Ozone Layer Depletion Article in Hindi
वायुमंडल में मौजूद ओजोन परत का सुरक्षित होना मानव जीवन के लिए बहुत ही जरूरी है। पिछले कुछ दशकों में ओजोन परत से सम्बंधित अध्ययनों में यह पाया गया है कि ओजोन परत का धीरे धीरे क्षय हो रहा है। इस लेख में ओजोन परत से सम्बंधित तथ्यों का एक संक्षिप्त अध्ययन प्रस्तुत किया गया है, जिसमें ओजोन परत के परिचय, ओजोन परत का क्षय, ओजोन परत क्षय के कारण, ओजोन परत क्षय के दुष्प्रभाव, ओजोन परत संरक्षण हेतु विश्वस्तरीय प्रयास, सारांश बिन्दुओं के अंतर्गत प्रकाश डाला गया है।
ओजोन परत संरक्षण : एक संक्षिप्त अध्ययन
-मनोज कुमार
परिचय:
आॅक्सीजन के तीन अणुओ से के जुड़ने से ओजोन (O3) का एक अणु बनता है। इसका रंग हल्का नीला होता है और इससे एक विशेष प्रकार की तीव्र गंध आती है। भूतल से लगभग 50 किलोमीटर की ऊचाई पर वायुमंडल ऑक्सीजन, हीलियम, ओजोन, और हाइड्रोजन गैसों की परतें होती हैं, जिनमें ओजोन परत धरती के लिए एक सुरक्षा कवच का कार्य करती है क्योंकि यह ओजोन परत सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैगनी किरणों से धरती पर मानव जीवन की रक्षा करती है। सूरज से आने वाली ये पराबैगनी किरणें मानव शरीर की कोशिकाओं की सहन शक्ति के बाहर होती है। अगर पृथ्वी के चारों और ओजोन परत का यह सुरक्षा कवच नहीं होता तो शायद अन्य ग्रहों की तरह पृथ्वी भी जीवनहीन होती।
ओजोन परत का क्षय:
विगत कुछ दशको में शोधकर्ताओं द्वारा ओजोन परत पर किये गए अध्ययनों में यह पाया गया है की वायुमंडल में ओजोन की मात्रा धीरे धीरे काम होती जा रही है। ओजोन परत के क्षय की जानकारी सर्वप्रथम 1960 में हुयी। वैज्ञानिकों ने यह भी पता लगाया है कि अंटार्कटिका महादीप के ऊपर ओजोन परत में एक छेद हो गया है। प्रारम्भ में इस बात को गंभीरता से नहीं लिया गया। किसी ने इस बात को इतना महत्व नहीं दिया किन्तु जैसे-जैसे प्रतिवर्ष यह छेद बढ़ने लगा वैसे-वैसे समूचे विश्व के वैज्ञानिकों को इसकी चिंता सताने लगी और वैज्ञानिकों के प्रयासों से यह पता लग पाया की वायुमंडल में प्रतिवर्ष के हिसाब से 0.5 % ओजोन की मात्रा कम हो रही है।
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एक अध्यन में पाया गया की अंटार्कटिका के ऊपर वायमंडल में कूल 20 से 30 प्रतिशत ओजोन कम हो गयी है। न सिर्फ अंटार्कटिका बल्कि ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड आदि देशों के ऊपर भी वायुमंडल में ओजोन परत में होने वाले छिद्रों को पाया गया है। बढ़ते समय के साथ-साथ अब उत्तरी ध्रुव पर भी बसंत ऋतु में इस प्रकार के छिद्र दिखाई देने लगे हैं।
ओजोन परत क्षय के कारण:
ओजोन परत के बढ़ते क्षय का मुख्य कारण मानवीय क्रियाएं हैं। मानवीय क्रियाकलापों ने अज्ञानता के चलते वायमंडल में कुछ ऐसी गैसों की मात्रा को बढा दिया है जो धरती पर जीवन रक्षा करने वाली ओजोन परत को नष्ट कर रही हैं। वैज्ञानिको ने ओजोन परत से जुड़े एक विश्लेषण में यह पाया है कि क्लोरो फ्लोरो कार्बन ओजोन परत में होने वाले विघटन के लिए प्रमुख रूप से उत्तरदायी है। इसके अलावा हैलोजन, मिथाइल क्लोरोफॉर्म, कार्बन टेट्राक्लोरिडे आदि रसायन पदार्थ भी ओजोन को नष्ट करने में सक्षम हैं। इन रसायन पत्रथो को "ओजोन क्षरण पदार्थ" कहा गया है। इनका उपयोग हम मुख्यत: अपनी दैनिक सुख सुविधाओ में करते हैं जैसे एयर कंडीशनर, रेफ्रिजरेटर, फोम, रंग, प्लास्टिक इत्यादि।
इलेक्ट्रॉनिक उद्योंगो में मुख्यत: इन पदार्थो का उपयोग किया जाता है। एयर कंडीशनर में प्रयुक्त गैस फ्रियान-11, फ्रियान-12 भी ओजन के लिए हानिकारक है क्योंकि इन गैसों का एक अणु ओजोन के लाखों अणुओं को नष्ट करने में सक्षम है। धरती पर पेड़ों की बढ़ती अंधाधुंध कटाई भी इसका एक कारण है। पेड़ों की कटाई से पर्यायवरण में ऑक्सीजन की मात्रा काम होती है जिसकी वजह से ओजोन गैस के अणुओं का बनना कम हो जाता है।
ओजोन परत क्षय के दुष्प्रभाव:
ओजोन परत के बढ़ते क्षय के कारण अनेकों दुःप्रभाव हो सकते हैं। जैसे की सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणें धरती पर वायुमंडल में प्रवेश कर सकती हैं, जोकि बेहद ही गरम होती हैं और पेड़ पौधों तथा जीव जन्तुओं के लिए हानिकारक भी होती हैं। मानव शरीर में इन किरणों की वजह से त्वचा का कैंसर, श्वशन रोग, अल्सर, मोट्याबिंद् यदि जैसी घातक बीमारिया हो सकती हैं। साथ ही साथ ये किरणें मानव शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को भी प्रभावित करती हैं। ओजोन परत के बढ़ते क्षय के कारण आने वाले कुछ वर्षों में त्वचा कैंसर से पीड़ित रोगों की संख्या के बढ़ने के अनुमान है।
ओजोन परत संरक्षण हेतु विश्वस्तरीय प्रयास:
ओजोन परत के बढ़ते क्षय को ध्यान में रखते हुए कुछ देशों द्वारा पिछले तीन दशकों में महत्वपूर्ण कदम उठाये गए हैं। ओजोन परत के संरक्षण हेतु विभिन्न देशों द्वारा विश्व स्तर पर किये गए कुछ महत्वपूर्ण प्रयास इस प्रकार हैं-
ओजोन-क्षय विषयों से निबटने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समझौते हेतु अंतर-सरकारी बातचीत 1981 में प्रारंभ हुई।
मार्च, 1985 में ओजोन परत के बचाव के लिए वियना में एक विश्वस्तरीय सम्मेलन हुआ, जिसमें ओजोन संरक्षण से संबंधित अनुसंधान पर अंतर-सरकारी सहयोग, ओजोन परत के सुव्यवस्थित तरीके से निरीक्षण, सीएफसी उत्पादन की निगरानी और सूचनाओं के आदान-प्रदान जैसे मुद्दों पर गंभीरता से वार्ता की गयी। सम्मेलन के अनुसार मानव स्वास्थ्य और ओजोन परत में परिवर्तन करने वाली मानवीय गतिविधियों के विरूद्ध वातावरण बनाने जैसे आम उपायों को अपनाने पर देशों ने प्रतिबद्धता व्यक्त की।
1987 में सयुक्त राष्ट्र संघ ने में ओजोन परत में हुए छेदों से उत्पन्न चिंता के निवारण हेतु कनाडा के मांट्रियाल शहर में 33 देशों ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए जिसे “मांट्रियाल प्रोटोकाल” कहा जाता है। इस सम्मेलन में यह तय किया गया कि ओजोन परत को नष्ट करने वाले पदार्थ जैसे क्लोरो फ्लोरो कार्बन (सी.एफ.सी.) के उत्पादन एवं उपयोग को सीमित किया जाए। भारत ने भी इस प्रोटोकाल पर हस्ताक्षर किए।
1990 में मांट्रियल संधि पर हस्ताक्षर करने वाले देशों ने 2000 तक सी.ऍफ़.सी. और टेट्रा क्लोराइड जैसी गैसों के प्रयोग पर भी पूरी तरह से बंद करने की शुरुआत की।
भारत में ओजोन क्षरण पदार्थ सम्बंधित कार्य का संचालन मुख्यत पर्यायवरण एवं वन मंत्रालय द्वारा किया जा रहा है। साथ ही साथ "स्माल इंडस्ट्रीज डेवलपमेंट आर्गेनाइजेशन", इंदौर का भी इसमें सहयोग है।
हर वर्ष 16 सितमबर को ओजोन दिवस के रूप में मनाया जाता है ताकि इस दिन ओजोन परत से जुड़े तथ्यों के बारे में जागरूकता बनाई जा सके।
सारांश:
वर्तमान समय में अनेक प्रकार के केमिकल के बढ़ते प्रयोग, वृक्षों का अंधाधुंध कटना, इन सब के कारण ओजोन परत का क्षय बढ़ता ही जा रहा है। ऐसे में हमारा ये दायित्व है की हम वृक्षों को लगाये ताकि ऑक्सीजन अधिक से अधिक मात्र में वायमण्डल में बनी रही और इससे ओजोन अणुओं का निर्माण हो। साथ ही साथ उद्योग मालिकों और प्रबंधन को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए की वो ऐसे पदार्थों और प्रक्रियाओं का उपयोग न करें, जो ओजोन परत पर बुरा असर डालते हैं। दोस्तों हमारे पास एक ही तो पृथ्वी है, अत: हमको इस पृथ्वी पर जीव जन्तुओं के अस्तित्व हेतु प्रकृती के साथ खिलवाड़ बंद करना होगा, नहीं तो वो दिन दूर नहीं जब मानव भी विलुप्त हो जाएगा।
लेखक परिचय:
मनोज कुमार युवा एवं उत्साही लेखक हैं।
आप जून 2009 से ब्लॉग जगत में सक्रिय हैं और नियमित रूप से अपने ब्लॉग 'डायनमिक' के द्वारा विज्ञान संचार को मुखर बना रहे हैं।
इसके अलावा आप 'साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन' के सक्रिय सदस्य के रूप में भी जाने जाते हैं।
आप जून 2009 से ब्लॉग जगत में सक्रिय हैं और नियमित रूप से अपने ब्लॉग 'डायनमिक' के द्वारा विज्ञान संचार को मुखर बना रहे हैं।
इसके अलावा आप 'साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन' के सक्रिय सदस्य के रूप में भी जाने जाते हैं।
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nice artucle
जवाब देंहटाएंतोड़ा और विस्तार से होना चाहिये था
जवाब देंहटाएंअपनी टिप्पणी लिखें...nice
जवाब देंहटाएंThanx for Explain the Ozone layer
जवाब देंहटाएंthanks for explaining ozone layer
जवाब देंहटाएंsuraj nager