मंचासीन: श्री अनिल मेनन, श्री हेमंत कुमार, श्री सी0एम0 नौटियाल, श्री देवेन्द्र मेवाडी, डॉ0 अरविंद मिश्र ( क्षेत्रीय भाषाओं में विज्ञ...
| मंचासीन: श्री अनिल मेनन, श्री हेमंत कुमार, श्री सी0एम0 नौटियाल, श्री देवेन्द्र मेवाडी, डॉ0 अरविंद मिश्र |
(क्षेत्रीय भाषाओं में विज्ञान कथा लेखन कार्यशाला, के पहले दिन की रिपोर्ट)
तस्लीम, भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रद्योगिकी विभाग की संस्था ‘विज्ञान-प्रसार’ और नेशनल बुक ट्रस्ट के संयुक्त तत्वाधान में “क्षेत्रीय भाषाओं में विज्ञान कथा लेखन” विषय पर आधारित दो दिवसीय कार्यशिविर का आयोजन लखनऊ स्थित नेशनल पी०जी०कालेज के सभागार में अपराह्न 2 बजे आरम्भ हुआ|
इस कार्यशाला में नेशनल पी०जी कॉलेज के छात्र-छात्राओं के अतिरिक्त विभिन्न प्रतिभागी/व्यक्ति बड़ी संख्या में उपस्थित थे | कार्यक्रम के उदघाटन सत्र की अध्यक्षता डॉ सी०एम०नौटियाल ने सम्हाली | कार्यक्रम के मुख्य अतिथि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित अंग्रेजी के विज्ञान-कथाकार श्री अनिल मेनन जी आमंत्रित थे। विशिष्ट अतिथि के तौर पर सुप्रसिद्ध विज्ञान-कथाकार श्री देवेन्द्र मेवाड़ी जी एवं सुप्रसिद्ध रचनाकार एवं प्रशासनिक अधिकारी श्री हेमंत कुमार को आमित्रित किया गया था| कार्यक्रम के उदघाटन-सत्र का संचालन वरिष्ट विज्ञान-कथाकार डॉ अरविन्द मिश्र ने किया |
कार्यक्रम के संयोजक डॉ ज़ाकिर अली रजनीश ने सर्वप्रथम पुष्प-गुच्छ दे कर अतिथियों का स्वागत किया| कार्यक्रम का विधिवत उदघाटन विद्या की देवी माँ सरस्वती की प्रतिमा के समक्ष दीप-प्रज्वलन, माल्यार्पण और माँ शारदे की वन्दना के साथ आरम्भ हुआ |
अपने बीज उद्बोधन में डॉ मिश्र ने साइंस-फिक्शन का परिचय नए लोगों से करवाया | उन्होंने बताया कि ‘विज्ञान-कथा’ के विभिन्न विषय-विशेषज्ञ तथा विद्वानों ने अलग-अलग परिभाषाएँ दी हैं| ये विभिन्न परिभाषाएँ आखिरकार ‘विज्ञान-कथा’ की समृद्धि ही बयां करती हैं| अतीत और वर्तमान को छोडकर भविष्य को कहना ही ‘विज्ञान-कथा’ है | असल में ‘विज्ञान-कथाकारों’ को हम “भविष्य-दृष्टा” कह सकते हैं |
इसके बाद साहित्यकार और प्रशासनिक अधिकारी श्री हेमंत कुमार ने कार्यशाला के प्रतिभागियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि ‘विज्ञान-कथा’ को समझने के लिए नए लोग सर्प्रथम देवकी नंदन खत्री की ‘चन्द्रकान्ता’ पुस्तक को जरूर पढ़ें | उन्होंने नए युवा कथाकारों को ‘विज्ञान-कथा’ कैसे लिखें इसकी सलाह दी | उन्होंने बताया कि ‘साइंस-फिक्शन’ में कविताएँ और ‘हाईकू’ भी लिखी जा रही हैं और इस क्षेत्र में इसकी बाहुत सम्भावना है |
अगले वक्ता के तौर पर अमेरिका से पधारे श्री अनिल मेनन जी ने मंच सम्हाला | उन्होंने बताया वे मुख्यता से इंजीनियरिंग के छात्र रहे हैं, कंप्यूटर सांइस से पी०एच०डी० के पश्च्यात उन्हें सिएटल में एक विज्ञान-कथा लेखन वर्क-शॉप में भाग लेने का अवसर मिला | उसी वर्क-शॉप ने उनका पूरा जीवन ही बदल दिया और वे ‘विज्ञान-कथा लेखन की मुख्य-धारा में आ गए और इतनी सफलता उन्हें इस क्षेत्र में मिली| उन्होंने बताया कि इस प्रकार की “विज्ञान-कथा-लेखन” कार्यशाला पूरे देश में समय-समय पर होनी चाहिए और कार्यशाला 2-3 दिनों के बजाए 1-2 हफ्तों की होनी चाहिए ताकि प्रतिभागियों को सीखने का पूरा मौका मिल सके |
वरिष्ठ विज्ञान-कथाकार श्री देवेन्द्र मेवाड़ी जी ने अपने उद्बोधन का आरम्भ एक छोटी सी कहानी से किया: “दो लोग आपस में बातें कर रहे थे, एक ने दूसरे से पूछा कि क्या तुम भूतों पर विश्वास करते हो? दूसरे ने कहा, नहीं और वह गायब हो गया|” इस कहानी का उदाहरण दे कर उन्होंने भविष्य के विज्ञान-कथाकारों को इस शिल्प की प्रेरणा दी | उन्होंने ‘साइंस-फिक्शन’ के इतिहास से श्रोताओं को परिचित करवाया | उन्होंने कहा कि चीन ने अभी सन 2002 में अपने ‘साइंस-फिक्शन’ लेखन की शताब्दी मनाई | जबकि अपने भारत में हिन्दी ‘साइंस-फिक्शन’ लेखन का इतिहास सौ वर्षों से भी पुराना है और इतना पीछे चल रहा है | उन्होंने बताया कि राहुल संकृत्यायान, हरिवंश राय बच्चन और नॉबेल पुरस्कार से सम्मानित रविन्द्र नाथ ठाकुर जैसे साहित्यकार का सहयोग इस विधा को मिलने के पश्च्यात भी ‘हिन्दी विज्ञान-कथा लेखन’ को अभी बहुत दूरी तय करनी है, जिसमें हमारा-आपका सहयोग बहुत आवश्यक है|
कार्यक्रम के आयोजक डॉ ज़ाकिर अली रजनीश ने कहा कि विज्ञान-कथा-लेखन ऐसी विशिष्ट विधा है जिसको भविष्य आकने की विशिष्टता मौजूद है | उन्होंने टी०वी०, परमाणु बम और चन्द्रमा पर मानव के पहुंचने की परिकल्पना “विज्ञान-कथा” में इनके होने से वर्षों पहले कर दी गई थी |
अपने अध्यक्षीय भाषण में डॉ सी०एम०नौटियाल ने बताया कि विज्ञान-कथा में साहित्य की साथ-साथ ‘विज्ञान’ का तथ्य बेहद आवश्यक है | उन्होंने “फिक्शन” और “फेंतासी” में भी अंतर बताया और कहा कि ‘विज्ञान-कथा’ में फेंतासी नहीं बल्कि साइंस फिक्शन होना चाहिए |
इस सत्र के अंत में मुख्य अतिथि श्री अनिल मेनन को तस्लीम संस्था के ओर से अंग-वस्त्रम दे कर सम्मानित किया गया | सत्र में “साइंस फिक्शन इन इंडिया” और “बुढ्ढा फ्यूचर” पुस्तकों का लोकार्पण भी किया गया | दितीय सत्र में आमंत्रित वक्ताओं ने प्रतिभागियों के साथ विज्ञान कथा पर चर्चा की और विज्ञान कथा लेखन के लिए प्रोत्साहित किया |
27 दिसंबर को यह कार्यशाला (प्रात: 10:30 सायं 5:00 तक) अपने विभिन्न सत्रों के दौरान संचालित होगी, जिसमें प्रतिभागियों के साथ चर्चा होगी और नेशनल बुक ट्रस्ट की पुस्तकों का लोकार्पण भी किया जाएगा |
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समाचारों से अवगत हुआ।
जवाब देंहटाएंइस तरह के कार्यक्रम होते रहना चाहिए !
जवाब देंहटाएंSarthak karyakram.
जवाब देंहटाएंSarthak karyakram.
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