लम्बे समय तक गायब रह रही हो, घटती रही हैं। यह एक सामूहिक मतिभ्रम की स्थिति है और अपेक्षाकृत कमशिक्षा वाले तबकों में होती है।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंSir इसे post होने दे ताकि हमारे देश मे बेरोजगारी कम हो
जवाब देंहटाएंAabhar sahmat hai
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