27 दिसंबर 2011 (' क्षेत्रीय भाषाओं में विज्ञान कथा लेखन ' कार्यशाला के द्वितीय दिवस की रिपोर्ट ) हमारा भारतीय समाज प्रारम्भ स...
27 दिसंबर 2011 ('क्षेत्रीय भाषाओं में विज्ञान कथा लेखन' कार्यशाला के द्वितीय दिवस की रिपोर्ट)
हमारा भारतीय समाज प्रारम्भ से ही एक वैज्ञानिक दृष्टि से सम्पन्न समाज रहा है, किन्तु धीरे धीरे हम उस सबसे कटते चले गये और आज हालत यह है कि कोई विज्ञान को पढ़ना नहीं चाहता है, सरकारी विभागों में वैज्ञानिकों के हजारों पद खाली पड़े हुए हैं। यह हमारी सरकारी नीतियों का दुष्परिणाम है। हमें इसके बारे में सोचना होगा। समाज में विज्ञान के बारे में जागरूकता फैलानी होगी। और इस काम में विज्ञान कथाएं सहायक हो सकती हैं।
आज का कार्यक्रम मुख्य रूप से तीन सत्रों में विभाजित रहा, जिनमें पहले सत्र में नेषनल बुक ट्रस्ट द्वारा प्रकाषित ‘जीनोम यात्रा’, ‘इसरो की कहानी’ एवं ‘विज्ञान और आप’ पुस्तकों का लोकर्पण किया गया। यह कार्यक्रम इस मायने में अनोखा रहा कि इन पुस्तकों का लोकार्पण कार्यक्रम में शामिल प्रतिभागियों ने किया। इस सत्र में डॉ0 अरविंद मिश्र, डॉ0 देवेन्द्र मेवाड़ी एवं एवं डॉ0 विनीता सिंघल ने अपने विचार रखे। सभी वक्ताओं ने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि विज्ञान लेखन में सरल भाषा में इतनी रूचिकर और उपयोगी पुस्तकें प्रकाषित हो रही हैं। इससे विज्ञान लोकप्रियकरण में निष्चय ही सफलता मिलेगी। इस अवसर पर नेशनल बुक ट्रस्ट के सहायक संपादक ने बच्चों द्वारा किताबों के लोकार्पण कराने को लेकर बताते हुए कहा कि इस लोकार्पण समारोह में जितने बच्चों ने भाग लिया है, निश्यय ही वे इससे बहुत उत्साहित होंगे और इस घटना को अपनी स्मृतियों में संजो कर स्वयं को सृजनात्मक कार्यों में लगा सकेंगे।
कार्यक्रम के अगले सत्र में भारतीय भाषाओं में लिखी जा रही विज्ञान कथाओं पर चर्चा की गयी, जिसमें श्री चंदन सरकार ने बंगला की विज्ञान कथाओं की समृद्ध परम्परा को रेखांकित किया। इसी क्रम में जीशान हैदर जैदी ने उर्दू की विज्ञान कथाओं का परिचय देते हुए कहा कि उर्दू के पहले विज्ञान कथाकार लखनउ से आए हैं। इसी क्रम में अमित ओम ने मराठी विज्ञान कथाओं के बारे में बताते हुए इस बात पर जोर दिया किया कि यदि विज्ञान कथाकार स्वयं को स्थानीय मुद्दों, मान्यताओं और बिम्बों का प्रयोग करें, तो वे अपनी बात को ज्यादा प्रभावी बनाते हैं। इस क्रम में उन्होंने मराठी विज्ञान कथा के लोकप्रिय हस्ताक्षरों की चर्चा करते हुए इस दिषा में जयंत विष्णु नार्लीकर के विशेष प्रयासों का जिक्र किया।
कार्यक्रम के समापन समारोह में मुख्य अतिथि ने कार्यषिविर के दौरान लिखी गयी रचनाओं में से 6 श्रेष्ठ प्रतिभागियों को विज्ञान प्रसार द्वारा प्रकाषित पुस्तकें प्रदान कीं और उनका उत्साह वर्द्धन किया। कार्यक्रम में शामिल प्रतिभागियों ने इस कार्यक्रम के बारे में उत्साह व्यक्त करते हुए कहा कि ऐसे कार्यक्रम समय-समय पर आयोजित किये जाने चाहिए। इससे हम लोगों के भीतर जो प्रेरणा के अंकुर जन्मे हैं, वे निश्यय ही आगे चलकर नए आयाम तय करेगा।
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समारोह एवं कार्यक्रम सफल रहा। हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत ज्ञानवर्धक कार्यक्रम बधाई
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंकार्यशिविर से सम्बंधित कुछ यहाँ भी.
जवाब देंहटाएंवाह बढ़िया कार्यक्रम हुआ ....गजब ....कभी इस तरह के प्रोग्राम हम जैसे बदनसीबों के दूर दराज के स्कूलों में भी हों तो कैसा रहे ???......जस्ट फॉर अ चेंज !
जवाब देंहटाएंअफ़सोस है हम इस अवसर का लाभ न ले सके। अच्छे विद्वान जुटे थे।
जवाब देंहटाएंआयोजकों को बधाई।
सबसे अच्छी बात तो ये लगी कि आपके समारोह में बच्चों को भी शामिल किया गया. बर्ना मेरा तो अनुभव आज तक यही रहा है जैसे हम कृषी भवन में टाई लगाकर देश भर के किसानों के लिए योजनाएं बनाते रहते हैं, बच्चों को बच्चे मानकर बड़े फ़ैसले लेते आए हैं.
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक कार्यक्रम सफल तो होना ही था...बधाई!
जवाब देंहटाएंनव वर्ष की बहुत बहुत मंगलकामनाएं!