गीता के असली मां-बाप की पहचान में कैसे सहायक है डीएनए टेस्ट, महत्वपूर्ण आलेख।
गीता का मददगार डीएनए
-नवनीत कुमार गुप्ता
पिछले दिनों पाकिस्तान से भारत लौटी गीता का नाम काफी चर्चा में रहा। गीता के माता-पिता को लेकर काफी संशय का माहौल रहा, जिसे देखते हुए उनका डीएनन परीक्षण (DNA test) कराया जा रहा है ताकि गीता के असली माता-पिता की पहचान हो सके। असल में हर एक मनुष्य का अपना-अलग डीएनए स्वरूप होता है। इस डीएनए की विशिष्टता के कारण ही माता-पिता की पहचान भी संभव होती है। यही कारण है कि आज डीएनए की मदद से अनेक न्यायिक अपराधों को आसानी से हल किया जा रहा है। डीएनए आनुवंशिकता (Heredity) का कारण है।
आज हम जानते हैं कि जिस प्रकार ईंटों से दीवार बनती है और दीवारों से मकान, उसी प्रकार हमारा शरीर भी कोशिकाओं (Cells) से बना है जिनमें नाभिक (Nucleus), क्रोमोसाम (Chromosome), हिस्टोन (Histone), डीएनए (DNA) और जीन (Gene) के साथ-साथ प्रोटीन (Protein) भी होते हैं। हमारे शरीर में लगभग 100 खरब कोशिकाएं होती हैं। ये सभी कोशिकाऐं हमारी त्वचा (Skin), हड्डियां (Bones), मांसपेशियों (Muscles), तंत्रिका तंत्र (Nervous system) आदि में व्यवस्थित होती हैं। कोशिकाओं के केन्द्र में नाभिक होते है जो कोशिकाओं के कार्यों का नियंत्रण करता है। नाभिक में 23 क्रोमोसोम दो जोड़े में होते हैं। इसका मतलब ये हुआ की नाभिक में कुल 46 क्रोमोसोम होते हैं।
क्रोमोसोम में डीएनए, हिस्टोन नामक प्रोटीन पर लिपटा हुआ होता है जिसके कारण आकार में वो बहुत छोटा दिखता है। जब कोशिका विभाजित होती है तो क्रोमोसोम में स्थित डीएनए भी विभाजित होते हैं और हूबहू अपना प्रतिरूप बनाते हैं। कुछ कोशिकायें, जैसे हमारे बाल (Hair) और नाखून (Nails) की कोशिकाऐं मृत (Dead) होती हैं, लेकिन इनकी जड़ें जीवित होने के कारण ये भी लगातार विभाजित होती रहती हैं। अन्य कोशिकाऐं, जैसे हमारे मस्तिष्क (Brain), मांसपेशियां (Muscles), और हृदय (Heart) की कोशिकाऐं कई बार विभाजित होने के बाद रूक जाती हैं। अलग-अलग तरह की कोशिकाओं में विभाजन के समय डीएनए अलग-अलग रफ्तार से अपना प्रतिरूप बनाता है। इस प्रकार वैज्ञानिकों की सालों की मेहनत और अनुसंधानों द्वारा आज हम ये जान पाये हैं कि डीएनए ही वो तत्व है जिसके कारण बच्चों को अपने माता-पिता के गुण प्राप्त होते हैं।
आपको क्या लगता है कि क्यों हेमा मालिनी और ईशा दियोल एक जैसी दिखती हैं या क्यों शर्मिला टैगोर और सैफ अली खान की शक्लों में एक जैसी झलक है। आप सोच रहे होंगे कि क्या बेतुका सवाल है ये, इसका जवाब तो हर कोई जानता है कि इन सभी का आपस में एक रिश्ता है चाहे वो मां-बेटी का हो, मां-बेटे का या फिर बाप-बेटे का।
ये तो सब जानते हैं कि बच्चों में हमेशा अपनी मां या अपने पिता जैसी शारीरिक विशेषतायें या लक्षण होते हैं जैसे आंखों का रंग, बालों का रंग, नाक की बनावट या फिर शरीर की बनावट और रंग, वगैरह-वगैरह...। इतना ही नहीं कभी-कभी तो बच्चे अपने दादा-दादी या नाना-नानी जैसे भी दिखते हैं। इस प्रकार आपके मन में ये सवाल उठते होंगे कि क्यों अक्सर बच्चे अपने माता-पिता जैसे दिखते हैं ? क्यों उनमें अपने माता-पिता के लक्षण होते हैं ?
खैर, आपने इस बारे में सोचा हो या ना सोचा हो पर सालों पहले वैज्ञानिकों ने इस बारे में सोचना शुरू कर दिया था। ये जानने के लिए वैज्ञानिकों को काफी समय लगा। और इस बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करने के लिए एक नहीं बल्कि अनेक वैज्ञानिकों ने अलग-अलग प्रयोग किये। ऐसा ही एक प्रयोग आज से करीब 150 साल पहले हुआ था। सन 1865 में ग्रेगर मेंडल (Granger John Mendel) आनुवंशिकता यानी हेरिडिटी (Heredity) से प्राप्त लक्षणों के कारणों को जानने की पहल आरंभ की थी। सन् 1865 में मेंडल ने मटर के पौधे पर अपना प्रयोग किया और आनुवंशिकता से प्राप्त लक्षणों के कारणों के बारे में अपने नियम दिये।
अपने प्रयोगों द्वारा मेंडल ने पता लगाया कि माता पिता से प्राप्त अलग-अलग कारकों के प्रभावशाली और कमजोर होने के कारण ही संतान में अलग-अलग लक्षण प्रकट होते हैं। मगर वो कौन सा तत्व है जिससे माता-पिता के लक्षण बच्चों में संचारित होते हैं इसकी जानकारी उन्हें नहीं मिली थी। सन् 1903 में आनुवांशिकी विज्ञानी वाल्टर ने मेंडल के प्रयोग को आगे बढ़ाते हुए अपने प्रयोगों द्वारा ये स्पष्ट कर दिया कि क्रोमोसोम के कारण ही आनुवंशिक लक्षण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में संचारित होते हैं। इतना ही नहीं ये भी साफ हो गया कि मेंडल द्वारा दिये गये आनुवंशिकता के नियमों का आधार भी हमदमे के दो अलग-अलग रूप होते हैं जिसमें एक प्रबल होता है और दूसरा दुर्बल।
मगर अभी भी ये स्पष्ट नहीं हुआ था कि जीन, क्रोमोसोम में स्थित प्रोटीन में होते हैं या न्यूक्लिक एसिड (Nucleic acid) यानि डीएनए में। इसी की खोज करने के लिए अलग-अलग वैज्ञानिकों ने अपने अपने प्रयोग करने शुरू कर दिये। कुछ वैज्ञानिकों ने जीवाणु (Bacteria) और विषाणु (Virus) के साथ डीएनए को लेकर कई प्रयोग किए। फ्रेडरिक ग्रिफ्फिथ (Frederick Griffith) एवं अन्य वैज्ञानिकों के प्रयोग से पता चला कि डीएनए एक न्यूक्लिक एसिड है जिसमें जिसमें आनुवंशिक निर्देश समाहित होते हैं। इस प्रकार पता चला कि किसी भी जीवित जीव के विकास के लिए डीएनए जरूरी है। डीएनए कुछ विषाणुओं में भी पाया जाता है। ग्रिफ्फिथ के प्रयोग के आधार पर ये पता चल पाया कि हमारा शरीर एक साथ काम कर रहीं 100 खरब कोशिकाओं से बना है जिनके केन्द्र में क्रोमोसोम के अंदर डीएनए स्थित होता है और डीएनए ही वह तत्व है जो आनुवंशिक लक्षणों यानि कि आनुवंशिकता का कारण है।
हमारे शरीर में हो रही जितनी भी रसायनिक विक्रियायें हैं उन सभी की जानकारी डीएनए के पास होती है। हमारे हमारे जीन डीएनए के बने होते हैं जो हमें हमारे माता-पिता से प्राप्त होते हैं। माता पिता के कौन से लक्षण उनके बच्चों में स्थानांतरित होंगे जैसे हमारी आंखों का रंग क्या होगा, हमारे बाल कैसे होंगे, हमारी नाक की बनावट कैसी होगी या हमार शरीर का रंग क्या होगा, वगैरह-वगैरह के बारे में डीएनए हमें बनाता है, जो भी-जैसे भी हैं हम। इतना ही नहीं, किन्हीं दो लोगों का डीएनए एक जैसा नहीं होता। डीएनए द्वारा हमारे या हमारे पूर्वजों के बारे में भी काफी जानकारी प्राप्त की जा सकती है। ये डीएनए वही है जिससे वैज्ञानिकों ने बंदर और मनुष्य के बीच में खोई हुई कड़ी का पता लगाया था।
कितनी अजीब बात है कि हम आज जितनी सहजता से डीएनए जैसे शब्द का बातचीत में अक्सर प्रयोग कर लेते हैं... सालों पहले ये सिर्फ मानवीय सोच से उपजा एक प्रश्न चिन्ह था... जिसे हमारी जिज्ञासा ने आनुवंशिक विज्ञान की कई अनबूझ पहेलियों को सुलझाने वाला उत्तर बना दिया।
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नवनीत कुमार गुप्ता पिछले दस वर्षों से पत्र-पत्रिकाओं, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन आदि जनसंचार के विभिन्न माध्यमों द्वारा वैज्ञानिक दृष्टिकोण और पर्यावरण संरक्षण जागरूकता के लिए प्रयासरत हैं। आपकी विज्ञान संचार विषयक लगभग एक दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं तथा इन पर गृह मंत्रालय के ‘राजीव गांधी ज्ञान विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन पुरस्कार' सहित अनेक पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। आप विज्ञान संचार के क्षेत्र में कार्यरत संस्था ‘विज्ञान प्रसार’ से सम्बंद्ध हैं। आपसे निम्न मेल आईडी पर संपर्क किया जा सकता है:

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