बी0 प्रेमानन्द भारत की उन महान शख्सियतों में शामिल हैं, जिन्होंने देश से अन्धविश्वास को मिटाने तथा अम जन को जागरूक करने का बीड़ा उठ...
बी0 प्रेमानन्द भारत की उन महान शख्सियतों में शामिल हैं, जिन्होंने देश से अन्धविश्वास को मिटाने तथा अम जन को जागरूक करने का बीड़ा उठाया और उसे मूर्त रूप देने के लिए अथक प्रयत्न किये। प्रस्तुत है उनका एक विस्तृत साक्षात्कार, जिसमें उन्होंने जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण सवालों के जवाब दिये हैं।
26 पुस्तकों के लेखक, प्रेमानंद प्रादेशिक संस्थाओं द्वारा आयोजित विज्ञान यात्राओं के अध्यक्ष हैं, जिनके कारण वे भारत के सात हजार शहरों और गांवों में जा चुके हैं, जहां उन्होंने लगभग दो करोड़ व्यक्तियों को व्याख्यान दिया है। वे वर्कशाप का भी आयोजन करते हैं, जिसमें वे 150 चमत्कारों को दिखा कर उनका विश्लेषण करते हैं और देवताओं, धर्म के चमत्कारों के इतिहास पर प्रकाश डालते हैं। प्रस्तुत है उनका एक विस्तृत साक्षात्कार, जिसमें उन्होंने इन तमाम विषयों पर पूछे गये सवालों के जवाब में अपनी विचारधारा को स्पष्ट किया है-
प्रश्न: भगवान के इन ‘दूतों’ के विरूद्ध आपका अतिविरोध आपकी नास्तिकता के कारण है अथवा धर्म के संस्थागत होने के प्रति अविश्वास के कारण?
उत्तर: ईश्वर पर विश्वास करना या अविश्वास करना, पूर्ण रूप से व्यक्तिगत धारणाओं पर निर्भर होता है। इससे किसी को तब तक कोई हानि नहीं पहुंचती, जब तक खुर्दगर्ज प्रचार द्वारा उसका बारबार शोषण नहीं किया जाता। ..हिन्दुओं और मुसलमानों को बचाने वाला कोई भी भगवान नहीं है। वे लोग आपस में ही एक दूसरे का सर्वनाश कर रहे हैं, जिससे वे भगवान को बाबरी मस्जिद और राम जन्मभूमि में जिंदा सुरक्षित रख सकें। यह उन लोगों की शरारत है, जो स्वयं को अल्लाह या ईश्वर का दूत होने का दावा करते हैं। दु:खी लोग जब मानसिक रूप से परेशान होते हैं, तो इनकी शरण में जाते हैं। और ये लोग इनका शोषण आसानी से कर लेते हैं। धर्म हमारी संस्कृति का भाग है। हमारे देश में कई नियम और दार्शनिक विचारधाराएं आदि काल से चली आ रही हैं और हमारे अवचेतन मन में बैठ गयी हैं कि ईश्वर उन लोगों के लिए आवश्यक है, जिन्हें इस सहारे की आवश्यकता होती है और जो सहारे के बिना पागल हो जाएंगे। पर मुझे उन लोगों की चिंता है, जो अपनी सामर्थ्य से अधिक विश्वास कर बैठते हैं और बाद में उससे निराश होने पर मानसिक संतुलन भी खो देते हैं। इसलिए, ईश्वर के अस्तित्व पर बहस न करके मैं लोगों को जागरूक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रेरित करता हूँ। जब एक बार वे वास्तविकता से परिचित होते हैं, तो फिर वे पीछे नहीं हटते।
प्रश्न: आप डॉ0 अब्राहम टी कोवूर के उत्तराधिकारी कैसे बने?
उत्तर: प्रारम्भ में मैंने ईश्वर और गुरूओं के विषय में जो कुछ पढ़ा, उसपर विश्वास कर लिया। मैं प्रत्येक सिद्धि हासिल करना चाहता था। 19 वर्ष की आयु में मैं अपने लिए गुरू की खोज में निकल पड़ा। मैं श्री अरबिन्दों के पास गया और श्री टैगोर, जो मेरे पिताजी के मित्र थे, उनके पास भी गया था। स्वामी रामदास, जिन्होंने अपनी पुस्तक ‘इन सर्च ऑफ गॉड’ में बगैर पैसों के भारत भ्रमण कर जिक्र करते हुए लिखा है कि भगवान ने उनकी देखभाल की, मैं भी उन्हीं की तरह बिना पैसों के भारत भ्रमण को निकला, पर मैंने किसी भगवान को अपनी मदद करते नहीं पाया, मदद करने वाले सभी इंसान थे।
मैं कई स्वामियों से मिला, जिन्होंने मुझे कुण्डलिनी के विषय में सिखाना चाहा। कुण्डलिनी अथवा सैक्स एनर्जी शरीर में योग द्वारा सुशुम्ना नाड़ी में शून्य पैदा करके ऊपर चढ़ जाती है। वैज्ञानिक भाषा में वीर्य ऊपर चढ़ता है, पर यह नाड़ी कहां है? कहा जाता है यह एक मानसिक नाड़ी है, जो सिर्फ ध्यान द्वारा महसूस की जा सकती है, जोकि शुद्ध काल्पनिक बात है। सेक्स एनर्जी को तंत्र शक्ति में परिवर्तित नहीं किया जा सकता। ब्रह्मचर्य से प्रोटेस्ट ग्लैण्ड में बड़ी पीड़ा होती है। मैंने सारे योगियों और ऋषियों को धोखेबाज पाया। फिर मैं भी जादू के खेलों में रूचि लेने लगा। मैं भी चाहूं तो किसी भी संत या बाबा की तरह खूब सारा धन कमा सकता हूँ। मैं 1500 चमत्कार दिखा सकता हूँ, जबकि सामान्य सिद्ध पुरूष को 50-60 ही आते हैं।
1969 के बाद से डॉ0 कोवूर श्रीलंक से आकर चमत्कारों का भांडाफोड़ने हेतु कार्यक्रमों का आयोजन करते थे। मैंने ‘ल्योर ऑफ मिराकल्स’ नामक एक पुस्तक सत्य साईं बाबा पर लिखी। प्रकाशकों ने उसे छूने से मना कर दिया। इसलिए मैंने स्वयं ही उसका प्रकाशन किया और डा0 कोवूर ने उसका विमोचन किया। उनके साथ उस यात्रा में मैं भी था, क्योंकि वे बीमार थे और कई लोग उन्हें मार डालना चाहते थे। फिर मैं तार्किक संस्था का सदस्य बन गया। हम लोग सुदूर गांवों में जाते थे, जहां पर सबसे पहले मैं ध्यान आकर्षित करने के लिए अपना शरीर जलाता था, फिर हम अपने लेक्चर देते थे। इस तरह से यह शुरूआत हो गयी।
मैं कई स्वामियों से मिला, जिन्होंने मुझे कुण्डलिनी के विषय में सिखाना चाहा। कुण्डलिनी अथवा सैक्स एनर्जी शरीर में योग द्वारा सुशुम्ना नाड़ी में शून्य पैदा करके ऊपर चढ़ जाती है। वैज्ञानिक भाषा में वीर्य ऊपर चढ़ता है, पर यह नाड़ी कहां है? कहा जाता है यह एक मानसिक नाड़ी है, जो सिर्फ ध्यान द्वारा महसूस की जा सकती है, जोकि शुद्ध काल्पनिक बात है। सेक्स एनर्जी को तंत्र शक्ति में परिवर्तित नहीं किया जा सकता। ब्रह्मचर्य से प्रोटेस्ट ग्लैण्ड में बड़ी पीड़ा होती है। मैंने सारे योगियों और ऋषियों को धोखेबाज पाया। फिर मैं भी जादू के खेलों में रूचि लेने लगा। मैं भी चाहूं तो किसी भी संत या बाबा की तरह खूब सारा धन कमा सकता हूँ। मैं 1500 चमत्कार दिखा सकता हूँ, जबकि सामान्य सिद्ध पुरूष को 50-60 ही आते हैं।
1969 के बाद से डॉ0 कोवूर श्रीलंक से आकर चमत्कारों का भांडाफोड़ने हेतु कार्यक्रमों का आयोजन करते थे। मैंने ‘ल्योर ऑफ मिराकल्स’ नामक एक पुस्तक सत्य साईं बाबा पर लिखी। प्रकाशकों ने उसे छूने से मना कर दिया। इसलिए मैंने स्वयं ही उसका प्रकाशन किया और डा0 कोवूर ने उसका विमोचन किया। उनके साथ उस यात्रा में मैं भी था, क्योंकि वे बीमार थे और कई लोग उन्हें मार डालना चाहते थे। फिर मैं तार्किक संस्था का सदस्य बन गया। हम लोग सुदूर गांवों में जाते थे, जहां पर सबसे पहले मैं ध्यान आकर्षित करने के लिए अपना शरीर जलाता था, फिर हम अपने लेक्चर देते थे। इस तरह से यह शुरूआत हो गयी।
प्रश्न: सत्य साईं बाबा के चमत्कारों को विज्ञान द्वारा भंडाफोड़ करने में क्या हमेशा सफल होते हैं?
उत्तर: जब आप समिति से साईं बाबा का फोटो खरीदने जाते हैं, तो वे फ्रेम को पोछने का नाटक करते हैं। वास्तव में वे उसपर मरक्यूरिक क्लोराइड के घोल का लेप कर देते हैं। जब इस लेप वाला एल्यूमिनियम फ्रेम पानी (नमी) के संपर्क में आता है, तो उसमें से पवित्र भस्म या सलेटी पाउडर झड़ने लगता है। इससे उनके चमत्कारों की असलियत स्वयं सिद्ध हो जाती है।
एक बार मैं जब रोम गया, तो वहां के लोगों ने मुझे भारतीय संत समझा। मैंने उनकी हस्त रेखाएं पढ़ने का ढ़ोंग किया तो उन्होंने मुझे धन्यवाद देकर पैसे भी देने चाहे। आप नॉस्ट्राडमस को ही लें। उसकी भविष्यवाणियां अस्थिर और संदेहपूर्ण हैं। उनके विवेचकों ने उन भविष्यवाणियों में सत्यता का नाटक किया है और वह भी तब जबकि घटना घटित हो चुकी है, तभी उसकी चर्चा करने वाले प्रचार मचाते हैं, उसके पहले नहीं।
प्रश्न: आप हस्तरेखा शास्त्र और ज्योतिष विद्या को अविश्वसनीय क्यों ठहराते हैं, जबकि प्राय: सभी पढ़े-लिखे लोग भी जानकारी और ढ़ाढ़स के लिए इसकी ओर देखते हैं?
उत्तर: शरीर में जहां पर कोई जोड़ होता है, तो वहां की त्वचा ढ़ीली होती है, जिससे उस जोड़ को सहारा मिल सके। इस ढ़ीली त्वचा में स्वयं ही झुर्रियां पड़ जाएंगीं। यह तो इसपर निर्भर होता है कि आप हाथों का प्रयोग किस प्रकार करते हैं। जो व्यक्ति लिखते अधिक हैं, उनके अंगूठे के नीचे अधिक रेखाएं बन जाती हैं। पर जिन लोगों के हाथ ही नहीं होते, उनके भविष्य कैसे होते हैं? जिन लोगों के जोड अकड़ जाते हैं, तो उनकी हथेलियों पर रेखाएं नहीं होतीं। क्या उनका भविष्य भी नहीं होता? मेरे घर में एक बंदर है, जिसके हाथों पर विदेश जाने की रेखाएं बनी हुई हैं और अटूट धन की भी। एक बार मैं जब रोम गया, तो वहां के लोगों ने मुझे भारतीय संत समझा। मैंने उनकी हस्त रेखाएं पढ़ने का ढ़ोंग किया तो उन्होंने मुझे धन्यवाद देकर पैसे भी देने चाहे। आप नॉस्ट्राडमस को ही लें। उसकी भविष्यवाणियां अस्थिर और संदेहपूर्ण हैं। उनके विवेचकों ने उन भविष्यवाणियों में सत्यता का नाटक किया है और वह भी तब जबकि घटना घटित हो चुकी है, तभी उसकी चर्चा करने वाले प्रचार मचाते हैं, उसके पहले नहीं।
प्रश्न: आजकल जो धर्म का राजनीति से मेल हो रहा है, इस विषय में आपका क्या मत है?
उत्तर: इन्हीं दोनों के मेल के कारण वोट और नोट की वर्षा हो रही है। भाजपा का यह दावा कि भारतीय धर्म ही हिन्दु धर्म है, बिलकुल गलत है। भारत में कभी धर्म रहा ही नहीं है। सिर्फ दार्शनिक विचारधाराएं रही हैं। वेदों और उपनिषदों में भगवान का कोई जिक्र नहीं है, सिर्फ वाद-विवाद और चर्चाएं हैं।
ऋगवेद में एक अध्याय है ‘नासाडय सूत्र’, जिसमें यह बहस है कि क्या हमारा सृजन भगवान ने किया है और इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि हमारा सृजन गर्मी से हुआ और भगवान का जन्म इंसान के मन में हुआ है। भगवदगीता भी मूलरूप से नास्तिकता का दर्शन है। शंकराचार्य ने उसको आस्तिक दर्शन में परिवर्तित किया। ध्यान श्लोक के अनुसार, ‘ध्यान वर्तिता तथ गतेन मानस पश्यंतियम् योगिनो’ अर्थात भगवान सिर्फ मन में ही मिल सकता है और वह ही सत्य है। वह सिर्फ कल्पना में ही वास करता है। धर्म एक बड़ा व्यापार या धंधा है। इसलिए गीता को धर्म का चोगा उढ़ाया गया और उसे बौद्ध धर्म प्रारम्भिक दर्शन करने से कर्मण और अकात्मवाद की छाया से विलग कर दिया गया है।
नागपुर में एक बार जब मैंने ‘ऊँ’ को सृष्टि मंत्र (सृजन का चिन्ह) यानी यौन चिन्ह होने के विषय में व्याख्या की थी, तो 200 राष्ट्रीय स्वयं सेवक छात्रों की क्रुद्ध भीड़ मेरी ओर बढ़ी, तब मैंने उन्हें इस बात पर शांत किया कि वे मुझसे इस विषय पर बहस कर सकते हैं। जब मैं वहां बहस के लिए पहुंचा तो वे मेरी हूटिंग करने लगे। मैं भी हूटिंग करता हुआ और उनकी तरह पागलों की तरह उछलता हुआ स्टेज पर जा पहुंचा, इससे वे शांत हो गये। फिर मैंने ‘प्यार’ के बारे में बात कीं। इस बहस के बाद उन्होंने माना कि अब तक ‘प्यार’ में उनके लिए स्वार्थपूर्ण और पूंजी अधिकार की भावना थी। लेकिन वे अब तार्किक समुदाय के चहेते बन गये।
प्रश्न: आपका तार्किक आस्था में क्या आज भी विश्वास है?
उत्तर: मैं ‘दि इंडियन स्केप्टिक’ नामक पत्रिका निकालता हूँ। मैं 70 से अधिक टी0वी0 शो विदेशों में कर चुका हूं। परंतु यहां एक भी नहीं किया है। केरल के बाहर महाशक ही हमारा क्षेत्र है। यहां हमारी करीब बारह संस्थाएं हैं। ‘नेशनल काउंसिल फॉर साइंस एण्ड टेक्नोलॉजी कम्यूनिकेशन’ ने मुझे फैलोशिप भी दी है और उन्होंने मुझे उत्तरी भारत से जोड़ा है। हमारा कार्य इस प्रकार है:
1. व्याख्यान तथा प्रशिक्षण सत्र, कुछ चुने हुए छात्रों और अध्यापकों के लिए, जिनको बाद में प्रचारक शिक्षक के रूप में प्रस्तुत किया जा सके।
1. व्याख्यान तथा प्रशिक्षण सत्र, कुछ चुने हुए छात्रों और अध्यापकों के लिए, जिनको बाद में प्रचारक शिक्षक के रूप में प्रस्तुत किया जा सके।
2. कुछ फिल्म/टी0वी0 के प्रोड्यूसरों के साथ मिल कर जादुई खेलों, चमत्कारों की लाइब्रेरी खोलना, जिसमें उनका विस्तृत वैज्ञानिक विश्लेषण हो। आवश्यकता पड़ने पर एनीमेशन द्वारा भी दिखाने की व्यवस्था हो सके।
3. अगर संभव हो तो उक्त सामग्री के आधार पर नाटकीय सीरियलों का निर्माण करके वीडियो प्रोग्रामों द्वारा प्रसारित किया जाए।
4. प्राप्त सामग्री के आधार पर प्रकाशकीय सामग्री द्वारा ऊपर दी गयी (प्रथम) और (तृतीय) के अन्तर्गत कार्य को प्रेरणा दी जा सके।
रूढि़वादियों का सामना करना एक चुनौती है। जब वे अपने शरीर से तावीज और जनेऊ (पवित्र धागे) हटा देते हैं, तो मैं समझ लेता हूं कि उन तक पहुंच गया हूँ। इस प्रकार धर्म का मुकाबला तर्क से है, संवेदना से नहीं।
प्रश्न: यह डायल-ए-गुरू योजना क्या है?
उत्तर: आपको मालूम होगा कि निर्मला देवी श्रीवास्तव प्रथम ‘अवतारी नारी’ हैं, जिन्होंने प्रधानमंत्री के घर के बाहर धरना दिया है क्योंकि वे हमसे सुरक्षा चाहती थीं। हमने उनको ‘आपत्तिजनक विज्ञापन’ के चमत्कारी नुस्खों के अन्तर्गत एक नोटिस भेजा था और मेडिकल प्रेक्टिशनर एक्ट के अन्तर्गत भी, जिसमें यह स्पष्ट किया गा है कि लाइसेंस के बगैर वह कोई भी चिकित्सा नहीं कर सकतीं। हमने उनका भण्डाफोड़ किया।
मैं कोट्टराक्करा के एक प्रभाकर योगी से मिलने गया, जो सवयं को 800 वर्ष का बताता है, उसने मुझसे मिलने से इनकार कर दिया। उसके पास जवानी का एक फोटो था। 1980 में अपने को जप्पनम सिद्धन कहने वाला व्यक्ति श्रीलंका से आया और उसने दावा किया कि ईश्वर ही उसको नंगे सिर से सौ नारियल तोड़ पाने में मदद करते हैं। हमने उसे ध्यान से देखा तो पाया कि वह सिर्फ कच्चे नारियल ही तोड़ रहा था, जो हम भी तोड़ सकते थे। हमने उसके नारियलों का थैला बदल कर सख्त नारियलों वाला झोला उसको दे दिया। मंदिर में वह नारियलों को तोड़ने में सफल नहीं हो सका। झेंप मिटाने के लिए उसने कहा कि उसने सवेरे एक स्त्री को स्नान करते देखा था, इसलिए वह ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाया। पर लोग उसकी चाल समझ गये थे। इस योजना के तहत हमने सैकड़ों गुरूओं के चमत्कारों की पोल खोली। वे सारे मुकुंदानंद और अमृतानंद सबके सामने हमसे मिलने से इनकार करते हैं, बल्कि वे भूमिगत भी हो जाते हैं।
मैं कोट्टराक्करा के एक प्रभाकर योगी से मिलने गया, जो सवयं को 800 वर्ष का बताता है, उसने मुझसे मिलने से इनकार कर दिया। उसके पास जवानी का एक फोटो था। 1980 में अपने को जप्पनम सिद्धन कहने वाला व्यक्ति श्रीलंका से आया और उसने दावा किया कि ईश्वर ही उसको नंगे सिर से सौ नारियल तोड़ पाने में मदद करते हैं। हमने उसे ध्यान से देखा तो पाया कि वह सिर्फ कच्चे नारियल ही तोड़ रहा था, जो हम भी तोड़ सकते थे। हमने उसके नारियलों का थैला बदल कर सख्त नारियलों वाला झोला उसको दे दिया। मंदिर में वह नारियलों को तोड़ने में सफल नहीं हो सका। झेंप मिटाने के लिए उसने कहा कि उसने सवेरे एक स्त्री को स्नान करते देखा था, इसलिए वह ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाया। पर लोग उसकी चाल समझ गये थे। इस योजना के तहत हमने सैकड़ों गुरूओं के चमत्कारों की पोल खोली। वे सारे मुकुंदानंद और अमृतानंद सबके सामने हमसे मिलने से इनकार करते हैं, बल्कि वे भूमिगत भी हो जाते हैं।
प्रश्न: आप किस प्रकार अपना कार्य सम्पन्न होने की आशा करते हैं?
उत्तर: मेरी इच्छा है कि मैं एक ऐसा अनुसंधान केन्द्र खोलूँ, जिसमें सारे चमत्कार और तंत्र विद्या का प्रदर्शन हो और साथ-साथ व्याख्या भी। साथ ही धर्म, जादू, विज्ञान आदि का पुस्तकालय भी खोलूं। पर इन सबके लिए धन की आवश्यकता होती है और मैं खाली हवा से पैसे नहीं उपजा सकता।
(‘विज्ञान बनाम चमत्कार’ की भूमिका से साभार)अगर आपको 'तस्लीम' का यह प्रयास पसंद आया हो, तो कृपया फॉलोअर बन कर हमारा उत्साह अवश्य बढ़ाएँ। |
---|
*** आपका लेख समकालीन परिदृश्य के उन सवालों से रू-ब-रूबरू होता है, जो लंबे समय से हमारे समाज के केंद्र में रहा है।
जवाब देंहटाएंआवश्यक आलेख। सभी के पढ़ने के योग्य।
जवाब देंहटाएंइस तरफ सार्वजनिक प्रयास होने चाहिए ! बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसख्शियतों = शख्सियतों
जवाब देंहटाएंअली जी, शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंधर्म का बोध
जवाब देंहटाएंबी. प्रेमानंद जी की कोशिशों के बारे में जानकर ख़ुशी हुई .
जब गलत चीज़ को धर्म मान लिया जाता है तो उसका अंजाम यही होता है कि जब भी उसे तर्क और विज्ञानं की कसौटी पर परखा जाता है तो उसका पाखण्ड उजागर हो जाता है.
भारत में आम लोगों ने जिन चमत्कारों को धर्म मान लिया है , वास्तव में वे धर्म कभी थे ही नहीं . धर्म को यहाँ से लुप्त हुए बहुत अरसा हो चुका है. अब तो यहाँ प्राय: दर्शन और पाखण्ड ही विद्यमान है .
लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि यहाँ कभी धर्म था ही नहीं या आज यहाँ किसी के पास भी धर्म नहीं है.
आज भी यहाँ धर्म भी है और धर्म का चमत्कार भी है .
जो चमत्कार हम दिखाते हैं उसकी चेकिंग के लिए हरेक तर्कशील व्यक्ति आमंत्रित है .
आये और चेक करके देख ले कि उस जैसा चमत्कार वह कैसे दिखा सकता है ?
हम कोशिश करेंगे कि आप लोगों के लिए समय निकलकर इस चमत्कार को online भी सामने लाया जाए .
धर्म का एकमात्र शुद्ध स्रोत भी यही चमत्कार है . इससे जुड़ने के बाद ही मनुष्य को दर्शनों से मुक्ति मिलती और उसे वास्तविक धर्म की प्राप्ति होती है .
हम ईश्वर की चिंतन शक्ति से जन्मे हैं. हमारे मन में जो जन्म लेता है वह ईश्वर नहीं होता बल्कि ईश्वर के बारे में हमारी कल्पना होती है .
हरेक आदमी अपने ज्ञान और सामर्थ्य के मुताबिक कल्पना करता है और इस तरह बहुत सी कल्पनाएँ वुजूद में आ जाती हैं. इन्हीं के आधार पर मूर्तियाँ और चित्र बना लिए जाते हैं . इन चीज़ों की पूजा शुरू हो जाती है और ठगने वाले लोग इन्हें भोग लगाने के नाम पर फल और शराब इत्यादि का चढ़ावा मंगवाने लगते हैं . जिसे कम हुआ तो वे खुद खा लेते हैं और ज्यादा हुआ तो वे उसे फिर से बाज़ार में बेच लेते हैं . न तो जनता सुधारना चाहती है और न ही ये ठग उसे सुधारना चाहते हैं . यह धर्म नहीं है बल्कि धर्म के नाम पर धंधेबाजी है. खरबों रुपया हर साल इसमें खप जाता है जिससे कि गरीब भारत की गरीबी में लगातार इजाफा होता जा रहा है . लोगों का समय अलग बर्बाद होता है . इन क्रियाओं से लोगों का नैतिक और चारित्रिक विकास भी नहीं होता . चमत्कार की आशा में वे पुरुषार्थ से भी महरूम रह जाते हैं और धर्म से भी .
बी. प्रेमानंद जी का जागरूकता अभियान सराहनीय है. कोई सच्चा मिलेगा तो उन्हें धर्म का बोध भी मिल जायेगा .
आपके ब्लॉग का लिंक 'ब्लॉग कि ख़बरें' पर लगाया गया .
http://blogkikhabren.blogspot.com/
बहुत सुन्दर जानकारी .... इसमें जो भी कहा गया है सब सत्य है ... प्रेमानंद जी को सलाम !
जवाब देंहटाएंप्रेमानन्द जी खरी बातें कहीं हैं। हर जागरूक व्यक्ति को इनके बारे में सोचना चाहिए।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जी....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी मिली, जो लोग अगर किसी विज्ञानं की शक्तियों को चमत्कार बताकर ठग रहे होतो उनका भंडाफोड होना ही चाहिए |
जवाब देंहटाएंइस्लाम के बारे में क्या पढ़ा है साहब जी ने ?
लगता है की कुछ पढ़ा ही नहीं है ?
अगर पढ़ा है तो कुरान की भी व्याख्या होनी चाहिए | जैसा की हर पाठक चाहता है ( कुछ को छोड़ कर ) |
आशा है जल्द ही प्रस्तुति होगी !
इंतजार है भाई जरा जल्दी करना |
बहुत सुन्दर जानकारी|सभी के पढ़ने के योग्य। धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंअच्छे है आपके विचार, ओरो के ब्लॉग को follow करके या कमेन्ट देकर उनका होसला बढाए ....
जवाब देंहटाएंप्रेमानंद जी अच्छा कार्य कर रहे हैं।
जवाब देंहटाएंदुर्लभ जानकारी... पढ़कर सोचने पर विवश हुई ..अच्छी लगी .सबों तक बात पहुंचनी चाहिए ...
जवाब देंहटाएंरजनीश जी,
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट के लिए आपकी जितनी भी प्रशंसा की जाय कम है !
समाज में जागरूकता लाने के लिए अत्यंत उपयोगी पोस्ट है !
आभार !
बहुत ही बढ़िया पोस्ट.
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट का शीर्षक इस पंक्ति से कुछ मिलता जुलता होना चाहिए था -
"मैंने सारे योगियों और ऋषियों को धोखेबाज पाया।..."
सोचिए, लाखों लोगों की भीड़ की भीड़ को ये योगी और ऋषि कैसे धोखा देते रहते हैं. - सिर्फ हमारी अज्ञानता के कारण. अज्ञात के भय के कारण!
रतलामी जी, शीर्षक तो उत्तम बताया है।
जवाब देंहटाएंआभार।
--यह व्यक्ति..प्रेमानन्द एक भ्रमित,अग्यानी व बिना पढालिखा, मूर्ख इन्सान है, जिसे किसी भी विषय़, शास्त्र, ग्रन्थ की कोई जानकारी नहीं है..जो इस आलेख से स्पष्ट है---बस जो बात सभी जानते हैं कि वस्तु-परक चमत्कार हाथ की सफ़ाई होती है उसकी आड लेकर अपन धन्धा चला रहा है...और जाकिर जी तो हैं ही उसी लाइन में जो ढूंढ- कर एसे व्यर्थ के लोगों को लाते हैं..
जवाब देंहटाएं१----मैडम ब्लावत्सकी और कुरान, गीता और बाईबिल के ग्रन्थों में डुबो डाला...
...मूर्ख ने वेदों को नहीं पढा ?...
२- मैंने किसी भगवान को अपनी मदद करते नहीं पाया, मदद करने वाले सभी इंसान थे---क्या इस मूर्ख को नहीं पता कि भगवान किसी की मदद स्वयं नहीं किसी माध्यम के द्वारा करता है
...सभी महान मनुष्य भी एसा ही करते हैं..
३- कुण्डलिनी अथवा सैक्स एनर्जी--कुंडलिनी सेक्स इनर्जी नही है
--इन्हें कुछ पता ही नहीं...
४--शरीर में योग द्वारा सुशुम्ना नाड़ी में शून्य पैदा करके ऊपर चढ़ जाती है। वैज्ञानिक भाषा में वीर्य ऊपर चढ़ता है
,..सब गलत सलत कथन हैं इस व्यक्ति को विग्यान के बारे में भी कुछ नहीं पता..
४- ब्रह्मचर्य से प्रोटेस्ट ग्लैण्ड में बड़ी पीड़ा होती है
--किसने कहा ..एसा कुछ भी नहीं है..
५- जो व्यक्ति लिखते अधिक हैं, उनके अंगूठे के नीचे अधिक रेखाएं बन जाती हैं।
---एक दम असत्य है।
६- मैंने सारे योगियों और ऋषियों को धोखेबाज पाया
--इनको सिर्फ़ ढोंगी बावा लोग, पाखन्डी, जादूगर, मज़मेदार ही मिले हैं...रिषि /योगी नहीं..
६- हम लोग सुदूर गांवों में जाते थे, जहां पर सबसे पहले मैं ध्यान आकर्षित करने के लिए अपना शरीर जलाता था, फिर हम अपने लेक्चर देते थे। इस तरह से यह शुरूआत हो गयी।
---सभी एसे ढोंगी लोगों की शुरूआत सुदूर गावों से ही होती है
७-भारत में कभी धर्म रहा ही नहीं है। सिर्फ दार्शनिक विचारधाराएं रही हैं। वेदों और उपनिषदों में भगवान का कोई जिक्र नहीं है, सिर्फ वाद-विवाद और चर्चाएं हैं..
---इसे वेदों, धर्म व अपने देश भारत के बारे में भी कुछ भी नहीं पता, दर्शन दूर की बात है
८--ऋगवेद में एक अध्याय है ‘नासाडय सूत्र’, जिसमें यह बहस है कि क्या हमारा सृजन भगवान ने किया है और इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि हमारा सृजन गर्मी से हुआ--
----यह नासदीय सूत्र है और एक सूत्र..अध्याय नहीं...जिसेने वेद पढे ही नहीं उसे क्या पता..
९-भगवदगीता भी मूलरूप से नास्तिकता का दर्शन है--- नास्तिक नही...धर्म, कर्म व व्यवहार के समन्वय का दर्शन है..
--यह व्यक्ति..प्रेमानन्द एक भ्रमित,अग्यानी व बिना पढालिखा, मूर्ख इन्सान है, जिसे किसी भी विषय़, शास्त्र, ग्रन्थ की कोई जानकारी नहीं है..जो इस आलेख से स्पष्ट है---बस जो बात सभी जानते हैं कि वस्तु-परक चमत्कार हाथ की सफ़ाई होती है उसकी आड लेकर अपन धन्धा चला रहा है...और जाकिर जी तो हैं ही उसी लाइन में जो ढूंढ- कर एसे व्यर्थ के लोगों को लाते हैं..
जवाब देंहटाएं१----मैडम ब्लावत्सकी और कुरान, गीता और बाईबिल के ग्रन्थों में डुबो डाला...
...मूर्ख ने वेदों को नहीं पढा ?...
२- मैंने किसी भगवान को अपनी मदद करते नहीं पाया, मदद करने वाले सभी इंसान थे---क्या इस मूर्ख को नहीं पता कि भगवान किसी की मदद स्वयं नहीं किसी माध्यम के द्वारा करता है
...सभी महान मनुष्य भी एसा ही करते हैं..
३- कुण्डलिनी अथवा सैक्स एनर्जी--कुंडलिनी सेक्स इनर्जी नही है
--इन्हें कुछ पता ही नहीं...
४--शरीर में योग द्वारा सुशुम्ना नाड़ी में शून्य पैदा करके ऊपर चढ़ जाती है। वैज्ञानिक भाषा में वीर्य ऊपर चढ़ता है
,..सब गलत सलत कथन हैं इस व्यक्ति को विग्यान के बारे में भी कुछ नहीं पता..
४- ब्रह्मचर्य से प्रोटेस्ट ग्लैण्ड में बड़ी पीड़ा होती है
--किसने कहा ..एसा कुछ भी नहीं है..
५- जो व्यक्ति लिखते अधिक हैं, उनके अंगूठे के नीचे अधिक रेखाएं बन जाती हैं।
---एक दम असत्य है।
६- मैंने सारे योगियों और ऋषियों को धोखेबाज पाया
--इनको सिर्फ़ ढोंगी बावा लोग, पाखन्डी, जादूगर, मज़मेदार ही मिले हैं...रिषि /योगी नहीं..
६- हम लोग सुदूर गांवों में जाते थे, जहां पर सबसे पहले मैं ध्यान आकर्षित करने के लिए अपना शरीर जलाता था, फिर हम अपने लेक्चर देते थे। इस तरह से यह शुरूआत हो गयी।
---सभी एसे ढोंगी लोगों की शुरूआत सुदूर गावों से ही होती है
७-भारत में कभी धर्म रहा ही नहीं है। सिर्फ दार्शनिक विचारधाराएं रही हैं। वेदों और उपनिषदों में भगवान का कोई जिक्र नहीं है, सिर्फ वाद-विवाद और चर्चाएं हैं..
---इसे वेदों, धर्म व अपने देश भारत के बारे में भी कुछ भी नहीं पता, दर्शन दूर की बात है
८--ऋगवेद में एक अध्याय है ‘नासाडय सूत्र’, जिसमें यह बहस है कि क्या हमारा सृजन भगवान ने किया है और इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि हमारा सृजन गर्मी से हुआ--
----यह नासदीय सूत्र है और एक सूत्र..अध्याय नहीं...जिसेने वेद पढे ही नहीं उसे क्या पता..
९-भगवदगीता भी मूलरूप से नास्तिकता का दर्शन है--- नास्तिक नही...धर्म, कर्म व व्यवहार के समन्वय का दर्शन है..
कुछ को धोखा खाने का शौक होता है आप कितना ही जागरूक क्यों ना बना दें
जवाब देंहटाएंसराहनीय कार्य ,आभार
पुस्तक आने पर बताइयेगा
जवाब देंहटाएंमैं खरीदना चाहूँगा
सावन के अंधे को हरा ही हरा दीखता है
जवाब देंहटाएंहमें हीजनबर्ग को ध्यान में रखकर बातो को समझना पड़ेगा
regards
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंदिल के दरवाज़े और ज़हन की गांठे खोलता साक्षत्कार .प्रस्तुति के लिए साधुवाद
जवाब देंहटाएंये ब्लॉग विज्ञानं का है या अधर्म का .बार बार धर्म विरोधी पोस्ट दाल कर भारत की जड़ों और भारत की आत्मा पर प्रहार किये जा रहे हैं
जवाब देंहटाएंभगवान के अवतार के साथ साथ पैगम्बरों से भी बचने की आवश्यकता है !
जवाब देंहटाएंबी.प्रेमानंद जी जैसे महान वैज्ञानिक की विचारधारा व तर्कशीलता को कोटि कोटि नमन ।भारत को अन्धविस्वास से मुक्त करने की पहल में उनका योगदान अविस्मरणीय रहेगा।
जवाब देंहटाएं