तारों के जुड़े महत्वपूर्ण सवालों की पड़ताल करता एक शोधपरक आलेख।
'ब्रह्मांड के रहस्य' तथा 'आइंसटाइन एवं उनका सापेक्षता सिद्धांत' लेखों में उठे अनेक सवालों के क्रम में प्रस्तुत है तारों की दुनिया की पड़ताल करता यह महत्वपूर्ण आलेख:
तारों का अनोखा संसार
लेखक-प्रदीप
मानव हजारों वर्षों से निरभ्र आकाश में दिखाई देने वाले तारों का निरीक्षण करता आया है। अक्सर लोगों के दिमाग में यह प्रश्न उठते हैं कि आकाश के ये तारे हमसे कितनी दूर हैं? ये सतत क्यों चमकते रहते हैं? ये कब तक चमकते रहेंगे? क्या इन तारों का जन्म होता है? क्या इनकी मृत्यु भी होती है? इन सभी तारों में हमारे सौर-परिवार के मुखिया सूर्य का क्या स्थान है? आकाश में कुल कितने तारे हैं? ध्रुव तारा क्यों स्थिर प्रतीत होता है? वैगरह-वैगरह।
हम जानते हैं कि मनुष्य की जिज्ञासाओं का कोई अंत नही हैं। तारों से समन्धित उपरोक्त प्रश्नों के उत्तर पाने के लिये मानव आदिम काल से ही प्रयासरत रहा हैं। इसका परिणाम यह है कि आज हमारे पास इन मूल प्रश्नों के सटीक उत्तर उपलब्ध हैं। आइए हम इन प्रश्नों के उत्तर आधुनिक विज्ञान के नज़रिये से समझने की कोशिश करें ।
कितनी दूर हैं तारे?
रात के समय आकाश को देखने पर हमें यही प्रतीत होता हैं कि तारे किसी विशाल गोले पर बिखरे हुए हैं और साथ ही साथ हमें यह भी लगता है कि तारे हमसे एकसमान दूरी पर स्थित हैं। इस गोले को प्राचीन भारतीय खगोल-विज्ञानियों तथा ज्योतिषियों ने 'नक्षत्र-लोक' नाम दिया था। आज हम जानते हैं कि यह अवधारणा सही नहीं है क्योंकि न तो सभी तारे एकसमान दूरी पर स्थित हैं और न ही कोई ऐसा गोल है जिस पर ये टिके हुए हैं।
कुछ तारे हमसे बहुत दूर हैं तो कुछ तारे हमसे बहुत नजदीक। पृथ्वी से तारों की दूरियाँ इतनी अधिक होती हैं कि हम उसे किलोमीटर या अन्य सामान्य इकाइयाँ में व्यक्त नही कर सकते हैं इसलिए हमें एक विशेष पैमाना निर्धारित करना पड़ा-प्रकाश वर्ष (Light year)। दरअसल प्रकाश की किरणें एक सेकेंड में लगभग तीन लाख किलोमीटर की दूरी तय करती हैं। इस वेग से प्रकाश-किरणें एक वर्ष में जितनी दूरी तय करती हैं, उसे एक प्रकाश-वर्ष कहते हैं। इसलिए एक प्रकाश-वर्ष 94 खरब, 60 अरब, 52 करोड़, 84 लाख, 5 हजार किलोमीटर के बराबर होता है। सूर्य के पश्चात् हमसे सर्वाधिक नजदीकी तारा ‘प्रौक्सिमा –सेंटौरी’ (proxima centauri) है, जिसकी दूरी लगभग 4.3 प्रकाश-वर्ष है।
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प्रकाश-वर्ष हमें समय और दूरी दोनों की सूचना देता है, हम यह भी कह सकते हैं कि ‘प्रौक्सिमा-सेंटौरी’ से प्रकाश को पृथ्वी तक पहुँचने में 4.3 प्रकाश-वर्ष लगेंगे। आकाश का सर्वाधिक चमकीला तारा ‘लुब्धक’ या ‘व्याध’ (sirius) हमसे तकरीबन 9 प्रकाश-वर्ष दूर है। तारों की दूरियां मापने के लिये एक और पैमाने का इस्तेमाल होता है, जिसे ‘पारसेक’ (parsec) कहते हैं। एक पारसेक 3.26 प्रकाश-वर्षों के बराबर है। सूर्य हमसे लगभग 8 मिनट और 18 प्रकाश सेकेंड दूर है।
सूर्य और पृथ्वी के बीच की इस दूरी को 'खगोलीय इकाई' या 'खगोलीय एकक' कहते हैं। हमारी दृष्टि में सूर्य अन्य तारों की तुलना में अधिक बड़ा तथा प्रकाशमान प्रतीत होता है, परन्तु विशाल ब्रह्मांड की दृष्टि में यह महासागर के एक बूंद के बराबर भी नही है। अत: हमारा सूर्य आकाश का एक सामान्य तारा है। वास्तविकता तो यह है कि अन्य तारों की अपेक्षा सूर्य पृथ्वी के अधिक नजदीक है इसलिए हमें यह अधिक प्रकाशमान तथा शक्तिशाली प्रतीत होता है।
तारों के रंग एवं तापमान:
क्या आप जानते हैं कि सभी तारे एक ही रंग के नहीं होते? पृथ्वी से देखने पर हमे ज्यादातर तारे एक ही जैसे दिखाई देते हैं । परन्तु जब हम तारों का अवलोकन दूरबीन की सहायता से करते हैं तो यह स्पष्ट हो जाता है कि उनके रंग भिन्न-भिन्न हैं। रंगों के द्वारा हमें तारों के तापमान के बारे में पता चलता है। तथा भिन्न-भिन्न तापमान होने के ही कारण ही दूरबीन से प्रेक्षण करने पर तारे अलग-अलग रंग के दिखाई देते हैं।
जब किसी लोहे की छड़ी को हम आग में गर्म करते हैं तो ताप और रंग के सम्बंध हमें स्पष्ट दिखाई देने लगता हैं। जब छड़ी गर्म होती हैं तो लाल रंग की हो जाती है। इससे भी अधिक गर्म करने पर पीले रंग की हो जाती है, और भी गर्म करने पर छड़ी सफेद रंग की हो जाती है। बहुत अधिक तापमान होने के कारण सफेद रंग, नीले रंग में परिवर्तित हो जाती है। ठीक उसी प्रकार अधिक गर्म तारे नीले दिखाई देते हैं, उनकी अपेक्षा पीले तारे उनसे कम गर्म तथा लाल तारे सबसे कम गर्म होते हैं। हमारा सूर्य एक पीले रंग का तारा है। अत: यह न तो बहुत अधिक गर्म है और न ही बहुत ठंडा। यह एक सामान्य तारा है।
स्पेक्ट्रमदर्शी से प्रेक्षण करने पर हमे तारों के भिन्न-भिन्न रंग दिखाई देते हैं, जिनके समूह को वर्णक्रमपट अथवा स्पेक्ट्रम कहा जाता हैं। दरअसल, तारों के वर्णक्रमपट की सहायता से हम उसके विभिन्न भौतिक गुणधर्मों के बारे में पता लगा सकते हैं। उदहारण के लिये हम यह पता लगा सकते हैं कि तारों के अंदर कौन-कौन से तत्व मौजूद हैं। अब तक सैकड़ों तारों के वर्णक्रमपट प्राप्त किये जा चुके हैं। इन वर्णक्रमपटों के आधार पर तारों का वर्गीकरण किया गया है। उन्नीसवी सदी के अंत में हावर्ड वेधशाला के खगोलविदों ने तारों को कुछ वर्गों में बाँटकर उन्हें O, B, A, F, G, K, M इत्यादि नाम दिए हैं।
O वर्ग के तारे सबसे अधिक गर्म होते हैं। इन तारों के सतह का तापमान 33,000 K (kelvin) या उससे अधिक होता है तथा इन तारों में हीलियम गैस की बाहुल्यता होती हैं। इस वर्ग के तारे नीले रंग के होते हैं।
B वर्ग के तारों का तापमान 10,500 K से 30,000 K के बीच में होता है तथा इन तारों में हीलियम, परमाणुहीन ऑक्सीजन तथा नाइट्रोजन गैस की बाहुल्यता होती है। इस वर्ग के तारे नीले-सफेद रंग के होते हैं। चित्रा तारा इसी वर्ग का है, जो कन्या नक्षत्रमंडल में है।
A वर्ग के तारों का तापमान 7,500 K से 10,000 K के बीच में होता है तथा इन तारों में कैल्शियम इत्यादि गैसों की बाहुल्यता होती है। इस वर्ग के तारे सफेद रंग के होते हैं। आकाश का सबसे चमकीला तारा व्याध (sirius) इसी वर्ग का है।
F वर्ग के तारों का तापमान 6,000 K से 7,200 K के बीच में होता है। इस वर्ग के तारे पीले-सफेद रंग के होते हैं। ध्रुव-तारा इसी वर्ग का हैं।
G वर्ग के तारों का तापमान 5,500 K से 6,000 K के बीच में होता है। इस वर्ग के तारे पीले रंग के होते हैं। सूर्य इसी वर्ग का तारा है।
K वर्ग के तारों का तापमान 4,000 K से 5,250 K के बीच में होता है। इस वर्ग के तारे नारंगी होते हैं। तापमान कम होने के कारण इस वर्ग के तारों के पदार्थ व्युहाणु (molecular) अवस्था में होते हैं। रोहिणी इसी वर्ग का तारा है।
M वर्ग के तारों का तापमान 2,600 K से 3,850 K के बीच में होता है। इस वर्ग के तारे लाल रंग (मिश्रित नारंगी) के होते हैं। प्राक्सीमा सेन्टारी इसी वर्ग का तारा है।
हमारे आकाशगंगा में 2,600 K से भी कम तापमान वाले तारे हैं। इनमें वर्ग N (लाल रंग), R (लाल रंग), S (केवल दूरबीन से दिखाई देने वाला लाल रंग का तारा) प्रमुख है।
आकाशगंगा के ज्यादातर तारों को उपर्युक्त 10 वर्गों में विभाजित किया गया है। एक वर्ग तथा दूसरे वर्ग के बीच वाले तारों को उपवर्गों 1, 2, 3... जैसी संख्याओं में व्यक्त किया गया है। जैसे सूर्य G -2 वर्ग का तारा है।
तारों का कांतिमान:
रात के समय तारों को नंगी आँखों से देखने पर हमें यह प्रतीत होने लगता है कि कुछ तारे अधिक चमकीले हैं तथा कुछ कम। कांति के अनुसार तारों को विभिन्न कांतिमानों में वर्गीकृत किया गया है। जैसाकि हम जानते हैं कि तारे हमसे बहुत दूर हैं और दूरी अधिक होने के कारण कम चमकीले तारे हमें दिखाई नही देते हैं। हम नंगी आँखों से केवल छठे कांतिमान के तारों को ही देख सकते हैं। मजेदार बात यह है कि धरती से दिखाई देने वाले आकाश में छठे कांतिमान के लगभग साढ़े पांच हजार से अधिक तारे नही हैं।
कांतिमान का वर्गीकरण इस प्रकार कि जो तारे सबसे अधिक चमकीले दिखाई देते हैं, उसके लिये न्यूनतम संख्या का प्रयोग किया जाता है जैसे प्रथम। उसके विपरीत जो तारे कम चमकीले दिखाई देते हैं उनके लिये अधिकतम संख्या का प्रयोग किया जाता है, जैसे छठी। प्रथम कांतिमान के तारे द्वितीय कांतिमान के तारों से 2.5 गुना चमकीला और द्वितीय कांतिमान का तारा तृतीय कांतिमान के तारे से 2.5 गुना चमकीला होता है। इसी प्रकार यह क्रम चलता रहता है।
अमेरिका के पालोमार पर्वत पर स्थित वेधशाला 200 इंच व्यास वाली परवर्ती दूरबीन की सहायता से 22 से 23 कांतिमान तक के तारो को आसानी से पहचाना जा सकता है।
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तारों का व्यास और द्रव्यमान:
सूर्य एक सामान्य तारा है, इसका व्यास लगभग 14,00,000 किलोमीटर है अर्थात् पृथ्वी के व्यास का लगभग 109 गुना ज्यादा। आकाशगंगा में कुछ तारे सूर्य से सैकड़ों गुना बड़े हैं। इन्हें 'महादानव तारे' कहते हैं। इन तारों का व्यास हमारे सूर्य से 100 गुना अधिक होता है। पहले वैज्ञानिकों की यह मान्यता थी कि यदि सूर्य महादानव तारा बन जायेगा तो वह हमारी पृथ्वी को निगल जाएगा,परन्तु इटली के खगोलविद रोबर्ट सिल्वोटी ने इस आशंका को नकार दिया हैं, परन्तु वर्तमान में सभी वैज्ञानिक सिल्वोटी के तर्को से सहमत नही हैं।
आकाशगंगा में अनेक ऐसे भी तारे हैं जो सूर्य से छोटे हैं और-तो-और अनेक तारे पृथ्वी तथा बुध ग्रह से भी छोटे हैं। ऐसे तारों को 'श्वेत वामन तारे' अथवा 'बौने तारे' कहते हैं। श्वेत वामन तारे भले ही सूर्य से छोटे होते हैं, परन्तु इनका द्रव्यमान लगभग बराबर ही होता हैं। महादानव तारों के द्रव्य का घनत्व पानी के घनत्व की अपेक्षा लगभग एक लाख गुना कम होता है। श्वेत वामन तारों या बौने तारों का घनत्व बहुत अधिक होता है। इनका घनत्व पानी के घनत्व की अपेक्षा दस लाख गुना अधिक हो सकता है। ऐसे तारों का एक घन सेंटीमीटर द्रव्य सौ टन से भी अधिक हो सकता है।
जिन तारों का घनत्व पानी की अपेक्षा एक लाख अरब गुना होता हैं, ऐसे तारे 'पल्सर' या 'न्यूट्रॉन' तारे कहलाते हैं। इनका व्यास 40 किलोमीटर से भी कम हो सकता है।
हर्टजस्प्रुंग-रसेल आरेख:
डेनमार्क के खगोलज्ञ एजनार हर्टजस्प्रुंग (Ejnar Hertzsprung) और अमेरिका के खगोलज्ञ हेनरी नारेस रसेल (Henry Norris Russell) ने तारों के रंग तथा तापमान में महत्वपूर्ण समंध स्थापित किया। दोनों खगोलज्ञो ने तारों के रंग तथा तापमान के आधार पर एक आरेख (graph) तैयार किया, जिसे ताराभौतिकी में हर्टजस्प्रुंग-रसेल आरेख (Hertzsprung Russell Diagram) के नाम से जाना जाता है।
इस आरेख की भुजा रंग एवं तापमान को निर्धारित करता हैं तथा कोटि- अंक कांतिमान को निर्धारित करता है। सर्वाधिक विस्मयकारी बात इस आरेख में यह है कि अधिकांश तारे दाईं ओर के नीचे के कोने से बाईं ओर के ऊपरी कोने तक एक विकर्ण पट्टे में स्थित है। इस पट्टी को 'मुख्य अनुक्रम' या 'मेन सिक्वेंस' कहते है। सूर्य इस प्रमुख क्रम के लगभग मध्य में है। इस आरेख के ऊपरी कोने पर बहुत गर्म नीले रंग के विशालकाय महादानव तारे हैं तथा नीचले कोने पर लाल रंग के श्वेत वामन अथवा बौने तारे है। हर्टजस्प्रुंग-रसेल आरेख तारों के विकासक्रम के अध्ययन में बहुत सहायक सिद्ध हुआ है।
इस आरेख की भुजा रंग एवं तापमान को निर्धारित करता हैं तथा कोटि- अंक कांतिमान को निर्धारित करता है। सर्वाधिक विस्मयकारी बात इस आरेख में यह है कि अधिकांश तारे दाईं ओर के नीचे के कोने से बाईं ओर के ऊपरी कोने तक एक विकर्ण पट्टे में स्थित है। इस पट्टी को 'मुख्य अनुक्रम' या 'मेन सिक्वेंस' कहते है। सूर्य इस प्रमुख क्रम के लगभग मध्य में है। इस आरेख के ऊपरी कोने पर बहुत गर्म नीले रंग के विशालकाय महादानव तारे हैं तथा नीचले कोने पर लाल रंग के श्वेत वामन अथवा बौने तारे है। हर्टजस्प्रुंग-रसेल आरेख तारों के विकासक्रम के अध्ययन में बहुत सहायक सिद्ध हुआ है।
सूर्य तथा अन्य तारों की तेजस्विता का रहस्य:
सूर्य हमसे लगभग 15 करोड़ किलोमीटर दूर है। हम जानते हैं कि अन्य तारों की अपेक्षा सूर्य हमसे बहुत नजदीक है, इसलिए हमे बहुत शक्तिशाली प्रतीत होता है। सूर्य से समन्धित हमारे मस्तिष्क में अनेक कौतहूलपूर्ण सवाल उठते हैं -यह कैसे चमकता है? यह कैसे इतनी अधिक मात्रा में ऊजा उत्पन्न करता है? आखिर सूर्य तथा तारों के अंदर ऐसी कौन सा ईधन है जो जल रहा है?
होउटरमैन्स (Houtermans) तथा अटकिंसन (Atkinson) नामक दो वैज्ञानिक ने यह प्रस्ताव रखा कि 'तापनाभिकीय अभिक्रियायें' ही सूर्य तथा अन्य तारागणों में ऊर्जा का स्रोत है। सन् 1939 में वाइसजैकर तथा हैंस बेथे नामक दो वैज्ञानिकों ने स्वतंत्र रूप से शोध के पश्चात् यह व्याख्या कि सूर्य तथा अन्य तारों में होने वाली तापनाभिकीय अभिक्रियाओं के कारण हाइड्रोजन का दहन होकर हीलियम में परिवर्तन हो जाता है (संलयन)। सूर्य तथा अन्य तारों में हाइड्रोजन सर्वाधिक मात्रा में पाया जाने वाला संघटक है, तथा ब्रह्मांड में भी इसकी सर्वाधिक मात्रा है ।
यदि हम हाइड्रोजन के चार नाभियों को जोड़ें, तो हीलियम के एक नाभिक का निर्माण होता है। हाइड्रोजन के चार नाभियों की अपेक्षा हीलियम के एक नाभिक का द्रव्यमान कुछ कम होता है। इन सबके पीछे 1905 में आइंस्टीन द्वारा प्रतिपादित 'विशेष सापेक्षता सिद्धांत' का प्रसिद्ध समीकरण E=mc² हैं । इस समीकरण के अंतर्गत द्रव्यमान ऊर्जा का ही एक रूप हैं, द्रव्यमान m ऊर्जा की एक मात्र E के तुलनीय हैं। अर्थात् उपरोक्त तापनाभिकीय संलयन में हीलियम के द्रव्यमान में जो कमी हुई थी, वह ऊर्जा के रूप में वापस मिलेगा। इसी कारण से सूर्य तथा अन्य तारें चमकते हैं।
परन्तु मजेदार तथ्य यह है कि सभी तारे अपना हाइड्रोजन एक ही प्रकार से खर्च नही करते हैं। जो तारे हमारे सूर्य से बड़े हैं वे अपना हाइड्रोजन बहुत तेजी से खर्च कर रहे। इसका अर्थ यह हैं कि जो तारे जितना बड़ा होते हैं उतना ही अधिक तेजी से हाइड्रोजन खर्च करते हैं। जो तारे सूर्य से दो गुना बड़े हैं वे अपना हाइड्रोजन दस गुना तेजी से खर्च कर रहे हैं। जो तारे सूर्य से दस गुना बड़े हैं वे एक हजार गुना तेजी से। ऐसे तारे काफी कम समय में ही अपना हाइड्रोजन समाप्त कर देते हैं तथा मृत्यु की कगार पर पहुँच जाते हैं। जो तारे हमारे सूर्य के आकार के हैं उनका हाइड्रोजन काफी लम्बे समय तक चलता है।
तारों की जीवन यात्रा के समंध में चर्चा करने से पहले हमे यह जानना अत्यंत आवश्यक है कि धरती के मानवों ने सन् 1950 के उपरांत हाइड्रोजन बम निर्माण करने का ज्ञान प्राप्त कर लिया है। हाइड्रोजन बम आकार में अधिक बड़ा नहीं होता है। यूँ कहे तो दस लाख टी.एन.टी. क्षमता वाले हाइड्रोजन बम को एक साधारण बिस्तर में छुपा सकते हैं। हाइड्रोजन बम का विमोचक(ट्रिगर) ही सामान्यता परमाणु बम की क्षमता के बराबर होता है। इस बम से उत्पन्न होने वाली ऊर्जा वस्तुत: तापनाभिकीय अभिक्रियाओं के ही कारण होती है।
इसका तात्पर्य यह है कि सूर्य तथा अन्य तारों में प्रतिदिन हजारों-करोड़ों हाइड्रोजन बम फूटते हैं। परन्तु, तारों के अंदर होने वाली तापनाभिकीय प्रक्रियायें विस्फोटात्मक रूप में न होकर संतुलित रूप में होती हैं। संलयन को संतुलित रूप में करवाने में अभी पृथ्वीवासी सफल नही हुए हैं, यदि मानव 'संलयन भट्ठी' बनाने में सफलता प्राप्त कर लेगा तो हम धरती पर ही कृत्रिम वामन तारों का निर्माण कर सकेंगे। परन्तु इस समय चिंताजनक विषय यह हैं कि मानव हाइड्रोजन बम जैसी युक्तियों का उपयोग विनाशक तथा संहारक आयुधों के निमार्ण में निरंतर प्रयासरत रहा है और इसमें बहुत सफल भी रहा है। सौभाग्यवश अभी तक हाइड्रोजन बम का किसी युद्ध में प्रयोग नही किया गया है। आइए, अब हम तारों के जीवन यात्रा की ओर मुड़ते हैं।
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अगली कड़ी में पढिए तारों की जीवन यात्रा और भांति-भांति के अनोखे तारों के बारे में
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लेखक परिचय:
श्री प्रदीप कुमार यूं तो अभी दिल्ली के जी.बी.एस.एस. स्कूल में दसवीं के
विद्यार्थी हैं, किन्तु विज्ञान संचार को लेकर उनके भीतर अपार उत्साह है।
आपकी ब्रह्मांड विज्ञान में गहरी रूचि है और भविष्य में विज्ञान की इसी
शाखा में कार्य करना चाहते हैं। वे इस छोटी सी उम्र में न सिर्फ 'विज्ञान के अद्भुत चमत्कार' नामक ब्लॉग का संचालन कर रहे हैं, वरन फेसबुक पर भी इसी नाम का सक्रिय समूह संचालित कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त आप 'साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन' के भी सक्रिय सदस्य के रूप में जाने जाते हैं।
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शोध-परक एवं प्रशंसनीय
जवाब देंहटाएंEk sarahneey lekh. badhayi,
जवाब देंहटाएंAti uttam lekh..
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