Steady State Theory in Hindi.
ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति कैसे हुई यह एक जटिल प्रश्न है। इसके लिए वैज्ञानिक तरह-तरह के सिद्धांत प्रस्तुत करते रहे हैं। इस सम्बंध में अनेक लेख आप 'साइंटिफिक वर्ल्ड' पर पढ़ते रहे हैं। उसी क्रम में प्रस्तुत है ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के स्थायी अवस्था सिद्धांत को व्याख्यायित करता युवा लेखक प्रदीप कुमार का महत्वपूर्ण आलेख-
ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति का स्थायी अवस्था सिद्धांत
-प्रदीप कुमार
बीसवीं सदी के प्रतिभाशाली ब्रह्माण्ड विज्ञानी_Astronomer फ्रेड हॉयल_Fred Hoyle ने ब्रिटिश गणितज्ञ हरमान बांडी_Hermann Bondi और अमेरिकी वैज्ञानिक थोमस गोल्ड_Thomas Gold के साथ संयुक्त रूप से ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति का सिद्धांत प्रस्तुत किया। यह सिद्धांत स्थायी अवस्था सिद्धांत_Steady state theory के नाम से विख्यात है।
इस सिद्धांत के अनुसार, न तो ब्रह्माण्ड का कोई आदि हैं और न ही कोई अंत। यह समयानुसार अपरिवर्तित रहता हैं। यद्यपि इस सिद्धांत में प्रसरणशीलता समाहित हैं, परन्तु फिर भी ब्रह्माण्ड के घनत्व को स्थिर रखने के लिए इसमें पदार्थ स्वत: रूप से सृजित होता रहता हैं। जहाँ ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के सर्वाधिक मान्य सिद्धांत 'महाविस्फोट का सिद्धांत_Big Bang Theory' के अनुसार पदार्थों का सृजन अकस्मात हुआ, वहीं स्थायी अवस्था सिद्धांत में पदार्थोँ का सृजन हमेशा चालू रहता है।
यह भी रोचक बात हैं कि हॉयल,बाँडी और गोल्ड ने भूत-प्रेतों से समन्धित एक फिल्म से उत्प्रेरित होकर अंततः स्थायी अवस्था सिद्धांत को प्रतिपादित किया। इस फिल्म के सम्बन्ध में वर्णन करते हुए डॉ० सुबोध महंती ने लिखा हैं कि यह फिल्म चार भागों में विभाजित थी, परन्तु उनके खंडो को जोड़ने पर एक गोल घुमावदार कथानक सामने आया जिसका अंत ही उसका आरम्भ बन गया। इस फिल्म से हॉयल के मस्तिष्क में यह विचार कौंधा कि यह आवश्यक नही हैं कि अपरिवर्तित सदैव स्थाई या स्थिर रहे।
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स्थाई अवस्था सिद्धांत चार प्रमुख अवधारणाओं पर आधारित हैं, जिसे सम्मिलित रूप से सम्पूर्ण ब्रह्माण्डीय सिद्धांत कहते हैं-
1-भौतिकीय नियम सर्वभौम होते हैं। इसका तात्पर्य यह हैं कि विज्ञान का कोई भी प्रयोग यदि एकसमान स्थितियों के अंतर्गत सम्पन्न किया जाए तो वह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में (कहीं पर भी) एक-समान परिणाम देगा।
2-पर्याप्त रूप से विराट ब्रह्माण्ड समांगी है।
3-ब्रह्माण्ड में कोई भी वरीय दिशा नही है अर्थात् समदैशिक है।
5-ब्रह्माण्ड सभी कालों में तत्वत: एकसमान रहता है।
हॉयल ने महाविस्फोट सिद्धांत के अवधारणाओं के साथ असहमति क्यों प्रकट की?
दरअसल हॉयल जैसे दार्शनिक प्रवृत्ति वाले व्यक्ति के लिए ब्रह्माण्ड के आदि या आरम्भ जैसे विचार को मानना अत्यंत कष्टदायक था। ब्रह्माण्ड के आरम्भ (सृजन) के लिए कोई कारण और सृजनकर्ता (कर्ता) होना चाहिये।
स्थाई अवस्था सिद्धांत ने यह प्रदर्शित करने का प्रयास किया कि किस प्रकार से ब्रह्माण्ड शाश्वत एवं अपरिवर्तित रहता हैं,जबकि उसका प्रसरण भी होता रहता हैं। एडविन हब्बल ने अभिरक्त-विस्थापन सबंधी अवलोकनों के पश्चात् यह निष्कर्ष निकाला कि जिन मंदकिनियों का हम अवलोकन करते हैं वे हमसे तथा एक-दूसरें से दूर भाग रही हैं। यदि अभिरक्त-विस्थापन की जगह बैंगनी-विस्थापन होता तो सारी मंदकिनियाँ हमारें नजदीक आ रही होतीं!
क्या आप जानते हैं कि ‘बिग-बैंग’ शब्द का गठन हॉयल ने ही किया था। इसके सम्बन्ध में सुबोध महंती_Subodh Mahanti जी ने लिखा हैं:- कहा जाता हैं कि बिग-बैंग शब्द उस सिद्धांत का मजाक उड़ाने के लिए गढ़ा गया था जो सिद्धांत हॉयल के स्थायी अवस्था सिद्धांत से होड़ ले रहा था। परन्तु, इस शब्द को गढ़ते समय हॉयल के मस्तिष्क में ऐसा कोई विचार नही था। इसकी अभिव्यक्ति के पीछे अपने श्रोताओं को सिद्धांत के अवधारणाओं समझाने भर का था।
सन् 1993 में हॉयल, ज्याफ्रे बर्बिज़ तथा भारतीय ब्रह्माण्डविज्ञानी जयंत विष्णु नार्लीकर_Jayant Vishnu Narlikar, सबके योगदान से संयुक्त रूप से स्थायी अवस्था सिद्धांत के नए रूप का प्रतिपादन किया गया। इस नए रूप को क्वासी स्टेडी स्टेट कॉस्मोलोजी_Quasi steady state cosmology के नाम से जाना जाता हैं। इस नए सिद्धांत में यह बताया गया कि ब्रह्माण्ड के अंदर समय के विभिन्न अंतरालों में लघु क्षेत्रोँ में सृजनात्मक प्रकियायें चलती रहती हैं, जिसे ‘लघु विस्फोट’ या ‘लघु-सृजन घटनाएँ’ कहलाती हैं।
इस सिद्धांत के अनुसार, सृजन की घटनाएँ अत्यंत प्रबल गुरुत्वाकर्षण से सम्बन्धित हैं। ऐसे ही एक सिद्धांत का निष्कर्ष हैं, जिसका प्रतिपादन डिराक, ब्रांस और डीकी, हॉयल तथा नार्लीकर ने किया था, कि समयानुसार गुरुत्वाकर्षण की प्रबल शक्ति शनैः-शनैः समाप्त हो रही हैं। इस सिद्धांत का भविष्य न्यूटनी गुरुत्वाकर्षण के स्थिरांक पर निर्भर हैं।
इस सिद्धांत के अनुसार अपेक्षित गिरावट बहुत ही कम हैं लगभग एक खरब के कुछ भाग प्रतिवर्ष। नार्लीकर का दृढ़ विश्वास हैं कि भविष्य में लेजर जैसी आधुनिक तकनीकें इस अत्यन्त कम गिरावट का मापन करने में सक्षम सिद्ध होगी। यदि गिरावट नहीं दिखाई दी, तो आइंस्टीन_Albert Einstein के सामान्य सापेक्षता सिद्धांत (गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत) में परिवर्तन की कोई आवश्यकता नहीं होगी, परन्तु यदि गिरावट सिद्ध हुई तो यह महत्वपूर्ण सिद्धांत भी त्याज्य माना जाएगा।
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श्री प्रदीप कुमार यूं तो अभी इंटरमीडिएट के विद्यार्थी हैं, किन्तु विज्ञान संचार को लेकर उनके भीतर अपार उत्साह है। आपकी ब्रह्मांड विज्ञान में गहरी रूचि है और भविष्य में विज्ञान की इसी शाखा में कार्य करना चाहते हैं। वे इस छोटी सी उम्र में 'वैज्ञानिक ब्रह्मांड' नामक ब्लॉग का भी संचालन कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त आप 'साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन' के भी सक्रिय सदस्य के रूप में जाने जाते हैं। आपसे निम्न ईमेल आईडी पर संपर्क किया जा सकता है:

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एक नए सिद्धांत की व्याख्या करता उपयोगी लेख।
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