तांत्रिक ने अपने झोले से एक टीन का डिब्बा निकाला। उसने डिब्बे में पानी भर दिया और डिब्बे को छेद वाले ढक्कन से कस कर बंद कर दिया। ...
तांत्रिक ने अपने झोले से एक टीन का डिब्बा निकाला। उसने डिब्बे में पानी भर दिया और डिब्बे को छेद वाले ढक्कन से कस कर बंद कर दिया। फिर ढक्कन के छेद पर माचिस की तीली जला कर रख दी। देखते ही देखते ढक्कन के छेद से एक लौ निकलने लगी और पूरा कमरा तेज रोशनी से भर गया। (इसी पुस्तक से)
दिव्य शक्तियों के रहस्यों से पर्दा हटाने वाली पुस्तक
विज्ञान की दुनिया अपने भीतर इतने रोमांच समाए हुए हैं, जिन्हें यदि बिना बताए सामने प्रस्तुत कर दिया जाए, तो वे किसी ‘अलौकिक चमत्कार’ अथवा ‘दिव्य शक्ति’ के समान प्रतीत होते हैं। हालांकि ‘अलौकिक चमत्कार’ अथवा ‘दिव्य शक्ति’ जैसी कोई चीज दुनिया में होती नहीं, पर हमारे देश में कथावाचकों द्वारा तंत्र-मंत्र, जादू-टोना से सम्बंधित इतना काल्पनिक साहित्य रचा जाता रहा है, जिसकी वजह से आम आदमी इन चीजों को वास्ताविक मान बैठता है और उसके इस ‘भोलेपन’ का फायदा कुछ धोखेबाज और पाखण्डी टाइप के लोग उठाते हैं। ऐसे लोग विज्ञान के रोचक और अनदेखे प्रयोगों को दिखाकर तथाकथित दिव्य शक्ति के मालिक बन जाते हैं और लोगों को ठगते रहते हैं।

इन्दु भूषण मित्तल जमीन से जुडे हुए एक ऐसे ही विज्ञान संचारक है। वे लम्बे समय तक ‘आर्य कुमार सभा, हापुड़’ एवं ‘विज्ञान चेतना समिति, उ.प्र;’ के अध्यक्ष के रूप में जनता के बीच जाकर कार्य करते रहे हैं। पेशे से रसायन विज्ञान के प्रवक्ता रहने के कारण वे रसायनों की आपसी क्रियाओं और उनके रोमांच से गहराई से परिचित रहे हैं, शायद उसी से उन्हें प्रेरणा मिली और उन्होंने जनता को जागरूक करने का निश्चय किया। और उसी चेतना का सुफल ‘टिंकू उस्ताद’ जैसी पुस्तक के रूप में सामने आया है।
‘विज्ञान के झरोखे से’ जैसी मासिक पत्रिका के सम्पादक के रूप में जुडे रहने के कारण इन्दु भूषण विज्ञान साहित्य से सम्बद्ध रहे और उन्हें वैज्ञानिक प्रयोगों को आधार बनाकर इस कथात्मरक कृति लिखने की प्रेरणा मिली, जिसमें उन्होंने पिंकी, नदीम, राहुल, हनी, नाजिमा, टिंकू आदि वि़द्यार्थियों द्वारा कॉलेज के समय में चलाने जाने वाले ‘विज्ञान चेतना क्लब’ की गतिविधियों को रोचक ढंग से पिरोया है।
इस कृति में रोचकता भी है और जानकारियों का खजाना भी। इसीलिए पुस्तक बेहद उपयोगी बन पडी है। इसे पढकर निश्चेय ही आमजन में जागरूकता का प्रसार होगा। लेकिन चूंकि लेखक की यह पहली कृति है, इसलिए इसमें कहीं-कहीं पर सम्पा्दन की आवश्यकता महसूस होती है। लेखक ने अपनी कृति को ‘बाल विज्ञान कथा’ कहकर सम्बो्धित किया है, पर वास्तव में इसे बाल विज्ञानकथा के स्थान पर यदि वैज्ञानिक घटनाओं पर आधारित बाल उपन्यास कहा जाता, तो अधिक अच्छा रहता।
संक्षेप में अगर कहा जाए, तो ‘विज्ञान प्रसार’ द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक दिमाग की खिडकियां खोलने में बेहद सहायक हो सकती है। विशेषकर बच्चों को यह पुस्तक बेहद पसंद आएगी, क्योंकि इसमें बाल सुलभ मनोविज्ञान का गहरा चित्रण देखने को मिलता है।
आज हमारे चारों ओर अंधविश्वास, ढोंग, पाखण्ड का जितना बोलबाला है, उसे देखते हुए इस पुस्तक का प्रकाशन एक प्रशंसनीय कदम है। इस दृष्टि से लेखक और प्रकाशक दोनों ही बधाई के हकदार हैं। मुझे आशा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है कि विज्ञान प्रेमियों को यह पुस्तक बेहद पसंद आएगी और अंधविश्वास के तिमिर को नष्ट करके ज्ञान के दीपक को जलाने में सहायक होगी।
पुस्तक- टिंकू उस्ताद
लेखक- इन्दु भूषण मित्तल
प्रकाशक- विज्ञान प्रसार, ए-50, इंस्टीट्यूशनल एरिया, सेक्टर-62, नोएडा-201309, दूरभाष- 0120-23404430/35, ईमेल- info@vigyanprasar.gov.in
पृष्ठ- 149
मूल्य- 160 रू0
पृष्ठ- 149
मूल्य- 160 रू0
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विज्ञान प़सार द्वारा प़काशित यह पुस्तक सब के लिए , विशेषत: बच्चों के लिए बहुत उपयोगी लगती है । इसे हर
जवाब देंहटाएंस्कूल के पुस्तकालय में रखा जाए । इस का पेपर बैंक संस्करण कम दाम में उपलब्ध कराया जाए तो हमारी नई
पीढ़ी अन्धविश्वासों से मुक्त हो सकेगी ।
आपकी इस ब्लॉग-प्रस्तुति को हिंदी ब्लॉगजगत की सर्वश्रेष्ठ कड़ियाँ (27 दिसंबर, 2013) में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,,सादर …. आभार।।
जवाब देंहटाएंकृपया "ब्लॉग - चिठ्ठा" के फेसबुक पेज को भी लाइक करें :- ब्लॉग - चिठ्ठा
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंहिन्दी तकनीकी क्षेत्र की रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारियॉ प्राप्त करने के लिये क़पया एक बार अवश्य देंखें
MyBigGuide
hathrascomputers.blogspot.in
हटाएंSo good
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