विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) के महत्व और उपयोगिता को रेखांकित करता आलेख।
विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) वैश्विक स्तर पर पर्यावरण और उसके विभिन्न घटकों के संरक्षण के लिए आयोजित किया जाने वाला सबसे बड़ा अभियान है। इस आयोजन का लक्ष्य पृथ्वीवासियों को पर्यावरण की महत्ता एवं उसके संरक्षण के लिए जागरूक बनाना है। प्रत्येक साल विश्व पर्यावरण दिवस का एक मुख्य विषय होता है जिसके आधार पर पूरे विश्व में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। वर्ष 2016 के विश्व पर्यावरण दिवस का विषय ‘जीवन के लिये वन’ है।
5 जून पर्यावरण दिवस पर विशेष
वनों में मुस्काता जीवन
-नवनीत कुमार गुप्ता
जल, वायु, मिट्टी एवं जंगल जैसे कारक प्रकृति के उपहार हैं जो पृथ्वी पर जीवन के विविध रूपों को पनाह दिए हुए हैं। जीवन के विविध रूपों के सामंजस्य के कारण पृथ्वी का वातावरण अनोखा बना हुआ है। कहने का तात्पर्य यह है कि इस ग्रह के विशिष्ट वातावरण का हम सभी को सम्मान करना चाहिए जिसके कारण यहां जीवन विकसित हो पाया है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा सन् 1972 से प्रत्येक वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता रहा है।
विश्व पर्यावरण दिवस वैश्विक स्तर पर पर्यावरण और उसके विभिन्न घटकों के संरक्षण के लिए आयोजित किया जाने वाला सबसे बड़ा अभियान है। इस आयोजन का लक्ष्य पृथ्वीवासियों को पर्यावरण की महत्ता एवं उसके संरक्षण के लिए जागरूक बनाना है। प्रत्येक साल विश्व पर्यावरण दिवस का एक मुख्य विषय होता है जिसके आधार पर पूरे विश्व में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।
वर्ष 2016 के विश्व पर्यावरण दिवस का विषय ‘जीवन के लिये वन' है। इसके अंतर्गत जीवों के बढ़ते गैरकानूनी व्यपार के प्रति चिंता व्यक्त करते हुए ऐसी गतिविधियों को रोकना है जिससे पृथ्वी की बहुमूल्य जैवविविधता को खतरा उत्पन्न होता हो।
आज विश्व भर में वन्य जीवों को गैरकानूनी शिकार और उनके शरीर के विभिन्न अंगों का गैरकानूनी व्यापार बढ़ता जा रहा है। हाथी, गेंडा, बाघ, कछुआ, गोरिल्ला जैसे विभिन्न जीवों का शिकार चोरी-छिपे किया जाता है। विश्व के अनेक प्रसिद्ध व्यक्ति वन्य जीवों के संरक्षण के लिए अभियान से जुड़े हुए हैं। अधिकांश व्यक्ति वन्यजीवों के संरक्षण के विषय की गंभीरता को नहीं समझ सके हैं। असल में वन्य जीव आर्थिक, सौन्दर्यपरक, सांस्कृतिक और पारिस्थितिकी महत्व के प्रतीक हैं। इसलिए इसका संरक्षण आवश्यक है। लेकिन यह दुर्भाग्य ही है कि दिनों-दिन वन्य जीवों की संख्या कम होती जा रही है।
हम सभी को यह बात समझनी होगी कि वन्य जीव प्रकृति का अनिवार्य हिस्सा हैं। वनों में वन्य जीव स्वतंत्र रूप से विचरण करते हुए अपना जीवन-यापन करते हैं। इसलिए इन जीवों के लिए जंगल आश्रयदाता हैं। लेकिन मानव द्वारा शहरीकरण, कृषि विस्तार, खनन और औद्योगिक गतिविधियों के चलते इन जीवों के प्राकृतिक आवास स्थलों अर्थात वन क्षेत्रों में भारी कमी आई है। जिससे अपने निवास स्थल नष्ट या संकुचित होने पर और आहार की कमी के कारण वन्य जीव मानव बस्तियों की ओर निकल जाते हैं। जिसके कारण कई बार मानव और वन्य जीवों के मध्य टकराव की नौबत आ जाती है।
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वन्य जीवों की कमी की मुख्य वजह उनका अंधाधुंध शिकार भी है। शिकार करने के पीछे पैसा का लालच और कुछ अंधविश्वास शामिल होते हैं। असल में वन्य जीवों के शिकार के पीछे उनके बारे में प्रचलित कुछ अंधविश्वास भी काफी हद तक जिम्मेदार माने जा सकते हैं। बाघों के बारे में व्याप्त कुछ भ्रांतियां तो उसके लिए संकट बन गई हैं। अनेक लोगों तथा तथाकथित ज्योतिषियों ने बाघों की हत्या को पुत्र लाभ से जोड़ दिया। जिससे कुछ लोगों ने पुत्र लाभ के लिए बाघों को मारा या किसी दूसरे से मरवाया। इसी प्रकार बाघ और गेंडों के अंगों के बारे में प्रचलित अनेक अवैज्ञानिक धारणाओं के चलते बाघ की हड्डी, जिगर, तिल्ली, चर्बी, नख, दांतों और हंसली की तस्करी की जाती है।
हाल के वर्षों में बाघ की हंसली और गेंडे के सींग की मांग अधिक बढ़ गई है। हंसली बाघ के कंधे तथा गर्दन के बीच मांस में धंसी होती है। इसकी लंबाई तीन इंच होती है। प्रायः इसे लोग ‘बिरनाक’ के नाम से जानते हैं। इसका उपयोग अंधविश्वास के चलते लोग ताबीज, जादू-टोने के लिए करते हैं। कुछ क्षेत्रों में बाघ के मांस को कामोत्तेजक भी समझा जाता है। जिससे कारण उन क्षेत्रों में बाघ को उसके मांस के लिए मारा जाता रहा हैं।
हालांकि बाघों आदि वन्य जीवों के बारे में ऐसी भ्रांतियां प्राचीन काल से चली आ रही है। लेकिन विज्ञान के युग में ऐसी मिथ्या अवधारणाओं का कोई अस्तित्व नहीं होना चाहिए। वन्यजीव हमारे राष्ट्रीय गौरव के भी प्रतीक हैं। इसीलिए वन्यजीवों के संरक्षण के लिए प्रत्येक व्यक्ति को प्रयास करना चाहिए।
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लेखक परिचय:
नवनीत कुमार गुप्ता पिछले दस वर्षों से पत्र-पत्रिकाओं, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन आदि जनसंचार के विभिन्न माध्यमों द्वारा वैज्ञानिक दृष्टिकोण और पर्यावरण संरक्षण जागरूकता के लिए प्रयासरत हैं। आपकी विज्ञान संचार विषयक लगभग एक दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं तथा इन पर गृह मंत्रालय के ‘राजीव गांधी ज्ञान विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन पुरस्कार' सहित अनेक पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। आप विज्ञान संचार के क्षेत्र में कार्यरत संस्था ‘विज्ञान प्रसार’ से सम्बंद्ध हैं। आपसे निम्न मेल आईडी पर संपर्क किया जा सकता है:
नवनीत कुमार गुप्ता पिछले दस वर्षों से पत्र-पत्रिकाओं, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन आदि जनसंचार के विभिन्न माध्यमों द्वारा वैज्ञानिक दृष्टिकोण और पर्यावरण संरक्षण जागरूकता के लिए प्रयासरत हैं। आपकी विज्ञान संचार विषयक लगभग एक दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं तथा इन पर गृह मंत्रालय के ‘राजीव गांधी ज्ञान विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन पुरस्कार' सहित अनेक पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। आप विज्ञान संचार के क्षेत्र में कार्यरत संस्था ‘विज्ञान प्रसार’ से सम्बंद्ध हैं। आपसे निम्न मेल आईडी पर संपर्क किया जा सकता है:
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