वर्ष 2014 के विज्ञान सम्बंधी विभिन्न नोबेल पुरस्कार घोषित किये जा चुके हैं। ऐसे में हर किसी के मन में उत्कंठा है उन वैज्ञानिकों के बारे म...
वर्ष 2014 के विज्ञान सम्बंधी विभिन्न नोबेल पुरस्कार घोषित किये जा चुके हैं। ऐसे में हर किसी के मन में उत्कंठा है उन वैज्ञानिकों के बारे में विस्तार से जानने-समझने की। इसी क्रम में आज प्रस्तुत है 2014 के नोबेल विजेता वैज्ञानिकों का संक्षिप्त जीवन परिचय।
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नोबेल के नवरत्न
-विष्णुप्रसाद चतुर्वेदी
औषध या कार्यिकी
1. डॉक्टर जॉन ओ’कीफ
जॉन ओ’कीफ (John O'Keefe) का जन्म न्यूयार्क शहर में 18 नवम्बर 1939 को हुआ। इनके माता-पिता आयरलैण्ड से आकर अमेरिका के न्यूयार्क शहर में बस गए थे। ओ’कीफ ने प्रारम्भिक शिक्षा रेजिस हाई स्कूल, मन्हटन से प्राप्त की। सीटी कॉलेज न्यूयार्क से स्नातक होने के बाद अधिस्नातक उपाधि मेकग्रिल विश्वविद्यालय, मॉन्ट्रियल (McGill University, Montreal) से 1967 से प्राप्त की। रोनाल्ड मेलजेक (Ronald Melzack) के निर्देशन में डोनाल्ड हेब्ब मनोविज्ञान विभाग से 1967 में पी.एचडी. की। अध्ययन पूरा कर ओ’कीफ यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन आ गए फिर निरन्तर वहीं रहे। 1987 में इन्हें प्रोफेसर पद मिल गया।
जॉन ओ’कीफ को अमेरिका व ब्रिटेन दोनों देशों की नागरिकता प्राप्त है। अपने शिष्य दोस्त्रोवस्की के साथ मिलकर ओ’कीफ ने हिप्पोकैम्पस न्यूरोन्स (Hippocampal neurons) पर पर्यावरण कारकों के प्रभाव का व्यवस्थित अध्ययन किया। इस अध्ययन के दौरान ही ओ’कीफ ने स्थान कोशिकाओं की खोज की। इसके बाद अनेक खोजें करने का श्रेय ओ’कीफ को जाता है। अनेक अनुसंधान पत्र व पुस्तकों के लेखक ओ’कीफ को रॉयल सोसायटी की सहित अनेकों वैज्ञानिक संस्थानों की सदस्यता प्राप्त है। उन्हें ब्रिटिश न्यूरोसाइंस एसोसिएशन अवार्ड (British Neuroscience Award), फेडरेशन ऑफ यूरोपियन न्यूरोसाइंस सोसायटीज अवार्ड (Federation of European Neuroscience Societies (FENS) Award) आदि अनेकों पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। 2014 का कार्यिकी का आधा नोबेल पुरस्कार जॉन ओ’कीफ को दिया गया है।
2. व 3 मोजर दम्पति
एडवर्ड मोजर (Edvard Moser) का जन्म 27 अप्रेल 1962 को अलेसुन्ड नार्वे में हुआ। इनके माता पिता जर्मनी से 1950 में नार्वे आए थे। नार्वे में एक दो स्थानों पर रहने के बाद अलेसुन्ड में स्थायी हो गए थे। स्नातक, अधिस्नातक व पी.एचडी. नार्वे में ही करने के बाद एडवर्ड मोजर उच्च अध्ययन हेतु लंदन गए। एडवर्ड मोजर ने गणित व सांख्यकी का भी अध्ययन किया।
मै-ब्र्टि (May-Britt Moser) का जन्म 4 जनवरी 1963 को नार्वे में हुआ। मै-ब्र्टि का लालन पालन नार्वे के दूरस्त पश्चिमी भाग में हुआ। 1980 दशक के प्रारम्भ में मै-ब्र्टि ने ओस्लो विश्वविद्यालय (University of Oslo) में प्रवेश लिया। ब्र्टि ने वहाँ गणित, मनोविज्ञान, तन्त्रिकीय-जीव विज्ञान, आदि कई विषयों का अध्ययन किया। यही पर ब्र्टि की मुलाकात एडवर्ड से हुई, जो विवाह तक पहुँच गई। 1985 में विवाह करने के बाद दोनों ने मस्तिष्क व्यवहार व सम्बन्ध विषय में अनुसंधान करने का निश्चय किया। ब्र्टि 1990 में स्नातक बनी तथा एडवर्ड वहीं प्रयोगशाला में कार्य करता रहा।
मै-ब्र्टि व एडवर्ड मोजर कावली इंस्टीट्यूट फोर सिस्टम्स न्यूरोसांइस (Kavli Institute for Systems Neuroscience) तथा सेन्टर फार बायोलोजी ऑफ मेमोरी (Centre for the Biology of Memory, Norway) व नार्वेजियन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एण्ड टेक्नोलोजी (Norwegian University of Science and Technology) के संस्थापक डायरेक्टर हैं। वर्तमान में मोजर दम्पति मैक्स प्लांक तंत्रिकी-जीव विज्ञान संस्थान, म्यूनिक (Max Planck Institute of Neurobiology, Munich, Germany) में अनुसंधान कर रहे हैं। नोबेल समिति के सदस्य ने जब पुरस्कृत होने की सूचना हेतु मोजर दम्पति से सम्पर्क करने का प्रयास किया तब एडवर्ड मोजर म्यूनिक की ओर हवाई यात्रा पर थे अतः पहले समाचार मै-ब्र्टि तक पहुँचा।
भौतिकी
4. इसामू आकासाकी
इसामू आकासाकी (Isamu Akasaki) का जन्म 30 जनवरी 1929 को कागोशीमा, जापान में हुआ। आकासाकी ने क्योटो विश्वविद्यालय (Kyoto University) से 1952 में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद नागोया विश्वविद्यालय (Nagoya University) से इलेक्ट्रोनिक्स में इंजिनियरिंग की।
आकासाकी ने 1960 से ही गेलियम नाइट्राइड आधारित नीला लेड पर कार्य प्रारम्भ कर दिया था। मत्सुशिता अनुसंधान संस्थान टोकियो में कार्य करते हुए आकासाकी गेलियम नाइट्राइड क्रिस्टल तथा लेड व्यवस्था में निरन्तर सुधार करते गए। पर्याप्त सफलता नहीं मिलने पर 1981 में आकासाकी ने गेलियम नाइट्राइड बनाने के लिए एक नई विधि ‘मेटेलोर्गेनिक वेपर फेज एपीटैक्सी’ () का उपयोग किया।
सन 1985 में इनके समूह को उच्च स्तर के गेलियम नाइट्राइड क्रिस्टल (Gallium nitride crystal) बनाने में सफलता मिली। 1989 में इन्हें प्रथम गेलियम नाइट्राइड पी-एन जंक्शन बनाने में सफलता प्राप्त हुई। 1990 में आकासाकी ने कमरे के तापक्रम पर गेलियम नाइट्राइड उद्दीपित उत्सर्जन प्राप्त किया। सन 2000 में उन्होंने अर्द्ध ध्रुवी गेलियम नाइट्राइड क्रिस्टल के अस्तित्व को प्रमाणित किया, जिससे विश्वव्यापी उपयोग हेतु क्रिस्टल बनाना सम्भव हुआ।
आकासाकी के आविष्कारों से प्राप्त पेटेन्टों की रायल्टी से नागोया विश्व विद्यालय को बहुत धन प्राप्त हुआ। इस धन से नागोया विश्वविद्यालय में आकासाकी संस्थान (Nagoya University Akasaki Institute) बनाया गया है जो अनेक प्रकार की गतिविधियों का केन्द्र बना रहता है। इस संस्थान में एक लेड गैलेरी है जिसमें नीला लेड के विकास को प्रदर्शित किया गया है। संस्थान में छठी मंजिल पर प्रोफेसर आकासाकी का कार्यालय है।
प्रोफेसर आकासाकी को 1989 में जापान एसोसिएशन फॉर क्रिस्टल ग्रोथ (Japan Association for Crystal Growth) से सम्मानित किया गया। इसके बाद निरन्तर सम्मानित होने का सिलसिला चलता रहा और परिणिती 2014 के नोबल पुरस्कार में हुई। 1999 में प्रोफेसर आकासाकी को इलेक्ट्रिकल व इलेक्ट्रोनिक्स इंजिनियर संस्थान का फेलो चुना गया।
5. हिरोशी अमानो
हिरोशी अमानो (Hiroshi Amano) का जन्म 11 सितम्बर 1960 को हामामात्सु में हुआ। प्रारम्भिक शिक्षा पूरी करने के बाद अमानो नागोया विश्वविद्यालय में आ गए तथा 1963 से 1992 के मध्य स्नातक से लेकर इंजिनियरिंग में डॉक्ट्रेट तक की उपाधियां प्राप्त कीं। नागोया विश्वविद्यालय (Nagoya University) में अनुसंधान सहायक के रूप में कार्य प्रारम्भ करने के कुछ समय बाद ही अमानो सहायक प्रोफेसर बन कर मेइजो विश्वविद्यालय (Meijo University) में चले गए। 1998 में वहीं पर संयुक्त प्रोफेसर तथा 2010 में प्रोफेसर बने। 2010 में अमानो, नागोया विश्वविद्यालय के इंजिनियरिंग स्नातक स्कूल में चले गए जहाँ वर्तमान में प्रोफेसर हैं।
हिरोशी अमानो स्नातक होने से पूर्व ही प्रोफेसर इसामू आकासाकी के अनुसंधान समूह से जुड़ गए थे। उस समय से ही अमानो नाइट्राइड अर्द्ध चालकों की वृद्धि करने व गुणों के अध्ययन से सम्बंधित उपकरणों के विकास में लगे रहे हैं। 1985 में अमानो ने अपने समूह के लिए नीलम पर नाइट्राइड अर्द्धचालक फिल्म के विकास हेतु, न्यून तापक्रम पर जमने वाली, बफर पर्त का विकास किया। इसी से अर्द्धचालक आधारित प्रकाश उत्सर्जन व लेसर डायोड का विकास सम्भव हुआ। 1989 में नीले लेड के बनाने में भी इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।
6. शुजी नाकामुरा
शुजी नाकामुरा (Shuji Nakamura) के व्यक्तित्व व पृष्ठभूमि को देखकर कुछ दिन पूर्व तक कोई यह आशा नहीं कर सकता था कि ये कभी जापान के नायक भी बन सकते हैं। एक छोटी सी केमिकल कम्पनी के कर्मचारी ने अपनी निराशा को जीत में बदल कर, वह कर दिखाया जो प्रतिस्पर्घा में दौड़ रही बड़ी कम्पनियां नहीं कर पाईं।
नकामुरा का जन्म 22 मई 1954 को जापान के सबसे छोटे व कम विकसित द्वीप शिकाकू पर हुआ। स्कूली परीक्षा में अच्छे अंक नहीं होने के कारण नाकामुरा ने अल्पख्यात टोकुशीमा विश्वविद्यालय (University of Tokushima) से इलेक्ट्रिकल इंजिनियरिंग में स्नातक अपाधि प्राप्त की। बाद में यहीं से अधिस्नातक बने।
अपने पैतृक स्थान के समीप रहने की चाह के कारण अघ्ययन पूरा करने के बाद नाकामुरा रसायनिक पदार्थ बनाने वाली स्थानीय कम्पनी, नीचिया कोरपोरेशन में काम करने लगे। नाकामुरा की कम्पनी का लैड के अनुंसधान से कोई सम्बंध नहीं था मगर कंपनी के मालिक ने उन्हें इस क्षेत्र में शोध करने की अनुमति दी। नौकरी के पहले तीन वर्ष में नाकामुरा ने हरा लेड बनाया। अनुभव नहीं होने के कारण नाकामुरा का हरा लैड बाजार में नहीं चला। बड़ी कम्पनियां पहले से ही हरा लैड बाजार में ला चुकी थीं। कम्पनी द्वारा अनुसंधान बंद करा देने पर नाकामुरा ने अपने स्तर पर कार्य जारी रखा और 1993 में सफलता प्राप्त की।
1994 में नाकामुरा को टोकुशीमा विश्वविद्यालय ने इंजिनियरिंग में डॉक्टर की उपाधि दी। 1999 में नाकामुरा नीचिया कोरपोरेशन छोड़ कर केलिफोर्निया विश्वविद्यालय (California University) में इंजिनियरिंग के प्रोफेसर बन गए। 2001 में नीचिया कम्पनी में किए कार्य का बोनस लेने के लिए नाकामुरा को न्यायालय की शरण में जाना पड़ा, बाद हुए समझौत में भी इतनी रकम प्राप्त हुई जितनी पूर्व में किसी जापानी कंपनी से किसी को प्राप्त नहीं हुई थी।
नकामुरा, पत्र प्रकाशन के स्थान पर कार्य करने में विश्वास करते हैं। सफलता मिलने से कुछ समय पूर्व से नकामुरा ने अनुसंधान पत्र पढ़ने छोड़ दिए। नाकामुरा का मानना है कि अनुसंधान पत्र पढ़कर आप दूसरे की तरह के कार्य करने लगते हैं। नाकामुरा की सफलता का एक प्रमुख कारण गेलियम नाइट्राइड का चुनाव रहा। उन दिनों अधिकतर अनुसंधानकर्ता अर्द्धचालक बनाने में जिंक सेलेनाइड का उपयोग कर रहे थे।
नाकामुरा सप्ताह में सात दिन काम करते हैं तथा सुबह सात से शाम सात बजे तक कार्य करते हैं। जब कोई काम हाथ में लेते हैं तो जल्दी से पूरा करना चाहते हैं। घर पर रहते हुए भी उनका मन काम ही उलझा रहता है अतः घर रहने से लाभ नहीं होता? नामामुरा पढ़ने में कम तथा चिन्तन में अधिक विश्वास करते हैं। नाकामुरा इस समय केलिफोर्निया विश्वविद्यालय में पदार्थ विज्ञान के प्राफेसर हैं। आने वाले समय में और उपलब्धियों की उम्मीद नाकामुरा से की जा सकती है।
रसायन
7. रोबर्ट एरिक बेटजिंग
रोबर्ट एरिक बेटजिंग (Eric Betzig) का जन्म 13 जनवरी 1960 को एन्न अरबोर मिशिगन में हुआ। इनके पिता का नाम रोबर्ट बेटजिंग था। केलिफोर्निया प्रौद्योगिकी संस्थान (California Institute of Technology) से भौतिकी में 1983 में स्नातक उपाधि लेने के बाद एरिक कोरनेल विश्वविद्यालय (Cornell university) चले गए। उन्होंने कोरनेल विश्वविद्यालय से अधिस्नातक व पी.एचडी. की उपाधियां प्राप्त की।
अघ्ययन पूरा करने के बाद बेटजिंग बेल प्रयोगशाला में अर्द्धचालक भौतिकी में, अनुसंधान कार्य करने लगे। 1996 में बेटजिंग वे अपने पिता की अन्न आर्बोर मशीन कम्पनी में अनुसंधान व विकास विभाग के उपाध्यक्ष बने। वहाँ पर बेटजिंग ने फ्लेक्सीबल अडेपटिव सर्वोहाइड्रोलिक तकनिकी (Flexible Adaptive Servohydraulic Technology) का विकास किया मगर वह तकनिकी वाणिज्यिक स्तर पर सफल नहीं हुई।
इसके बाद बेटजिंग पुनः सूक्ष्मदर्शन के क्षेत्र में लौट गए और प्रकाश सक्रीय स्थानीयकारी सूक्ष्मदर्शन (Photoactivated localisation microscopy) का विकास किया। वे 2006 में बेटजिंग होवर्ड हगेज मेडिकल संस्थान में अति उच्च विभेदित प्रदीप्तिशील सूक्ष्मदर्शन तकनीक के विकास समूह का नेतृत्व करने लगे। बेटजिंग को कई बार सम्मानित किया गया तथा उसकी परिणिती 2014 के नोबेल पुरस्कार में बराबर की भागीदारी के रूप में हुई है।
8.स्टेफेन वाल्टर. हेल
स्टेफान हेल (Stefan W. Hell) का जन्म 23 दिसम्बर 1962 को अराद, रोमानिया में हुआ। इनका बचपन इनके पैतृक स्थान सनताना में बीता। 1977 तक हेल ने वही पर प्रारम्भिक अध्ययन किया। एक वर्ष की शिक्षा टीमीसोअरा में प्राप्त करने के बाद इनका परिवार पश्चिमी जर्मनी चला गया। हेल के पिता इंजिनियर तथा माता शिक्षक थीं। परिवार जर्मनी में लुडविगशाफेन में स्थायी रूप से बस गया।
हेल ने अपना उच्च अध्ययन हेइडेलबर्ग विश्वविद्यालय (Hydel University) में 1981 में प्रारम्भ किया। हेइडेलबर्ग विश्वविद्यालय से 1990 में डॉक्ट्रेट के साथ अध्ययन पूर्ण किया। हेल के शोधपत्र का शीर्षक था- कोफोकल सूक्ष्मदर्शी से सूक्ष्म पारदर्शी संरचनाओं का चित्रण। हेल ने कोफोकल सूक्ष्मदर्शी की विभेदन क्षमता में सुधार किया जो बाद में 4 पाई सूक्ष्मदर्शन कहलाया। 1991 से 1993 तक हेल ने यूरोपियन अणु जीवविज्ञान प्रयोगशाला, हेइडेल्बर्ग में कार्य किया। यहां 4 पाई सूक्ष्मदर्शन का सैद्धान्तिक प़क्ष स्पष्ट किया।
उन्होंने 1993 से 1996 तक तुर्कु विश्वविद्यालय (Turku University) फिनलैण्ड के चिकित्सकीय भौतिकी विभाग में कार्य करते हुए उद्दीपित उत्सर्जन अवक्षय (स्टेप) सूक्ष्मदर्शी विकसित किया। 2002 में हेल मैक्स प्लांक संस्थान के जैव भौतिकी रसायन विभाग के निदेशक बने। उन्होंने मैक्स प्लांक संस्थान में ‘नैनो बायो फोटोनिक्स’ (Nano bio photonics) का नया विभाग स्थापित किया। 2003 से हेल ने जर्मन कैंसर अनुसंधान केन्द्र के ‘प्रकाशीय नैनो दर्शन प्रभाग’ (Optical Nanoscopy division) का नेतृत्व किया।
उद्दीपित उत्सर्जन अवक्षय (स्टेप) सूक्ष्मदर्शी में निरन्तर सुधार करते हुए हेल ने अबे की सीमा रेखा को पार करने की विधि विकसित की। इस पर उन्हें 2014 के रसायन के नोबेल पुरस्कार का सहभागी बनाया गया। सूक्ष्मदर्शन के क्षेत्र में हेल द्वारा किए गए योगदान के कारण इन्हें 10 वां जर्मन इनोवेशन अवार्ड (German innovation award) प्रदान किया गया था।
9. विलियम एस्को मोइर्नर
विलियम एस्को मोइर्नर (William E. Moerner) का जन्म 24 जून 1953 को प्लेअसान्टन केलिफोर्निया, अमेरिका में हुआ। इनकी मां का नाम बर्था फ्रान्सेस तथा पिता का नाम विलियम अल्फ्रेड मोइर्नर था। एस्को ने वाशिंगटन विश्वविद्यालय (Washington University) से भौतिकी, इलेक्ट्रिकल इंजिनियरिंग तथा गणित में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। अध्ययन के लिए इन्हें छात्रवृतियां निरन्तर मिलती रहीं। वे कोर्नेल विश्वविद्यालय (Cornell University) से अधिस्नातक हुए तथा वहीं से 1982 में पी.एचडी. प्राप्त की।
मोइर्नर ने आईबीएम कोरपोरेशन अनुसंधानकर्ता के रूप में कार्य करना प्रारम्भ किया तथा फिर वहीं पर मैनेजर व दल प्रभारी की जिम्मेदारी निभाई। उन्हें बाद में केलिफोर्निया विश्वविद्यालय (University of California) में रसायन विभाग में भौतिक-रसायनशास्त्र में सम्मानजनक पद मिल गया। 1997 में मोइर्नर हार्वर्ड विश्वविद्यालय (Harvard University) में रोबर्ट बर्न्स वुडवर्ड विजिटिंग प्रोफेसर बने। 1998 में मोइर्नर के प्रोफेसर बनने पर, इनका अनुसंधान समूह स्टानफोर्ड विश्वविद्यालय (Stanford University) में चला गया। मई 2014 तक मोइर्नर के 386 अनुसंधान पत्र प्रकाशित हो चुके थे। एकल अणु स्पेक्ट्रोस्कोपी, अतिउच्च विभेदन सूक्ष्मदर्शन, रसायन-भौतिकी, नैनो फोटोनिक्स आदि मोइर्नर के प्रिय अनुसंधान विषय रहे हैं।
मोइर्नर ने पुरस्कृत होने का जो सिलसिला विद्यार्थी जीवन से प्रारम्भ किया, वह आगे भी चलता रहा है। सेवा में आने पर 1984 में मोइर्नर को अद्वितीय युवा व्यवसायी का राष्ट्रीय का एवार्ड मिला। अब 2014 में विश्व का उच्चतम पुरस्कार नोबेल मिला है।
लेखक परिचय:
विष्णुप्रसाद चतुर्वेदी हिन्दी के चर्चित विज्ञान लेखक हैं। 25 वर्षों तक विज्ञान अध्यापन के बाद आप श्री बांगण राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय से प्रधानाचार्य के रूप में सेवानिवृत्त हुए हैं। आपके विज्ञान विषयक आलेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं। साथ ही आपकी विज्ञान विषयक 10 पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें एक बाल विज्ञान कथा संग्रह भी शामिल है। इसके अतिरिक्त विज्ञान लेखन के लिए आपको राजस्थान साहित्य अकादमी सहित अनेक संस्थाएं पुरस्कृत/सम्मानित भी कर चुकी हैं।keywords: nobel prize winner 2014 in hindi, nobel prize winner list in hindi, nobel prize winner in chemistry 2014 in hindi, nobel prize winner in physics 2014 in hindi, nobel prize winner in biology 2014 in hindi, recent nobel prize winner in biology in hindi, John O'Keefe biography in hindi, Edvard Moser biography in hindi, May-Britt Moser biography in hindi, Isamu Akasaki biography in hindi, Hiroshi Amano biography in hindi, Shuji Nakamura biography in hindi, Eric Betzig biography in hindi, Stefan W. Hell biography in hindi, William E. Moerner biography in hindi
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जवाब देंहटाएंधन्यवाद।
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