International Biodiversity Day Article in Hindi
डॉ. ए.पी.जे. अबुल कलाम (Dr. A.P.J. Abdul Kalam) ने कहा था कि ‘जैव विविधता से परिपूर्ण हमारी धरती सदैव रचनात्मकता का संदेश देती है और इस रचनात्मकता से मानव नई खोजों, आविष्कारों और अनुसंधानों द्वारा विकास के मार्ग पर बढ़ता जाता है। इस प्रकार धरती की सुंदर जैवविविधता का मानवीय विकास से गहरा सम्बन्ध है। अतः जैविविधता संरक्षण से मानव न केवल प्रकृति का सम्मान करना है वरन् वह स्वयं भी अपने भविष्य को संवारता है।’
जैव विविधता की मुख्य धाराः लोग और उनकी आजीविका
-नवनीत कुमार गुप्ता
प्रत्येक वर्ष 22 मई अंतर्राष्ट्रीय जैविक विविधता दिवस (International Day for Biological Diversity) के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष जैव विविधता दिवस का मुख्य विषय ‘जैव विविधता की मुख्य धाराः लोग और उनकी आजीविका’ है।
असल में जैव विविधता (biodiversity) केवल जीव-जंतुओं से ही नहीं, बल्कि समस्त मानव समाज से जुड़ी हुई है। यही कारण रहा है कि भारतीय संस्कृति में सह अस्तित्व की भावना पर बल देते समस्त जीव-जंतु एवं वनस्पतियों के प्रति आदर भाव व्यक्त किया जाता रहा है। भारतीय संस्कृति में प्रकृति और जैव विविधता संरक्षण की परंपरा प्राचीनकाल से रही है। गौतम बुद्ध, महावीर, रविन्द्रनाथ टैगोर, स्वामी विवेकानन्द, गांधीजी आदि महापुरूषों के विचारों में प्रकृति प्रेम और जीवन के विविध रूपों के प्रति आदर-भाव देखा जा सकता है।
राष्ट्रपिता गांधीजी प्राणीमात्र को एक समान मानते थे। उनका कहना था कि ‘मैं केवल मानव जाति के बीच ही भाईचारे अथवा उसके साथ तादात्म्य की स्थापना नहीं करना चाहूंगा, बल्कि पृथ्वी पर रेंगने वाले जीवों सहित समस्त प्राणिजगत के साथ तादात्म्य स्थापित करना चाहता हूं क्योंकि हम सब एक ही ईश्वर की संतान हैं। इसलिए जीवन जितने रूपों में है, सब मूलतः एक ही हैं।’
26 दिसम्बर से 31 दिसम्बर 2006 को मणिपुर, सिक्किम में आयोजित चौदहवीं बाल विज्ञान कांग्रेस के उद्घाटन समारोह में जैवविविधता के महत्ता के बारे में विचार व्यक्त करते हुए तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अबुल कलाम (Dr. A.P.J. Abdul Kalam) ने कहा था कि ‘जैव विविधता से परिपूर्ण हमारी धरती सदैव रचनात्मकता का संदेश देती है और इस रचनात्मकता से मानव नई खोजों, आविष्कारों और अनुसंधानों द्वारा विकास के मार्ग पर बढ़ता जाता है। इस प्रकार धरती की सुंदर जैवविविधता का मानवीय विकास से गहरा सम्बन्ध है। अतः जैविविधता संरक्षण से मानव न केवल प्रकृति का सम्मान करना है वरन् वह स्वयं भी अपने भविष्य को संवारता है।’
जैव विविधता:
वैसे जैव विविधता मानवीय गतिविधियों से भी प्रभावित हो रही है। अत्यधिक औद्योगीकरण का परिणाम प्रदूषण के रूप में सामने आया है। प्रदूषित पर्यावरण, यहां तक कि पर्यावरण में बदलाव, किसी भी ऐसी प्रजाति के जीवन के लिए खतरा पैदा कर देता है जो इसके अनुकूल खुद को नहीं ढाल पाती है। पहले ही बहुत सी प्रजातियां (जैसे डोडो) हमेशा के लिए विलुप्त हो चुकी हैं। बहुत सी अन्य प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर खड़ी हैं। विलुप्तता वह स्थिति है जब किसी प्रजाति विशेष का कोई भी सदस्य न बचा हो। एक बार विलुप्त हो जाने के बाद किसी प्रजाति को वापस लाने का कोई रास्ता नहीं है। सफेद बाघ, गिद्ध, बाघ एवं डाल्फिन जैसी सर्वाधिक संकटग्रस्त प्रजातियों की ओर तुरन्त ध्यान देने की आवश्यकता है। ताकि इन जीवों को बचाया जा सके। अवैध शिकार के कारण मोर, बाघ, हिरण, भालु, गैंडे व शेर जैसे जीवों का अस्तित्व खतरे में है।
जहां मोरपंखों के कारण हर साल हजारों मोरों को मार दिया जाता है वहीं कस्तूरी मृग के लिए कस्तूरी मृगों का अवैध शिकार किया जाता है। यहीं नहीं विभिन्न प्रकार की भ्रांतियों के चलते उल्लूओं, बाघों एवं गेंडों जैसे अनेक जीवों को महज इसलिए मार दिया जाता है ताकि उनके अंगों से बनीं औषधियों के सेवन से स्वास्थ्य व संपत्ति की प्राप्ति हो सके। समाज से जब तक ऐसे अंधविश्वास मिट नहीं जाते तब तक जैव विविधता संरक्षण संबंधी कोई भी अभियान सफल नहीं हो सकता। इसके लिए समाज में जागरुकता की आवश्यकता है ताकि जनमानस अंधविश्वासों व रूढियों से ऊपर उठकर जैव विविधता के महत्व को समझ सके।
जैव विविधता संरक्षण के लिए प्रयास:
जैव विविधता के आर्थिक, समाजिक और सांस्कृतिक महत्व तथा पर्यावरण के साथ उसकी निकटता को ध्यान में रखते हुए जैव विविधता संरक्षण के लिए प्रयास तेज हो गए है। इसी परिप्रेक्ष्य में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा वर्ष 2010 को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता वर्ष के रूप में मनाया गया था। हमारे देश में जैव विविधता संरक्षण की दिशा में सार्थक कदम उठाए जा रहे हैं। जैव विविधता के संरक्षण के लिए वृहद् स्तर पर कार्य किया जा रहा है।
हमारे देश में 61 विभिन्न लुप्तप्राय प्रजातियों के संरक्षण के लिए भारतीय प्राणी उद्यानों में संभावित संरक्षित प्रजनन पहचान कार्यक्रम की रूपरेखा बनाई जा रही है। जिसके अंतर्गत आरंभिक चरण में गिद्धों, पेंटिड रूफ कछुए, ब्लिथंस टैगोपन, हसूम्स फीजेंट तथा पंगोलिन जीवों के लिए संरक्षित प्रजनन केंद्रों की स्थापना की गई है। इसके अलावा कुछ विशेष जीवों के लिए व्यापक रूप से कार्ययोजना चल रही है जैसे कि सन् 1973 से बाघ परियोजना आरंभ की गई है जो कि बाघों के संरक्षण से संबंधित है और अब इसके उत्साहवर्धक परिणाम मिलने लगे हैं।
देश में कच्छ वनस्पतियों और प्रवाल भित्तियों के संरक्षण एवं प्रबंधन की दिशा में सार्थक कदम उठाए गए हैं। पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम (1986) के अंतर्गत तटीय विनियमन जोन अधिसूचना (1991) में कच्छ वनस्पतियों तथा प्रवाल भित्तियों को पारिस्थितिकीय रूप से संवदेनशील क्षेत्र के रूप में मान्यता दी गई है। इन क्षेत्रों के विस्तार के लिए सरकार ने 38 कच्छ वनस्पति क्षेत्रों तथा चार प्रवाल भित्ति क्षेत्रों के व्यापक संरक्षण के लिए विशेष पहल की है।
जैव विविधता को बनाए रखने के लिए सरकार के साथ-साथ नागरिकों को भी आगे आना होगा। जीवन के हर रूप को बचाने के लिए हमें सजग और सचेत होगा होगा। हमें वन्य प्राणियों के शिकार को रोकना होगा और उन पहलूओं पर भी ध्यान देना होगा जिनके चलते वन्य प्राणियों का शिकार किया जाता है। वन्य प्राणियों के अंगों के औषधिय रूप में उपयोग करने संबंधी सभी भ्रांतियों और अंधविश्वासों के प्रति समाज को जागरूक होना होगा तभी ऐसे घृणित कार्य रूकेंगे। जीवन के हर रूप का सम्मान कर ही हम इस पृथ्वी का जीवनदायी और सुंदर ग्रह का दर्जा बरकरार रख पाएंगे।
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लेखक परिचय:
नवनीत कुमार गुप्ता पिछले दस वर्षों से पत्र-पत्रिकाओं, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन आदि जनसंचार के विभिन्न माध्यमों द्वारा वैज्ञानिक दृष्टिकोण और पर्यावरण संरक्षण जागरूकता के लिए प्रयासरत हैं। आपकी विज्ञान संचार विषयक लगभग एक दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं तथा इन पर गृह मंत्रालय के ‘राजीव गांधी ज्ञान विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन पुरस्कार' सहित अनेक पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। आप विज्ञान संचार के क्षेत्र में कार्यरत संस्था ‘विज्ञान प्रसार’ से सम्बंद्ध हैं। आपसे निम्न मेल आईडी पर संपर्क किया जा सकता है:
नवनीत कुमार गुप्ता पिछले दस वर्षों से पत्र-पत्रिकाओं, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन आदि जनसंचार के विभिन्न माध्यमों द्वारा वैज्ञानिक दृष्टिकोण और पर्यावरण संरक्षण जागरूकता के लिए प्रयासरत हैं। आपकी विज्ञान संचार विषयक लगभग एक दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं तथा इन पर गृह मंत्रालय के ‘राजीव गांधी ज्ञान विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन पुरस्कार' सहित अनेक पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। आप विज्ञान संचार के क्षेत्र में कार्यरत संस्था ‘विज्ञान प्रसार’ से सम्बंद्ध हैं। आपसे निम्न मेल आईडी पर संपर्क किया जा सकता है:
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