प्रेरक विज्ञान कथा- प्रसन्न-यंत्र (लेखिका: अर्शिया अली)

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आज साहिल के लिए बहुत बड़ा दिन था। क्योंकि आज उसने अपनी तीन साल की अथक मेहनत का फल पा लिया था। आज उसका प्रसन्न-यंत्र बनकर तैयार हो गया था। उसे...

आज साहिल के लिए बहुत बड़ा दिन था। क्योंकि आज उसने अपनी तीन साल की अथक मेहनत का फल पा लिया था। आज उसका प्रसन्न-यंत्र बनकर तैयार हो गया था। उसे आज से तीन साल पहले का वह दिन याद आने लगा, जिस दिन उसके दिमाग में इस यंत्र को बनाने की बात आई थी। वह घटना जिसने उसके जीवन, उसकी सोच सब कुछ बदल दिया और उसके जीवन को एक लक्ष्य प्रदान किया। 

साहिल लखनऊ के डालीगंज मुहल्ले में अपने माता-पिता और छोटी बहन शिखा के साथ रहता है। साहिल के पिता रेलवे में अधिकारी हैं। उसकी माँ एक कुशल गृहणी हैं, जो अपने परिवार को बहुत अच्छे से संभाती हैं। वे परिवार के सभी सदस्यों की पसंद-नापसंद, अच्छाई-बुराई सब बातों से तालमेल बिठा कर परिवार की खुशियों का ध्यान रखती हैं। 

साहिल ने इसी साल बायो ग्रुप से बी0एस-सी0 पूरा किया है। वह पिता के मुकाबले अपनी माँ से ज्यादा लगाव रखता है। उनसे इमोशनली ज्यादा टच में है। पिता का वह सम्मान करता है, पर उनके साथ वह उतना जुड़ाव नहीं महसूस करता है, जितना माँ के साथ। साहिल स्वभाव से बहुत भावुक है। अच्छी या बुरी कोई भी बात होती है, उसे वह बहुत गहराई से सोचता है। 

एक दिन वह अपनी क्लास में था तभी उसकी छोटी बहन शिखा का फोन आया कि पापा का एक्सीडेंट हो गया है। फौरन सिविल हास्पिटल चले आओ। साहिल झटपट हास्पिटल जा पहुँचा। वहाँ पर सब पहले से मौजूद थे, वह दौड़कर अपनी माँ के पास चला गया। उसकी माँ बहुत रो रही थीं। पिता जी के सिर में बहुत गहरी चोट लगी थी। काफी खून बह गया था। डॉक्टरों ने बहुत कोशिश की, पर उसके पिता को नहीं बचा पाए। 

पिता की मौत के बाद तो जैसे दुनिया ही बदल गयी। उसकी माँ बिलकुल टूट गयीं। वे हमेशा चुप रहतीं और गुमसुम सी अपना काम करती रहतीं। उनकी हंसी जाने कहाँ चली गयी थी। घर पर आई अचानक सी इस मुसीबत से साहिल बहुत सदमे में था। एक तो पिता का देहान्त, दूसरे माँ की ये हालत। साहिल से माँ की यह हालत नहीं देखी जाती। वह दिन-रात अपने कमरे में लेटकर यही सोचता रहता क्या करूँ कि माँ पहले जैसी हो जाएँ। 

एक दिन उसके दिमाग में एक बात आई। जब आदमी प्रसन्न रहता है, तो अच्छे से काम करता है। प्रसन्नता से आत्मविश्‍वास आता है, जिससे आदमी किसी भी काम में अपना सर्वोत्तम देता है। इससे काम अच्छा होता है। 

ये विचार मन में आते ही साहिल उठ बैठा और सोचने लगा। जैसे-जैसे वह इस विषय में सोचता जाता, उसकी इच्छा शक्ति उतनी ही दृढ़ होती जाती। अंत में उसने यह निश्‍चय कर लिया कि अपनी माँ की खुशी वापस लाने के लिए वह ऐसा यंत्र अवश्‍य बनाएगा। साहिल ने इन्टरनेट पर इस विषय से सम्बंधित काफी खोजबीन की। जानकारी जुटाने के लिए उसने शहर की सारी लाइब्रेरियाँ खंगालीं और मेडिकल कॉलेज के अनुभवी प्रोफेसरों से भी मिला। इन तमाम प्रक्रियाओं से उसे जितनी भी जानकारी मिली, उसने उन सबको ध्यान से पढ़ा और अपने लक्ष्य में जुट गया। 

मनुष्‍य के भीतर उत्पन्न होने वाली सभी भावनाएँ मस्तिष्‍क के भीतर पैदा होती हैं। इन्हें मस्तिष्‍क का जो भाग नियंत्रित करता है, उनका नाम है हाइपोथैलेमस और लिम्बिक। हाइपोथैलेमस मुख्य भाग है। यह मस्तिष्‍क के बीच में स्थित होता है। जबकि लिम्बिक मस्तिष्‍क में इधर-उधर छितरा रहता है। मनुष्‍य के आसपास होने वाला कोई भी वातावरणीय परिवर्तन जब तंत्रिका तंत्र के माध्यम से यहाँ तक पहुँचता है, तो प्रतिक्रिया स्वरूप एसिटिलकोलीन, डोपामीन और सीरोटोनिन आदि रसायन उत्पन्न होते हैं। 

साहिल ने देखा कि यदि मस्तिष्‍क में डोपामीन और सीरोटोनिन की मात्रा कम हो, तो मन में उदासी के विचार आते हैं। लेकिन यदि ये रसायन अधिक हो जाएँ, तो व्यक्ति अधिक क्रियाशील हो जाता है। उसकी उम्मीदों का महल इन्हीं रसायनों के ऊपर निर्भर था। उसने इनकी प्रवृत्ति एवं उत्पत्ति का गहन अध्ययन किया और अंततः ऐसा यंत्र बनाने में कामयाब हो गया, जो डोपामीन और सीरोटोनिन के उत्सर्जन को नियंत्रित करने में सक्षम था। 

साहिल ने सैद्धान्तिक स्तर पर यंत्र का कई बार परीक्षण किया। हर बार उसका परिणाम सही निकला। पर बिना व्यवहारिक परीक्षण के यह कैसे पता लग सकता था कि यंत्र सही काम कर रहा है कि नहीं। लेकिन सवाल यह था कि यह परीक्षण किया किस पर जाए? 

इसी उधेड़बुन में साहिल घर के बाहर आ गया। अचानक उसकी नजर पड़ोस में रहने वाले राशू पर जा पड़ी। वह घर के सामने स्थित पार्क में चुपचाप बैठा हुआ था। साहिल ने उसके पास जाकर पूछा, ‘‘क्या हुआ राशू? इस तरह चुपचाप क्यों बैठे हो?’’ 

राशू बोला, ‘‘कल मैथ का टेस्ट है। पर मेरा मन पढ़ने में नहीं लग रहा है।’’ 

‘‘क्यों?’’ साहिल ने पुनः प्रश्‍न किया। ‘‘मेरा वीडियो गेम खो गया है।’’ राशू ने जवाब दिया। 

‘‘लेकिन अगर तुम पढ़ोगे नहीं, तो तुम्हारा पेपर खराब हो जाएगा।’’ साहिल ने उसे समझाया। 

‘‘पर मैं क्या करूँ भैया, मेरा मन ही नहीं लग रहा।’’ 

राशू की बात सुनकर साहिल उसने अपनी लैब में ले गया। वह उसे हेलमेटनुमा ‘प्रसन्न यंत्र’ दिखाते हुए बोला, ‘‘यह देखो, मैंने एक नयी मशीन बनाई है। इसके लगाने से दिमाग में अच्छे हारमोंस निकलते हैं और मन प्रसन्न हो जाता है।’’ 

‘‘अच्छा?‘‘ राशू ने चौंकते हुए कहा, ‘‘क्या मैं इसे लगा सकता हूँ? ’’ 

‘‘हाँ, क्यों नहीं? इसीलिए तो मैं तुम्हें बुलाकर लाया हूँ।’’ कहते हुए साहिल ने अपनी मशीन राशू के सिर पर पहना दी। उसने राशू की उम्र के अनुसार तरंगों की फ्रिक्वेंसी सेट की और फिर स्विच को ऑन कर दिया। 

एक क्षण के लिए राशू की आँखों के आगे ढ़ेर सारे तारे झिलमिला गये। फिर उसे लगा कि जैसे वह कहीं दूर तारों के बीच उड़ रहा हो। कुछ पल में ही साहिल के यंत्र का परीक्षण समाप्त हो गया। साहिल ने डरते-डरते राशू के सिर से प्रसन्न-यंत्र को उतारा और धीरे से पूछा, ‘‘अब तुम्हें कैसा लग रहा है? ’’ 

‘‘भैया, मैं इस समय फ्रेशनेस महसूस कर रहा हूँ। आपने मेरे साथ क्या किया?’’ कहते हुए राशू का चेहरा खिल उठा। लेकिन फिर वह अगले ही पल चौंक उठा, ‘‘पर मैं यहाँ पर अपना समय क्यों नष्‍ट कर रहा हूँ? मुझे तो टेस्ट की तैयारी करनी है। अच्छा भैया, मैं चलता हूँ, बॉय!’’ 

साहिल यह देखकर बहुत खुश हुआ। उसने खुशी से अपनी मशीन को चूम लिया। लेकिन अभी वह कुछ और परीक्षण करना चाहता था। उसने सोचा कि कम उम्र के बच्चे पर तो परीक्षण सही रहा, अब किसी बड़े व्यक्ति पर भी इसे ट्राई करना चाहिए। 

साहिल ने अपने कमरे की खिड़की से झाँका। उसने देखा कि एक सेल्समैन अपना सामान लेकर उसके पड़ोस वाले घर के पास खड़ा है। साहिल ने उसके पास जाकर पूछा, ‘‘तुम कौन हो? और इस तरह रास्ते में खड़े होकर क्या सोच रहे हो?’’ 

सेल्समैन बोला, ‘‘आज सुबह से मेरा कोई सामान नहीं बिका है। इस वजह से मैं बुरी तरह से निराश हो गया हूँ। मैं सोच रहा हूँ कि इस घर में जाऊँ कि नहीं। मुझे लगता है कि यहाँ भी मेरा सामान नहीं बिकेगा।’’ 

साहिल को लगा कि निराशा के कारण इसने अपना आत्मविश्‍वास खो दिया है। उसने सेल्समैन पर अपने यंत्र का परीक्षण करने का निष्चय किया। वह बोला, ‘‘मैं आपके आत्मविश्‍वास को फिर से बूस्ट-अप कर सकता हूँ।’’ 

‘‘कैसे?’’ सेल्समैन से आश्‍चर्यचकित होकर पूछा। 

साहिल ने उसे संक्षेप में अपने यंत्र के बारे में बताया। उसकी बात सुनकर सेल्समैन उत्साहित हो गया। वह फौरन साहिल की प्रयोगशाला में जा पहुँचा। 10 मिनट के बाद साहिल का परीक्षण पूरा हुआ। साहिल ने देखा कि सेल्समैन का चेहरा खिल उठा है। उसने पूछा, ‘‘अब तुम कैसा महसूस कर रहे हो?’’ 

‘‘बहुत अच्छा!’’ सेल्समैन ने साहिल को धन्यवाद दिया और अपने सामान का बैग उठाकर पड़ोस वाले घर की ओर चला गया। उसने पूरे मन से अपने सामान के बारे में उन लोगों को बताया। उसकी बातों ने पड़ोसियों पर असर किया। उन्होंने सेल्समैन का काफी सामान खरीद लिया। 

यह देखकर साहिल को यकीन हो गया कि उसका प्रसन्न यंत्र सही काम कर रहा है। उसने सोचा जब मैं माँ को इसके बारे में बताऊँगा, तो वह कितना खुश होंगी। अपने बेटे की इतनी बड़ी कामयाबी देखकर उनका आत्मविश्‍वास फिर वापस आ जाएगा और वह पहले की तरह हो जाएँगी।
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COMMENTS

BLOGGER: 43
  1. मौलिक परिकल्पना, अच्छी प्रस्तुति

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  2. क्या कहानी ख़त्म हो गई ! माफ़ कीजियेगा मुझे तो लग रहा है शायद आप कहानी का अंत लिखना भूल गई , माँ के साथ क्या हुआ ये लिखे बिना कहानी पूरी नहीं होती है ये मेरी नीजि राय है , बाकि तो कहानी लिखने वाला ही बेहतर जानता है |

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    1. अंशुमाला जी, आप कहानी के पारम्‍परिक खांचे की बात कर रही हैं, जिसमें कहानी को 'मीठे फल' तक पहुंचाकर ही उसका समापन किया जाता है। जबकि यह एक विज्ञान कथा है, इसीलिए संकल्‍पना के साथ-साथ शिल्‍प में भी नवीनता का प्रयास किया गया है।

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    2. आर्शिया, मेरे विचार से अंशुमाला ठीक कह रही हैं -कहने पढ़कर मुझे भी यही खटका था ..विज्ञान कथा का ढाल लेकर कहानी की मूल संरचना के दोषों से बचा नहीं जा सकता ....कहानी की एबरप्ट एंडिंग हुयी है ....... :-) मगर कहानी अच्छी है हम इसे कभी किसी कहानी कार्यशिविर में भी चर्चा के लिए ले सकते हैं ...आपको अंशुमाला को शुक्रिया कहना चाहिए क्योकि उन्होंने एक जिम्मेदार पाठक का फ़र्ज़ निभाया है !

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    3. और आपने भी तो हैपी एंडिंग ही दी है ... :-)

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    4. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  3. उस यंत्र के प्रयोग के बगैर ही मन प्रसन्न हो गया. सुन्दर प्रेरणादायक.

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  4. अच्छी विज्ञान कथा ..मगर अंशुमाला ठीक कह रही हैं ..कहानी का अंत या तो आपने किन्ही प्रतिबंधों के तहत ड्राप कर दिया या फिर सीक्वेल की प्लानिंग है -काहनी का लाजिकल एंड नहीं आया है और समाचारों की हेडिंग तथा कहानी का अंत ही ख़ास होता है ....
    अगर इसी कथा का लोकेशन धरती से जुदा कोई और ग्रह कर दिया जाय तो ?
    मसलन साहिल दूसरे ग्रह पर जाता है अपने सगे सम्बन्धियों के यहाँ ....और वहां यह धरती पुत्र एक कमाल करके लौटता है .....
    तब तकनीकी जुगतें साजो सामान सभी की सहज उपलब्धता होगी -और एक तकनीकी नज़र से बहुत उन्नत सभ्यता में लोगों को हमेशा टेन्शन में रहना नन्हे साहिल को कहना सुहायेगा ....?
    आर्शिया इस कथानक को डेवेलप कर एक कहानी लिखें!

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    1. दूसरे ग्रह वाला आइडिया भी शानदार है। इस बारे में भी सोचूंगी। शुक्रिया।

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  5. Bahut sundar kahani thi aap ki,
    read karte hee mann khush ho gaya

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  6. माफ कीजियेगा वैसे तो मैं विज्ञान कथाओं के बारे में जानता ही नहीं और इसी वज़ह से कमेन्ट भी नहीं करने वाला था पर अरविन्द जी और अंशुमाला जी के विचार से असहमति जताने की मजबूरी में कमेन्ट कर रहा हूं ! मेरे ख्याल से इस कथा के दो हिस्से हैं ...

    पहला, एक एक्सीडेंट और फिर उसकी वज़ह से घर का उदास माहौल जिसके बाद साहिल को यंत्र बनाने की प्रेरणा मिली !

    दूसरा साहिल एक आविष्कार कर पाया जो कम से कम दो आब्जेक्ट पर व्यवहारिक रूप से सफल रहा और कथा का यही हिस्सा कथा को कहने की मूल वज़ह है ! मतलब ये कि विज्ञान कथा के रूप में ये कथा इसी बिंदु की खातिर बुनी गई है !

    अब मुद्दा ये है कि क्या आविष्कार घर के लिए प्रयुक्त हुए / हो पाये ? यह बताना ज़रुरी है ? कथा में घर एक प्रेरणा स्थल है तो क्या आविष्कारों की नियति घर की दहलीज़ पर समेट दी जाना ज़रुरी है ? या प्रयोगों की सफलता का 'संकेत' सारी कहानी खुद कह देता है ?

    मेरे ख्याल से घर से बाहर आब्जेक्ट पर प्रयोग की प्रतीकात्मक सफलता के बाद ये अपेक्षा करना कि उसे घर में भी प्रयोग करके हैप्पी एंडिंग की जाये यह सरासर ज्यादती है ! जहां तक हमने सुना है, देखा है, जाना है कि सारे आविष्कार बहुजन हिताय बहुजन सुखाय की धारणा पे आधारित और घर से बाहर के संसार के प्राथमिकता के लिए जाने जाते हैं ! घर के अंदर की प्राथमिकता पहली प्राथमिकता में स्वतः निहित होती है / मानी जाती है, अतः उसे मुंह फोड़ /फाड़ कर कहना ज़रुरी नहीं होता !

    मुझे लगता है कथा की अनायास समाप्ति कथा को स्टीरियो टाइप होने से / पुरातन पंथी फार्मेटिंग से बचाती है ! वर्ना कथा तो ऐरे गैरे नत्थू खैरे सभी कह लेते हैं !

    एक बात ज़रूर है कि बी.एससी. की टायपिंग की गलती मैं कभी माफ नहीं कर सकता कृपया इसे दुरुस्त कर लें :)

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    1. अली सर, ये मेरी पहली विज्ञान कथा है! वैसे भी कहानी के बारे में मेरी ज्यादा समझ नहीं है। बस अपने पति की कहानियों को पढ़ पढ़ कर जो थोड़ी बहुत समझ बनी है, उसी के आधार पर इसे लिखने की हिमाकत की थी।

      मेरे लिए यह बहुत बड़ी बात है कि आप लोगों ने मेरी कहानी को न सिर्फ ध्यान से पढ़ा, वरन उसपर खुले मन से अपने विचार रखे। मेरे लिए आप सभी के विचार शिरोधार्य हैं।

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  7. "कथा की अनायास समाप्ति कथा को स्टीरियो टाइप होने से / पुरातन पंथी फार्मेटिंग से बचाती है ! वर्ना कथा तो ऐरे गैरे नत्थू खैरे सभी कह लेते हैं !..."

    अली जी की इस बात में दम है |

    कहानी हो या विज्ञान कथा उसमें एक अनोखापन या कहें नया प्रयोग उस रचना को नया तेवर देता है और सच माने प्रयोगधर्मी लेखक-कवियों ने हमेशा शानदार काम किया है और दूसरी तरफ पुरातनपंथी लेखकों (मठाधीश लेखकों) ने इन प्रयोगों की सदा आलोचना की है |

    आज सिनेमा में कितने सार्थक प्रयोग पटकथा और निर्देशन के स्तर पर हो रहे हैं और नतीजा देखें कि दर्शक इन्हें पसंद कर रहे हैं | देव डी को पुराने वाले देवदास से अधिक नहीं तो कम भी पसंद नहीं किया गया | इसके निर्देशक अनुराग कश्यप अपने गोरखपुर से हैं | अर्शिया जी भी लखनऊ से हैं | अपना पूर्वांचल बेहद उर्वर भूमि है इससे नकारा नहीं जा सकता |

    कहानी अच्छी है और नए लेखकों को कहानियाँ लिखने की प्रेरणा देने वाली है | शुरू में चित्र विलायती महिला व उसके बेटे का लगा है जो कुछ खटकता है | शीर्षक को और भी रोचक और अपीलिंग बनाया जा सकता था | आनंद यंत्र, खुशियाँ देने वाला यंत्र, आघात ने बनाया कामयाब या फिर खुशियों भरा आविष्कार..... इस प्रकार के शीर्षक संभवतः अच्छे हो सकते | शीर्षक किसी भी रचना का चेहरा है, अगर वह मनोहारी है तो पाठक सहज उसे पड़ने को आतुर होंगे |

    एक अच्छी विज्ञान कथा पाठकों के सामने लाने के लिए अर्शिया जी और परदे के पीछे प्रेरणा-स्रोत और तसलीम के संचालक भाई रजनीश जी दोनों मेरी बधाई स्वीकारें |

    मनीष मोहन गोरे

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    उत्तर
    1. मनीष जी, आपके सुझाव भी काफी महत्वपूर्ण हैं। विचार रखने के लिए शुक्रिया। आशा है आगे भी आप सब का मार्गदर्शन प्राप्त होता रहेगा।

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  8. माँ को खुश करने के लिए प्रसन्न यंत्र की ज़रुरत नहीं. वह तो बेटे की कामयाबी पर ही खुश हो जायेगी. जैसा की कहानी का अंत कहता है, "उसने सोचा जब मैं माँ को इसके बारे में बताऊँगा, तो वह कितना खुश होंगी। अपने बेटे की इतनी बड़ी कामयाबी देखकर उनका आत्मविश्‍वास फिर वापस आ जाएगा और वह पहले की तरह हो जाएँगी।" मुझे लगता है कहानी का यही अंत श्रेष्ठ है.

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  9. अरविन्द जी का सीक्वेल का आइडिया भी ज़ोरदार है.

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    1. अरविन्द जी अगर फिल्मों के डायरेक्टर होते तो अब तक कई हिट फिल्में बना चुके होते :)

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  10. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  11. यह अच्छी बात है कि एक रचना के बहाने कहानी के फार्मेट पर इतने सारे विचार आ रहे हैं।

    प्रत्येक रचनाकार के लिए उसकी पहली कहानी का विशेष महत्व होता है। अर्शिया की यह कहानी न सिर्फ एक स्तरीय पत्रिका में छपने के कारण, बल्कि उसपर इतनी चर्चा हो जाने के कारण भी महत्वपूर्ण हो गयी है।

    इसलिए मेरी ओर से भी बधाई तो बनती ही है। :)

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  12. वाह बढ़िया कहानी रही, और कहानी को केवल लेखक ही बुन सकता है, पाठक केवल राय दे सकता है। हो सकता है कि पाठक की राय से लेखक सहमत ना हो, कहानीकार ही कहानी का असली स्वरूप जानता है और उसे ही पता होता है कि उसे क्या संदेश पाठक को देना है ।

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  13. मुझे तो कहानी पसंद आई ... वैसे भी इस विषय पे हिंदी में कम ही कहानियाँ पढ़ने कों मिलती हैं ...

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  14. बहुत अच्छी कहानी है अर्शिया जी..
    पहला प्रयास है ऐसा लगता नहीं,,,
    हाँ गुणीजनों की सलाह मानते रहें तो हम हमेशा बेहतर की और बढ़ सकते हैं...
    बहुत सारी शुभकामनाएं.

    अनु

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  15. मेरे साथ भी कमोवेश यही स्थिति है, विज्ञान कथा लिखना तो दूर मैंने अबतक एक-दो विज्ञान कथाओं को छोडकर ज्यादा नहीं पढ़ा । वैसे आपकी कहानी की एंडिंग नीरस नहीं है, बल्कि सरस है और ऐसी एंडिंग अमूमन हर साहित्यिक कहानियों मे प्राय: देखी जाती है । मेरे समझ से कहानी स्तरीय है । मेरी बधाई स्वीकारें |

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  16. mujhe to bahut hi pasand aayi kahani ...........pryas aapka saphal raha . aage jaldi se dusri kahani likh daliye ..........shubhkanaye

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  17. कुछ खास परिस्थितिया, कुछ खास ज़रूरतें किसी नए ईज़ाद को प्रेरित करती हैं और इंसान कुछ नया आविष्कार कर जाता है। फिर परीक्षणों के द्वारा उसके सही होने का पता लगाता है।
    इसके बाद का कोई विस्तार कहानी को अनावश्यक ढंग से लंबा करता। कहानी अपनी बात कहने में सफल है}

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    1. मनोज जी, उत्‍साहवर्धन के लिए आभार।

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  18. प्रसन्न-यन्त्र का आविष्कार अवश्य होना चाहिए. ताकि पूरी दुनिया खुशहाल रहे और प्रसन्न रहे. बहुत प्रेरक कथा, बधाई.

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  19. कल्पना मे आदमी क्या नही कर सकता असल मे कल्पनायें ही तो अविश्कार की जननी हैं। सुन्दर कहानी।

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  20. सकारात्मक दिशा की ओर ले जाती कहानी. आने वाले समय में हार्मोन्स को नियंत्रित करने के लिए बहुत कुछ होने वाला है क्योंकि यही हमारे व्यवहार और स्वास्थ्य का आधार हैं.

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  21. बेनामी12/06/2013 7:31 am

    mai aapko dero shubhkamanye deta hu. aapki story read karke mere man me bhi kuchh naya karne ki ichchhha jag gayi he. thanks frd

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  22. धन्यवाद एक उम्दा कहानी को पढ़ने का अवसर देने के लिए। इसपर चर्चा भी महत्वपूर्ण थी।

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वैज्ञानिक चेतना को समर्पित इस यज्ञ में आपकी आहुति (टिप्पणी) के लिए अग्रिम धन्यवाद। आशा है आपका यह स्नेहभाव सदैव बना रहेगा।

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अंतरिक्ष युद्ध,1,अंतर्राष्‍ट्रीय ब्‍लॉगर सम्‍मेलन,1,अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी ब्लॉगर सम्मेलन-2012,1,अतिथि लेखक,2,अन्‍तर्राष्‍ट्रीय सम्‍मेलन,1,आजीवन सदस्यता विजेता,1,आटिज्‍म,1,आदिम जनजाति,1,इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी,1,इग्‍नू,1,इच्छा मृत्यु,1,इलेक्ट्रानिकी आपके लिए,1,इलैक्ट्रिक करेंट,1,ईको फ्रैंडली पटाखे,1,एंटी वेनम,2,एक्सोलोटल लार्वा,1,एड्स अनुदान,1,एड्स का खेल,1,एन सी एस टी सी,1,कवक,1,किंग जार्ज मेडिकल कॉलेज,1,कृत्रिम मांस,1,कृत्रिम वर्षा,1,कैलाश वाजपेयी,1,कोबरा,1,कौमार्य की चाहत,1,क्‍लाउड सीडिंग,1,क्षेत्रीय भाषाओं में विज्ञान कथा लेखन,9,खगोल विज्ञान,2,खाद्य पदार्थों की तासीर,1,खाप पंचायत,1,गुफा मानव,1,ग्रीन हाउस गैस,1,चित्र पहेली,201,चीतल,1,चोलानाईकल,1,जन भागीदारी,4,जनसंख्‍या और खाद्यान्‍न समस्‍या,1,जहाँ डॉक्टर न हो,1,जितेन्‍द्र चौधरी जीतू,1,जी0 एम0 फ़सलें,1,जीवन की खोज,1,जेनेटिक फसलों के दुष्‍प्रभाव,1,जॉय एडम्सन,1,ज्योतिर्विज्ञान,1,ज्योतिष,1,ज्योतिष और विज्ञान,1,ठण्‍ड का आनंद,1,डॉ0 मनोज पटैरिया,1,तस्‍लीम विज्ञान गौरव सम्‍मान,1,द लिविंग फ्लेम,1,दकियानूसी सोच,1,दि इंटरप्रिटेशन ऑफ ड्रीम्स,1,दिल और दिमाग,1,दिव्य शक्ति,1,दुआ-तावीज,2,दैनिक जागरण,1,धुम्रपान निषेध,1,नई पहल,1,नारायण बारेठ,1,नारीवाद,3,निस्‍केयर,1,पटाखों से जलने पर क्‍या करें,1,पर्यावरण और हम,8,पीपुल्‍स समाचार,1,पुनर्जन्म,1,पृथ्‍वी दिवस,1,प्‍यार और मस्तिष्‍क,1,प्रकृति और हम,12,प्रदूषण,1,प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड,1,प्‍लांट हेल्‍थ क्‍लीनिक,1,प्लाज्मा,1,प्लेटलेटस,1,बचपन,1,बलात्‍कार और समाज,1,बाल साहित्‍य में नवलेखन,2,बाल सुरक्षा,1,बी0 प्रेमानन्‍द,4,बीबीसी,1,बैक्‍टीरिया,1,बॉडी स्कैनर,1,ब्रह्माण्‍ड में जीवन,1,ब्लॉग चर्चा,4,ब्‍लॉग्‍स इन मीडिया,1,भारत के महान वैज्ञानिक हरगोविंद खुराना,1,भारत डोगरा,1,भारत सरकार छात्रवृत्ति योजना,1,मंत्रों की अलौकिक शक्ति,1,मनु स्मृति,1,मनोज कुमार पाण्‍डेय,1,मलेरिया की औषधि,1,महाभारत,1,महामहिम राज्‍यपाल जी श्री राम नरेश यादव,1,महाविस्फोट,1,मानवजनित प्रदूषण,1,मिलावटी खून,1,मेरा पन्‍ना,1,युग दधीचि,1,यौन उत्पीड़न,1,यौन शिक्षा,1,यौन शोषण,1,रंगों की फुहार,1,रक्त,1,राष्ट्रीय पक्षी मोर,1,रूहानी ताकत,1,रेड-व्हाइट ब्लड सेल्स,1,लाइट हाउस,1,लोकार्पण समारोह,1,विज्ञान कथा,1,विज्ञान दिवस,2,विज्ञान संचार,1,विश्व एड्स दिवस,1,विषाणु,1,वैज्ञानिक मनोवृत्ति,1,शाकाहार/मांसाहार,1,शिवम मिश्र,1,संदीप,1,सगोत्र विवाह के फायदे,1,सत्य साईं बाबा,1,समगोत्री विवाह,1,समाचार पत्रों में ब्‍लॉगर सम्‍मेलन,1,समाज और हम,14,समुद्र मंथन,1,सर्प दंश,2,सर्प संसार,1,सर्वबाधा निवारण यंत्र,1,सर्वाधिक प्रदूशित शहर,1,सल्फाइड,1,सांप,1,सांप झाड़ने का मंत्र,1,साइंस ब्‍लॉगिंग कार्यशाला,10,साइक्लिंग का महत्‍व,1,सामाजिक चेतना,1,सुरक्षित दीपावली,1,सूत्रकृमि,1,सूर्य ग्रहण,1,स्‍कूल,1,स्टार वार,1,स्टीरॉयड,1,स्‍वाइन फ्लू,2,स्वास्थ्य चेतना,15,हठयोग,1,होलिका दहन,1,‍होली की मस्‍ती,1,Abhishap,4,abraham t kovoor,7,Agriculture,8,AISECT,11,Ank Vidhya,1,antibiotics,1,antivenom,3,apj,1,arshia science fiction,2,AS,26,ASDR,8,B. 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Scientific World: प्रेरक विज्ञान कथा- प्रसन्न-यंत्र (लेखिका: अर्शिया अली)
प्रेरक विज्ञान कथा- प्रसन्न-यंत्र (लेखिका: अर्शिया अली)
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