बाएं से: डॉ0 जाकिर अली रजनीश, डॉ0 सुधाकर अदीब, श्रीमती उषा सक्सेना, डॉ0 हेमंत कुमार आजकल के बच्चे समझदार ही नहीं होशियार ...
बाएं से: डॉ0 जाकिर अली रजनीश, डॉ0 सुधाकर अदीब, श्रीमती उषा सक्सेना, डॉ0 हेमंत कुमार |
आजकल के बच्चे समझदार ही नहीं होशियार भी हैं। वे न सिर्फ समय की नब्ज को पहचानते हैं, बल्कि उसके अनुसार निर्णय लेने के लिए भी तत्पर रहते हैं। इसकी ताजा मिसाल मिली दिनांक 27 सितम्बर, 2012 को उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ द्वारा श्रीमती क्रान्ति त्रिवेदी स्मृति दिवस के अवसर पर आयोजित 'हिन्दी बाल कहानी लेखन कार्यशाला एवं कहानी प्रतियोगिता' में। तय कार्यक्रम के अनुसार इस कार्यक्रम में राजकीय महिला इंटर कॉलेजों से चुने गये 64 बच्चे भाग लेने वाले थे, लेकिन जब अन्य बच्चों को इस कार्यक्रम के बारे में पता चला, तो कार्यक्रम में शिरकत करने के लिए छात्राओं का ऐसा हुजूम उमड़ पड़ा कि सीटें कम पड़ गयीं, संस्थान का प्रेमचंद हॉल छोटा पड़ गया और कार्यक्रम को 'यशपाल सभागार' में स्थानांतरित करना पडा। दाद देनी होगी संस्थान के निदेशक डॉ0 सुधाकर अदीब जी को, जिन्होंने बेहद शार्ट नोटिस पर सारी व्यवस्थाएं स्थापित करवाईं और कार्यक्रम को सुचारू रूप से सम्पन्न कराया।
बच्चों में साहित्यिक संस्कार विकसित करने एवं भाषा तथा साहित्य से जोड़ने के उद्देश्य से आयोजित इस कार्यशाला को विशेषज्ञ के रूप में डॉ0 जाकिर अली रजनीश, डॉ0 हेमंत कुमार एवं श्रीमती ऊषा सक्सेना ने सम्बोधित किया। कार्यक्रम में स्वागत भाषण देते हुए संस्थान के निदेशक डॉ0 सुधकर अदीब ने सभी बच्चों का हौसला बढ़ाया और उनके भविष्य के लिए शुभकामनाएं व्यक्त कीं।
डॉ0 जाकिर अली रजनीश ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि किसी जमाने में कहानी की शुरूआत एक था राजा, एक था रानी से हुआ करती थी। आज के राजा रानी आज के बच्चे हैं। उनकी अपनी दुनिया है, उनके अपने सपने हैं, उनके अपने द्वन्द्व हैं। आज के समय में सफल कहानीकार वही बन सकता है, जो बच्चों के मन की बात समझ सके और उनके सपनों को नई उड़ान दे सके। उन्होंने कहा कि कहानी का मतलब उपदेश नहीं होना चाहिए, कहानी का मतलब आनंद होना चाहिए। तभी पाठक आपकी कहानी पढेंगे और उसमें छिपे संदेश को भी गुनेंगे। उन्होंने इस अवसर पर यादराम रसेन्द्र की कहानी 'अगली बार' और अपनी चर्चित बाल कथा 'बेबी माने अप्पी' के अंश सुनाते हुए कहा कि अच्छी कहानी लिखने के लिए विषय का भारी भरकम होना जरूरी नहीं होता। इसके लिए आवश्यक होता है भावों का बहाव, जो लेखक के हृदय से निकलता है और सीधे पाठक के हृदय तक पहुंच जाता है।
शैक्षिक टेलीविजन के कार्यक्रम अधिकारी डॉ0 हेमंत कुमार ने अपने सम्बोधन में कहानी के विभिन्न प्रकारों का विस्तार से वर्णन किया और उनके स्वरूपों का परिचय कराया। उन्होंने कहा कि कहानी सहज और सरल होनी चाहिए। लेखकों को एक ओर जहां तत्सम प्रधान भाषा से बचना चाहिए, वहीं भाषा के प्रदूषण का भी ख्याल रखना चाहिए। उन्होंने प्रतिभागियों को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि सच्ची लगन से जो काम किये जाते हैं, उनमें सफलता अवश्य मिलती है, फिर चाहे वह इम्तहान की तैयार हो अथवा कहानी लेखन।
और ये रहा प्रतिभागियों का हुजूम |
कार्यशाला में 200 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया और अपनी समझ तथा ज्ञान के आधार पर कहानियों की रचना की। कार्यशाला के दौरान लिखी गयी सभी कहानियों को जांचने के बाद तीन श्रेष्ठ कहानियों को लखनऊ के जिलाधिकारी श्री अनुराग यादव ने पुरस्कृत किया। प्रतियोगिता में प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय पुरस्कार के रूप में प्रतियोगियों को क्रमश: तीन हजार, दो हजार एवं एक हजार रूपये प्रदान किये गये। इसके अलावा प्रोत्साहन स्वरूप 25 बच्चों को 100 रू0 की राशि प्रदान की गयी। कार्यक्रम का संचालन संस्थान की सहायक सम्पादक डॉ0 अमिता दुबे ने किया।
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Bahut hi badhiya. Itni sari ladkiyon ne isme bhag liya, ye jan ke khusi huyi.
जवाब देंहटाएंBahut achcha . Badhai ho.
जवाब देंहटाएंबात सही है.
जवाब देंहटाएंपोस्ट अच्छी है.
very good sir!
जवाब देंहटाएंvery good sir!
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