Hargobind Khorana Life and Achievements
डॉ0 हरगोविंद खुराना (देखें परिचय) की मृत्यु पर भारत में आमतौर पर कोई खास चर्चा नहीं हुई। जब डॉ0 खुराना को नोबेल पुरस्कार मिला था, त तब देश में उनकी बहुत चर्चा हुई थी और वाद-विवाद भी हुआ था कि क्यों भारतीय मूल के प्रतिभाशाली वैज्ञानिकों को विदेश में जाकर काम करना पड़ता है? यह उल्लेखनीय है कि विज्ञान में किसी भरतीय को जो पहला पुरस्कार मिला था, यानी सर सी0वी0 रमन को, वह अकेला ऐसा पुरस्कार था, जो भारत में रहने वाले वैज्ञानिक को भरत की प्रयोगशाला में किए गये काम पर मिला था।
वह वक्त आजादी के पहले का था और हम उम्मीद करते थे कि आजादी के बाद भारतीय वैज्ञानिकों को काम करने की शानदार सुविधाएं और अवसर मिलेंगे। लेकिन उसके बाद दूसरे भारतीय वैज्ञानिक डॉ0 खुराना थे, जिनका सभी काम विदेश में हुआ था। एमएससी तक पढ़ाई जरूर उन्होंने अविभाजित पंजाब मे की थी, लकिन आजादी के बाद भारत में रहने वाले वैज्ञानिकों के इक्का-दुक्का काम जरूर ऐसे हैं, जिनपर नोबेल पुरस्कार मिल सकता था लेकिन आम तौर पर तमाम विश्वविद्यालयों और प्रयोगशालाओं के बावजूद भारत में शोध का माहौल आज भी ऐसा नहीं है कि कोई प्रतिभाशाली व्यक्ति असाधारण काम कर सके। मसलन युवतम भारतीय नोबेल पुरस्कार विजेता वेंकट राम कृष्णन अगर भारत में होते, तो कभी नोबेल पुरस्कार नहीं पा सकते थे, क्योंकि भारतीय भारतीय शिक्षा व्यवस्था में वह भौतिक शास्त्र में एमएससी करने के बाद जीव रसायन शास्त्र में पीएचडी नहीं कर पाते। इंग्लैण्ड के विश्वविद्यालय तंत्र में यह मुमकिन था और इसीलिए रामकृष्णन जीव रसायन शास्त्र में किये गये अपने काम के लिए नोबेल पुरस्कार पा सके।
डॉ0 खुराना या डॉ0 सुब्रमण्यम चंद्रशेखर भी शायद भारत के तंत्र में अपना काम करने में कामयाब नहीं होते। यह कहना आसान है कि उन्हें भरत में रहकर तंत्र सुधारने की कोशिश करनी चाहिए थी, लेकिन वे जिस तरह के वैज्ञानिक थे, उसे देखते हुए तंत्र बदलना उनके वश की बात नहीं थी। वे चुपचाप अपना काम करने वाले व्यक्ति थे। डॉ0 खुराना 2007 तक अपनी प्रयोगशाला और अध्यापन में लगे रहे। नोबेल पुरस्कार जीत चुकने के बाद भी उन्होंने इतना महत्वपूर्ण काम किया है, जिस पर उन्हें फिर नोबेल मिल सकता था। उन्होंने डीएनए के हिस्सों को मनचाहे ढंग से जोडकर कृत्रिम जीन्स बनाने की तकनीक नोबेल पुरस्कार पाने के बाद खोजी, जो आधुनिक बायो टेक्नोलॉजी का आधार है। डॉ0 खुराना के शोध के सहारे ही आज बायो टेक्नोलॉजी का आधार है। डॉ0 खुराना के शोध के सहारे ही आज बायो टेक्नोलॉजी में काम करने वाली प्रयोगशालाएं पशुओं व पौधों की नई प्रजातियाँ विकसित करने के लिए मनचाहे जेनेटिक कोड वाले डीएनए पा सकती हैं।
जिस शोध के लिए उन्हें पुरस्कार मिला, वह भी उतने ही बुनियादी महत्व का है। उन्होंने कोशिकाओं में पाए जाने वाले आरएनए से अलग-अलग एमिनो एसिड बनाने की प्रक्रिया को उदघाटित किया था। डॉ0 खुराना अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन शायद यह बहस भारत में आज भी प्रासंगिक है कि क्या भारत में विज्ञान की शिक्षा और शोध का माहौल किसी असाधारण प्रतिभा को फलने-फूलने दे सकता है?
सूचना तकनीक के विकास की वजह से भारतीय वैज्ञानिकों को फायदा हुआ है और उन्हें शोध के लिए संदर्भ सामग्री जुटाने में वे मुश्किलें नहीं आतीं, जो डॉ0 खुराना के जमाने मे आती थीं, लेकिन हमारे विश्वविद्यालयों व प्रयोगशालाओं का माहौल उतना ही प्रतिभा विरोध है। अब तो विज्ञान की जगह वाणिज्य व प्रबंधन ने ली है। डॉ0 खुराना को याद करने के बहाने हमउन मुद्दों पर फिर चर्चा कर सकते हैं, जो है। आज भी प्रासंगिक हैं। (हिन्दुस्तान से साभार)
महान वैज्ञानिक को शत-शत नमन.
जवाब देंहटाएंवैज्ञानिक सुमन सहाय जी का आलेख आपने प्रस्तुत किया और डॉ हर गोविंद खुराना को भावभीनी श्रद्धांजली दी उसमे हम भी अपनी श्रद्धांजली जोड़ना चाहते हैं।
जवाब देंहटाएंमहान वैज्ञानिक के निधन से मन आहत हुआ। इस आलेख के साथ आपने कुछ विचारनीय मुद्दे भी उठाए हैं। उस पर विमर्श भी ज़रूरी है।
जवाब देंहटाएंजाकिर अली जी,
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत हार्दिक आभार.
आज के समय में डॉ खुराना जैसे वैज्ञानिको की कमी है.
ये भारतीय विज्ञान जगत के लिए bhi महत्वपूर्ण क्षति है .
नमन एवं श्रद्धांजलि ...
जवाब देंहटाएंआभार !
हम बच्चे थे जब डॉ खुराना को नोबल पुरस्कार मिल था ,हमारे सीने भी गर्व से चौड़े हो गए थे की एक भारतवंशी को यह श्रेय मिल सका .जो भी हो विज्ञानं के एक साधक के परलोक गमन पर हार्दिक श्रद्धांजलि.
जवाब देंहटाएंDr. Bhoopendra Singh
T.R.S.College,REWA 486001
Madhya Pradesh INDIA
महान वैज्ञानिक को शत-शत नमन.
जवाब देंहटाएं