कुछ लोगों का मानना है कि विज्ञान सिर्फ प्रयोगशालाओं और वैज्ञानिकों के दिमागों में ही बसता है। लेकिन सच यह है कि विज्ञान हमारे चारों ओर रचा...
कुछ लोगों का मानना है कि विज्ञान सिर्फ प्रयोगशालाओं और वैज्ञानिकों के दिमागों में ही बसता है। लेकिन सच यह है कि विज्ञान हमारे चारों ओर रचा-बसा हुआ है। वह हमारे उठने में, बैठने में, खाने में, पीने में, चलने में, सोने में या यूँ कहें कि जीवन के हर क्षेत्र में मौजूद है। जरूरत है सिर्फ उसे समझने के दृष्टिकोण की, आवश्यकता है उसे समझने की सद्इच्छा की।

हमारे चारों ओर मौजूद चीजों और परिस्थितियों के उदाहरण देते हुए डॉ0 जैन ने इस पुस्तक में बहुत ही रोचक ढंग से यह बताने की कोशिश की है कि विज्ञान हमारे चारों ओर बिखरा हुआ है। यह पुस्तक विज्ञान के बेहद कठिन सिद्धांतों को अतयंत सरल ढंग से सामने रखती है और बहुत ही सहज ढ़ंग से अपनी बात कहती चलती है। डॉ जैन बात से बात निकालने की कला में माहिर हैं और बात ही बात में विज्ञान के सिद्धांत समझाने की कला में निष्णात। उन्होंने अपनी इन दोनों शैलियों का प्रयोग आलोच्य पुस्तक में बखूबी किया है।
हमारे आसपास घटित होने वाली घटनाओं के सहारे विज्ञान के नियमों और पदार्थों की प्रकृति को समझाने में डॉ0 जैन का जवाब नहीं। वे 1912 में हुई ‘टाइटैनिक’ नामक विश्व प्रसिद्ध पानी के जहाज की दुर्घटना की विवेचना करते हुए लिखते हैं- ‘बरफ पानी से हल्की होने के कारण तैरती है। घरों में शरबत के गिलास में बरफ के क्यूब्स को तैरते हुए देखा जा सकता है। अगर ध्यान से देखें तो बरफ के क्यूब का लगभग 90 प्रतिशत भाग शरबत में डूबा हुआ मिलता है। अटलांटिक महासागर में सन 1912 में टायटेनिक जहाज की दुर्घटना इस तथ्य का सही आकलन न कर पाने से ही हुई। महासागर में तैर रहे बरफ के डूबे हुए विशाल हिम-खण्ड से जहाज टकरा कर दुर्घटनाग्रस्त हो गया।’ (पृष्ठ: 40)
यह पुस्तक आईसेक्ट द्वारा मध्यप्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद की ‘अनुसृजन परियोजना’ के अन्तर्गत निर्मित है, जिसमें कुल 22 अध्याय हैं:- 1-कैसे हुई होगी शुरूआत?, 2-हमारा घर, 3-हमारा परिवेश और हमारी दिनचर्या, 4-अब कुछ देखें और ध्यान दें, 5-जिज्ञासा के केन्द्र बनते कुछ प्रश्न, 6-ऊर्जा, 7-प्रकाश और रंग, 8-पदार्थों में नजर आते कुछ गुण, 9-खनिज पदार्थ, 10-ईंधन बनते कुछ पदार्थ, 11-कुछ और पदार्थ, 12-पदार्थों की आंतरिक संरचना, 13-विशिष्ट कार्बन और सिलिकॉन, 14-कंपोजिट और प्लास्टिक, 15-स्वाद, सेहत और सफाई में लगे कुछ पदार्थ, 16-बैटरी के आविष्कार से क्रान्ति, 17-ऊर्जा रूपांतरण के ज्ञान से दूरसंचार, 18-बदली-बदली दुनिया, 19-दैनिक जीवन के अनुभव और परिवहन क्षेत्र, 20-कुछ स्थानीय समस्याऍं और विज्ञान, 21-समापन कथन, 22-चलते-चलते।
कुछ लोग जन्म से जिज्ञासु प्रवृत्ति के होते हैं और जन्म से ही वैज्ञानिक प्रवृत्ति लेकर पैदा होते हैं। ऐसे ही लोग आगे चलकर आइंसटाइन और डार्विन के रूप में जाने जाते हैं। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जिनका अपने जीवन में न तो विज्ञान से कभी वास्ता रहता है और न ही ऊँची शिक्षा-दीक्षा से, लेकिन अचानक उनके जीवन में ऐसा समय और परिस्थितियां आ जाती हैं कि वे कुछ ऐसा कर गुजरते हैं, जिसे देखकर बड़े-बड़े वैज्ञानिक दंग रह जाते हैं। हमारे आसपास ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं है। लेखक ने पुस्तक के एक अध्याय में इस तरह के अनेक प्रतिभावान लोगों के कार्यों से परिचय कराकर ऐसे हजारों-हजार लोगों को प्रेरित करने का काम किया है, जो अपने जीवन में कुछ करने तमन्ना तो रखते हैं, लेकिन सुविधाओं के अभाव में अपने कदम आगे नहीं बढ़ा पाते हैं।
अपनी रोचक प्रस्तुति और सार्थक सोच के कारण यह पुस्तक ‘विज्ञान के प्राइमर’ के रूप में सामने आई है। सिर्फ विद्यार्थियों को ही नहीं, बल्कि उन लोगों को भी यह पुस्तक अवश्य पढ़नी चाहिए, जो विज्ञान में रूचि रखते हैं और अपने आसपास के जीवन को समझना चाहते हैं। पुस्तक का मुद्रण साफ-सुथरा है और मूल्य आम आदमी की जेब को ध्यान में रख कर निर्धारित किया गया है। मुझे आशा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है कि यह पुस्तक पाठकों की अपेक्षाओं पर खरा उतरेगी और विज्ञान संचार के क्षेत्र में एक मील का पत्थर साबित होगी।
पुस्तक: घर-घर में विज्ञान
लेखक: डॉ0 कपूरमल जैन,
श्रृंखला संपादक: संतोष चौबे
प्रकाशक: आईसेक्ट, स्कोप कैम्पस, एन0एच0-12, होशंगाबाद रोड, भोपाल-26, फोन-0755-2499657, 3293214, ईमेल-aisect_bpl@sancharnet.in
पृष्ठ: 142
मूल्य: 80 रूपये
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उपयोगी पुस्तक की जानकारी देने का आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी पुस्तक की लेखक सहित बहुत उपयोगी जानकारी दी आपने । आभार सहित...
जवाब देंहटाएंजाकिर जी, मेरे एक दोस्त हैं यहाँ, वो मेडिकल कोडर का काम करते हैं और विज्ञानं के लगभग हर बातों का अच्छा ज्ञान है उन्हें...उनसे बहुत कुछ सीखा-जाना है मैंने...आपकी बात एकदम सही है, विज्ञान हमारे चारों ओर मौजूद है...
जवाब देंहटाएंटाइटैनिक जहाज के बारे में मालूम था...एक किसी किताब में पढ़ा था..
अच्छी पोस्ट रही ये...
आईसेक्ट वाले अच्छा काम कर रहे हैं !
जवाब देंहटाएंआभार इस जानकारी के लिये।
जवाब देंहटाएंविज्ञान आओ करके सीखे
जवाब देंहटाएंसुसंगठित सुव्यवस्थित तथा क्रमबद्ध ज्ञान ही विज्ञान है जो परीक्षण पर आधारित है
आभार इस जानकारी के लिये...
जवाब देंहटाएंआपको नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंVivek Jain vivj2000.blogspot.com
बहुत अच्छा कार्य। बधाई एवं शुभकामनाएं।
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