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अच्छी पोल खोली है
जवाब देंहटाएंdabirnews.blogspot.com
मै इस तरह के कई और जादू अरे माफ़ कीजियेगा चमत्कार जानती हु |
जवाब देंहटाएंझूठी कहानी है,---- जल म्रत आत्माओं को जमीन पर गिराकर( अर्ध्य देना )दिया जाता है , जिसका वैग्यानिक अर्थ, धरती, वायु, अन्तरिक्ष को पर्यावरण क्षति से बचाना होता है, ये सब ही देवताओं की श्रेणी में आते है।
जवाब देंहटाएं----वास्तव में ईसाई सन्तों ने इसी प्रकार के चमत्कार सामान्य अपढ/ कबीलाई जनता को दिखा कर अपने को देवीय-शक्ति बताकर अपना मतलब गांठा था। देश भर में कोई भी अभिजात्य,पढा-लिखा विद्वान तबका कभी भी ईसाई नहीं बना।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं----सन्त थामस एक कार्पेन्टर था जो ५२ ऎ डी में भारत आया, ७२ ऎ डी में उसे मद्रास में म्रत्यु दंड देदिया गया उसकी चमत्कारों व धर्म विरोधी गतिबिधियों के लिये...
जवाब देंहटाएं---It was to a land of dark people he was sent, to clothe them by Baptism in white robes... It was his mission to espouse India to the One-Begotten.
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Thomas was a skilled carpenter and was bidden to build a palace for the king. However, the Apostle decided to teach the king a lesson by devoting the royal grant to acts of charity and thereby laying up treasure for the heavenly abode.
वाह, अच्छी पोल खोली आपने...ऐसे ऐसे और कुछ अंश बाटिये इधर
जवाब देंहटाएंगुप्ता जी की मान लो ...
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक पोस्ट. संभवतः यहाँ मुद्दा यह है की किस तरह लोगों को तथाकथित पहुंचे हुए लोगों के कुछ चमत्कारों से भ्रमित किया जाता रहा है. वैसे तो संत थोमस का भारत आगमन ही विवादास्पद है.
जवाब देंहटाएंजाकिर अली जी, जरा बताईये तो सही कि क्या आपका ये'अन्धविश्वास उन्मूलन अभियान' क्या सिर्फ हिन्दु धार्मिक परम्पराओं तक ही सीमित है या फिर ईसाई या इस्लामिक कुरीतियाँ भी इसके दायरे में आती हैं ?
जवाब देंहटाएंकोई पीपल पर जल चढाए तो अन्धविश्वास, सूर्य/पितरों को अर्ध्य दे तो वो अन्धविश्वास, ज्योतिष-हस्तरेखा जैसी विद्या को मानता हो तो अन्धविश्वास, मन्त्र जपना अन्धविश्वास, कोई हवन-यज्ञ करता हो तो वो भी अन्धविश्वास........यानि कि कुल मिलाकर जितने भी हिन्दू धार्मिक विश्वास हैं, वे सब के सब अन्धविश्वास की श्रेणी में आते हैं.
आप इन "बोध-कथाओं" की आड में जो सन्देश देना चाहते हैं...वो बिना किसी अवरोध के हम तक बखूबी पहुँच रहा हैं. अब तो हमें भी विश्वास हो चला है कि सभी अन्धविश्वासों, कुरीतियों की जड सिर्फ हिन्दू धर्म और उसके धार्मिक विश्वास ही हैं......अभी जाकर धर्मपत्नि को बोलते हैं कि भागवान छोड ये पाखंड. ये सूर्य, पीपल और पितरों का जल देना, ये मन्त्र-वन्त्र पढना, ये हवन-यज्ञ करना..इनमें कुछ नहीं रखा.सब अन्धविश्वास है. कल से नमाज पढा करेंगें, पशुओं की कुरबानी दिया करेंगें...कुल पुण्य तो मिलेगा, कर्म सुधरेंगें. इन पाखंडों में क्या धरा है?
bhaqrat vasiyon ko ese hee bevkuf banaya isaiyon ne
जवाब देंहटाएंआभार !
जवाब देंहटाएं------वाह वत्स जी वाह!खूब कहा...--वस्तुतः यदि कोई हिन्दू धर्म के कर्म-कान्डों की हकीकत जानना चाहता है तो उसे वेद,उपनिषद, पुराण , फ़िर अन्य ग्रन्थ क्रमिक रूप में पढने चाहिये---तभी इनकी सही वैग्यानिकता ग्यात होती है---और इतना समय कौन देना चाहता है ग्यान को-सब सिर्फ़ जानकारी(नालेज) के लिये पढते हैं और सर्वग्याताभाव में लिखने लगते हैं।
जवाब देंहटाएं:(
जवाब देंहटाएं"वत्स" सर इतना बिगड़ क्यूं रहे है… समझ नहीं आता… पाखंड तो जहाँ भी जिस भी धर्म में हो उसका विरोध होना ही चाहिये… पोइंट तो सिर्फ़ यही है… शुरुआत कहीं से तो होगी ना ?
और ज्यादातर जगह… जो "तथाकथित" वैज्ञानिक कारण बताये जाते हैं वो सब तो जाने कहाँ चले गये… ना वो आज के समय के हिसाब से contemporary है… अब तो बस दिखावा रह गया है…
आप देखिये… सब के सब एक ही दिन धर्म कर लेना चाह्ते हैं… गाय माता पर एक ही दिन इतना सम्मान उमड़ पड़ता है कि सड़कें चारे से अट जाती हैं… चाहे सालभर वे भूखी मरें… किन्हीं विशेष दिनों पर ये सब ढोंग करने का क्या वैज्ञानिक कारण है?
… बुराई तो किसी भी धर्म में हो… हिन्दु मुस्लिम सिख इसाई… ई नई चालबो! हम तो सबको ही माइक्रोस्कोप से देखेंगे!
--- इस आलेख की लेखिका रश्मि जी हैं या जाकिर जी---? ढोंग व गलत होने में फ़र्क है, यदि माइक्रोस्कोप के लेन्स साफ़-सुथरे हैं तो यह फ़र्क अवश्य दिखेगा.....हां जैसा वत्स जी ने कहा एक तरफ़ा द्रष्टि नहीं चलेगी...
जवाब देंहटाएंऔर अगर सही में कोई वैज्ञानिकता होती है इन कर्मकान्डों में तो उसे इस तरह छुपाने कि आवश्यता क्यों पड़ी?
जवाब देंहटाएंउपरोक्त पोस्ट की सफ़ाई मे ने जो कहा गया है, उसके बारे में पूछ्ना चाहुंगी कि पानी अगर पर्यावरण के लिये ही नीचे गिराया जा रहा है तो आत्माओं का नाम लेकर झूठ क्यों बोलना??
अब हर आम इन्सान या तो रिसर्च करता फ़िरे या आंख मून्दकर भरोसा करे… कोई तीसरा रास्ता है?
:)
जवाब देंहटाएंwell, मैं इस पोस्ट की लेखिका नहीं पर… अपने विचार तो व्यक्त कर सकती हूँ न ?
और आप से बिल्कुल सहमत… एक तरफ़ा द्रष्टि नहीं चलेगी !
बराबर लागू होती है ये बात हर जगह… ध्यान देने के लिये धन्यवाद।
Rashmi ji, Aapke jawabon ke liye aabhar. In dino Gorakhpur men hoon (Saali sahiba ke vivah men) isliye samay nahi de pa raha hoon.
जवाब देंहटाएंVats ji, hamen jo jaankari milti hai, prakasjit ki jaati hai. Yadi ap anvishwashon ki pol kholne wali koi samagra (kisi bhi dharm ki) bhejen, to hum use bhi prakashit karenge.
धर्म कोई भी बुरा नहीं उसकी व्याख्या करने वाले अगर स्वार्थी होतें हैं तो वह बुरा हो जाता है......
जवाब देंहटाएंइस ब्लॉग पोस्ट और मिली टिप्पणियों द्वारा "पोल खोलने" के प्रयास को पढकर समझ नहीं आया कि इसे अपने देश के दानिशमंदों पर कटाक्ष मानूं या लिखने और बिना सोचे समझे टिप्पणी करने वालों की समझ बूझ पर सर पीटूं।
जवाब देंहटाएंज़रा सा सोचिये और बताईये, क्या थोमा को यहां आने से पहले पता था कि हमारे देश में इस तरह जल का अर्घ देने की प्रथा है? क्या वह अपने साथ इस प्रथा को स्वार्थ के लिये उपयोग करने के लिये वह तथाकथित ’जादूई’ लोटा बनवा के लाया था? यदि उसने ऐसे लोटे का इस्तेमाल भी किया, तो क्या उस समय मेरे देश में मदारी या जादूगर नहीं थे जो इसकी 'पोल' तुरंत खोल सकते? क्या तब के नंबूदरी ब्राहमण इतने बेवकूफ थे कि मदारीयों के एक साधारण से खेल को नहीं समझ सके? क्या एक लोटा पानी गायब होना इतनी बड़ी बात थी कि वे अपना धर्म बदल बैठे? क्या उस समय पर किसी ने थोमा की ’पोल’ खोलने का प्रयास नहीं किया होगा? क्या पिछले लगभग दो हज़ार साल से मेरे देश के लोग एक तथाकथित ’जादूई’ लोटे के भ्रम का शिकार बने हुए हैं और अब तक नहीं चेते हैं?
दूसरी तरह से सोचें तो यदि थोमा ने वहीं के किसी जन का लोटा लेकर यह करनामा किया, और ब्लॉग के लेखक के अनुसार, यह हुआ कि लोटे से पानी गायब हो गया, तो फिर निश्चय ही वह ’जादूई’ लोटा तो नहीं रहा होगा और यह आश्चर्यक्रम फिर हुआ ही होगा; जिसकी ’पोल’ न उस समय के लोग खोल सके न आज खुली है, क्योंकि यह कोई भ्रम या धोखा था ही नहीं, यह परमेश्वर के नाम और सामर्थ का प्रदर्शन था।
यहीं पर एक आम किंतु बिल्कुल गलत धारणा, जिसकी ओर भी कुछ टिप्पणी करने वालों ने इशारा किया है, का भी समाधान कर दूं। प्रभु यीशु न तो कोई धर्म देने आये थे, न उन्होंने कोई धर्म दिया और न कभी अपने अनुयायियों से किसी धर्म परिवर्तन का कार्य करने को कहा। वे सारे संसार के लिये पापों से मनफिराव, मुक्ति और उद्धार का मार्ग देने आये थे। उन्होंने धर्म नहीं मन बदलने की बात कही। मसीही विश्वास और इसाई धर्म में बहुत फर्क है।
इस संबंध में आप से अनुरोध है कि www.samparkyeshu.blogspot.com के लेखों को देखिये। इस ब्लॉग के लेखक ने मसीही विश्वास, धर्म और धर्म परिवर्तन से संबंधित गलत धारणाओं की बहुत रोचक और स्पष्ट रीति व्याख्या की है।
यह मेरी चुनौती है कि बाइबल में प्रभु यीशु द्वारा दी गई धर्म परिवर्तन की एक भी शिक्षा निकाल कर दिखा दीजिये। अभी दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।
धन्यवाद
aksd54
aksd जीआपने सही जगह पर सही शब्दों में सही बातों को लिखके बहुत अच्छा किया है | आपको बहुत बहुत धन्यवाद् |
हटाएंसही बात यह है की यीशु मसीह बिज्ञान को साबित करने जगत में नहीं आए परन्तु बिज्ञान उनकी शिक्षाओं को प्रमाणित अवश्य करता है |
वाह, अच्छी पोल खोली आपने...
जवाब देंहटाएं”’अब हर आम इन्सान या तो रिसर्च करता फ़िरे या आंख मून्दकर भरोसा करे… ..’
जवाब देंहटाएं--अपके कथन में ही आपका जबाव है..हर आम इन्सान को कर्म कान्डों की वैग्यानिकता नहीं समझाई जासकती .....कोई भी वकील , चिकित्सक, सर्जन, कवि.वैग्यानिक..जन सामान्य को अपने प्रोफ़ेशन की वैग्यानिक व्याख्या नहीं समझाते..बस करने का परामर्श देते हैं, जन सामान्य यदि इतना समय व्याख्या समझने में लगायेगा तो अपना कार्य कब करेगा फ़िर विशेष्ग्य की क्या आवश्यकता है..यही कर्मकान्ड व ग्यान कान्ड में फ़र्क है....। हज़ारों श्रन्गार प्रसाधनों, दवाओं आदि पर सिर्फ़ वैग्यानिक नाम लिखा होता है न कि जन सामान्य के समझने के लिये, और हिन्दुस्तान में तो अन्ग्रेज़ी में जिसे ९८% जन सामान्य नहीं समझपाता...क्या इसे वैग्यानिक अन्धविश्वास कहा जाय.....
----अत्माओं का नाम इसलिये कि आत्माएं( अपना सेल्फ़, आत्म, मानव स्वयं) संतुष्ट रहे... यह मनोविग्यान की बात है। दर्शन के अनुसार आत्माएं इन्हीं मेरे द्वारा बताए गये देवों--जल, वायु, अन्तरिक्ष में निवास करतीं है...
----भारतीय षड दर्शन व उपनिषदें पढें तो सारे कन्सेप्ट साफ़ होजायेंगे...
---AKSD ने बिल्कुल सत्य कहा है जो हर धर्म के लिये सत्य है...
If you are open to having a guest blog poster please reply and let me know. I will provide you with unique content for your blog, thanks.
जवाब देंहटाएंडॉ॰ श्याम गुप्ता जी से सहमत हूँ कि तर्पण के लिये जल नीचे गिराया जाता है ऊपर नहीं उछाला जाता।
जवाब देंहटाएंसन्त थॉमस ही नहीं पुराने समय में सभी ईसाई प्रचारकों ने भोले-भाले लोगों को मूर्ख बनाकर धर्म-परिवर्तन किया। उदाहरण के लिये पुराने समय में ईसाई स्कूलों में बच्चों को पहले किसी हिन्दू भगवान की मूर्ति से टॉफी माँगने को कहा जाता था जो कि नहीं मिलती थी फिर यीशू की मूर्ति से माँगने को कहा जाता था जो कि मिल जाती थी (मूर्ति में इसके लिये व्यवस्था की होती थी)। फिर भोले बच्चों को बताया जाता था कि देखो तुम्हारे भगवान नकली हैं टॉफी भी नहीं देते, हमारे असली हैं।
अब लोग शिक्षित और समझदार हो चुके हैं इसलिये इनकी ये हरकतें नहीं चलती।
@Dr. Shyam Gupta Sir, You're right.. lekin ye post ab bhi utni hi relevant hai.. kyunki pol dharm ki nahi kholi ja rahi.. dhongiyo ki kholi ja rahi hai.. aur anjane me hi karmkaando ko bachate bachate log paakhando ko bhi badhaawa de rahe hain... ye bhi to galat hai na !
जवाब देंहटाएंbahut hi unfortunate hai ye ki dharm ka naam leke log chhal karte hain.. isse to sabhi sehmat honge.. log ab shikshit aur samajhdaar jo ho chuke hain... :)
--सही,... परन्तु यदि धर्म-निरपेक्ष बात होती तो यह धर्मान्तरण के सदर्भ में नहीं होनी चाहिये, सारे नम्ब्रूदिपाद ब्राह्मण , ईसाई बन गये का अर्थ यही होगा कि हिन्दू धर्म ही गलत था.... अतः एसे आलेख लिखते समय वस्तु स्थिति का ग्यान व ध्यान रखना चाहिये...
जवाब देंहटाएंePandit ji,
जवाब देंहटाएंविनम्र निवेदन है कि aksd ji ने जो चुनौती अपनी टिपण्णी के अंत में दी है, क्या आप उसे स्वीकार करना चाहेंगे?
दूसरी बात, सभी पाठकों से अनुरोध है कि संसार की प्राचीनतम संस्कृति और संसार को ज्ञान का खज़ाना देने वाले मेरे देश के लोगों को, केवल अपनी बात साबित करने के लिए, कृपया इतना मूर्ख और मंदाबुधि मत मानिये और बताइए वे कि ऐसी बेवकूफी भरी बातों द्वारा जीवन के इतने बड़े निर्णय लेने वाले हों|
यह मेरी नज़र में मेरे देशवासियों के ज्ञान का अपमान है!
कृपया संकीर्ण बुद्धि और भ्रम को परखना सीखिए, परखिये, फिर टिपण्णी कीजिये|
धन्यवाद
रोज कि रोटी
isai isee tarah ka dhoong phailakar hinduon ko bewakuf banate hain
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