हवाई द्वीप समूह की मोनाकी चोटी में 30 मीटर व्यास के टेलीस्कोप स्थापित करने की महत्वाकांक्षी परियोजना की रोचक जानकारियां।
हवाई द्वीप समूह की एक चोटी मोनाकी, जोकि दुनिया के बड़े टेलिस्कोपों की बस्ती है, में चल रही 30 मीटर व्यास के टेलीस्कोप स्थापित करने की महत्वाकांक्षी परियोजना में अब भारत भी शामिल हो गया है। दुनिया के प्रमुख देशों के सहयोग से चल रही यह परियोजना क्यों इतनी महत्वपूर्ण है और इसके पूर्ण होने से कौन से लक्ष्य हासिल किये जा सकेंगे, पढि़ए इस रोचक लेख में।
सुपर टेलिस्कोप
आसान होगी अंतरिक्ष में जीवन की तलाश
-नवनीत कुमार गुप्ता
सदियों से मानव अंतरिक्ष के रहस्यों की ओर आकर्षित होता रहा है। आकाश में टिमटिमाते तारे बालपन से ही हमारे मन में जिज्ञासा के बीज बो देते हैं। इस प्रकार हम अनजाने में ही खगोलविज्ञान की ओर आकर्षित हो जाते हैं। समय के साथ-साथ हम ग्रहों, उपग्रहों, मंदाकिनियों जैसे अनेक खगोलिय पिंड़ों के बारे में अधिक से अधिक जानना चाहते हैं। दूरबीन यानी टेलिस्कोप ब्रहांड के बारे में जानने का एक प्रमुख माध्यम है।
सन् 1620 तक ब्रहांड में केवल पृथ्वी ग्रह को जीवन से परिपूर्ण माना जाता था लेकिन ब्रूनों नामक वैज्ञानिक इस धारणा के खिलाफ थे। उनका मानना था कि इस विशाल ब्रहांड में अन्य ग्रहों पर भी जीवन हो सकता है। लेकिन उन्हें इस दावे के लिए भयानक सजा दी गयी और उन्हें जिंदा जला दिया गया।
सुपर टेलिस्कोप:
यह विशालकाय टेलिस्कोप खरबों तारों में से पृथ्वी जैसे जीवनमय ग्रहों के बारे में जानकारी प्राप्त करने का प्रयास करेगा। इस टेलिस्कोप की विशालता का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि इसमें लगने वाले कांच के 492 टुकड़ों का आकार किसी बीस मंजीला इमारत जितना होगा और इनका कुल भार होगा करीबन 1500 टन। यह विशालकाय टेलिस्कोप आने वाले कई दशकों तक टेलिस्कोप इंजीनियरिंग की मिशाल बनेगा।
इस सुपर टेलिस्कोप की सबसे अहम बात इसका 30 मीटर वाला कांच है। इस टेलिस्कोप का कांच करीब 30 मीटर व्यास वाला होगा। यानी किसी फुटबाल मैदान में ऐसे तीन कांच ही समा पाएंगे। आमतौर पर कांच के एक गोलखंड को घिसकर टेलिस्कोप का कांच बनाया जाता है। मजबूती के लिए कांच के आकार और मोटाई के बीच एक अनुपात रखा जाता है। इसी अनुपात के कारण कांच का आकार बढ़ने के साथ कांच का वजन बढ़ता जाता है। इसलिए अधिक व्यास वाला कांच बनाना आसान नहीं होता। अधिक व्यास वाले कांच को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना भी मुश्किल होता है।
तीस मीटर टेलिस्कोप नयी विधि से बनाया जाएगा। प्रशांत महासागर में स्थित हवाई द्वीप समूह की एक चोटी मोनाकी समुद्र तल से 13,000 फीट ऊंची है। शुष्क मौसम और साफ आकाश के कारण मोनाकी दुनिया के बड़े टेलिस्कोपों की बस्ती है। यहां दुनिया के सबसे बड़े केक टेलिस्कोप लगे हैं। यहां लगे सबसे बड़े टेलिस्कोप के प्राथमिक कांच का व्यास 10 मीटर है। षटकोणीय आकार वाले अनेक कांचखण्डों से मिलकर इसके मुख्य कांच को बनाया गया है। तीस मीटर व्यास वाला टेलिस्कोप भी इसी तरह बनाया जाएगा।
बेंगलौर शहर में इस तीस मीटर व्यास वाले टेलिस्कोप के लिए सेगमेंट सपोर्ट असेंबली का निर्माण किया जा रहा है। यहां इसके डमी कांच का भी निर्माण किया जा रहा है।
भारत के वैज्ञानिक इस प्रयोग में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। टेलिस्कोप के प्रायमरी कांच को किसी भी तरह के कंपन से बचाने के लिए एक्च्युएटर के विकास संबंधी प्रयोग भारत में किए जा रहे हैं। हम जानते हैं कि जब हवा बहती है तो उसका दबाव एक जैसा नहीं होता। यह बदलता रहता है जिससे कांच में खलबली पैदा हो सकती है। जैसे-जैसे हवा का दबाव बदलता है, एक्च्युएटर उसके विपरीत हवा में काम करता है। ताकि हवा के दबाव से उत्पन्न खलबलियों को निष्प्रभावी कर सके। वैसे तो इतनी बड़ी संरचना में कहीं भी कंपन हो सकता है लेकिन यदि नैनोमीटर स्तर पर भी कंपन टेलिस्कोप के कांच तक पहुंचता है, तो वह टेलिस्कोप पर बनने वाली छवि को खराब कर सकता है। इस प्रकार एक्च्युएटर का मुख्य काम कांच को कंपन से बचाना है। इसी प्रकार इस टेलिस्कोप से संबंधित अनेक कार्य भारत के वैज्ञानिकों द्वारा किए जा रहे हैं।
भारत के प्रमुख टेलिस्कोप की बात करें तो उनमें से एक वेणु बप्पू टेलिस्कोप (Venu bappu telescope) है जो भारत के प्रसिद्ध खगोलविज्ञानी वेणु बप्पू के नाम पर है। पूर्वी घाट के कवलूर में स्थित इस टेलिस्कोप का संचालन भारतीय तारा भौतिकी संस्थान (Indian Institute of Astrophysics) करता है। यह भारत का सबसे बड़ा टेलिस्कोप है। वेणु बप्पू टेलिस्कोप के दर्पण का व्यास करीबन 2.3 मीटर है। एक समय यह एशिया का सबसे बड़ा टेलिस्कोप था लेकिन पिछले कुछ सालों से दुनिया के कई देशों में 8 और 10 मीटर व्यास के कुछ विशाल टेलिस्कोप बने हैं। हालांकि कुछ लोगों के मन में यह सवाल उठ सकता है कि जब इतने बड़े टेलिस्कोप बनें हैं तो फिर 30 मीटर व्यास वाला नया टेलिस्कोप क्यों बनाया जा रहा है।
अतीत का संदेशवाहक:
असल में टेलिस्कोप की क्षमता को उसके प्राथमिक दर्पण के व्यास से मापा जाता है। शिकारी के जाल की तरह प्राथमिक दर्पण प्रकाश को पकड़ने का काम करता है जितना बड़ा कांच उतना ही अधिक प्रकाश पकड़ा जा सकता है। इसके अलावा हम यह जानते हैं कि प्रकाश करीबन तीन लाख प्रति सेकंड की गति से चलता है। इस प्रकार सूर्य से आने वाला प्रकाश पृथ्वी तक लगभग आठ मिनट में पहुंचता है। यानी हमें आकाश में हमेशा आठ मिनट पुराना सूरज दिखता है। इस प्रकार प्रकाश हमें अतीत में ले जाता है। यह भी कह सकते हैं कि प्रकाश अतीत का संदेषवाहक है।
हम जानते हैं कि प्रकाश फोटॉन के रूप में होता है। इस प्रकार टेलिस्कोप इन फोटॉन को ही पकड़ता है। हमारी पड़ौसी निहारिका एंड्रोमिडा हमारी आकाशगंगा से करीबन 25 लाख प्रकाश वर्ष दूर है। यानी इससे निकला जो प्रकाश आज हम तक पहुंच रहा है, वह इससे 25 लाख प्रकाश वर्ष पहले चला है। आप को पता होगा कि एक प्रकाश वर्ष का मतलब है निर्वात में प्रकाश द्वारा एक साल में चली गयी दूरी, जो लगभग 10 खरब किलोमीटर होती है।
इस प्रकार अतीत से आते प्रकाश को पकड़ने के लिए बड़े से बड़े टेलिस्कोप की आवष्यश्यकता होती है। बड़ा टेलिस्कोप अधिक प्रकाश एकत्र कर पाता है। यानी बड़े टेलिस्कोप से हम आकाश में स्थित मद्धिम खगोलिय पिंड़ों को भी देख सकते हैं। इसीलिए अंतरिक्ष में बहुत अधिक दूरी पर स्थित पिंड़ों को देखने के लिए बड़े टेलिस्कोप की आवश्यकता होती है। इसके अलावा किसी खगोलिय पिंड का बारीकी से अध्ययन करना चाहते हैं तब भी हमें बड़े टेलिस्कोप की आवश्यकता होती है। तीस मीटर टेलिस्कोप का प्रकाश संग्रहण क्षेत्र 8 से 10 मीटर टेलिस्कोप की तुलना में 10 गुना अधिक होता है। इस प्रकार हब्बल टेलिस्कोप की तुलना में तीस मीटर टेलिस्कोप का रिजोल्यूशन 10 गुना अधिक होगा।
सुलझेगा बिग बैंक का सवाल:
करीबन साढ़े तेरह अरब साल हमारे ब्रहांड का विस्तार आरंभ हुआ जिसे बिग बैंग कहते हैं। साढ़े तेरह अरब साल पहले चला प्रकाश अत्यंत मद्धम है। 30 मीटर व्यास वाला टेलिस्कोप तकनीकी रूप से इस प्रकाश को पकड़ने के काबिल है। यह प्रकाश हमें सौर मंडल के तारों और मंदाकिनियों के जन्म और विकास की कहानी बता सकता है। यह विशालकाय टेलिस्कोप ब्रहांड के संबंध में अनेक अनसुलझे सवालों का भी पता लगा पाएगा। ऐसे ही एक सवाल के रूप में डार्क मैटर () काफी समय से मानव की जिज्ञासा का कारण रहा है।
डार्क मैटर का रहस्य खुलेगा:
यह माना जाता है कि ब्रहांड का एक बड़ा हिस्सा डार्क मैटर से निर्मित है। अनुपात के अनुसार ब्रहांड का लगभग 70 प्रतिषत डार्क एनर्जी () है और 30 प्रतिशत पदार्थ। इस 30 प्रतिशत प्रदार्थ वाले हिस्से के 70 प्रतिशत भाग को हम डार्क मैटर कहते हैं। इसे डार्क इसीलिए कहा जाता है क्योंकि इससे कोई प्रकाश नहीं निकलता इसीलिए हम इसे देख भी नहीं पाते। लेकिन गुरुत्व की उपस्थिति के कारण हमें पता है कि वहां पदार्थ हैं लेकिन हम इसे देख नहीं पाते। इसलिए सैद्धांतिक तौर पर इसे डार्क मैटर कहा जाता है।
सरल शब्दों में हम यह भी कह सकते हैं कि हम आज भी नहीं जानते कि अंतरिक्ष का 70 प्रतिशत पदार्थ किससे मिलकर बना है जिसे कि हम देख ही नहीं पाते। यह ऐसा रोचक सवाल है जिसका हमारे पास अभी कोई जवाब नहीं है। डार्क मैटर की खोज पदार्थ की संरचना के बारे में हमारी समझ में वृद्धि करेगी। ऐसा भी अनुमान लगाया जाता है कि ऐसा पदार्थ बिल्कुल नए पदार्थ से बना हो सकता है जिसके बारे में हमें अभी तक कोई ज्ञान नहीं है।
अनेक देशों की साझेदारी:
अमेरिका, चीन, कनाडा, जापान और भारत के वैज्ञानिक एक ऐसा टेलिस्कोप बना रहे हैं जिसका उद्देश्य अंतरिक्ष में ऐसे ग्रहों को खोजना है, जहां जीवन हो सकता है। भारत की ओर से इस परियोजना से जुड़ने वाले खगोलभौतिकी की संस्थानों में मुख्यतया भारतीय तारा भौतिकी संस्थान, बेंगलुरु (), एरीस, नैनीताल () और आयूका, पुणे () हैं। अनेक इंजीरियर, वैज्ञानिक और शोध छात्राओं को भी इसमें शामिल किया गया है। आगे चलकर इसमें अनेक विश्वविद्यालयों को भी शामिल किए जाने की संभावना है।
02 दिसंबर, 2014 को भारत इस अंतर्राष्ट्रीय परियोजना में एक भागीदार के रूप में शामिल हुआ। इंडिया हैबिटेट सेंटर, नई दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव प्रो. के. विजय राघवन द्वारा एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए गये, जिससे भारत तीस मीटर टेलिस्कोप संबंधी अंतर्राष्ट्रीय परियोजना में एक भागीदार के रूप में शामिल हुआ। इस अवसर पर इस परियोजना के बारे में भारत में इस कार्यक्रम के निदेशक डा. बी ईश्वर रेडी, भारतीय तारा भौतिकी संस्थान ने जानकारी देते हुए बताया कि यह परियोजना सात साल पहले आरंभ हुई थी।
तीस मीटर टेलिस्कोप ब्रहांड के अन्य खगोलिय पिंड़ों पर अध्ययन करेगी। 2010 में भारत ने इस परियोजना में भागीदारी पर इच्छा जताई थी। तीस मीटर टेलिस्कोप अंतर्राष्ट्रीय वेधशाला बोर्ड के अध्यक्ष एवं यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया सांता बाबारा के कुलपति हेनरी यंग इस अवसर पर उपस्थित थे। वर्ष 2023-2024 तक यह परियोजना पूरी होगी।
अगामी तीन पांचवर्षीय परियोजना के अंतर्गत भारत इस परियोजना में वित्तीय भागीदारी निभाएगा। भारत इस परियोजना के लिए 30 प्रतिशत की वित्तीय हिस्सेदारी करेगा। वहीं तकनीकी सहयोग में भारती की हिस्सेदारी 10 प्रतिशत रहेगी। इस परियोजना में साफ्टवेयर आधार पर मुख्य तौर पर दो स्तर पर तकनीकी विशेषज्ञता की आवश्यकता होगी। पहली टेलीस्कोप निंयत्रण व्यवस्था और दूसरी वेधशाला नियंत्रण व्यवस्था।
भारतीय वैज्ञानिकों के लिए यह टेलिस्कोप विश्वस्तरीय अनुसंधान में भागीदारी का अवसर उपलब्ध करा रहा है। इसके माध्यम से भारतीय वैज्ञानिक विज्ञान के चुनौतीपूर्ण सवालों से रूबरू होंगे।
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नवनीत कुमार गुप्ता पिछले दस वर्षों से पत्र-पत्रिकाओं, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन आदि जनसंचार के विभिन्न माध्यमों द्वारा वैज्ञानिक दृष्टिकोण और पर्यावरण संरक्षण जागरूकता के लिए प्रयासरत हैं। आपकी विज्ञान संचार विषयक लगभग एक दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं तथा इन पर गृह मंत्रालय के ‘राजीव गांधी ज्ञान विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन पुरस्कार' सहित अनेक पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। आप विज्ञान संचार के क्षेत्र में कार्यरत संस्था ‘विज्ञान प्रसार’ से संबंद्ध हैं। आपसे मेल आईडी ngupta@vigyanprasar.gov.in पर संपर्क किया जा सकता है।
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abhar.
जवाब देंहटाएंNavneet sir, apne badi intresting info di, many many thanks.
जवाब देंहटाएंHubble space telescope has a mirror of 2.4 meter. If a telescope has mirror 10 times diameter, its resolution will be better only 10 times, light gathering capacity 100 times. Therefore it can view a distant source with apparent brightness 100 times less. Viewing distant objects in Universe has no correlation to existence of life in the Universe.
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