एंटीबॉयोटिक के प्रभाव और दुष्प्रभाव पर केंद्रित एक शोधपरक लेख।
यदि आपसे यह सवाल पूछा जाए कि एच.आई.वी. और एंटीबॉयोटिक में कौन ज्यादा खतरनाक है तो शायद आप प्रश्नकर्ता की समझ पर हंसें कि कैसा बेवकूफ आदमी है, जो एच.आई.वी. और एंटीबॉयोटिक को एक तराजू पर रख रहा है। जबकि दुनिया जानती है कि एच.आई.वी. संक्रमण होने पर शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता समाप्त हो जाती है, जिससे बीमार व्यक्ति को छोटी सी बीमारी होने पर भी उसका ठीक होना दूभर हो जाता है। जबकि एंटीबॉयोटिक वे दवाएं हैं, जो हानिकारिक बैक्टीरिया को मारने के लिए रोगी को दी जाती हैं।
क्यों ली जाती हैं एंटीबॉयोटिक दवाऍं
आम तौर से बैक्टीरिया से होने वाली तमाम बीमारियों के उपचार में एंटीबॉयोटिक दवाओं का प्रयोग किया जाता है। लेकिन डॉक्टर की फीस बचाने के चक्कर में आदमी कोई भी बीमारी होने पर मेडिकल स्टोर से एंटीबॉयोटिक दवाएं खरीद कर खा लेता है। लेकिन इस चक्कर में अक्सर ये दवाएं या तो ओवर डोज हो जाती हैं, या फिर कम मात्रा में ली जाती हैं, जिससे रोगी को बड़ी मात्रा में इसके दुष्परिणाम झेलने पड़ते हैं। जब बीमारी की गम्भीरता के मुकाबले कम पॉवर की दवाएं ली जाती हैं, अथवा बीमारी ठीक हो जाने पर पूरा कोर्स किये बिना ही दवा बंद कर दी जाती है, तो बैक्टीरिया के कमजोर पड़ जाने के कारण बीमारी तो ठीक हो जाती है, लेकिन बैक्टीरिया पूरी तरह से समाप्त नहीं होते हैं, बल्कि वे धीरे-धीरे उसके प्रति रजिस्टेंस डेवलप कर लेते हैं।
यही कारण है कि 20 साल पहले जो एंटीबॉयोटिक दवाएं फोर्थ जनरेशन के तौर पर प्रयोग में लाई जाती थीं, अब सामान्य बीमारियों में फर्स्ट जनरेशन मानकर दी जाने लगी हैं। इसके दुष्परिणामस्वरूप मच्छर की दवाओं का असरहीन होना तथा टीबी जैसी बीमारी का खतरनाक रूप ले लेना हमारे सामने है। और जब ये दवाएं अधिक पॉवर की ले जाती हैं, तो उनके तमाम तरह के साइड इफेक्ट पैदा हो जाते हैं। परिणामस्वरूप रोगी के शरीर में अन्य खतरनाक बीमारियां जन्म ले लेती हैं।
यही कारण है कि 20 साल पहले जो एंटीबॉयोटिक दवाएं फोर्थ जनरेशन के तौर पर प्रयोग में लाई जाती थीं, अब सामान्य बीमारियों में फर्स्ट जनरेशन मानकर दी जाने लगी हैं। इसके दुष्परिणामस्वरूप मच्छर की दवाओं का असरहीन होना तथा टीबी जैसी बीमारी का खतरनाक रूप ले लेना हमारे सामने है। और जब ये दवाएं अधिक पॉवर की ले जाती हैं, तो उनके तमाम तरह के साइड इफेक्ट पैदा हो जाते हैं। परिणामस्वरूप रोगी के शरीर में अन्य खतरनाक बीमारियां जन्म ले लेती हैं।
घातक हो सकता है बिना डॉक्टरी परामर्श के दवा लेना
डॉक्टरों का मानना है कि आमतौर से 70 प्रतिशत मरीज ऐसे होते हैं, जो दवाओं के साइड इफेक्ट की वजह से बीमार होते हैं। ऐसा सिर्फ एंटीबॉयोटिक दवाओं के कारण ही नहीं होता, बल्कि अन्य तमाम एलोपैथिक दवाओं के कारण भी यही होता है। इसके पीछे मुख्य वजह है कि लोगों द्वारा बिना डॉक्टरी सलाह के दवा लेकर खा लेने की प्रवृत्ति। देखने में आता है कि लोग बदनदर्द होने पर ब्रूफेन, सर्दी होने पर सीट्रिजिन, खांसी होने पर कोई भी कफ सीरप, नींद न आने पर एल्प्राजोल, पेटदर्द होने पर मेट्रोजिल आदि दवाएं ले लेते हैं। जबकि लोगों को पता नहीं होता है कि इन दवाओं के साइड इफेक्ट भी होते हैं। और गलत ढंग से लिये जाने पर ये फायदा के स्थान पर नुकसान ज्यादा करती हैं।
डॉक्टरों का कहना है कि ब्रुफेन शरीर मे दर्द होने पर ली जाने वाली सबसे कॉमन दवा है। जबकि इसकी वजह से गैस्ट्राइटिस हो सकती है तथा किडनी तथा लिवर फेल्योर हो सकता है। इसी प्रकार मेट्रोजिल के लम्बे समय तक इस्तेमाल से कैंसर तथा पेरीफेरल न्यूरोपैथी (नसों की समस्या), एल्प्राजोल से शरीर खोखला, आत्महत्या के विचार आना, निमुसलाइड से लिवर तथा किडनी फेल्योर होना, डिस्प्रिन से गैस्ट्राइटिस, किडनी फेल्योर, स्टेरायड से मांसपेशी व हड्डी की कमजोरी, संक्रमण की आशंका तथा सीट्रीजिन-एविल से निद्रा व सुस्ती के प्रभाव देखने को मिलते हैं।
ऐसे में हमें क्या करना चाहिए
जाहिर सी बात है कि एंटीबॉयोटिक ही नहीं यदि कोई भी दवा सही तरीके से इस्तेमाल न की जाए, तो उससे फायदा की तुलना में नुकसान ज्यादा होता है। इसलिए इस बात को गांठ बांध लें कि बिना डॉक्टरी सलाह के कोई भी दवा (यहां तक कि विटामिन और मल्टीविटामिन्स भी) न लें और डॉक्टर द्वारा किसी भी दवा का जितना कोर्स बताया जाए, उसे पूरा अवश्य करें। और हां, सिर्फ एलोपैथी पर ही निर्भरता न रखें। यदि बीमारी बहुत ज्यादा गम्भीर न हो तो इलाज की अन्य विधियों (आयुर्वेद, नेचुरोपैथी, होम्योपैथी) का भी प्रयोग करें।
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जागरूक करती अच्छी पोस्ट ..
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया जानकारी ! आपने सही कहा लोगों को खुद दवा खा लेने की आदत है ... ये बहुत गलत बात है ...
जवाब देंहटाएंआभार इस जानकारी के लिये।
जवाब देंहटाएंआज दवा बीमारी से ज्यादा नुकसान देह होता जा रहा है...लोगों को अपने खान पान और रहन सहन को सही कर बीमार होने से बचना ही सबसे बड़ी दबाई है...
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर जानकारी दी हैं अपने, मेरा खुद का मानना हैं कि दवावो से जितना बचा जाये उतना ही अच्छा हैं,
जवाब देंहटाएंमें दवावो का कम से कम इस्तेमाल करता हूँ, बुखार , सर दर्द या पेट कि गड़बड़ी के दौरान तो में सिर्फ दवा खरीद के जेब में रख लेता हूँ, कि बहुत ज्यादा जरुरत पड़ने पर ही लूँगा, और एक दो दिन में अपने आप ही ठीक हो जाता हूँ,
Nice article.. Not a single synthetic drug is free from more or less side effects.. Any drug if taken for a longer period of time too will develop resistance towards that drug.. So it is always recommended to change the molecules after every 2 or 3 months if person has to go with long term drug therapy.. Drugs taken by self without prescription has emerged as an alarming problem in our societies due to lack of health counseling.. People must be educated by health care experts upon such type of the issues to stop them mis-using medicinal drugs in same way like chocolates and candies.. In well known british journal named, 'Lancet' has recently published an article upon increasing bacterial resistance in people of Delhi due to bacteria named, "New Delhi metallo beta lactamase 1(NDM-1)", carrying an antibiotic resistance enzyme with them, fail against every potent antibiotic.. This new strain has emerged due to such kind of resistancy emerged due to misuse of drugs...
जवाब देंहटाएंअच्छा किया आपने यह जानकारी दी, वैसे मैं तो कभी भी बिना डॉक्टर की सलाह के दवाई लेता ही नहीं और छोटी बीमारी में तो डॉक्टर के पास भी नहीं जाता, आराम, उपवास और देशी इलाज जिन्दावाद
जवाब देंहटाएंछोटी मोटी बीमारी के लिए तो रसोई-घर् सबसे बढिया दवाख़ाना है...
जवाब देंहटाएंबेहद सराहनीय स्टोरी |
जवाब देंहटाएंरजनीश, आप बहुत अच्छा कम कर रहे हो |
आपके पोस्ट वास्तविक अर्थों में विज्ञान संचार के उद्देश्यों के काफी करीब हैं |
एक वैज्ञानिक अगर विवेक का सहारा लिए बिना और वहीँ दूसरी ओर एक अनपढ़ किसान अपने विवेक को अप्लाई करके जीवन के छोटे-बड़े निर्णय करता है तो ऐसे में उस किसान में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का होना माना जायेगा |
इतने जरुरी मसले पर रजनीश के इस पोस्ट पर महज थोड़े लोगों की प्रतिक्रिया आई और कुछ दिनों पहले मुझे याद है रजनीश के किसी पोस्ट पर इस ब्लॉग पर खूब घमासान हुई थी | उसमें लोग विज्ञान के मूल मुद्दे से कहीं और भटक गए थे | देश के एक अग्रणी (सोकाल्ड) साइंस ब्लॉग पर वैसी दकियानूसी बातों पर नोक-झोंक की स्थिति अफसोसजनक लगी थी मुझे |
एंटीबायोटिक, लोगों के अपने स्वास्थ्य से जुडी दवाएं हैं जिस पर रजनीश ने लिखा और इस पर सैकड़ों लोगों की प्रतिक्रिया आनी चाहिए थी मगर भारत में उल-जलूल बातें बड़ी गंभीरता से की जाती हैं और गंभीर मुद्दे लोग हाशिये पर डाल देते हैं |
उन सैकड़ों लोगों से मेरी अपील है कि अगर वे मेरी यह प्रतिक्रिया पढ़ें तो रजनीश के इस प्रयास पर अपनी राय जरुर दें | क्योंकि आपकी प्रेरणा इन जैसे अनेक रजनीश का हौसला बढ़ाएंगी और आपके दिशादर्शन के बगैर ये विज्ञान संचार की अपनी मुहीम से विमुख भी हो सकते हैं |
रजनीश, आप अपने काम में डटे रहो | इतिहास स्वयं सुयोग्य व्यक्ति और विचार को अपने में जोड़ लेती है | इसमें उछल-कूद कर अपनी पहचान बनाने वालों की दाल नहीं गलती |
मनीष मोहन गोरे
विज्ञान संचारक
बहुत अच्छी पोस्ट है....
जवाब देंहटाएंबचपन में मेरी तबियत इतनी खराब रहती थी कि एंटीबॉयोटिक दवाओं का आदी हो गया था..और वो भी हाई पावर.फिर एक डॉक्टर से मुलाकात हुई...उनसे मेरे पापा इतने प्रभावित हुए कि उसी समय से हम हमेशा उनके पास ही सलाह या इलाज के लिए जाते हैं...उन्होंने पापा को सलाह दी थी कि छोटी छोटी बिमारियों के लिए और वैसी अवस्था जहाँ कोई इमजेंसी न हो, नेचुरोपैथी, होम्योपैथी का ही इस्तेमाल करें.
एक उपयोगी एवं सामयिक पोस्ट। विज्ञान लेखन के नाम पर सिर्फ जानकारियां बांटना आवश्यक नहीं, जानकारी ऐसी हो,जो मनुष्य के लिए उपयोगी हो। मनीष जी के विचारों पर भी ध्यान दिया जाए।
जवाब देंहटाएंमनीष भाई, गम्भीर और जरूरी चीजों के बारे में बोलने की हिम्मत कम लोग ही कर पाते हैं।
जवाब देंहटाएं:)
शुक्रिया।
बिना डाक्टर की सलाह के दवा जहर का काम करती है अतःदवा का सही डोज ही फ़ायदा करता है अच्छी पोस्ट |बधाई |मेरे ब्लॉग पर आना के लिए आभार |आशा
जवाब देंहटाएंएकदम सही सलाह। दिक्कत यही है कि हर आदमी रोग से,चाहे वह कितना ही छोटा क्यों न हो,तत्काल मुक्त होना चाहता है। एलोपैथ यहीं चांदी काटता है।
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी बहुत बहुत आभार
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी है --मै स्वयम डिस्प्रिन लेने की आदि हूँ --आज से इसे त्यागने की कोशिश करुगी --धन्यवाद
जवाब देंहटाएं!
बहुत बढ़िया जानकारी. हम लोग भी प्राकृतिक चिकित्सा में विश्वास रखते है और दवाइया तभी लेते है जब ज्यादा बड़ी परेशानी हो और साल एक बार किसी प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र पर कुछ दिन बिता कर शरीर की सफाई करते है. मेरा ये मानना है कि HIV को भी इस चिकित्सा द्वारा ठीक किया जा सकता है
जवाब देंहटाएंआप कि बहुत महरबानी
जवाब देंहटाएंWell done
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंgood
जवाब देंहटाएंgood knowledge
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा सुझाव
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा सुझाव
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