कहा जाता है कि ऋषि विश्वामित्र ने एक बार कुपित होकर बृह्मा द्वारा रचित इस सृष्टि के समानान्तर अपनी सृष्टि रचने का संकल्प लिया था और उसपर ...
कहा जाता है कि ऋषि विश्वामित्र ने एक बार कुपित होकर बृह्मा द्वारा रचित इस सृष्टि के समानान्तर अपनी सृष्टि रचने का संकल्प लिया था और उसपर कार्य प्रारम्भ कर दिया था। इस समाचार को सुनकर न सिर्फ देवलोक में खलबली मच गयी थी वरन विश्वामत्रि के क्रोध को शान्त करने के लिए उपाय भी सोचे जाने लगे थे। बाद में जब देवी-देवताओं और ऋषि-मुनियों ने विश्वामित्र को मनाया, तो वे शान्त हुए और उन्होंने समानान्तर सृष्टि के रचने के कार्य को बंद किया।
इस उद्धरण से भले ही और कोई बात निकल कर सामने आती हो अथवा नहीं, पर इतना तो समझ में आता है कि विश्वामित्र में इतनी काबलियत थी कि उन्होंने सृष्टि के रचने जैसे वृहत कार्य को अपने हाथ में लिया।
छोटे स्तर पर देखा जाए, तो जीव वैज्ञानिक भी यही कार्य करते हैं। वे जीव-जंतुओं की विभिन्न नस्लों का न सिर्फ अध्ययन करते हैं, वरन दो या दो से अधिक नसलों को मिलाकर नई नस्लों के जीव/वनस्पतियों का निर्माण करते हैं। शायद इस नई नस्ल के निर्माण के कारण ही जीव विज्ञान को ईश्वर के कार्य में हस्तक्षेप माना गया और प्राचीन काल में जहां खगोलशास्त्र, भौतिक विज्ञान एवं कीमियागीरी पर तो काफी कार्य हुए, पर जीव विज्ञान लगभग उपेक्षित पड़ा रहा।
यदि वैश्विक स्तर पर देखा जाए, तो जीव विज्ञान को विज्ञान की अन्य इकाइयों के समक्ष लाने का कार्य मुख्य रूप से दो ही वैज्ञानिकों ने किया है। इनमें से पहला नाम है चार्ल्स डार्विन और दूसरा नाम है जोहान ग्रेगर मेंडल। डार्विन ने एक सम्पन्न परिवार में जन्म लेने के बावजूद चिकित्सा विज्ञान के पेशे को ठुकराया और प्रकृति विज्ञान में रूचि ली, जिसके फलस्वरूप विकासवाद का महत्वपूर्ण सिद्धांत दुनिया के सामने आया। इसके विपरीत मेंडल ने एक निर्धन परिवार में जन्म लेने के बावजूद पादरी रहते हुए भी आनुवांशिकी के क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थापनाएं दीं।
एक अर्थ में देखा जाए, तो मेंडल ने डार्विन से ज्यादा महत्वपूर्ण कार्य किया। इसका पहला कारण यह है कि मेंडल के आनुवाशिकी के सिद्धांत से ही डार्विन के विकासवाद में पूर्णता आई। दूसरा कारण यह है कि डार्विन के सिद्धांत को चुनौती देने वालों की आज भी कमी नहीं है, पर मेंडल का सिद्धांत जीव विज्ञान का एक स्थापित नियम बन चुका है।
मेंडल का पारिवारिक जीवन कैसा था, उन्होंने पादरी रहते हुए भी कैसे इतनी महत्वपूर्ण खोजें कैसे कीं, इसपर हिन्दी में अभी तक कोई स्तरीय पुस्तक उपलब्ध नहीं थी। सम्भवत: इसी कमी को दृष्टिगत रखते हुए 'विज्ञान प्रसार' ने हाल ही में मेंडल के सम्पूर्ण जीवन से परिचय कराती एक रूचिकर पुस्तक का प्रकाशन किया है, जिसका नाम है 'ग्रेगर मेंडल'।
'विज्ञान प्रसार' ने गत वर्षों में वैज्ञानिक विषयों पर रोचक शैली में विविध विषयों पर स्तरीय पुस्तकों का प्रकाशन किया है। 'ग्रेगर मेंडल' इसी श्रृंखला की एक कड़ी के रूप में हमारे सामने आई है, जिसमें चिर परिचित विज्ञान लेखक विनोद कुमार मिश्र ने ग्रेगर मेंडल के जीवन के विविध पक्षों और उनके शोधों पर विस्तार से प्रकाश डाला है।
विनोद कुमार मिश्र हिन्दी के चर्चित विज्ञान लेखक के रूप में जाने जाते हैं, जिन्होंने 3 वर्ष की उम्र में विकलांग हो जाने के बावजूद अपनी हिम्म्त नहीं हारी और रूड़की विश्वविद्यालय से इलेक्ट्रानिक्स एवं दूरसंचार में बी0ई0 करने के बाद में एम0बी0ए0 की भी परीक्षा पास की। इसके साथ ही साथ उन्होंने विज्ञान लेखन में पर्याप्त रूचि ली और अनेकानेक विषयों पर उत्कृष्ट पुस्तकों का सृजन किया।
हिन्दी में पुस्तकों के सम्बंध में प्राय: पाठकों की यह भी शिकायत रहती है कि वे स्तरहीन कागज पर मुद्रित की जाती हैं, जिससे वे कुछ समय के बाद ही पीली पड़ने लगती हैं। किन्तु 'विज्ञान प्रसार' की पुस्तकें न सिर्फ इस कमी से भी सर्वथा मुक्त है वरन कम मूल्य के कारण आम जनता तक अपनी पहुंच बनाने में भी सक्षम हैं। आलोच्य पुस्तक विज्ञान के विद्यार्थियों ही नहीं बल्कि अभिभावकों, शिक्षकों और समस्त पाठकों के लिए उपयोगी हो गयी है। हमें आशा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है कि 'विज्ञान प्रसार' का प्रयास पुस्तक प्रेमियों के बीच पसंद किया जाएगा।
पुस्तक -ग्रेगर मेंडल
लेखक - विनोद कुमार मिश्र
प्रकाशक- विज्ञान प्रसार, ए-50, इंस्टीट्यूशनल एरिया, सेक्टर-62, नोएडा-201307
फोन- 0120-2404430/35
पृष्ठ- 64
मूल्य- 50 रूपये।
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जी हाँ विश्व मित्र एक वैज्ञानिक ही थे.उन्होंने अपनी प्रयोगशाला में गौरैय्या चिड़िया,श्री फल-नारियल और सीता (जो राम की पत्नी बनीं) का सृजन कराया था.उन्होंने एक सेटेलाईट भी अंतरिक्ष में स्थापित कराया जो उस समय के शासक त्रिशंक्कू के नाम पर आज भी परिभ्रमण कर रहा है,जबकि आधुनिक वैज्ञानिकों के बनाए सेटेलाईट एक अवधी के बाद नष्ट हो जाते हैं
जवाब देंहटाएंअच्छी लगी चर्चा.धन्यवाद.कभी अन्य प्रकाशकों की भी पुस्तकें शामिल करें तो अच्छा रहेगा.
जवाब देंहटाएंjankari bhari achchi post
जवाब देंहटाएंrochak.. :)
जवाब देंहटाएंसुन्दर लेख, बढ़िया जानकारी !
जवाब देंहटाएंजानकारी लेकिन अर्थपूर्ण और सारगर्भित ...शुक्रिया आपका
जवाब देंहटाएं@लेखक विनोद कुमार मिश्र ने ग्रेगर मेंडल के जीवन के विविध पक्षों और उनके शोधों पर विस्तार से प्रकाश डाला है। ..
जवाब देंहटाएंसही कह रहे हैं.
जानकारी परक सार्थक पोस्ट.
जवाब देंहटाएंसुन्दर लेख, बढ़िया जानकारी !
जवाब देंहटाएंमहत्वपूर्ण जानकारी. आप धन्य हैं.
जवाब देंहटाएंचलिए अच्छा हुआ वर्ना तय करना मुश्किल हो जाता कि किसकी वाली सृष्टि में रहें :)
जवाब देंहटाएंजल्द ही मिश्र जी की किताब जुगाड कर के पढते हैं !
मेंडल और उनकी जीवनी पर प्रकाशित पुस्तक के संबंध में अच्छी जानकारी।
जवाब देंहटाएंfacebook.com/hindisongs
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