भूकंप के कारणों और उनसे बचने के तरीकों पर केंद्रित एक शोधपूर्ण आलेख।
25 अप्रैल, 2015 को उत्तरी भारत में भूकंप के झटके महसूस किए गए। इस भूकंप का केन्द्र नेपाल की राजधानी काठमांडू से लगभग 70 किलोमीटर दूर लामजूंग में था। रिक्टर स्केल पर केन्द्र पर इसकी तीव्रता करीबन 7.5 थी। इस भूकंप में नेपाल में व्यापक तबाही हुई इसके अलावा नेपाल से सटे भारतीय क्षेत्रों बिहार, सिक्किमें भी भूकंप का प्रभाव देखा गया।
भूकंप-विध्वंसक प्राकृतिक आपदा
-नवनीत कुमार गुप्ता
प्रकृति के विविध रूप हैं। प्रकृति के सौम्य और आकर्षक रूप के अलावा इसका एक डरावना चेहरा भी है जिसे हम प्राकृतिक आपदाओं के नाम से जानते हैं। भूकंप, सूनामी, चक्रवात, ज्वालामुखी विस्फोट, भूस्खलन, बाढ़, हिमघाव, वनाग्नि, सूखा और समुद्री तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाएं व्यापक तबाही का कारण बनती हैं। प्राकृतिक आपदाओं से व्यापक स्तर पर जनहानि होने के साथ आर्थिक और सामाजिक विकास के भी ठप्प होने का खतरा बना रहता है। यह आपदाएं प्रचण्ड, त्वरित होने के साथ ही अप्रत्याशित भी होती हैं, जिससे अक्सर इनसे बचाव के लिए पहले से व्यापक कार्ययोजना बनाना आसान नहीं होता है।
भूकंप प्राकृतिक आपदा का सर्वाधिक विनाशकारी रूप है, जिसके कारण व्यापक तबाही हो सकती है। भूकंप से विश्व भर में प्रतिवर्ष हजारों व्यक्तियों की मौत होने के साथ ही अरबों-खरबों रुपयों की सम्पत्ति भी नष्ट हो जाती है। आमतौर पर भूकंप का प्रभाव अत्यंत विस्तृत क्षेत्र में होता है। भूकंप, व्यक्तियों को घायल करने और उनकी मौत का कारण बनने के साथ ही व्यापक स्तर पर तबाही का कारण बनता है। इस तबाही के अचानक और तीव्र गति से होने के कारण जनमानस को इससे बचाव का समय नहीं मिल पाता है।
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बीसवीं सदी के अन्तिम दो दशकों के दौरान पृथ्वी के विभिन्न स्थानों पर 26 बड़े भूकंप आए, जिससे वैश्विक स्तर पर करीब डेढ़ लाख लोगों की असमय मौत हुई। यह दुर्भाग्य ही है कि भूकंप का परिणाम अत्यंत व्यापक होने के बावजूद अभी तक इसके बारे में सही-सही भविष्यवाणी करने में सफलता नहीं मिली है। इसी कारण से इस आपदा की संभावित प्रतिक्रिया के अनुसार ही कुछ कदम उठाए जाते हैं।
भूकंप पृथ्वी की आंतरिक क्रियाओं के परिणाम स्वरूप आते हैं। भूकंप के कारण पृथ्वी की सतह पर कंपन होता है, जिसके कारण पृथ्वी पर व्यापक स्तर में उथल-पुथल हो सकती है। भूकंप का धरती पर विनाशकारी प्रभाव, भूस्खलन, धरातल का धंसाव, मानव निर्मित पुलों, भवनों जैसी संरचनाओं की क्षति या नष्ट होने के रूप में दृष्टिगोचर होता है। ज्वालामुखी विस्फोट, भ्रंश (पृथ्वी की भूपटल में आई टूटन या दरार), जलीय भार, भूपटल में संकुचन और प्लेट विवर्तनिक क्रियाएं भूकंप का मुख्य कारण हैं। जिस बिंदु पर भूकंप जन्म लेता है उसे भूकंपीय केंन्द्र बिन्दु और उसके ठीक ऊपर पृथ्वी की सतह पर स्थित बिंदु को अधिकेन्द्र अथवा अंतः केंद्र कहते हैं।
भूकंप आने के प्रमुख कारण
प्लेट विवर्तनिकी:
पृथ्वी हमेशा सक्रिय रही है, चाहे हमें इसका अनुभव हुआ हो या नहीं। पृथ्वी का लगातार परिवर्तन न हो रहा हो। सामान्यतः ये परिवर्तन अत्यंत धीमे होता हैं, इन परिवर्तनों का कारण विवर्तनिक प्लेट कहलाने वाली विशाल द्रव्यमान की चट्टानों में होने वाली मंद गति और पानी एवं हवा जैसे कारकों द्वारा चट्टानों एवं खनिजों में होने वाली गति और क्षय की प्रक्रिया है। लेकिन उस समय जब पृथ्वी की सतह के अंदर हलचल (भूकंप) होने या ज्वालामुखिय उद्गार आतंरिक भाग सदैव अशांत रहता है। पृथ्वी का कोई भी हिस्सा ऐसा नहीं है जिसमें के कारण पृथ्वी से पिघले पदार्थ बाहर आते हैं तब ये परिवर्तन अत्यंत तीव्र और व्यापक होते हैं।
भौगोलिक संदर्भ में एक प्लेट विशाल, कठोर, और ठोस चट्टानों की पट्टी होती है। विवर्तनिक का अंग्रेजी पर्याय षब्द ’टेक्टोनिक’ ग्रीक भाषा का शब्द है जिसका अर्थ ‘निर्माण करना है’। इन दोनों शब्दों को साथ में रखने पर हमें प्लेट विवर्तनिक शब्द प्राप्त होता है, जो पृथ्वी की सतह को प्लेटों से बना हुआ बताता है। प्लेट विवर्तनिक के सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी की सबसे बाहरी पर्त एक दर्जन से भी अधिक बड़ी या छोटी प्लेटों के रूप में बंटी हुई है, जो एक-दूसरे के सापेक्ष गति कर रही हैं।
प्लेट विवर्तनिक का सिद्धांत बड़ा सरल है। हम जानते हैं कि पृथ्वी का स्थलमंडल बड़ी और छोटी महाद्वीपीय प्लेटों से बना है और ये प्लेटें एक दूसरे पर रगड़ाती रहती हैं। जब दो प्लेटें टकराती है तब उत्पन्न परिणामी दाब बहुत अधिक होता है, जो सतह को विरूपित कर वलित रूप में पर्वत श्रेणियों का भी निर्माण कर सकता है। ऐसा माना जाता है कि विश्व का सबसे ऊंचा हिमालय पर्वत करीब 5 करोड़ वर्ष पहले इण्डियन प्लेट और यूरेशियन प्लेटों की आपसी टक्कराहट से प्रौगेतिहासिक टेथिस सागर में से ऊपर उठा।
इसी प्रकार अतीत में प्लेटों में टक्कर होने पर पृथ्वी की सतह पर लंबे और समांतर वलन के आश्चर्यजनक उठाव के फलस्वरूप पर्वत शंृखलाओं का निर्माण हुआ। विश्व के 7,000 मीटर से अधिक ऊंचाई वाली सभी पर्वत श्रेणियों की उत्पत्ति इसी प्रकार हुई है। हिमालय के शिखरों पर पाए जाने वाले समुद्री जीवों के जीवाश्मों से यह बात स्पष्ट होती है कि इसकी उत्पत्ति सागर से हुई है। हिमालय को नवीन वलित पर्वतों की श्रेणी में रखा गया है, क्योंकि यह विश्व के सभी पर्वतों में सबसे नया है।
इसी प्रकार अतीत में प्लेटों में टक्कर होने पर पृथ्वी की सतह पर लंबे और समांतर वलन के आश्चर्यजनक उठाव के फलस्वरूप पर्वत शंृखलाओं का निर्माण हुआ। विश्व के 7,000 मीटर से अधिक ऊंचाई वाली सभी पर्वत श्रेणियों की उत्पत्ति इसी प्रकार हुई है। हिमालय के शिखरों पर पाए जाने वाले समुद्री जीवों के जीवाश्मों से यह बात स्पष्ट होती है कि इसकी उत्पत्ति सागर से हुई है। हिमालय को नवीन वलित पर्वतों की श्रेणी में रखा गया है, क्योंकि यह विश्व के सभी पर्वतों में सबसे नया है।
आज वैज्ञानिक जानते हैं कि हमारी पृथ्वी एक क्रियाशील ग्रह है और प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्लेट विवर्तनिकी ने अतीत और वर्तमान की सभी भौगोलिक गतिविधियों को प्रभावित किया है। वास्तव में यह संकेत करता है कि पूरी पृथ्वी की सतह लगातार परिवर्तित हो रही है।
इस प्रकार हमने जाना हैं कि यही नहीं प्लेट विवर्तनिक के ज्ञान ने हमें भूकंप और ज्वालामुखी उद्गार जैसी प्रचंड भूगर्भिय घटनाओं को समझने का ज्ञान भी दिया है। इन प्रचंड घटनाओं से प्रचंड ऊर्जा मुक्त होती है। हालांकि हमारा प्लेट विवर्तनिक प्रक्रिया पर कोई नियन्त्रण नहीं है, लेकिन हम इन प्रक्रियाओं को समझ कर ऐसा रास्ता खोज सकते हैं जिससे पृथ्वी की विस्मयकारी शक्ति को प्रदर्शित करने वाली ऐसी घटनाओं से जीवन और संपत्ति को होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है। अधिकतर भूकंप पृथ्वी की विभिन्न विवर्तनिक प्लेटों की आपसी गतिविधियों के दौरान आते हैं। 26 जनवरी 2001 को गुजरात राज्य के भुज में आया 6.9 परिमाण वाला भूकंप प्लेट विवर्तनिकी घटना का ही परिणाम था।
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भू संतुलन का विकृत होना:
भूपर्पटी या पृथ्वी की उपरी परत के विभिन्न हिस्सों की संतुलित अवस्था में असंतुलन से भूंकप का अनुभव किया जा सकता है। 4 मार्च 1949 को हिन्दूकुश में इसी कारण से भूकंप आया था।
भ्रंश या दरार:
भूगर्भिक हलचलों से उत्पन्न तनाव भ्रंश या दरार का कारण बनते हैं। भ्रंशन क्रिया से धरातलीय हिस्से खिसकने लगते हैं, जिस कारण भूकंपीय आपदा उत्पन्न हो सकती है। इस तरह के भूकंप, दरार घाटियों और नवीन वलित पर्वतों वाले क्षेत्रों में अधिक आते हैं। जब भूपटल में चट्टानें विपरीत दिशा से टूटती है तब भूकंप आते हैं। चट्टानों का इस प्रकार टूटना भ्रंश कहलाता है। चट्टानें एक-दूसरे को विपरीत या किनारों की तरफ से धक्का लगाती हैं। प्लेटों के बीच की सीमाओं को भ्रंश कहा जाता है। कभी-कभी भ्रंश से दूर प्लेटों के मध्य लगने वाले बल के कारण चट्टानों में टूटन और फिसलन होती है। वह सीमा जहां दो प्लेटें एक-दूसरे पर सरकती हैं, रूपांतरित भ्रंश कहलाती है।
अमेरिका के कैलिफोर्निया का ‘द सेन एंडरीज भ्रंश’ रूपांतरित भ्रंश है। जहां पैसिफिक प्लेट कहलाने वाला भूपटल का एक हिस्सा कैलिफोर्निया के उत्तरी पश्चिमी हिस्से को शेष उत्तरी अमेरिका से दूर ले जा रहा है। इण्डियन प्लेट का यूरेशियन प्लेट को विपरीत धक्का लगाने वाली सीमा से लगा भ्रंश भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र और उत्तर में हिमालय पट्टी में अक्सर घटित होने वाली भूकंप की घटना के लिए उत्तरदायी होता है।
ज्वालामुखी क्रियाएं:
ज्वालामुखी विस्फोट के दौरान धरातल के निचले भाग से तीव्र वेग से निकली गैसें और वाष्प पर्पटी पर जोरों से कंपन उत्पन्न कर भूकंप का कारण बन सकती है। सन 1968 में एटना ज्वालामुखी विस्फोट के समय सिसली द्वीप पर भूकंप का आना इसी तरह की प्रक्रिया का ही परिणाम था।
जलीय भार:
भूसतह पर अत्याधिक मात्रा में जल के एकत्रित (बांध, जलाशयों में) होने से बहुत अधिक दबाव के कारण जहां भण्डार क्षेत्र के नीचे की चट्टानें खिसकने लगती हैं, जिससे वहां भूकंप आ सकता है। सन् 1967 में महाराष्ट्र के कोयना क्षेत्र में भूकंप आने का यही कारण था।
वैसे भूकंप पृथ्वी के किसी भी स्थान पर और किसी भी समय आ सकता है, पर इसकी सही-सही भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। यह कोई नहीं जानता कि अगला भूकंप कब और कहां आएगा। वैसे तो पृथ्वी पर लगभग हर 87 सेकेंड में कहीं न कहीं भूकंप आते ही रहते हैं, लेकिन इनमें से अधिकतर की प्रबलता बहुत कम होती है।
भूकंप का मापन:
भूकंप का परिमाण मापने के लिए रिक्टर पैमाने का उपयोग किया जाता है। यह पैमाना ‘1’ से शुरू होता है, लेकिन इसका कोई अंतिम छोर निर्धारित नहीं किया गया है। रिक्टर पैमाने पर इसकी तीव्रता के साथ-साथ इसकी प्रबलता दुगूनी गति से बढ़ती है। हालांकि अभी तक ज्ञात सर्वाधिक प्रबल भूकंप की तीव्रता इस पैमाने पर 8.8 से 8.9 के बीच मापी गई है। भारत में सर्वाधिक तीव्रता (8.7) का भूकंप 1997 को शिलांग प्लेट में आया था। भूकंप आने पर इससे मुक्त कंपन यानी भूकंपीय तरंगें सभी दिशाओं में संचरित होती हैं। इन तरंगों को विभिन्न स्थानों पर संसूचित कर मापा जा सकता है।
विज्ञान की वह शाखा जिसके अंतर्गत भूकंप का अध्ययन किया जाता है, भूकंप विज्ञान (सिस्मोलोजी) कहलाती है और भूकंप विज्ञान का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिको को भूकंपविज्ञानी कहते हैं। भूकंपविज्ञानी भूकंप के परिमाण को आधार मानकर उसकी व्यापकता को मापते हैं। भूकंप के परिमाण को मापने की अनेक विधियां हैं।
रिक्टर पैमाने (रिक्टर स्केल) पर भूकंप के परिमाण का मापन भूकंप द्वारा प्रसारित भूकंपी ऊर्जा द्वारा किया जाता है। सन् 1935 में कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में कार्यरत अमेरिकी भौतिकविद् चार्ल्स एफ. रिक्टर ने विश्व को रिक्टर पैमाने से परिचित कराया था। उनके इस योगदान के लिए बाद में इस पैमाने का नामकरण रिक्टर पैमाना किया गया है। रिक्टर ने यह पैमाना सैकड़ों भूकंपों के अध्ययन से ज्ञात प्रतिरूपों के आधार पर विकसित किया था। रिक्टर पैमानें पर निर्धारित परिमाण के आधार पर भूकंपों का निम्नांकित प्रकार से वर्गीकरण किया गया है-
तीव्रता प्रभाव:
2.0 से कम- सामान्यतः महसूस नहीं किया जा सकता लेकिन पैमाने पर अंकित हो जाता है।
2.0 से 2.9- अनुभव किए जाने की संभावना रहती है।
3.0 से 3.9- कुछ लोग महसूस कर लेते हैं।
4.0 से 4.9- अधिकतर लोग महसूस कर लेते हैं।
5.0 से 5.9- नुकसानदेह आघात।
6.0 से 6.9- आवासीय इलाकों में विनाशकारी प्रभाव।
7.0 से 7.9- बड़े भूकंप, इनके कारण बहुत हानि होती है।
8.0 से अधिक- प्रबल भूकंप, अधिकेंद्र के निकट भारी तबाही होती है।
सावधानी ही बचाव:
भारत में भूकंपों के कारण आई आपदा का निरीक्षण, भारतीय मौसम विभाग और भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण संस्था द्वारा किया जाता है। भारत की पहली भूकंप वेधशाला सन् 1898 में अलीपुर (कोलकाता) में स्थापित की गई थी। सन् 1899 में दो और भूकंप वेधशालाएं मुम्बई और चेन्नई में स्थापित की गई थीं। चेन्नई की वेधशाला को बाद में कोडाईकनाल में प्रतिस्थापित किया गया। भूकंप वेधशालाओं के राष्ट्रीय तंत्र को बाद में भारतीय मौसम विभाग द्वारा विस्तारित और अद्यतन किया गया। वर्तमान में पूरे देश में भूकंप प्रेक्षणशालाएं स्थित हैं।
पृथ्वी की आंतरिक गतियों के परिणाम स्वरूप जन्में भूकंप पृथ्वी पर विषेश प्रभाव डाल सकते हैं। भूकंप के विनाशकारी प्रभावों में मानव निर्मित संरचनाओं का प्रभाव, भूस्खलन, बाढ़ का आना और धरातल का उत्थान एवं धंसाव आदि प्रमुख हैं। कभी-कभार भूकंप के दौरान निर्मित दरारें झील का आकर ले लेती हैं। कई बार भूकंप से नवीन भूमिगत जलस्रोत भी अस्तित्व में आ सकते हैं।
भूकंप को रोका तो नहीं जा सकता, लेकिन सतर्कता व भूकंप पूर्व सावधानियों से, इससे होने वाली क्षति को कुछ कम किया जा सकता है। भूकंप-प्रतिरोधी भवनों का निर्माण कर भूकंप के समय इमारतों को होने वाली हानि कम की जा सकती है। भूकंप के बाद व्यापक स्तर पर कुशलता से राहतकार्यों का संचालन कर हताहत होने वाले लोगों की संख्या में कमी लाई जा सकती है। भूकंप आने पर खुले स्थान की ओर जाना चाहिए। भूकंप के दौरान लिफ्ट का उपयोग नहीं करना चाहिए। एक बड़े भूकंप के बाद कुछ छोटे-छोटे भूकंप भी आते हैं इसीलिए कुछ देर तक खेले में ही रहें। भूकंप के दौरान यदि किसी ईमारत में हैं तो किसी मजबूत मेज के नीचे अपने आप को सुरक्षित कर लेना चाहिए। भूकंप के दौरान पेड़ या फ्लाईओवर के नीचे खड़ा नहीं होना चाहिए।
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भूकंप के दौरान बरतने वाली सावधानियां, विश्व के सबसे भयानक भूकंप, भूकंप के बाद के सबक, भूकंपरोधी मकानों की तकनीक |
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नवनीत कुमार गुप्ता पिछले दस वर्षों से पत्र-पत्रिकाओं, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन आदि जनसंचार के विभिन्न माध्यमों द्वारा वैज्ञानिक दृष्टिकोण और पर्यावरण संरक्षण जागरूकता के लिए प्रयासरत हैं। आपकी विज्ञान संचार विषयक लगभग एक दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं तथा इन पर गृह मंत्रालय के ‘राजीव गांधी ज्ञान विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन पुरस्कार' सहित अनेक पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। आप विज्ञान संचार के क्षेत्र में कार्यरत संस्था ‘विज्ञान प्रसार’ से सम्बंद्ध हैं। आपसे निम्न मेल आईडी पर संपर्क किया जा सकता है:

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