हर इंसान का दिमाग खूबसूरती पर तत्काल प्रतिक्रिया देता है। उसमें भी जितनी खूबसूरती चेहरे की भाती है, उतनी इमारत, वस्तु यहाँ तक कि प्रकृति क...
हर इंसान का दिमाग खूबसूरती पर तत्काल प्रतिक्रिया देता है। उसमें भी जितनी खूबसूरती चेहरे की भाती है, उतनी इमारत, वस्तु यहाँ तक कि प्रकृति की भी नहीं। मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के एक शोध के अनुसार, मस्तिष्क में फसी फार्म फेस एरिया यानी एफएफए भाग होता है, जो खूबसूरत और आकर्षक चेहरा देख हरकत में आ जाता है। रिपोर्ट के अनुसार, अब किस मस्तिष्क को कौन सा चेहरा भा जाएगा, यह गुत्थी अभी नहीं सुलझाई जा सकी है। बल्कि प्यारी की परिभाषा ही बदल गई है। प्यार या चाहत के लिए अभीतक दिल को दोषी माना जाताथा, मगर अब हकीकत सामने आई कि ‘लव एड फर्स्ट साइट’ यानी चेहरा देखते ही प्यार हो जानेकी घटना मस्तिष्क काकिया धरा होता है, चोट बेचारे दिल पर होती है।
शोधकर्ता डॉ0 गालिट यावेल और उनके साथी नैसी कैनविरार ने मस्तिष्क की इस कारगुजारी को उजागर करने के लिए ब्रेन स्कैनिंग की तकनीक का सहारा लिया। इस तकनीक के अंश फंक्शनल ऐसानेसम इमेजिंग को अपनाते हुए दिमाग के फसी फार्म फेस एरिया को केन्द्र बिन्दु बनाया गया। प्रमुख मस्तिष्क को हरकत में लाने के लिए पहले फिल्म द्वारा इमारतें दिखाई गयीं, जिसका प्रभाव सहज था लेकिन ज्यों ही खूबसूरत लड़की का चेहरा दिखाया गया, प्रमुख मस्तिष्क का एफएफए अंश हरकत में आ गया। यही प्रतिक्रिया स्त्री मस्तिष्क की भी हुई। बलिष्ठ काया लिए व्यक्ति को हसरत भरी निगाहसे देखने वाली स्त्री का मस्तिष्क रोमांटिक हो उठता है। उसका एफएफए अंश शांत स्थिति से हरकत में आ जाता है।
इस दिशा में कनैटिकट विश्वविद्यालय अमेरिका की डॉ0 फेरिना का रोचक शोध है। उनके मुताबिक मानव दिमाग आकर्षक चेहरों पर विशेष प्रतिक्रिया करता है। उनकी रिपोर्ट के अनुसार, सुंदरता के मामले में हर किसी का दिमाग अलग-अलग प्रतिक्रिया देता है, जो पसंद अपनी-अपनी, ख्याल अपना-अपना की पुष्टि करता है। मसलन एक ग्रामीण बाला जितनी अच्छी ग्रामीण युवक को लगेगी, उतनी शहरी युवक को नहीं लगेगी। ठीक इसी तरह मेकअप मेंसजी-धजी एक आधुनिक शहरी युवती शहरी युवक को जितना भाएगी, उतनी ग्रामीण को नहीं।
मस्तिष्क पर हुए शोध बताते हैं कि मानव मस्तिष्क ही है, जो देश विशेष का चेहरा पहचान जाता है। हम देखते ही बता देते हैं कि यह जापानी चेहरा है या अमेरिकी या मुस्लिम। यहां तक कि मस्तिष्क मैदानी और पहाडी चेहरे में भी भेद कर लेता है। नवजात शिशु को देखने भर से लोग बता देते हैं कि वह लडकी है या लडका। कुछ लोगों के मस्तिष्क में तो यहां तक अनोखी प्रतिभा पाई गयी है कि वह चेहरा पढ़ भी लेते हैं। फेस रीडर ताड़ जाते हैं कि सामने वाले के चेहरे के पीछे क्या है। अध्यापाक, पुलिसकर्मी, वकील जैसे पेशे वालों के मस्तिष्क कुछ हटके होते हैं। इनके दिमाग का एफएफए अंश काफी पैनापन लिए होता है। इसीलिए कुछ लोग कभी बुढापे के कारण तो कभी दुर्घटना या फिर अचानक चेहरा पहचानने की क्षमता खो बैठते हैं। यह असल में मस्तिष्क से जुडा रोग है, जिसे चिकित्सीय भाषा में प्रॉसोपेग्नेसिया कहते हैं और आम भाषा में फेस ब्लाइंडनेस।
शोध बताते हैं कि इस दशा में मस्तिष्क का आधा अंश हीकार्य करता है आशा निष्क्रिय हो जाता है। मस्तिष्क की कोशिकाओं में तारतम्य समाप्त हो जाता है। मस्तिष्क के एफएफए अंश में गंभीर विकृति आ जाती है और व्यक्ति चेहरा पहचान नहीं पाता। कई बार वह आवाज के जरिए उस चेहरे को याद करने की कोशिश करता भी है, पर बेहद अस्पष्ट छवि मस्तिष्क में कौंधती है और पहचान नहीं हो पाती। उसके लिए मस्तिष्क को पैना करने का प्रयास किया जाता है। प्रारम्भिक दशा में विभिन्न चित्रों की मदद से जीवित और मृत की पहचान कराई जाती है, फिर वीडियो दिखाए जाते हैं। एक अंतराल के बाद फिर प्रक्रिया दोहराई जाती है। अगर मस्तिष्क अच्छे परिणाम देता है, तो फिर नजदीकी रिश्तेदारों, मित्रों और प्रसिद्ध हस्तियों के चित्र दिखाए जाते हैं। कई बार सफलता मिलती है और मस्तिष्क राह पर आ जाता है।
हारवर्ड यूनिवर्सिटी में इस प्रकार के कई परीक्षण चल रहे हैं। कुछ दशाओं में सफलतामिली भी है। शोधकर्ता डॉ0 ब्रेड ड्यूचैन के अनुसार अधिकांश फेस ब्लॉइंडनेस के शिकार लोगों की निगाह विपरीत सेक्स के चेहरे पर टिक जाती है। जाहिर है, यह मस्तिष्क का वो दबा स्वरूप है, जो विपरीत सेक्स की चाह उजागर करता है यानी उसे आशिक मिजाज बनाता है। (साभार: 'जनसंदेश टाइम्स')
शोधकर्ता डॉ0 गालिट यावेल और उनके साथी नैसी कैनविरार ने मस्तिष्क की इस कारगुजारी को उजागर करने के लिए ब्रेन स्कैनिंग की तकनीक का सहारा लिया। इस तकनीक के अंश फंक्शनल ऐसानेसम इमेजिंग को अपनाते हुए दिमाग के फसी फार्म फेस एरिया को केन्द्र बिन्दु बनाया गया। प्रमुख मस्तिष्क को हरकत में लाने के लिए पहले फिल्म द्वारा इमारतें दिखाई गयीं, जिसका प्रभाव सहज था लेकिन ज्यों ही खूबसूरत लड़की का चेहरा दिखाया गया, प्रमुख मस्तिष्क का एफएफए अंश हरकत में आ गया। यही प्रतिक्रिया स्त्री मस्तिष्क की भी हुई। बलिष्ठ काया लिए व्यक्ति को हसरत भरी निगाहसे देखने वाली स्त्री का मस्तिष्क रोमांटिक हो उठता है। उसका एफएफए अंश शांत स्थिति से हरकत में आ जाता है।
इस दिशा में कनैटिकट विश्वविद्यालय अमेरिका की डॉ0 फेरिना का रोचक शोध है। उनके मुताबिक मानव दिमाग आकर्षक चेहरों पर विशेष प्रतिक्रिया करता है। उनकी रिपोर्ट के अनुसार, सुंदरता के मामले में हर किसी का दिमाग अलग-अलग प्रतिक्रिया देता है, जो पसंद अपनी-अपनी, ख्याल अपना-अपना की पुष्टि करता है। मसलन एक ग्रामीण बाला जितनी अच्छी ग्रामीण युवक को लगेगी, उतनी शहरी युवक को नहीं लगेगी। ठीक इसी तरह मेकअप मेंसजी-धजी एक आधुनिक शहरी युवती शहरी युवक को जितना भाएगी, उतनी ग्रामीण को नहीं।
मस्तिष्क पर हुए शोध बताते हैं कि मानव मस्तिष्क ही है, जो देश विशेष का चेहरा पहचान जाता है। हम देखते ही बता देते हैं कि यह जापानी चेहरा है या अमेरिकी या मुस्लिम। यहां तक कि मस्तिष्क मैदानी और पहाडी चेहरे में भी भेद कर लेता है। नवजात शिशु को देखने भर से लोग बता देते हैं कि वह लडकी है या लडका। कुछ लोगों के मस्तिष्क में तो यहां तक अनोखी प्रतिभा पाई गयी है कि वह चेहरा पढ़ भी लेते हैं। फेस रीडर ताड़ जाते हैं कि सामने वाले के चेहरे के पीछे क्या है। अध्यापाक, पुलिसकर्मी, वकील जैसे पेशे वालों के मस्तिष्क कुछ हटके होते हैं। इनके दिमाग का एफएफए अंश काफी पैनापन लिए होता है। इसीलिए कुछ लोग कभी बुढापे के कारण तो कभी दुर्घटना या फिर अचानक चेहरा पहचानने की क्षमता खो बैठते हैं। यह असल में मस्तिष्क से जुडा रोग है, जिसे चिकित्सीय भाषा में प्रॉसोपेग्नेसिया कहते हैं और आम भाषा में फेस ब्लाइंडनेस।
शोध बताते हैं कि इस दशा में मस्तिष्क का आधा अंश हीकार्य करता है आशा निष्क्रिय हो जाता है। मस्तिष्क की कोशिकाओं में तारतम्य समाप्त हो जाता है। मस्तिष्क के एफएफए अंश में गंभीर विकृति आ जाती है और व्यक्ति चेहरा पहचान नहीं पाता। कई बार वह आवाज के जरिए उस चेहरे को याद करने की कोशिश करता भी है, पर बेहद अस्पष्ट छवि मस्तिष्क में कौंधती है और पहचान नहीं हो पाती। उसके लिए मस्तिष्क को पैना करने का प्रयास किया जाता है। प्रारम्भिक दशा में विभिन्न चित्रों की मदद से जीवित और मृत की पहचान कराई जाती है, फिर वीडियो दिखाए जाते हैं। एक अंतराल के बाद फिर प्रक्रिया दोहराई जाती है। अगर मस्तिष्क अच्छे परिणाम देता है, तो फिर नजदीकी रिश्तेदारों, मित्रों और प्रसिद्ध हस्तियों के चित्र दिखाए जाते हैं। कई बार सफलता मिलती है और मस्तिष्क राह पर आ जाता है।
हारवर्ड यूनिवर्सिटी में इस प्रकार के कई परीक्षण चल रहे हैं। कुछ दशाओं में सफलतामिली भी है। शोधकर्ता डॉ0 ब्रेड ड्यूचैन के अनुसार अधिकांश फेस ब्लॉइंडनेस के शिकार लोगों की निगाह विपरीत सेक्स के चेहरे पर टिक जाती है। जाहिर है, यह मस्तिष्क का वो दबा स्वरूप है, जो विपरीत सेक्स की चाह उजागर करता है यानी उसे आशिक मिजाज बनाता है। (साभार: 'जनसंदेश टाइम्स')
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किया धरा मस्तिष्क का और चोट दिल पर ...
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी देती हुई पोस्ट
यह शोद्ध हमारे अर्वाचीन दर्शन को ही पुष्ट करने वाला है. हमारे यहाँ हर कार्य अच्छे या बुरे के लिए मस्तिष्क को पहले से ही जिम्मेदार माना जाता है. मन या मस्तिष्क की पवित्रता के लिए छः मन्त्र विशेष हैं जो रात्री में सोते समय उच्चारण करने का प्राविधान है. शरीर के समस्त अंग जिनमे दिल या ह्रदय भी शामिल है मन या मस्तिष्क की प्रेरणा पर ही कार्य करते हैं.
जवाब देंहटाएंजानकारीप्रद पोस्ट !!
जवाब देंहटाएंरोचक जानकारी... शोध से काफी हद तक सहमत भी..
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी देती हुई पोस्ट
जवाब देंहटाएंदिल आ गया सड़क के अब दूजे मुकाम पर,
जवाब देंहटाएंकरता दिमाग़ फ़ैसला 'लैला' के Charm पर,
ले कर जो क़र्ज़ भूले जो चेहरा तो क्या हुआ,
करलो दुआ-सलाम जो आ जाए बाम पर!
http://aatm-manthan.com
बढ़िया प्रस्तुति ... अब बिचारे कवियों का क्या होगा ... हमारे हिंदी फिल्मों का क्या होगा ...
जवाब देंहटाएंऐसे गाने बनेंगे "मेरे ईमाग में आज क्या है तू कहे तो मैं बता दूँ" ...
बहुत ही साफ़ लफ्जों में लिखी हुई कसावदार रिपोर्ट .बहुत साफ़ लिखतें हैं आप कोई भाषा गत भूल -भुलैयां नहीं ,अपनी सी भाषा .बढ़िया जानकारी .लगता है दिमाग की भी कंडिशनिंग अनुकूलन होता है ,नेचर और नर्चर दोनों काम करतें हैं .बधाई आपको कसावदार रिपोर्टिंग के लिए .
जवाब देंहटाएंऔर वो जो गाना थाः दिल को देखो,चेहरा न देखो,चेहरे ने लाखों को लूटा...........उसका क्या करें?
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी शेयर किया आपने।
जवाब देंहटाएंमतलब दिल तो मुफ्त ही बदनाम हुआ ...
जवाब देंहटाएंरोचक जानकारी !
bahut badiya jankari ..bechare dil ki keemat hi kam ho gayee dimag ke aage...
जवाब देंहटाएंरोचक और जानकारीपूर्ण पोस्ट.
जवाब देंहटाएंजानदार
जवाब देंहटाएं...मस्तिष्क ही मन या दिल को अपने अनुसार चलाता है!...ज्ञान वर्धक लेख पढ कर बहुत अच्छा लगा, धन्यवाद!
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