नोट: यदि आप यह मानते हैं कि शोषण करना सिर्फ पुरूषों का मौलिक अधिकार है, तो कृपया इस पोस्ट को न पढ़ें। सबसे पहले मैं यह क्लियर कर दूँ कि ...
नोट: यदि आप यह मानते हैं कि शोषण करना सिर्फ पुरूषों का मौलिक अधिकार है, तो कृपया इस पोस्ट को न पढ़ें।
सबसे पहले मैं यह क्लियर कर दूँ कि मैं न तो कोई नारीवादी हूँ और न ही नारी विरोधी। अगर आप 'तस्लीम' पर मेरे पूर्व लेखों को पढ़ते रहे हैं, तो शायद यह समझ पाएँ हों कि जो भी कुछ गलत होता है, अन्यायपूर्ण होता है, उसके विरोध में लिखना मेरी प्रवृत्ति है। यदि आप इसी भावना से यह लेख पढ़ते हैं, तभी इस लेख की मूल भावना को समझ पाएँगे।
तो अब आते हैं अपने मुद्दे पर। क्या सिर्फ पुरूष ही यौन शोषण के दोषी होते हैं?
हालाँकि यह आम धारणा है कि पुरूष स्वभावत: अधिपत्यवादी होते हैं और जो भी व्यक्ति, वस्तु अथवा सम्पत्ति उसके सम्पर्क में आती है, वे उसपर पूर्ण अधिकार करने के लिए उतावले हो जाते हैं। वैसे यह धारणा सर्वथा अनुचित भी नहीं है। मेरी नजर में इसका कारण है पुरूषों को विकासक्रम में मिला जीन का पारम्परिक ढ़ाँचा, और उसकी परवरिश का सामाजिक ताना-बाना।
लेकिन यह व्यवहार सिर्फ पुरूषों की बपौती नहीं रहा है। महिलाओं ने सभी क्षेत्रों में पुरूषों की बराबरी के साथ ही साथ इस क्षेत्र में भी अपने कदम मजबूती से रख दिये हैं। अगर आपको मेरी बातों पर यकीन नहीं हो रहा है, तो इस सत्य घटना को ध्यान से पढ़ें:
मेरे एक मित्र हैं, जो एक सरकारी विभाग में सेक्सन अफसर के पद को विभूषित हैं। उनके सेक्सन में कुल पाँच लोग काम करते हैं, एक महिला व चार पुरूष। जैसे ही वे दूसरे सेक्शन से ट्रांस्फर होकर नए सेक्सन में पहुँचे, तो वहाँ पर उनका सामना एक ऐसी महिला कर्मचारी से हुआ, जो न तो समय से कभी आफिस आती थी और न नियत समय तक रूक कर काम ही करती थी। हमारे मित्रवर ठहरे नियम कानून के पक्के आदमी, अत: उन्होंने एक दो-बार डाँटा फटकारा। जब उस महिला ने देखा कि उसकी दाल ऐसे नहीं गलने वाली, तो उसने अपने दूसरे हथकंडे अपनाने लगी।
कभी वह अपने बॉस के लिए घर से उनकी पसंद का छोला चावल ले आती, तो कभी सूजी का हलवा। साथ ही साथ वह अपने बॉस के साथ कुछ अतिरिक्त निकटता भी दर्शाने लगी। हंसकर बातें करना, बॉस के केबिन में अपने ऊपरी वस्त्रों को लापरवाही से बिखरा देना और कभी-कभी जान बूझकर उनके हाथों को छू लेना।
हमारे मित्रवर भी कोई विश्वामित्र तो थे नहीं, सो उनके सारे नियम कानून धराशायी हो गये। वह महिला अपने पूर्व के नियमानुसार अपननी सुविधा के समय से आने और जाने लगी। इसपर उसके संगी-साथियों ने अपने बॉस से ऐतराज किया, तो मित्र महोदय ने पुन: उस महिला को कसना चाहा। इसपर उसने चंडी का रूप ले लिया और खुले आम अपने बॉस पर यौन शोषण का आरोप लगा दिया। अपने आरोप में उसने यहाँ तक कहा कि मेरे बॉस मुझे समय समय पर प्रताड़ित करते हैं और शारीरिक सम्बंध बनाने के लिए दबाव डालते हैं। हालत है कि मित्रवर को कार्यालय से निलम्बित कर दिया गया है और उनके खिलाफ जाँच चल रही है।
जब से मुझे यह खबर मिली है, मैं सोच में पड़ गया हूँ और यह सवाल बराबर मेरे दिमाग में कौंध रहा है कि क्या यौन शोषण के लिए महिला दोषी नहीं हो सकती? अगर हाँ, जैसा कि इस केस में स्पष्ट है, तो इसके विरूद्ध पुरूष क्या कर सकता है? ऐसे मामले में उसके साथी-संगाती तो थोड़िए उनकी पत्नी तक उन्हें शक की निगाह से देखने लगी है और अब उन्हें अपने बच्चों से नजरें मिलाने में शर्म आने लगी है। क्या आप लोग बता सकते हैं कि इस विषय पर मेरे मित्र क्या कर सकते हैं?
यहाँ पर एक सवाल यह भी कि जब सरकार नारी यौन शोषण के लिए कड़े कदम उठाने जा रही है, तो क्या उसे इस तरह के मामलों के बारे में भी नहीं सोचना चाहिए? आप इस बारे में क्या सोचते हैं, कृपया अपने दुराग्रह से मुक्त विचारों को हमारे साथ अवश्य साझा करें। शायद आपके विचार मेरे मित्र की जिंदगी में नई रौशनी में मददगार हो सकें।
लेकिन यह व्यवहार सिर्फ पुरूषों की बपौती नहीं रहा है। महिलाओं ने सभी क्षेत्रों में पुरूषों की बराबरी के साथ ही साथ इस क्षेत्र में भी अपने कदम मजबूती से रख दिये हैं। अगर आपको मेरी बातों पर यकीन नहीं हो रहा है, तो इस सत्य घटना को ध्यान से पढ़ें:
मेरे एक मित्र हैं, जो एक सरकारी विभाग में सेक्सन अफसर के पद को विभूषित हैं। उनके सेक्सन में कुल पाँच लोग काम करते हैं, एक महिला व चार पुरूष। जैसे ही वे दूसरे सेक्शन से ट्रांस्फर होकर नए सेक्सन में पहुँचे, तो वहाँ पर उनका सामना एक ऐसी महिला कर्मचारी से हुआ, जो न तो समय से कभी आफिस आती थी और न नियत समय तक रूक कर काम ही करती थी। हमारे मित्रवर ठहरे नियम कानून के पक्के आदमी, अत: उन्होंने एक दो-बार डाँटा फटकारा। जब उस महिला ने देखा कि उसकी दाल ऐसे नहीं गलने वाली, तो उसने अपने दूसरे हथकंडे अपनाने लगी।
कभी वह अपने बॉस के लिए घर से उनकी पसंद का छोला चावल ले आती, तो कभी सूजी का हलवा। साथ ही साथ वह अपने बॉस के साथ कुछ अतिरिक्त निकटता भी दर्शाने लगी। हंसकर बातें करना, बॉस के केबिन में अपने ऊपरी वस्त्रों को लापरवाही से बिखरा देना और कभी-कभी जान बूझकर उनके हाथों को छू लेना।
हमारे मित्रवर भी कोई विश्वामित्र तो थे नहीं, सो उनके सारे नियम कानून धराशायी हो गये। वह महिला अपने पूर्व के नियमानुसार अपननी सुविधा के समय से आने और जाने लगी। इसपर उसके संगी-साथियों ने अपने बॉस से ऐतराज किया, तो मित्र महोदय ने पुन: उस महिला को कसना चाहा। इसपर उसने चंडी का रूप ले लिया और खुले आम अपने बॉस पर यौन शोषण का आरोप लगा दिया। अपने आरोप में उसने यहाँ तक कहा कि मेरे बॉस मुझे समय समय पर प्रताड़ित करते हैं और शारीरिक सम्बंध बनाने के लिए दबाव डालते हैं। हालत है कि मित्रवर को कार्यालय से निलम्बित कर दिया गया है और उनके खिलाफ जाँच चल रही है।
जब से मुझे यह खबर मिली है, मैं सोच में पड़ गया हूँ और यह सवाल बराबर मेरे दिमाग में कौंध रहा है कि क्या यौन शोषण के लिए महिला दोषी नहीं हो सकती? अगर हाँ, जैसा कि इस केस में स्पष्ट है, तो इसके विरूद्ध पुरूष क्या कर सकता है? ऐसे मामले में उसके साथी-संगाती तो थोड़िए उनकी पत्नी तक उन्हें शक की निगाह से देखने लगी है और अब उन्हें अपने बच्चों से नजरें मिलाने में शर्म आने लगी है। क्या आप लोग बता सकते हैं कि इस विषय पर मेरे मित्र क्या कर सकते हैं?
यहाँ पर एक सवाल यह भी कि जब सरकार नारी यौन शोषण के लिए कड़े कदम उठाने जा रही है, तो क्या उसे इस तरह के मामलों के बारे में भी नहीं सोचना चाहिए? आप इस बारे में क्या सोचते हैं, कृपया अपने दुराग्रह से मुक्त विचारों को हमारे साथ अवश्य साझा करें। शायद आपके विचार मेरे मित्र की जिंदगी में नई रौशनी में मददगार हो सकें।
Helpful blog, bookmarked the website with hopes to read more!
जवाब देंहटाएंzaakir bhaayi aadaab aapki bat bilkul so tka shi he yhi kuch sb jgh he jo apne likhaa he . akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंजाकिर अली रजनीश, यही है आपका असली चेहरा, जिसे आपने झूठी कहानी से गढ़ा है।
जवाब देंहटाएंजाकिर अली रजनीश, यही है आपका असली चेहरा, जिसे आपने झूठी कहानी से गढ़ा है।
जवाब देंहटाएंजाकिर अली रजनीश, यही है आपका असली चेहरा, जिसे आपने झूठी कहानी से गढ़ा है।
जवाब देंहटाएंआदरणीय बेनामी भाई/बहना, यूँ अनर्गल प्रलाप करना उचित नहीं है। आपको जो कुछ कहना है, स्पष्ट रूप में कहें और बेहतर होगा कि सामने आकर कहें। मैंने आपके सामने एक घटना रखी है और उसके बारे में विचार माँगे हैं। अगर आपको लगता है कि यह घटना काल्पनिक है, तो भी इसे काल्पनिक मान कर ही जवाब देने की कृपा करें कि यदि किसी के साथ ऐसा हो जाए, तो वह क्या करे? और अगर आप ऐसा मानते हैं कि ऐसा किसी के साथ हो ही नहीं सकता, तो फिर इतना जरूर कहूँगा कि आप मनुष्य नहीं हो सकते, अवश्य ही फरिश्ते होंगे, तभी शायद इस दुनिया के बारे में ठीक से नहीं जानते।
जवाब देंहटाएंऐसे मामलों में अनुशासनात्मक कार्रवाई हेतु पृष्ठभूमि बनायीं जानी चाहिए थी.
जवाब देंहटाएंघटना सही भी हो तो इससे लम्बे चौडे निष्कर्ष नही निकाले जा सकते ! हाँ इतना ज़रुर है कि कोई एक वर्ग 100 प्रतिशत दोषी नहीं हो सकता पर...यौन शोषण के मामले में पुरुषों का डोमीनेंस तो है ही !
जवाब देंहटाएंआप के मित्र को क़ानूनी सलाह की जरुरत है और ये काम तो कानून का जानकार ब्लोगर ही कर सकता है |
जवाब देंहटाएंजाकिर भाई ,आपके मित्र यही डिजर्व करते हैं अगर उन्हें देश का कानून नहीं पता है
जवाब देंहटाएंशुरू में मजे किये बाद में पैतरा दूसरा -यह नहीं ठीक भाई -
किसी के खातिर छूट दीजिये ,कायम रहिये उसी पर
नहीं फिर छूट मत ही दीजिये
हम सब भी अपने आफिस में यही करते रहे हैं
कभी किसी नारी के प्रति खुद रूचि मत दिखाईये
और आफिस में कभी नहीं
हाँ सावधानी अपेक्षित है ही -अगर विचार साम्य नहीं है तब और भी क्यूंकि प्रचारित यही किया जाएगा कि चूँकि मैंने न कह दिया था -महज इस खातिर ये बन्दा पीछे पड़ा हुआ है -यह बात दीगर है कि मत विभिन्नता का कारण वह न नही है !
जवाब देंहटाएंपुरुष के गिरने की सीमा है नारी की नहीं -अव्वल वह गिरती नहीं और अगर गिर गयी तब हश्र अंतहीन बन जाता है हिंस्र बन जाती है खूंखार और पाशविक !
जाकिर भाई,
जवाब देंहटाएंआपका मित्र यदि अपने चरित्र को ढीला न करता तो यह दशा न होती।
पहले तो इंद्रिय-विषय का दास हुआ, फ़िर यह प्रलाप?
हां, अतिश्योक्ति के लिये उस महिला पर कार्यवाही भी अभिप्रेत है।
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जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबात जा यहाँ तक आ गयी की कौन सही कौन ग़लत तो कुछ ज़रा कुछ बातें दर्ज की जाएं.
जवाब देंहटाएं१) वो महिला कर्चारी सही समय पे नहीं आते थी. --मतलब काम के प्रति इमानदार नहीं थी.
२) इस छूट को बरक़रार रखने के लिए उसके मित्र महोदय से घनिष्ट रिश्ते बनाने की कोशिश की. यह भी किसी सही चाल चलन की औरत का काम नहीं.
३) मित्र महोदय ने इस घनिष्ट रिश्ते को मान्यता दे दी और वोह महिला वैसे ही देर से दफ्तर आती रही. मित्र महोदय की ग़लती है, उनको वैसे ही सख्त बना रहना था.
४) मित्र महोदय की फिर से सख्ती करने पे उस महिला ने यौन शोषण का आरोप लगा दिया।
क्या यह मित्र उस समय जब क्या यह मित्र उस समय जब यह महिला घनिष्टता बाधा रही थी कोई सही क़दम ले सकते थे? कहीं शिकायत दर्ज करवा सकते थे? यदी हाँ तो इन मित्र को उनकी ग़लती की सजा मिली. कीचड मैं पत्थेर मरोगे तो काले अवश्य हो जाओगे.
हाँ उन महिला की हरकतें तो ग़लत हैं ही. ऐसी महिलाओं से हमदर्दी नहीं होनी चहिये किसी को, जो औरत होने का ग़लत फाएदा लेने की कोशिश दफ्टर मैं करे.
एक भुक्तभोगी का आलाप ...
जवाब देंहटाएं@पुरुष के गिरने की सीमा है नारी की नहीं -अव्वल वह गिरती नहीं और अगर गिर गयी तब हश्र अंतहीन बन जाता है हिंस्र बन जाती है खूंखार और पाशविक !
वाह भगवन आपकी माया .....
@कभी किसी नारी के प्रति खुद रूचि मत दिखाईये
जवाब देंहटाएंऔर आफिस में कभी नहीं
.....तो फिर और कहाँ ??
कुल बात तो यह है कि स्त्री पुरुष दोनों में प्राकृतिक कमजोरियां बराबर हैं .. स्त्री कि सामाजिक हैसियत कम है यही एक कारण है कि सबकी सहानुभूति की पात्र वह बनती है .. पाप पुण्य के मामले में तो दोनों बराबर हैं .हाँ ज्यादातर स्थितियों में स्त्री ही प्रताड़ित होती है .ऐसे अपवादों का होना अस्वाभाविक कैसे हों सकता है !.
जवाब देंहटाएंअगर ऐसा मेरे साथ हुआ होता तो नाक रगड़ कर माफ़ी माँग लेता और फिर वह सब करता जिसका आरोप लगा
जवाब देंहटाएंकभी कभी सज्जनता को ताक पर रख देना पड़ता है, अगर कोई उसका मूल्य ना समझे
मुझे कई बार समझ नहीं आता कि महिला अगर किसी परिस्थिति में यौन शोषण का आरोप लगा देती है या अपने शरीर को दांव पर लगा देती है तो पुरूष में ऐसा क्या है जिसको ले कर आरोप लगा सके या दाँव पर लगा सके?
जाकिर जी वास्तविकता में जमीनी स्तर पर ऐसा होता है लेकिन इससे मैं आपके मित्र को ही ज्यादा दोषी मानूंगा क्योकि किसी के कदाचार को यौन रिश्वत लेकर बढावा देने वाला सबसे बड़ा दोषी है ना की महिला..ऐसे लोग पूरे समाज से नजरें मिलाने लायक वास्तव में नहीं हैं...उनके खिलाप सख्त से सख्त कार्यवाही होनी चाहिए साथ-साथ उस महिला के भी कार्यालयीय व्यवहार की जाँच कर उसे सजा दिया जाना चाहिए...लेकिन अधिकार को यौन रिश्वत के आगे बेचने वाला आपका मित्र ज्यादा दोषी है ...
जवाब देंहटाएंअभी कुछ समय पहले अख़बार में एक केश पढ़ा था की एक महिला ने एक व्यक्ति पर बलात्कार का आरोप लगाया और चिकित्सीय परिक्षण में इस की पुष्टि भी हो गयी पर वह उस दिन शहर में ही नही था जब जे बात शिद्ध हुई तो उस औरत से जब कड़ी पूछताछ की गयी तो पता चला की उस व्यक्ति को फ़साने के लिए पहले उस ने किसी और से सम्बन्ध बनाये और तुरंत ही पुलिस स्टेसन जा कर उस व्यक्ति के खिलाफ रिपोर्ट लिखा दी .
जवाब देंहटाएंअब उस महिला के इस कृत्य को किस श्रेणी में रक्खा जाये .
ऐसे ही बहुत से मामले ऐसे है जो की फर्जी है और निर्दोष जेल में ,
छमा चाहूँगा पर शोषण करने में महिलाये पीछे ही सही, पर है .
शोषण सबल ही कमजोर का करता है ,फिर वो पुरुष भी हो सकता है और महिला भी
जवाब देंहटाएंअपवादों का होना अस्वाभाविक कैसे हों सकता है ??
जवाब देंहटाएंकानून ही तो सबकी रक्षा कर सकता है !!
कानून मे सारे प्रावधान होने चाहियें और होते भी हैं। उनका उपयोग करना चाहिये फिर चाहे वो स्त्री हो या पुरुष्।
जवाब देंहटाएंजो आपने लिखा ऐसा असंभव नहीं है, हाँ इसका प्रतिशत कम है और फिर इससे वह निर्दोष सिद्ध तो नहीं हो जाती. मैं भी नारीवादी नहीं हूँ लेकिन न्यायवादी जरूर हूँ. कोई भी हो उसके साथ न्याय होना चाहिए.
जवाब देंहटाएंइस तरह की घटनाएं कम होती हैं पर इनके अस्तित्व से इनकार नहीं किया जा सकता... कई बार पुरुष, किसी तरह का कोई बढ़ावा,कोई छूट नहीं देते फिर भी इस तरह का दोषारोपण झेलना पड़ता है उन्हें.
जवाब देंहटाएंनिष्पक्षीय जांच ही इसका एकमात्र हल है.
ज़ाकिर भाई, प्रथम तो यह कि आप ने जो कहा है वह बिलकुल संभव है बल्कि मैं तो यह कहूँगा कि आज कल यह कुछ ज्यादा ही हो रहा है | कारपोरेट जगत के लोग यह अच्छी तरह जानते है कि काम निकलवाने के लिए पहले या कहें कि अब भी नारी का उपयोग किया जाता था / है |
जवाब देंहटाएंअपने विरोधियों को ठिकाने लगाने के लिए यह हथकंडा बिलकुल उपयोग में लाया जाता है , खास कर योन शोषण का सख्त क़ानून आने के बाद से | मै भी जानता हूँ ऐसे केस के बारे में , जिसमे एक महिला जिसे यह डर था कि वह नौकरी से निकाल दी जायेगी , उसने अपने पति और मायके वालों दोनों की सहमति से ऐसा आरोप पुलिस में दर्ज करवाया और जब मैनेजमेंट ने लिखित आश्वासन दिया तब जाकर केस वापसी का समझौता हुआ |
एक दूसरे केस में मैनेजमेंट ने किसी पर केस लगा कर उसे बर्खास्त किया |
तो यह सब कोइ अजूबा नहीं है , और यह सब घटनाएं विदेशों में भी होती हैं उदाहरण के लिए अभी कुछ दिन पहले समाचार पढ़ा कि जब टाइगर वुड्स पर योनाचार के कई खुलासे हो रहे थे तो उसी समय एक महिला जो एडल्ट फ़िल्मों में काम करती है, अपने पति के साथ मिल कर टाइगर वुड्स के डुप्लिकेट के साथ अपनी फिल्म बनवा कर ब्लैकमेल कर रही थी |
हमें इन बातों पर आश्चर्य करने के बजाय सावधान रहना चाहिए |
जैसा कि सबने ऊपर की टिप्पणियों में कहा भी है कि इसे एक अपवाद की तरह देखा जाना चाहिए और ये है भी ..।
जवाब देंहटाएंमगर मैं कुछ बातें तो स्पष्ट कर दूं ..अधिकांश कार्यस्थलों में कार्यरत महिला कर्मचारियों के हितों के मद्देनज़र एक विशेष कानून के अनुसार ...हर दफ़्तर में एक कमेटी बनी हुई है जिसका काम ही महिलाओं पर हो रहे किसी भी तरह के यौन शोषण की जांच करना ...मुझे लगता है कि आपके मित्र पर जरूर इसी कमेटी की अनुशंसा पर कार्यवाही हुई होगी । मगर ऐसा भी नहीं है कि ये कमेटी आंख मूंद कर आरोप को सच मान लेती है । हां देखना ये भर है कि आपके मित्र अपना पक्ष रख कर खुद को कैसे निर्दोष साबित कर पाते हैं । उनसे पहले उस पद पर नियुक्त अधिकारीगण , साथ के कर्मचारी , उनके मातहतों की गवाही आदि बहुत कुछ हैं जो उनकी मदद कर सकते हैं । हालांकि मुझे जाने क्यों लग रहा है कि मामला उतना सरल नहीं है जितना आपने बताया है ।
लगभग ऐसा ही एक किस्सा मैं भी जानता हूँ। हमारे विभाग के एक अध्यापक की मुख्याध्यापक जो कि एक यूनियन लीडर भी थे से बिगड़ गयी। लीडर महोदय ने एक अध्यापिका को प्रमोशन का लालज दिलाकर उस अध्यापक के खिलाफ यौन शोषण का मुकदमा करवा दिया। आज वह अध्यापक नौकरी से बर्खास्त हो चुका है और अध्यापिका महोदया लीडर की कृपा से प्रमोशन पाकर मुख्याध्यापिका बन चुकी हैं।
जवाब देंहटाएंखैर इसका मतलब ये नहीं कि हर यौन शोषण का आरोप झूठा होता है लेकिन जहाँ यह इल्जाम गलत हो पुरुष के पास खुद को निर्दोष साबित करने का कोई तरीका नहीं।
आप सबकी राय से यह ध्वनि निकल रही है कि इस तरह के मामले भले ही कम हों पर होते अवश्य हैं। और कभी कभी तो अपने दुश्मन को फंसाने के लिए भी एक तरह के मामले प्रायोजित किये जाते हैं। तो ऐसे में सवाल यह है कि पुरूष को क्या करना चाहिए, क्योंकि बकौल ई-पंडित पुरूष को निर्दोषा साबित करने का कोई तरीका नहीं है। यहाँ पर सवाल यह भी उठता है कि जब नारी यौन शोषण को रोकने के लिए तमाम तरह के कानून हैं, तो क्या पुरूष यौन शोषण के लिए भी कोई कानूनी प्राविधान है? अगर नहीं, तो क्या उसकी आवश्यकता महसूस की जाती है?
जवाब देंहटाएं"हमारे मित्रवर भी कोई विश्वामित्र तो थे नहीं,"---जाकिर जी, पहले तो आपके ग्यान व जानकारी की बढोतरी के लिये, आपका ऊपर वाला वाक्य व अर्थ गलत है-- --वास्तव में-विश्वामित्र तो नारी( मेनका ) से मोहित होगये थे अतः उदाहरण ही गलत है, आपके मित्रवर विश्वामित्र सिद्ध हुए।
जवाब देंहटाएं--कोई नई बात नहीं है , रोज़ाना एसी कहानियां , घटनायें दफ़्तरों, सन्श्थानों में होती हैं---आखिर आदम को फ़ल ईव ने ही खिलाया था.
---चाहे खरबूजा छुरी पर गिरे या छुरी खर्बूजे पर -कटेगा खरबूजा ही ---आप इसे नहीं बदलसकते।
---हां कथा की भावना अच्छी है,
---नर नारी दोनों ही , अर्थात व्यक्ति मात्र, मानव मात्र को ही संयम, शुचि आचरण पर चलना होगा , यही एकमात्र उपाय है, और सदविचारों, सदग्रन्थों, धर्म की यही महत्ता है।
जवाब देंहटाएंगुप्ता जी, विश्वामित्र सम्बंधी जानकारी के लिए आभार। वैसे मेरी भावना यह थी कि विश्वामित्र को डिगाने के लिए स्वर्ग की अप्सरा बुलानी पड़ी थी, पर आजकल के बहुत से पुरूषों को डिगाने के लिए अप्सरा की जरूरत ही नहीं पड़ती। :)
जवाब देंहटाएंहाल ही में,सुप्रीम कोर्ट ने दहेज और यौन शोषण के फर्जी मामलों की बढ़ती संख्या पर चिंता प्रकट की है। कानून संतुलित न होकर महिलाओं के प्रति अधिक झुके हुए हैं जिनके कारण ही इस प्रकार के मामले बढ़ रहे हैं। यह आश्चर्यजनक नहीं है कि पत्नी सताए तो हमें बताए जैसे संगठन विदेश में भी अपनी शाखाएं खोल रहे हैं। कई मामले सही भी होते हैं लेकिन ब्लैकमेल करने वाली महिलाओं के खिलाफ भी शिकंजा कसना चाहिए।
जवाब देंहटाएंज्यादा कुछ नहीं सिर्फ एक आंकड़ा रखना चाहूँगा | दहेज़, यौन शोषण के मामले जो दर्ज हैं उनमे से सिर्फ २६.५६ % सच साबित हुए...चलिए इनमे से कुछ और को मैं सच मान लेता हूँ लेकिन कम से कम ५० % तो फर्जी हैं...
जवाब देंहटाएं...काम्पीटीशन का दौर चल रहा है कुछ भी संभव है ... सार्थक पोस्ट !!!
जवाब देंहटाएंपुरुषों के यौन शोषण को लेकर कानूनी प्रावधानों का अभाव प्रकारांतर से उनकी दबंगता ही सिद्ध करता है !
जवाब देंहटाएंहुड हुड दबंग ..दबंग दबंग हुड हुड दबंग ..
आप के दोस्त की सुनकर बड़ा दुःख हुआ बिचारे खाया पिया कुछ नहीं ग्लास तोडा बारह आने. आप क्या चाहते हैं आप के दोस्त के साथ क्या होना चाहिए था . मैं सोच रहा हूँ एक इतना इमानदार आदमी जो की अपना इमां सिर्फ एक औरत का इमान लेकर ही छोड़ता है उसके साथ उस औरत को क्या करना चाहिए? धन्य हों आप जिन्होंने उन जैसे महान व्यक्ति की जिन्दगी में रोशनी लाने के लिए इतना प्रयाश किया और धन्य हैं हम सब जो आप के कहे अनुसार अपना मत दे रहे हैं . बढ़िया लोगों से दोस्ती बढ़ा रहे हैं आप . वैसे सच सच बताईये कभी अपने दोस्त के ऑफिस आना जाना होता था या नहीं ?
जवाब देंहटाएंचलिए ये तो रही आप के दोस्त की बात लेकिन जब आप की बात पर आते हैं तो बात आपने दिल की कही है जानते हैं होता क्या है ? लड़कियां कोई काम सुरू तो कर देती हैं बस जादा सोचती नहीं हैं और जब सोचती हैं तो छोड़ने के आलावा कोई रास्ता नहीं रहता आप ही बतायिये एक शादी शुदा के साथ जिस भी तरह का सम्बन्ध उस औरत का था उसको छोड़ने के अलावा क्या रास्ता था उसके पास ? लेकिन मैं कहूँगा की गलती आप के दोस्त की है वो एक बेईमान औरत के साथ होगये अपने काम के प्रति इतने दिनों की ईमानदारी छोड़ दी . सोचिये पहले उस औरत के हिम्मत नहीं थी उनपर आरोप लगाने की लेकिन जब उसने देख लिया की इस आदमी को गिराया जा सकता है , भटकाया जा सकता है तब उसने समझ लिया की इसे धमकाया भी जा सकता है ,रुलाया भी जा सकता है . देखिये बात आप की सही है ऐसी औरतों से या इस तरह के शोषण से बचने के लिए हमारे पास क्या अधिकार है या कौन सा कानून है ?
शायद हो मुझे पता नहीं ठीक से या न हो तो आगे ऐसा होना चाहिए की बिना गलती के कोई पुरुष न फंशे फिर भी अगर कोई चारा नहीं तो अपना चरित्र ऊँचा किया जय किसी औरत के लिए गिरने से पहले सोचा जाये की उसके बाद क्या होगा? देखिये जो गिर गया है उसको गिरने का डर नहीं पर अगर आप अभी भी नहीं गिरे हैं तो इज्जत तो आप को ही अपनी बचाना है फिर चाहे आप पुरुष हों या महिला
आदमी करे तो सब सही, पर औरत करे तो सब गलत, अब क्या कहें.. एक नारी की शक्ति...
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