भारत के प्राचीन/आधुनिक वैज्ञानिकों का जीवन परिचय एवं उनके आविष्कार।
विज्ञान शब्द आते ही हमारे कुछ पश्चिम परस्त मित्रों की गर्दन अनायाश ही पश्चिम की ओर मुड़ जाती है। बड़े फ़क्र से कहेंगे कि विज्ञान पश्चिम की देन है और सभ्यता भारत की देन। यह भारतीय समाज की एक बड़ी बिडंबना है कि हम न तो भारत के महान वैज्ञानिकों और उनके द्वारा किए गए महान कार्यों को समझ पाते हैं और न वैश्विक प्रगति मे भारतियों के अवदान को ही। सच तो यह है कि भारतीय संस्कृति का कोई भी गंभीर अध्येता यह देखकर आह्लादित हुये बिना नहीं रह सकता कि यहाँ विज्ञान के क्षेत्र मे भी असाधारण शोध हुये हैं वह भी साधन और सूचना की न्यूनता के बावजूद।
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भारत के महान वैज्ञानिक |
जहाँ तक आधुनिक भारतीय विज्ञान के परिदृश्य की बात है तो इस भूमि में जन्में मनीषियों ने पूरे विश्व को अनवरत अपने ज्ञान से सींचना जारी रखा है। देश में ही नहीं विदेशों मे भी भारतीय वैज्ञानिक फैले हुए हैं। अब प्रश्न यह उठता है कि आखिर हम क्या पढ़ रहे हैं? और हमें क्या पढ़ना चाहिए? जब तक प्रत्येक भारतीय पश्चिम की श्रेष्ठता और अपनी हीनता के बोध की प्रवृत्ति को नहीं त्यागता तब तक भारत विश्व के सर्वोच्च शिखर पर नही पहुँच सकता। ऐसे में हमें आवश्यकता है यह जानने की कि विज्ञान के क्षेत्र में भारत नें इस विश्व को क्या दिया।
ऐसी ही एक पुस्तक मुझे पिछले दिनों प्राप्त हुयी जिसमें भारतीय विज्ञान परंपरा और प्रमुख भारतीय वैज्ञानिकों के महत्वपूर्ण अवदानों की चर्चा हुई है, वह भी उनके जीवन वृत के साथ। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की ‘बाल साहित्य संबर्द्धन योजना’ के अंतर्गत प्रकाशित इस पुस्तक का उद्देश्य भारत के वैज्ञानिकों की जीवन शैली व उनके द्वारा किए गए आविष्कारों से बच्चों को अवगत कराना है। डॉ. ज़ाकिर आली ‘रजनीश’ के द्वारा लिखित इस पुस्तक में अठारह महान भारतीय वैज्ञानिकों और चिकित्सकों से केवल परिचय ही नहीं कराया गया है, अपितु विभिन्न क्षेत्रों मे हुई वैज्ञानिक प्रगति और शोध को भी सरल भाषा मे प्रस्तुत किया गया है ।
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अपनी पुस्तक के बारे में डॉ. रजनीश कहते हैं कि ‘आदिकाल से ही मनुष्य ने न सिर्फ ज्ञान-विज्ञान की नींव रखी, वरन दिन-प्रतिदिन वह प्रगति की सीढि़याँ भी चढ़ता चला गया। नि:संदेह इस प्रगति में आधुनिक वैज्ञानिकों ने भरपूर योगदान दिया है, लेकिन हमारे प्राचीन वैज्ञानिक भी इस नज़रिये से किसी से कमतर नहीं है। शिक्षार्थियों को इन वैज्ञानिकों के अवदानों से परिचित कराना इस पुस्तक का उद्देश्य है।’
इसमें कोई संदेह नहीं कि यह पुस्तक मूल रूप से विद्यार्थियों और आम पाठकों को लक्ष्य करके लिखी गई है, किन्तु मेरा मानना है कि इसे हर वह व्यक्ति पढ़ना चाहेगा जो आने वाली नई पीढ़ी को एक सकारात्मक दिशा देने को उत्सुक है। 150 पृष्ठ की इस पुस्तक की छपाई से लेकर पृष्ठ संयोजन तक अत्यंत आकर्षक है। भारतीय वैज्ञानिकों के विचार, शोध और उनकी जीवन शैली से रूबरू कराती एक अनोखी पुस्तक है यह। निश्चित रूप से यह पुस्तक विज्ञान परंपरा और विकास के क्षेत्र मे शोध-संदर्भ हेतु उपयोगी पुस्तक साबित होगी और शिक्षार्थियों का भरपूर मार्गदर्शन करने मे सहायक सिद्ध होगी।
पुस्तक: भारत के महान वैज्ञानिक
लेखक: डॉ. ज़ाकिर अली ‘रजनीश’
प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ
पृष्ठ: 150 (पेपर बैक)
मूल्य: 150/-
समीक्षक: श्री रवीन्द्र प्रभात
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डाक्टर साहब को बधाई !
जवाब देंहटाएंजाकिर भाई को बधाई!
जवाब देंहटाएंओह तो समीक्षक अपने रवीन्द्र प्रभात जी है ..बधाई दोनों जनों को ...
जवाब देंहटाएंMubarak Ho!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई ...........
जवाब देंहटाएं-- बहुत सुन्दर व सार्थक पहल...लेखक को बधाई..
जवाब देंहटाएं" जब तक प्रत्येक भारतीय पश्चिम की श्रेष्ठता और अपनी हीनता के बोध की प्रवृत्ति को नहीं त्यागता तब तक भारत विश्व के सर्वोच्च शिखर पर नही पहुँच सकता।"
---- सटीक, सत्य व समयोचित कथन...
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंमेरे भी ब्लॉग को देखो
जवाब देंहटाएंhttp://aikajnabee.blogspot.in
जाकिर भाई बधाई
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