Medical Oxygen Manufacturing Process in Hindi
मेडिकल ऑक्सीजन क्या होती है, कैसे बनाई जाती है?
-डॉ. दिनेश मिश्र
कोरोना की दूसरी लहर ने सभी चिकित्सकीय तैयारियों की वास्तविकता खोलकर रख दी है। देश भर के अनेक अस्पतालों में बेड और दवा तो दूर, मरीजों को ऑक्सीजन भी नहीं मिलने के समाचार सुर्खियों में हैं। इसे देखते हुए भारत सरकार ने 50 हजार मीट्रिक टन ऑक्सीजन खरीदने का फैसला किया है। ऐसे में आम लोगों के मन में तरह-तरह के प्रश्न उठ रहे हैं। वे सोच रहे हैं कि आखिर हम सब हवा में सांस लेते हैं और वह हमारे चारों ओर मौजूद है...तो हम इस हवा को सिलेंडरों में भरकर मरीजों को क्यों नहीं लगा देते? ऐसे में यह जानना बेहद जरूरी है कि मरीजों की जीवन रक्षा के लिए दी जाने वाली मेडिकल ऑक्सीजन क्या है? मेडिकल ऑक्सीजन कैसे बनता है? और इसकी कमी क्यों है?
मेडिकल ऑक्सीजन क्या होती है? What is Medical Oxygen?
यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि मेडिकल ऑक्सीजन कानूनी रूप से एक आवश्यक दवा है जो 2015 से देश की अति आवश्यक दवाओं की सूची में शामिल है। इसे हेल्थकेयर के तीन लेवल- प्राइमरी, सेकेंडरी और टर्शीयरी के लिए आवश्यक करार दिया गया है। यह WHO की भी आवश्यक दवाओं की लिस्ट में शामिल है।
लेकिन अगर हम प्रोडक्ट लेवल पर बात करें, तो मेडिकल ऑक्सीजन का मतलब होता है 98% तक शुद्ध ऑक्सीजन, जिसमें नमी, धूल या दूसरी गैस जैसी अशुद्धियां नहीं होती हैं।
हम जानते हैं कि हमारे चारों ओर जो हवा मौजूद है, उसमें मात्र 21% ऑक्सीजन होती है। मेडिकल इमरजेंसी में उसका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। इसलिए मेडिकल ऑक्सीजन को खास वैज्ञानिक तरीके से बड़े-बड़े प्लांट में तैयार किया जाता है, जोकि लिक्विड ऑक्सीजन के रूप में स्टोर की जाती है।
अब हम आते हैं मेडिकल ऑक्सीजन की प्रक्रिया पर। लेकिन मेडिकल ऑक्सीजन बनाने के तरीके को समझने के लिए पहले कुछ बातों को जानना जरूरी है। उसमें पहला नम्बर है बॉयलिंग पॉइंट का!
आप ये तो जानते ही होंगे कि पानी को 0 डिग्री सेल्सियस तक ठंडा करने पर वह जमकर बर्फ या ठोस बन जाता है और 100 डिग्री सेल्सियस तक गर्म करने पर वह उबलकर भाप यानी कि गैस में बदल जाता है। ठीक ऐसे ही हमारे आसपास मौजूद ऑक्सीजन, नाइट्रोजन आदि तत्व गैस के रूप में इसलिए हमें मिलती हैं, क्योंकि ये बेहद कम तापमान पर उबलकर गैस बन चुकी हैं।
हम जानते हैं कि पानी का बॉयलिंग पॉइंट 100 डिग्री सेल्सियस होता है। इसका मतलब यह है कि जब पानी को 10 डिग्री सेल्सियस पर उबाला जाता है, तो वह गैस में बदल जाता है। इसी प्रकार ऑक्सीजन का बॉयलिंग पाइंट होता है -183 डिग्री सेल्सियस। इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि ऑक्सीजन को -183 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा ठंडा करने पर वह लिक्विड में बदल जाती है।
मेडिकल ऑक्सीजन कैसे बनती है? Medical Oxygen Manufacturing Process
अस्पतालों में आक्सीजन की किल्लत के कारण हर व्यक्ति यह जानना चाहता है कि मेडिकल ऑक्सीजन कैसे बनाई जाती है? तो आइए मुख्य विषय पर चलते हैं। हम आपको बताना चाहेंगे कि मेडिकल ऑक्सीजन हमारे चारों ओर मौजूद हवा में से ऑक्सीजन को अलग करके बनाई जाती है। हम जानते हैं कि हमारे आसपास मौजूद हवा में 78% नाइट्रोजन, 21% ऑक्सीजन और बाकी 1% आर्गन, हीलियम, नियोन, क्रिप्टोन, जीनोन जैसी गैसे होती हैं। इन सभी गैसों का बॉयलिंग पॉइंट बेहद कम, लेकिन अलग-अलग होता है।
अगर हम हवा को जमा करके उसे ठंडा करते जाएं, तो -108 डिग्री पर जीनोन गैस लिक्विड में बदल जाएगी। ऐसे में हम उसे हवा से अलग कर सकते हैं। ठीक इसी तरह -153.2 डिग्री पर क्रिप्टोन, -183 डिग्री पर ऑक्सीजन और अन्य गैसें बारी-बारी से तरल बन जाती हैं और उन्हें अलग-अलग करके लिक्विड फॉर्म में जमा कर लिया जाता है। वायु से गैसों को अलग करने की इस टेक्नीक को हम 'क्रायोजेनिक टेक्निक फॉर सेपरेशन ऑफ एयर' कहते हैं। इस तरह से तैयार लिक्विड ऑक्सीजन 99.5% तक शुद्ध होती है।
मेडिकल ऑक्सीजन प्लांट में यह पूरी प्रक्रिया बेहद ज्यादा प्रेशर में पूरी की जाती है ताकि गैसों का बॉयलिंग पॉइंट बढ़ जाए। इसका फायदा यह है कि बहुत ज्यादा ठंडा किए बिना ही गैस लिक्विड में बदल जाती है। इस प्रक्रिया से पहले हवा को ठंडा करके उसमें से नमी और फिल्टर के जरिए धूल, तेल व अन्य अशुद्धियों को अलग कर लिया जाता है।
अब आती है मेडिकल ऑक्सीजन को अस्पतालों तक पहुंचाने की बारी। निर्माता तैयार लिक्विड ऑक्सीजन को बड़े-बड़े टैंकरों में स्टोर करते हैं। यहां से वे इसे बेहद ठंडे रहने वाले क्रायोजेनिक टैंकरों से डिस्ट्रीब्यूटर तक भेजते हैं। डिस्ट्रीब्यूटर इसका प्रेशर कम करके गैस के रूप में अलग-अलग तरह के सिलेंडर में इसे भर लेते हैं। यही सिलेंडर सीधे अस्पतालों में या छोटे सप्लायरों तक पहुंचाए जाते हैं।
कुछ बड़े अस्पतालों में अपने छोटे-छोटे ऑक्सीजन जनरेशन प्लांट भी होते हैं। कोरोना काल में मेडिकल आक्सीजन की कमी के कारण वायुयान से और ऑक्सीजन एक्सप्रेस नाम से ट्रेन चला कर टैंकरों से ग्रीन कॉरिडोर बना कर अस्पतालों में ऑक्सीजन पहुंचाई जा रही है।
लोग यह भी जानना चाहते हैं, कि अगर हवा से ऑक्सीजन बनती है और इसे सिलेंडरों से मरीजों तक पहुंचाया जा सकता है तो फिर इसकी इतनी कमी क्यों है?
हम आपको बताना चाहेंगे कि कोरोना महामारी से पहले हमारे देश में प्रतिदिन मेडिकल ऑक्सीजन की खपत 1000 से लेकर 1200 मीट्रिक टन थी, लेकिन 15 अप्रैल तक यह मांग 4,795 मीट्रिक टन तक पहुंच गयी थी। जबकि ऑल इंडिया इंडस्ट्रियल गैसेज मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (AIIGMA) के अनुसार 12 अप्रैल तक देश में मेडिकल यूज के लिए रोज 3,842 मीट्रिक टन ऑक्सीजन सप्लाई हो रही थी।
हम यह देख रहे हैं कि कोरोना काल में मरीजों को साँस लेने की तकलीफ के कारण ऑक्सीजन की मांग तेजी से बढ़ी है। इस वजह से ऑक्सीजन की सप्लाई में भारी दिक्कत हो रही है। इसकी एक वजह यह भी है कि हमारे देश में प्लांट से लिक्विड ऑक्सीजन को डिस्ट्रीब्यूटर तक पहुंचाने के लिए केवल 1200 से 1500 क्राइजोनिक टैंकर उपलब्ध हैं। यह टैंकर महामारी की दूसरी लहर से पहले तक के लिए तो पर्याप्त थे, मगर जब डिमांड एकदम से बढ़ गयी, तो ये टैंकर कम पड़ने लगे। इससे डिस्ट्रीब्यूटर के स्तर पर भी लिक्विड ऑक्सीजन को गैस में बदल कर सिलेंडरों में भरने के लिए भी पर्याप्त सिलेंडर उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं।
एक व्यक्ति को प्रतिदिन कितनी ऑक्सीजन चाहिए? How Much Oxygen Does the Human Lung Consume?
मेडिकल आक्सीजन के बारे में इतना कुछ जानने के बाद आपके मन में यह सवाल भी आ रहा होगा कि अगर कोई व्यक्ति बीमार है, तो उसे प्रतिदिन कितनी ऑक्सीजन की जरूरत होती है?
आमतौर से एक वयस्क जब कोई काम नहीं कर रहा होता है, तो उसे सांस लेने के लिए हर मिनट 7 से 8 लीटर हवा की जरूरत होती है। यानी प्रतिदिन करीब 11,000 लीटर हवा उसे चाहिए होती है। सांस के जरिए फेफड़ों में जाने वाली हवा में 20% ऑक्सीजन होती है, जबकि छोड़ी जाने वाली सांस में भी 15% ऑक्सीजन बच जाती है। इसका मतलब यह है कि हम सांस के जरिए भीतर जाने वाली हवा का मात्र 5% ही इस्तेमाल कर पाते हैं। और यही 5% ऑक्सीजन है, जो कार्बन डाइऑक्साइड में बदलती है।
अब हम आते हैं मेडिकल ऑक्सीजन की आवश्यकता पर। इसके लिए हमें यह हिसाब लगााना होगा कि एक स्वस्थ इंसान एक मिनट में कितनी बार सांस लेता है?
डॉक्टरों के अनुसार एक स्वस्थ व्यक्ति एक मिनट में 12 से 20 बार सांस लेता है। अगर यह संख्या 12 से कम या 20 से ज्यादा है, तो इसके पीछे कोई शारीरिक परेशानी हो सकती है। अस्पतालों में आमतौर पर 7 क्यूबिक मीटर क्षमता के ऑक्सीजन सिलेंडर का इस्तेमाल होता है। इसकी ऊंचाई करीब 4 फुट 6 इंच होती है। अगर 7 Cubic meter वाले सिलेंडर से लगातार किसी मरीज को ऑक्सीजन दी जाती है, तो वह करीब 20 घंटे तक चलता है।
मेडिकल ऑक्सीजन सिलेंडर की कीमत Medical Oxygen Cylinder Price in India
ऑल इंडिया इंडस्ट्रियल गैस मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (AIIGMA) के प्रेसिडेंट के अनुसार अस्पतालों के 7 क्यूबिक मीटर वाले मेडिकल ऑक्सीजन सिलेंडर को रिफिल कराने में 175 से 200 रुपए खर्च होते हैं। उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था कि अस्पताल के सभी खर्च जोड़ने के बाद भी ऐसे एक ऑक्सीजन सिलेंडर की कीमत 350 रुपए से अधिक नहीं होनी चाहिए।
यहां पर यह जानना भी ज़रूरी है कि सरकार ने 1 Cubic meter लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन के अधिकतम दाम 15.22 रूपये और मेडिकल ऑक्सीजन के 25.71 रूपये तय कर रखे हैं। यह दाम जीएसटी के बिना हैं। नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी ने यह कैपिंग 25 सितंबर 2020 को लागू की थी। इससे पहले ऑक्सीजन के अधिकतम दाम 17.50 रूपये प्रति Cubic meter तय थे।
आज जब कोरोना के कारण देश में ऑक्सिजन की खपत बढ़ गयी है, इसीलिए इसकी आपूर्ति समुचित रूप से नहीं हो पा रही है। इसके लिए हमें पहले से तैयारी करने की आवश्यकता थी, जिसमें हम विफल रहे। इसी वजह से चारों ओर अव्यवस्था का आलम है। यही कारण है कि कोरोना पेशेंट ही नहीं उनके घर वाले भी मानसिक रूप से परेशान हैं।
लेकिन यह प्रसन्नता का विषय है कि इस संकट की घड़ी में देश में बहुत से सामाजिक संगठन और समाज सेवी आगे आ रहे हैं और तन-मन-धन से लोगों की मदद कर रहे हैं। ऐसे में हमारा भी यह कर्तव्य बनता है कि हम उन्हें सहयोग करें और स्वयं भी आगे बढकर एक दूसरे की मदद करें। ऐसा करके हम इस संकट का सामना आसानी से कर सकते हैं और इस महामारी पर विजय प्राप्त कर सकते हैं।
अद्भुत,
जवाब देंहटाएंआभार..
जानकारी विस्तार हेतु
सादर
बहुत आवश्यक जानकारी...धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत ही उपयोगी जानकारी।
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया लेख और ज्ञानवर्धक जानकारी के लिए सादर आभार और शुभकामनाएं|
जवाब देंहटाएंबहुत ही ज्ञानवर्धक लेख।
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी, धन्यवाद,
जवाब देंहटाएंइसी के साथ एक प्रश्न और आता है की ऑक्सिजन कंसेंट्रेटर क्या होता है ?